दोस्त
दोस्त
रमेश और महेश की दोस्ती की प्रगाढ़ता जग जाहिर थी। कुछ लोग तो उनका गाढ़ी दोस्ती के नाम से जलते थे और कुछ लोग उनकी दोस्ती की मिशाल दिया करते थे और उनकी दोस्ती की कस्में भी खाया करते थे। दोनों का एक दुसरे के बिन एक पल भी नहीं गुजरता था। रमेश और महेश एक बाजार में मिले।
रमेश ने कहा ’’ कुछ भी नहीं रहता, दुनिया में लोगों रह जाती है दोस्ती, दोस्ती का नाम जिन्दगी। ’’
महेश ने भी कहा ’’ जिन्दगी का नाम दोस्ती, दोस्ती का नाम जिन्दगी। ’’
महेश और रमेश थे तो गरीब मगर थे दरिया दिल एक दुसरे के प्रति। एक साथ खाना-पीना, उठना बैठना, एक साथ हंसना-रोना, सब बड़ी वफादारी के साथ वो लोग निभाते। किसी को किसी से शिकायत नहीं थी
रमेश ने कहा ’’ ये तेरी मेरी यारी, ये दोस्ती हमारी। ’’
रमेश ने कहा ’’ भगवान को पसंद है, अल्लाह को है प्यारी। ’’
एक ढाबा में रमेश , महेश का इन्तजार कर ही रहा था कि वहाँ रेखा आ गयी।
रेखा ने महेश से पुछा ’’ क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूं ? ’’
रमेश ने कहा ’’ अरे बैठ न, कौन सा मेरे बाप का है। ’’
रमेश ने थोड़ी ही देर मंे महसुस किया कि लड़की मुझे ही देखती जा रही है। रमेश ने पुछा ’’ इस तरह क्यों देख रही है, तु कहीं अपुन को पिटवाने को तो नहीं आयी है ? ’’
रेखा ने मुस्करा कर कहा ’’ नहीं, तुमसे दोस्ती करना है हमको। ’’
रमेश ने आश्चर्य से रेखा को सिर से पाँव तक सरसरी निगाह से देखा और कहा ’’ आपकी दुश्मनी कुबूल मुझे, आपकी दोस्ती से डरता हुं। ’’
रेखा ने जवाब में कुछ कहा तो नहीं मगर मिलने जुलने का सिलसिला शुरू हो गया। ऐसा पहली बार हुआ था कि रमेश और महेश की मुलाकात दो दिनों तक नहीं हुई। इधर महेश परेशान और उधर रमेश को एहसास हो आया कि रेखा के कारण ही हम दोनों दोस्त नहीं मिल पा रहे हैं, मगर सारी बाते हवा हवा थी।
रमेश ने कहा ’’ सातों जनम तक तेेरे मैं साथ रहूंगा यार, मर भी गया तो मैं तुझे करता रहूगा प्यार। ’’
रेखा ने कहा ’’ सपना समझ कर भूल न जाना, ओ दिलवाले साथ निभाना, साथ निभाना दिलदार। ’’
परेशान महेश चला जा रहा था अकेला सुनी सड़क पर कि तभी अचानक उसके सामने एक चमचमाती कार आकर रूकी।
रमेश को कार से उतरते देख कर महेश की खुशी का कोई ठीकाना न रहा। दोनों दोस्त बहुत गर्म जोसी से गले मिले।
महेश ने पुछा ’’ अरे भाई, ये चमत्कार कब और कैसे हुआ ? ’’
रमेश ने कहा ’’ तु बैठ गाड़ी , सब बताता हूं। ’’
पुरी कहानी सुनने के बाद महेश ने कहा ’’ अच्छा बच्चू , लड़की आई तो दोस्त को भी भूल गया, अच्छा कब मिलवा रहा है ? ’’
रमेश ने कहा ’’ बहूत जल्दी मिलवा दुंगा। ’’
अगले ही दिन रमेश, महेश को रेखा से मिलवाने ले गया।
रेखा ने कहा ’’ ये तो हमेशा आपकी ही तारीफ किया करते हैं। आपके बारे मंे ही बात किया करते हैं। ’’
महेश ने कहा ’’ आखिर मेरा दोस्त है, मेरे भाई से बढ़कर है। ’’
रेखा ने रमेश और महेश की दोस्ती की इतनी तारीफ की कि महेश खुशी से गदगद हो गया।
रमेश के विश्वास दिलाने पर कि वो शाम को मिलेगा, महेश अपने घर चला आया।
रमेश ने रेखा की बात सुनने के बाद झल्लाकर कहा ं’’ मैं भी तो गरीब था, जब तुम हमको अपना सकती है तो हमको अपने दोस्त से दुरी बनाने के लिए क्यों कह रही है।
रेखा की जीद्द के कारण बात न बनते देख रमेश ने रेखा से कहा ’’ तेरी दोस्ती से मिला है मुझे एक तोहफा प्यार का, बदनसीबी ये हमारी सनम कि न मिल सका प्यार आपका। ’’
रमेश ने कहा ’’ तु राज करो अपने महल में मैं चला अपने दोस्त के पास। ’’
रमेश को देखते ही महेश ने कहा ’’ तब भाभी जी कल मिलने के लिए बुलायी है ? ’’
रमेश ने कहा ’’ नहीं, अब वो प्यार,वो रिस्ता मैं हमेशा के लिए छोड़ आया हूं। ’’
महेश ने पुछा ’’ क्यों छोड़ आया है तु, अपनी किस्मत से मुंह मोड़ आया है तू। ’’
रमेश ने कहा ’’ उसको मेरी और तेरी दोस्ती खटक रही थी, उसने प्यार और दोस्ती चुनने के लिए बोला तो, मैंने अपने दोस्त को चुना। ’’
रमेश से गले मिलकर महेश ने कहा ’’ ये तुने बिल्कूल भी अच्छा नहीं किया, चल मैं बात करता हूं उनसे। ’’
इधर रेखा ने खुद में घंुट कर ’’ दुस्मन न करे, दोस्त ने जो काम किया है, उम्र भर का ग़म हमंे इनाम दिया है। ’’
रेखा ने रमेश से मिल कर अपने प्यार की दुहाई दी तो रमेश ने कहा ’’ या तो मेरे साथ झोपड़ी में चल, या तो तु.........। ’’
रेखा ने कहा ’’ बस बस मैं समझ गई। ’’
रेखा ने अपनी कम्पनी में रमेश और महेश को रखवा दिया और अपने पिता को अपनी जीद्द के आगे झुका कर रमेश से शादी कर ली।
समाप्त
