फैसला
फैसला
रोहन चहलकदमी तो कर रहा था मगर आज उसकी फूर्ति और चुस्ती, बर्फ बनकर जम सी गई थी, जो बर्फ राहत कम और हाड़ माँस को जमा देने का ज्यादा काम करती है। रोहन की चहलकदमी में बदहवासी झलक रही थी।
रोहन की नज़र ऑपरेशन थिएटर के बाहर रेड लाईट जो कभी उच्च तो कभी मद्धिम हो रही थी और जिस रेड बल्ब के अचानक बूझ जाने पर डॉक्टर बाहर आते हैं और कहते हैं ’’ आई एम वेरी वेरी सॉरी, हम मरीज को नहीं बचा पाए। ’’ वही रेड लाईट रोहन को चिढ़ा रही थी, चिढ़ा क्या रही थी, रूला रही थी और दिल को दहला रही थी।
3 घंटा का समय वो भी ऑपरेशन थियेटर के बाहर तीस साल के बराबर हेाता है। ऑपरेशन थियेटर के भीतर सोनिया की हालत नाजुक बनी हुई है। सोनिया के दिल की डोर रोहन के दिल से गुंथी हुई थी। रोहन बदहवासी और चिन्ता में इतना खोया हुआ था कि उसके मुंह से सिर्फ ’ हे भगवान, सोनिया को कुछ भी न हो। ’’ से ज्यादा कुछ भी नहीं निकला, लेकिन आँखों से आँसुओं का निकलने का सिलसिला बदस्तूर जारी था।
बदहवासी और मायूसी में चहलकदमी कर रहे रोहन को थोड़ी आत्मिक शांति तब मिली, जब उसकी नज़र सोनिया की मम्मी जया जी पर पड़ी।
जयाजी की मानसिक मजबूती, रोहन से कहीं ज्यादा थी, इस बात का प्रमाण जया जी के चेहरे से स्पष्ट झलक रहा था।
रोहन ने झट से अपने आँसू पोंछे और अपनी मानसिक मजबूती का परिचय देने के लिए वो जयाजी के सामने खड़ा हो गया।
प्रतिकूल परिस्थिति किसी को पत्थर बना देती है तो किसी को मोम। इस बात का खुलासा तुरंत ही हो गया।
लाख कोशिशों के बावजूद अपने आप को रोक नहीं पाया और फूट-फूट का बिलख-बिलख कर रोने लगा लेकिन जया जी ने अपनी मानसिक मजबूती और भावनात्मक तालमेल को बनाए रखा, उनको डर था कि अगर खुद टूट जाएगी तो रोहन और सोनिया को कौन सम्भालेगा।
इसलिए जया जी ने कहा ’’ रोहन बेटा, फिक्र मत करो, सब ठीक हो जाएगा। ’’ ये दिलासा, रोहन के मन-मस्तिष्क में उथल-पुथल मचाने लगे। सोनिया की माँ जयाजी द्वारा दिए गए इस दिलासा ने रोहन की अपनी माँ की याद करा दी। उसको यह याद हो आया कि मम्मी जब भी मेरे गाल को पुचकार कर, मेरे सिर पर आर्शीवाद वाले हाथ रखती थी तो सिर दर्द तो क्या बड़ा से बड़ा संकट, परेशानी भी उड़न छू हो जाया करती थी।
जिस प्रकार बहाव अपना रास्ता ढूंढ लेती है, ठीक वैसे ही रोहन के मन-मस्तिष्क में चल रही बेचैनी के तूफान ने रोहन को थोड़ी सी निजात दिला दी और वो कुछ दिनों पहले की याद में खो गया।
माँ ने कहा ’’ बता न बेटा, क्या हुआ है , आजकल तू उदास और उखड़ा-उखड़ा क्यों रहता है ? मुझसे नहीं हो सकेगा तो तुम्हारे पापा से बात करूंगी और तुम्हारी मदद करने की पुरी कोशिश करूंगी। ’’
’’ कुछ नहीं माँ, वो बस ऐसे ही। ’’ बोल कर रोहन बाहर निकल गया।
अपनी-अपनी तन्हाई को दूर करने और प्यार की मखमली एहसास को महसूस करने के लिए सोनिया और रोहन एक दूसरे की बाँहों में खोए हुए थे। पार्क का निर्जन सा स्थान था जहाँ किसी की भी नज़र नहीं पड़ती।
सोनिया ने कहा ’’ एक बात पूछुं ? ’’
’’ नहीं नहीं, आज कुछ भी मत पुछो। देखो न मौसम कितना सुहाना है। ’’ रोहन ने अपनी बाँहों की पकड़ को और मजबूत करते हुए कहा।
’’ नहीं आज तो मैं पुछ के ही रहूंगी। हर बार तुम मजाक में टाल जाते हो और लगभग साल भर से तुम टाल रहे हो। आखिर कब तक हमलोग छुप कर मिलेंगे ? ’’ सानिया ने खुद को रोहन के बाँहों की पकड़ से खुद को छुड़ाने की असफल कोशिश करते हुए कहा।
इस बार रोहन ने, सोनियाा की आँखों में झांककर कहा ’’ अच्छा तुम अपनी मम्मी से बात कर ली है न, सब कुछ हमारे बारे में बता दिया है न ? ’’
’’ मेरी मम्मी ग्रेट हैं, पापा के चले जाने के बाद उन्होंने बड़ी हिम्मत से घर-परिवार को संभाला है। वो मेरी पसंद, मेरे प्यार को कभी अस्वीकार नहीं कर सकतीं। ’’
’’ वैसे तो मेरे पापा थोड़े जीद्दी और अड़ियल स्वभाव के हैं, मगर मेरी माँ मान जाएगी तो पापा को भी जरूर मना लेगी। मेरी माँ मुझको परेशानी में नहीं देख सकती, आज मैं जरूर बात करूंगा। ’’ रोहन ने सोनिया के जुल्फों से खेलते हुए कहा और दोनों अपने-अपने धर चले गए।
रोहन की बाईक आज स्पीड की बजाए धीमी गति से चल रही थी। नीले और पीले कपड़ों में सजी सानिया ने चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लाकर पुछा ’’ आखिर हमलोग जा कहाँ रहे हैं और आज तुम्हारी बाईक को क्या हो गया है, बैलगाड़ी से भी धीमी क्यों चल रही है ? ’’ सानिया ठहाका लगा कर हँसी और रोहन को भी हँसाने की कोशिश करने लगी।
’’ हँसो मत सोनिया, आज तुमको अपनी मम्मी से मिलवाने ले जा रहा हूँ। हिम्मत तो काम नहीं कर रहा है मगर हिम्मत तो दिखाना ही होगा। ’’
’’ यह सुनकर सोनिया भी थोड़ी सहम गई, उसकी तो दिल की धड़कन भी तेज हो गई थी।
सोनिया तो बहुत पसंद आई लेकिन बहू के रूप में नहीं बल्कि रोहन के क्लासमेट के रूप में। रोहन ने अपनी माँ से कहा ’’ हमको तो लगा था कि आप पापा को राजी कर लेंगी लेकिन आप तो खुद मजबूर लग रही हैं। ’’ रोहन की बातों में खिज उत्पन्न हो गई।
बाईक पे सानिया की अँगुलियां, रोहन के पेट पर फिसली, और दुःख में कुछ भी नहीं तय कर पर रहा रोहन का संतुलन बिगड़ा और बाईक खाई के हवाले हो गई।
ऑपरेशन थियेटर के बाहर रोहन खुद पे क्रोधित हो सोच रहा है कि सोनिया की जगह हमको ही कुछ हो जाए।
अचानक जानी-पहचानी आवाज रोहन के कानों से टकरायी, सिर पर माँ का आर्शिवादी हाथ था वो कह रही थी, ’’बेटा, मेरी बहु का कुछ भी नहीं होगा। ’’
एक बुलंद आवाज भी आई, रोहन के पापा ने कहा ’’ हम अपनी बहु को यहाँ से घर ले जाएंगे। ’’
सम्भवतः पहली बार आज रोहन अपने पापा के गले लगकर खुब रोया ऐसा लगा कि जैसे बाँध टूटने पर पानी बह जाता है वैसे ही भावनाओं का पानी तट बंध तोड़कर पूरे परिवार को डुबो गई।
समाप्त

