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Rajeev Kumar

Romance Tragedy

4  

Rajeev Kumar

Romance Tragedy

ऐसा भी क्या मिलना

ऐसा भी क्या मिलना

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ये शादी से पहले का अकेलापन था जिस समय नोजवान कपल्स ( जोड़ी ) को देख करक अपने कपल्स ( जोड़ी ) की कमी को दिल की गहराई तक महसूस करते हैं और पिया / प्रियतम मिलन को बेचैन रहते हैं। हर किसी के दिल में किसी लड़का / लड़की का ख्याल रहता है, कोई बताता है, कोई छुपाता है , दिल का बुरा हाल रहता है।

राज खुलने से बदनामी और लोगों की बुरी नज़र से उपजा दर्द और दिल में प्यार का राज छुपा लेने से दिल से लेकर दिमाग के गलियारे तक उथल-पुथल और अन्तहीन मुक बेचैनी का दर्द।

मयंक अपना ध्यान पढ़ाई मे लगाने की कोशिश करता मगर उसका ध्यान किसी अजनबी-अनदेखे चेहरे की तरफ चला जाता। मयंक क्लासरूम में टीचर की बात ध्यान से सुनने की कोशिश करता तो कोई खुबसुरत सा चेहरा उसको ब्लैकबोर्ड पर दिख जाता। हालांकि सुंदरता का बड़ा और अन्तिम पैमाना अभी तक वो तय नहीं कर पाया था। जिस मोड़ पर वो सुंन्दर लड़की को देखता तो सोचता, ये लड़की उस लड़की से ज्यादा खुबसूरत है, फिर अगले मोड़ पर किसी सुंन्दर लड़की को देखता तो सोचता, उस दिन जो सबसे सुुंन्दर लड़की देखी थी मैंन, ये लड़की तो उससे भी दस गुणा सुंन्दर है। अलबŸाा मयंक सुन्दरता को लेकर कन्फ्युज था।

दिल में बेचैनी और बेकरारी का लाख बोझ सही, मगर घर को बड़ा बेटा होने के नाते उस पर जिम्मेदारियों का भी बोझ था, जिसको वो नज़रअंदाज नहीं कर सकता था।

जिम्मेदारियों का बोझ ढोते-ढोते समय बीता, मेहबूबा का सपना, सपना ही रह जाने के कारण मयंक चिन्तीत था। मतलब ऐसा होता था कि जिसपे वो आकर्षण महसूस करता था, उसकी तरफ से वो विकर्षण महसूस करता था।

इसी तरह चलते-चलते राह में एक नवविवाहिता लड़की दिखी, बला कि खुबसूरत, मयंक के दिल ने कहा , जितनी भी लड़की अब तक देखी, सबसे ज्यदा खुबसूरत यही है।

अगले ही पल मयंक के मन-मस्तिष्क में आकर्षण-विकर्षण की सोच की स्थिति एक साथ उथल-पूथल मचाने लगी। मयंक इग्नोर कर आगे बढ़ गया। दुसरे दिन वो नवविवाहिता लड़की पे फिर उसका ध्यान गया, मयंक ने अपने प्रति आकर्षण , उसकी आँखों में महसूस किया।

अगले दिन मयंक और नवविवाहिता लड़की का फिर आमना-सामना हुआ। न आकर्षण न विकर्षण, दोनों अपनी-अपनी राह चलने लगे, संयोगवश दोनों का रास्ता एक ही था। वो मुड़ी, मयंक भी मुड़ा।

थोड़ी दुर आगे चलकर उस नवविवाहिता लड़की ने अपनी चाल धीमी कर दी और मयंक ने अपनी चाल बढ़ा दी। नतीजतन दोनों साथ-साथ चलने लगे।

’’ आप इस शहर में नई आई हैं ?’’ बातचीत की शुरूआत करते हुए मयंक कने प्रश्न किया।

उस नवविवाहिता लड़की ने चलते-चलते, मयंक को थोड़ी देर देखने के बाद कहा ’’ हाँ, मेरा ससूराल है यहाँ। ’’

’’ आप तो यहीं के होंगे ? ’’

’’ हाँ हाँ, मेरा तो जन्म ही इसी शहर में हुआ है। ’’ जवाब में मयंक ने कहा। दोनों चुप-चाप चल रहे थे कि अचानक मयंक ने उस लड़की का हाथ पकड़कर अपनी तरफ खिंचते हुए, चिल्लाकर कहा ’’ साला, राँग साईड से गाड़ी चलाता है, रूक तु, अभी बताता हूँ। ’’ बाईक वाला रफूचक्कर।

’’ थैंक्स, आज तो हमको मार ही देता। ’’

’’ गाड़ी चलाना आता नहीं और गाड़ी लेकर निकल जाते हैं। ’’ मयंक ने कहा।

थैंक्स जैसी छोटी बात कहने के बाद, और बड़ी-बड़ी बातें करने और जानने की इच्छा जगी, मयंक की भी जिज्ञासा ने सुगबूगाहट भरी।

लड़की ने पुछा ’’ तुम भी शादी-शुदा हो न ? ’’

मयंक के ’ ना ’ में सिर हिलाते ही उस लड़की ने दोबारा दमदार सवाल दागा ’’ तब तो प्रेमिका तो जरूर होगी ? ’’

उस लड़की के सवाल ने मयंक को अन्दर तक हिला दिया। मयंक दंग था, ऐसे स्पष्ट सवाल पर। थोड़ी सी चुप्पी, थोड़ी सी शरम, मयंक के चेहरे पर क्षण भर के लिए पसर गई, जवाब के इन्तजार में उसको अपनी ओर टकटकी लगाए देखकर, मयंक ने कहा ’’प्रेमिका मेरी किस्मत में नहीं है, किसी ने प्यार के काबिल हमको समझा ही नहीं। ’’ बनावटी मुस्कान चेहरे पर बनाए रखने की कोशिश करते हुए भी, उदासी, हताशा और निराशा के बादल मयंक के चेहरे पर पसर गए।

उस लड़की ने ’ साॅरी ’ कहा तो मयंक ने कहा ’’ साॅरी की क्या बात है, ये तो चलता ही है। अच्छा नाम क्या बताया आपने अपना ? ’’

उस लड़की ने कहा ’’ नाम तो अभी तक मैंने बताया ही नहीं, और इतनी बड़ी बात पुछ ली, तुम भी क्या सोचोगे, बाई द वे मेरा नाम रचना रोहन श्रीवास्तव है। ’’ मयंक को अपनी ओर आश्चर्य से देखते हुए रचना ने कहा ’’ घबराओ मत, रचना मेरा नाम है और रोहन श्रीवास्तव मेरे पति का। ’’

मयंक के मन ने तीन-चार रोहन का चेहरा देख लिया। मयंक ने मन ही मन सोचा ’ श्रीवास्तव कौन है, खैर जो भी हो, बहूत भाग्यशाली है, पिछले जन्म और इस जन्म में भी बहूत अच्छे पुण्य किए होंगे, जो खुबसूरत पत्नी मिली है। रचना का पहला प्यार रोहन ही होगा जो पति बनकर जिन्दगी बन बैठा है। ’’

मयंक को चुटकी की आवाज सुनाई पड़ी, रचना चुटकी बजा कर पुछ रही थी ’’ कहाँ खो गए तुम ? ’’

’’ नहीं नहीं, कहीं तो नहीं, मैं तो यहीं हूँ। ’’ मयंक ने अपना नाम बताना जरूरी नहीं समझा और उसने भी नाम पुछना जरूरी नहीं समझा।

थोड़ी दुर चलने के बाद दोनों अलग-अलग रास्ते की तरफ मुड़नेवाले थे कि रचन के दिल में गुदगुदी हुई। दरअसल प्यार इतना मसालेदार विषय है कि दुसरे की प्रेम कहानी सुनने से ज्यादा अपनी प्रेम कहानी पेश करने में ज्यदा आनंद आता है। रचना ने अपने दिल की ज्वालामुखी से लावा ( दिल का गूब्बार ) निकालना जरूरी समझा। प्रेम विषय को लोग अजनबी से भी साझा करने में शुकून का अनुभव करते हैं।

रचना ने कहा ’’ तुमने ठीक कहा, प्यार सब को नहीं मिलता है, हमको भी पहला प्यार नहीं मिला। ’’

मयंक ने आश्चर्य से रचना की तरफ देखकर मन ही मन सोचा ’’ मैं ही सिर्फ बदनसीब नहीं, यहाँ खुबसूरत लोग भी बदनसीब हैं। मैं अच्छी सीरत लेकर रोया और ये अच्छी सुरत पाकर रो रही है। ’’

मयंक - ’’ हमको यकीन नहीं हो रा है कि आपको पहला प्यार नहीं मिला होगा। ’’

रचना - ’’ सच बोल रही हूँ, मेरा भी हाल तुम्हारे जैसा है। ’’

मयंक उसकी तरफ देख रहा था अगला वाक्य सुनने के लिए।

रचना ने कहना शुरू किया ’’ सारे लोगों की तरह मेरे भी कुछ सपने थे। मैंने भी चाहा था कि किसी के प्यार को अपनी जिन्दगी बनाउं। ’’ वो शुन्य में खोकर ही ये बस बातें कह रही थी।

’’ बहुत कोशिश की मगर उसको पा न सकी। ’’

मयंक ने कहा ’’ कोई इडियट ही होगा, जो आपको इग्नोर किया होगा। आपको न पाकर वो जिन्दगी भर रोएगा और पछताएगा। ’’

मयंक ने प्रश्न किया ’’ जिसको आप चाहती थीं, वो किसी और को चाहता था ? बड़ा अजीब इंसान होगा वो। ’’

रचना ने कहा ’’ नहीं,उसको इडियट और अजीब क्यों समझूं, मेरी ही किस्मत खराब थी। बस उसका नाम जानती थी, आज तक उसको कभी देखा ही नहीं, बस डैडी से उसकी तारीफ सुनती थी। ’’

मयंक ने मन ही मन सोचा ’’ अजब प्यार की गजब कहानी है, कोई बिना चेहना देखे भी बेइम्तहां प्यार कर सकता है। हम दोनों की कहानी एक जैसी ही है , मेरे दिल में प्यार का सागर , मगर कोई चेहरा नहीं मिला और इसने उसको बिना देखे ही बेचैन-बेइम्तहां प्यार कर लिया। ’’

सोच के दरिया से बाहर आकर मयंक की जीज्ञासा बढ़ी।

मयंक ने पुछा ’’ तो कभी आपने उस तक पहूँचने की कोशिश नहीं की , मिलने का प्रयास नहीं किया ? ’’

रचना ने कहा ’’ मिलने की कोशिश भी नहीं कर पाई, मेरा दिल इतना घायल, उससे मिलने के लिए पागल हो चूका था कि मैं सचमुच की पागल हो गई। जहाँ भी देखती, उसका ही नाम दिखता, जो भी सोचती, उसका ही नाम सोच पाती। मेरे दिल की दिवारों पे इतनी जगह उसका नाम लिखा हुआ था कि मन ही मन उसका नाम लेते-लेते, नींद में उसका नाम बड़बड़ाना शुरू कर दिया था। ऐसा मम्मी कह रही थी। ’’

मयंक ने पुछा ’’ उसके बाद क्या हुआ ? ’’

रचना - ’’ होना क्या था, मेरी हालत देखकर , जल्दीबाजी में, बगैर मुझसे पुछे मम्मी-पापा ने मेरी शादी कर दी। हमको तो कुछ भी होश नहीं था, और सिर्फ परिवार के ही लोग इस शादी में शामिल हुए थे। ’’

मयंक - ’’ बहुत बुरा हुआ। ’’

रचना - भगवान के खेल निराले , मेरा पहला प्यार भी इसी शहर में है और मेरी शादी भी इसी शहर में। ’’

मयंक ने अपनी भौंहे सिकोड़ कर पुछा ’’ इसी शहर में ? ’’

रचना के हाँ कहते ही मयंक की जीज्ञासा ने दसवीं मंजील से छलांग लगा दी। मयंक ने पुछा ’’ मतलब, बदकिस्मत और खुशकिस्मत लड़का, दोनों इसी शहर में ? ’’

मयंक-’’ अब तो बता ही दीजिए उसका नाम। ’’

रचना-’’ वो मेरे डैडी के जिगरी दोस्त का बेटा था। ’’

मयंक की उत्सूकता और बढ़ी। मयंक ने पुछा ’’ आपके डैडी के जिगरी दोस्त का क्या नाम है ? ’’

रचना - ’’ उनका नाम है अभय प्रताप सिंह। ’’

मयंक के ललाट पर और ज्यादा बल पड़े, मयंक ने पुछा ’’ अच्छा वो काम क्या करते हैं ? ’’

रचना - ’’ अभय इन्टरप्राइजेज उन्हीं का है। ’’

मयंक की आँखें थोड़ी सी नम हो गई, अब तो नाम पुछना बेहद ही जरूरी हो गया, इतना जरूरी कि रात को नींद भी न आए।

’’ अच्छा, उसका नाम तो बता दीजिए। ’’

रचना ने अपनी आँखों के किनारे से लूढ़के आँसू पोंछ कर कहा ’’ उसका नाम मयंक था। ’’

नाम सुनकर ऐसा लगा कि कोई सुनामी, तुफान या भूकम्प आ जाए और हमको अपनी गोद में ले ले ओर कभी दोबार जन्म न मिले।

रचना ने झकझोर कर कहा ’’ तुम क्यों रो रहे हो ? साॅरी मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था। ’’

मयंक ने कहा ’’ उसका नाम सुनने से पहले भगवान ने मुझको हार्ट अटैक क्यों नहीं दे दिया ? ’’

रचना ने थोड़ा झुंझला कर पुछा ’’ तुम ऐसा क्यों बोल रहे हो ? ’’

’’ अरे वो बदकिस्मत, करमजला, दिलजला, तुम्हारा मयंक मैं ही हूँ। ’’

रचना को ऐसा महसूस हुआ कि पैरों तले की जमीन खिसक गई है और मैं गिरती चली जा रही हूँ, गहराई में, अंधेरी गहराई में। सारी खुशी यकायक गम में बदल गई हैं, शरीर बेजान सा हो गया है, जीने की कोई तमन्ना बाकी नहीं रही।

रचना और मयंक ने एक दुसरे को आँसू भरी नज़रों से देखा, जुबान ने काम करना बंद कर दिया था। रचना ने अपनी सिन्दुर भरी माँग की ओर इशारा किया। आँसूओं के सैलाव को पीकर दोनों ने एक दुसरे को आँसू भरी आँखों से विदा किया और उसके बाद मयंक और रचना कभी भी नहीं मिले।



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