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Rajeev Kumar

Others

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Rajeev Kumar

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जीने दो

जीने दो

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नोट- समलैंगिक विषय पर लिखी गई काल्पनिक कहानी।


बसंत ऋतु में सब पर अलमस्त जवानी छाई थी। ऐसा लगता था कि जैसे पूरा माहौल मदमस्त हो चुका है। रंग-बिरंगे, खुशबूदार फूलों से पूरा गुलशन आबाद है। पेड़ों की शाखों पर बैठे प़क्षीयों की जोड़ी हमेशा कोई मीठा सुरीला गीत सुना रहे हों। उंचाई से गिरते झरने का पानी, झील के पानी से गले मिल रही हो।

हवादार जगह पे पेड़ के नीचे

चबूतरे पे बैठा शशांक, आस-पास फूलों की क्यारियों के बीच, एक-दूसरे की बाँहों में लिपटे प्रेमी जोड़ों को, हँसते-मुस्कराते प्यार भरी बातों में सराबोर होने के एहसास को दिल की गहराइयों से महसूस करता है और एक सांस में भर लेता है घुटन और बेचैनी के एहसास को और उसका अकेलापन फिर सक्रीय हो जाता है। शशांक के मन में अकेलापन जिन्दा हो जाने के बाद सुहाना मौसम, दमघोंटू लगने लगता है और गुलशन विराना लगने लगता है। अलबŸाा शशांक वहाँ से उठ कर चल देता है और घर आकर खुद को कमरे में बंद कर लेता है, जहाँ उसका अकेलापन मरता नहीं है बल्कि और भी उत्पाती हो जाता है। अकेलापन मन-मस्तिष्क के कोने-कोने में जाकर अपनी छाप छोड़ देता है। बेचैनी में उसको थोड़ी देर करवटें बदलने के बाद नींद आ जाती है मगर सपने में भी उसका अकेलापन उसका पीछा नहीं छोड़ता है और फिर शशांक और भी बेचैन होकर जाग जाता है।

शशांक के मन में एक बात और हावी हो जाती है, एहसास से मन का कोना-कोना महक उठता है। शशांक ने घड़ी पे निगाह डाली। दो बजने में पन्द्रह मिनट बाकी है। रचना के कॉलेज से लौटने के समय का एहसास कर शशांक का रोम-रोम पुलकित हो उठता है और संवर जाता है एक सपना। उसके जेहन में आया कि आज तो रचना प्यार भरी नज़र से जरूर देख लेगी। पूरे एक सप्ताह के बाद उसके कॉलेज के रास्ते में खड़ा रहूंगा।

अगले पल शशांक खड़ा है, रचना के कॉलेज से लौटने के रास्ते में। रचना आई तो जरूर मगर शशांक को इग्नोर कर निकल गई। शशांक ने खुद को सम्भाला, दिलासा दिया कि इग्नोर तो वो हमेशा ही करती है। खुशी और उम्मीद के एहसास पर ग़म की परत चढ़ते ही, सब कुछ सामान्य हो गया क्योंकि घुटन और अकेलापन का एहसास शशांक के लिए सामान्य सी बात थी।

शशांक के दोस्त तो कई थे मगर निशांत की दोस्ती में शशांक को नयापन महसूस हुआ। शशांक और निशांत की दोस्ती खुब परवान चढ़ा, जलने वाले जले और मचलने वाले मचले।

प्यार-मोहब्बत के विषय पर हुई मीठी सी बहस पर निशांत ने कहा ’’ यार, महबूबा-प्रेमिका तो फिल्मों और किताबों में होती है, जिन्दगी में सिर्फ कमी ही कमी रही, शबनमीं कुछ भी महसूस नहीं किया। ’’

शशांक ने भी उसके जवाब पे हामी की मुहर लगाते हुए कहा ’’ सही कहते हो यार, उपरवाले ने प्रेम की लकीर हाथ में डाली ही नहीं है, मिलन तो क्या नज़र-ए-इनायत से भी उसने महरूम रखा है। ’’

दोनों दोस्तों के दिल का गुब्बार निकला और हवा हो गया। शशांक और निशांत दोनों इतने दुधीया गोरे होते हुए भी लड़की फिसलते-फिसलते सम्भल जाती थी।

तन्हाई के मारे दोनों साथी, अब भीड़ से दूर तन्हा जगह पर वक्त गुजारने की सोचने लगे, जहाँ किसी की नज़र न पड़े।

दोनों दोस्त एक दूसरे का हाथ पकड़ कर के तो चलते ही थे, एक दिन हाथ सहलाने के क्रम में निशांत ने गुदगुदी का अनुभव किया और शशांक ने दिल में सुकून के एहसास का।

निशांत ने शशांक का हाथ अपने उपर से हटाते हुए कहा ’’ अबे तू करता क्या रहता है ? ’’

शशांक ने पुछा ’’ क्या तुमको कुछ-कुछ नहीं होता है ? ’’

निशांत - ’’ गुदगुदी होती है और तो कुछ भी नहीं होता है। तुमको क्या होता है ? ’’

शशांक- ’’ मैं तुझ में अपनी रचना का एहसास कर लेता हूँ। ’’

निशांत ने शशांक को झकझोर कर कहा ’’ ऐ हीरो, इमोशनल में ट्रेडीश्नल मत तोड़ो यार। ’’

शशांक ने कहा ’’ चल न एक शुरूआत करते हैं, धीरे-धीरे तुमको भी अच्छा न लगने लगे फिर कहना, बहुत मजा आएगा यार। ’’

निशांत के बार-बार मना करने के बाद भी जब शशांक ने अपनी भवनात्मक-वासनात्मक हरकतें नहीं छोड़ी तो निशांत गुस्से से तम तमाकर उठा और अपने घर को चल दिया।

जाएगा कहाँ, जिगरी दोस्त है, अभी आता ही होगा, शशांक की ऐसी सोच तब पश्चाताप में बदल कर, उदासी और अकेलेपन के महासागर में डुब जाने लगी, जब मिलना तो दूर की बात, दो दिन तक निशांत ने फोन भी नहीं उठाया।

फोन की आखिरी घंटी खत्म होने के साथ ही शुरू हो जाती थी शशांक के मन में मूक अंतहीन बेचैनी का सिलसिला। पश्चाताप और खुद पे गुस्सा की शुरूआत शशांक ने खुद को लगभग समझा ही लिया कि अब निशांत नहीं आएगा।

डीनर टेबल पर शशांक की मम्मी ने कहा ’’ शशांक, कहाँ खोए-उलझे रहते हो आजकल, ठीक से खाना भी नहीं खाते। दो दिन में हमलोग भोपाल चलेंगे, रोहन की शादी है, तुम्हारा मन भी बहल जाएगा। ’’

रोहन की होनेवाली तस्वीर देखते ही शशांक को खुशी कम और उदासी अधिक महसूस हुई, उसने कहा ’’नहीं मम्मी, मैं नहीं जाऊंगा, इम्तहान सिर पे है। ’’

शशांक के पिता विनय बाबू ने कहा ’’ तुम चोरी हो जाने के डर से नहीं जा रहे हो न ? कोई न कोई तो घर में सो ही जाएगा, और हमलोग चार दिन में तो वापस आ ही रहे हैं। ’’

शशांक ने कहा ’’ नहीं मम्मी नहीं पापा जाने का मन नहीं कर रहा है। ’’

मम्मी-पापा को स्टेशन छोड़ कर आने पर लेटे-लेटे, शशांक के मन में विचार आया और उसने आखिरी बार सोचकर निशांत को फोन लगाया, फोन रिसीव होते ही शशांक ने कहा ’’ सॉरी यार, हमको ऐसा नहीं करना चाहिए था। ’’

उस तरफ से निशांत ने कहा ’’ अच्छा छोड़ो यार, खाना-पीना हो गया ? ’’

जवाब में शशांक ने कहा ’’ अभी तो खाना खा लिया है, मगर रात में अँगुलियां जलानी पड़ेगी। ’’

निशांत ने कहा ’’ तुम खाना बनाओगे, आन्टी नहीं है ? ’’

शशांक ने कहा ’’ नहीं यार, मम्मी-पापा तो चार-पाँच दिनों के लिए फूफेरे भाई की शादी में भोपाल गए हैं। ’’ फोन कट होते ही जिगरी दोस्त से बात होने पर खुशी का एहसास, पश्चाताप, उदासी और अकेलेपन में बदल गया।

शशांक को अभी नींद आई ही थी कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ’ कौन आ गया ? ’ शशांक के मन ने सोचा और दरवाजा खोलते ही शशांक की आँखें फटी की फटी रह गई, सामने निशांत खड़ा था। निशांत को मुस्कराते देखकर शशांक को भी मुस्कराना पड़ा।

अभी शशांक कुछ पुछ पाता कि निशांत गर्मजोशी से गले मिला। चाय-नाश्ता हो जाने के बाद निशांत ने कहा ’’ सॉरी यार, हमको ऐसा नहीं करना चाहिए था। ’’

शशांक ने कहा ’’ मैं भी सॉरी बोलता हूँ, हमको भी वैसा नहीं करना चाहिए था। ’’

निशांत ने कहा ’’ मेरा सॉरी बोलना ज्यादा जरूरी है, तुम अपनी सॉरी वापस ले लो। ’’

शशांक ने थोड़ा मुस्कराकर कहा ’’ मैं कुछ समझा नहीं। ’’

निशांत ने कहा ’’ मैंने तुम्हारे उस दिन की बात को दिल की गहराई से सोचा और महसूस किया कि इसके अलावा मेरे पास कोई चारा भी नहीं है। ’’

शशांक ने कहा ’’ सॉरी तो मैं बोल ही चुका हूँ अब दोबारा तुम्हारी दोस्ती खोना नहीं चाहता हूँ। सॉरी यार। ’’

निशांत ने भावनात्मक हो कहा ’’ मैं वादा करता हूँ और विश्वास दिलाता हूँ कि उस कामक्रिया के बाद हमारी दोस्ती और भी मजबूत हो जाएगी। ’’

थोड़ी देर ना नुकूर करने के बाद दोनों ने अपने शरीर को एक दूसरे के हवाले कर दिया। दोनों आलिंगन में बंघ कर एक दूसरे के गुलाम हो गए। चार दिनों तक 4 दर्जन बार हुए मुख मैथून और गुदा मैथुन ने शशांक और निशांत को धरती पर स्वर्ग का एहसास करा दिया। अप्राकृतिक सम्भोग हेतु दोनों एक दूसरे के आदि हो गए। खाली घर, पड़ोसी का न के बराबर आना-जाना, शशांक और निशांत को बहुत करीब ले आया मगर चार दिन बीत जाने के एहसास ने दोनों को उदास कर दिया।

निशांत ने कहा ’’ टेंशन मत ले यार, जगह की कमी थोड़े ही है, जहाँ भी मौका मिल जाएगा काम हो जाएगा। ’’

लुका छीपी का हसीन खेल न जाने किसके कैमरे में कैद हो गया और फिर वायरल हो गया।

शशांक और निशांत के लिए तो यह बात पैरों तले की जमीन खिसक जाने वाली थी मगर एक दूसरे की जरूरत भी उफान पर थी।

वायरल विडीयो के साथ एक टैग लगा था ’’ दो पुरुष मित्र, अपनी दोस्ती निभाते हुए। जिस शशांक और निशांत को उनका मोहल्ला भी ठीक से नहीं जानता होगा आज उनको पूरा जिला जान गया।

उस समय शशांक को बहुत अचरज हुआ कि रचना खुद मेरी तरफ खींचीं चली आ रही है, बढ़ी आ रही है। मन में कशमकश वाले विचार उभरने लगे कि खुश होऊँ या न होऊँ।

रचना की नज़र लगातार शशांक को निहार रही थी, रचना ने कहा ’’ बहुत सही रास्ता चुना है तुमने , बहुत अच्छा जुगाड़ पाया है, तुमको नई गर्लफ्रेंड मुबारक हो सॉरी शादी मुबारक हो, तुम इसी लायक थे। ’’ रचना के वहाँ से फौरन चले जाते ही शशांक के मन का कशमकश और आश्चर्य गहरे अवसाद में बदल गया। दिल शर्मिंदगी के दलदल में धंसता चला गया।

शशांक और निशांत आमने-सामने खड़े होकर आँखें चार कर ही रहे थे कि अचानक वहाँ क्रिकेट खिलाड़ियों का दल आ गया और एक एक करके शशांक और निशांत को बधाइयां देने लगे यह कहकर ’’ आप दोनों की शादी मुबारक हो। आप दोनों की जोड़ी सलामत रहे। आपलोग सदा खुशहाल रहें। ’’ शशांक और निशांत चुपचाप खड़े एक दूसरे को तो कभी बोलने वाले का मुँह देखते रहे। उन दोनों का चुप रहकर सुनना, गुस्सा दिलानेवालों को और भी गुस्सा दिला गया। उनलोगों की लड़ने और झगड़ने की मंशा को भाँप कर शशांक और निशांत वहाँ से चल दिए।

शशांक घर आया तो उसने अपने पिता का गुस्से से तमतमाया चेहरा सामने पाया, उसकी माँ ने पुछा ’’ ये क्या है बेटा ? मैंने आज क्या देख लिया, बिट्टू ने अपने मोबाइल में विडीयो दिखाया। बेटा कह दो कि तुम नहीं हो। ’’

शशांक के पिता विनय बाबू ने कहा दो चार बेल्ट मार कर कहा ’’ यही था तुम्हारा सिर पे इम्तहान ? ’’

इससे पहले कि शशांक से कुछ और पुछा जाता, दरवाजे पे दस्तक हुई, दरवाजा खोला तो निशांत के माता-पिता थे।

निशांत के पिता ने शशांक के पिता से कहा ’’ आपने यही संस्कार दिए हैं अपने बेटे को, मेरे बेटे को गलत रास्ते पे ले गया। मोहल्ले में थू थू करवा दी आपके नालायक बेटे ने। ’’

शशांक के पिता ने भी तमतमाकर कहा ’’ मेरा शशांक तो मासूम है, आपके ही बेटी ने ऐसा करना सिखाया है, पूरे मोहल्ले में मजाक उड़वा दिया। ’’

शशांक और निशांत के माता-पिता को एक दूसरे से लड़ते-झगड़ते देखकर , पुलिस शशांक और निशांत को पकड़ कर थाना ले आई।

थानेदार ने कहा ’’ हमको मालूम है तुम दोनों ने कोई क्राईम नहीं किया है, जो हमारे दायरे में आता हो। बस मस्ती में गलती कर दिया है। ’’ वहाँ खड़े सारे लोग ठहाका लगाकर हँस पड़े। ’’ लेकिन कई सामाजिक संगठनों ने आपत्ति जताते हुए एफ.आई.आर. दर्ज करवाया है। ’’

दोनों समलैंगिक अभियुक्त कोर्ट पहुंचे, जज साहब ने वकीलों की जीरह सुनने के बाद कहा ’’ तुमलोगों का कहना ठीक है, लेकिन ऐसा कानून अभी अपने देश में नहीं बना है। ’’

मानसिक और आत्मिक तौर पर परेशान, शशांक और निशांत ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा ’’ हमलोगों को मालूम है कि हमने नया उदाहरण गढ़ा है। सबकी सामाजिक भावनाओं को ठेंस पहुँचाई है, मगर किसी का कुछ बिगाड़ा तो नहीं है।

जीने दो, हमलोगों को जीने दो। हमारी खुशियों से मत खोलो, जीने दो, सिर्फ जीने दो। ’’

मन में तो वहाँ सुनने वालों का बहुत कुछ चल रहा था मगर सब चुपचाप सुन रहे थे और ऐसी बातें सुनने में शर्मिंदगी का अनुभव कर रहे थे।

शशांक और निशांत को लग रहा था कि फैसला हमारे इस रिश्ते के फेबर में ही आएगा.........


समाप्त



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