पैसा
पैसा
’’ हर वक्त मन में यही विचार उमड़ते हरे, जीवन का बहूत सारा क्षण इसी आपाधापी में बिता कि बड़ा कौन ? और मुझे अपनी बहूत सी मेहनत के बदले अंश मात्र फल ही क्यों मिलता है, क्यों किसी का गिरा हुआ रूप्या, मेरे नसीब में नहीं आता है, क्यों गड़ा हुआ धन हमको नहीं मिल जाता है ?’’ केशव इन्ही सब विचारों में उलझा रहता। हर समय वो नए मनसुबे बांधता रहता मगर अपनी कार्यशैली में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं करता। केशव का मन तो यह कहने में भी गुरेज नहीं करता कि ’ ये दुनिया मेरे जैसे लोगों के लिए नहीं है। हर जगह पैसे की अहमियत को जानकर केशव का मन यह भी कहता कि ’’ तेरे रहते इस धरती पर राज करे है पैसा, पैसा है भगवान दुनिया का तु भगवान है कैसा ? ’’ हालांकि अगले ही पल अपनी गलती का एहसास होते ही उसने भगवान के इस बात के लिए क्षमा मांग लिया था, मगर भीतर ही भीतर वो पैसे की आग में खुद को जलाता रहता। दिन भर की मानसिक थकान को दुर करने के लिए केशव बिस्तर पर लेटा और कई करवटें बदलने के बाद उसको नींद आ गई और पहूंच गया स्वप्नलोक में जहाँ उसके समक्ष शंकर भगवान साक्षात खड़े थे और केशव को देख कर मुस्करा रहे थे, उनके गले में लिपटा सांप फन फैलाए हुए इधर-उधर देख रहा था। शंकर भगवान ने कहा ’’ तुम्हारी दुविधा यही है न कि पैसा बड़ा या हम भगवान। मै तुम्हारी धारणा बदल कर अपनी प्रशंसा नहीं करूंगा। ’’
शकर भगवान ने अँगुली के इशारे से बताते हुए कहा ’’ सामने बागीचा है, थोड़ी देर वहाँ टहल आओ। ’’
केशव ने मन में सोचा कि बाग-बागीचा, खेत-खलिहान देखकर ही तो बड़ा हुआ हूं, अब इस बागीचे में खास क्या होगा। ’
अलबŸाा वो बागीचा में गया और दंग रह गया। वहाँ हरियाली गायब थी। पेड़ों पर फूल और फलों की जगह रूपए और पैसे फले थे।
हर पेड़ पर कुछ न कुछ लिखा हुआ था। एक पेड़ पर लिखा हुआ था ’ मेहनत ’ बगल वाले पेड़ पर लिखा हुआ था ’ किस्मत ’ एक पेड़ पर लिख था ’ धैर्य ’ और आगे बढ़ा तो उस पेड़ पर एक से अधिक शब्द लिखे हुए थे ’ लुटपाट/ ठगी / फिरौती / या और भी दुसरे गलत काम का पैसा इत्यादि।
केशव के मन में आया कि ढेर सारा रूपया-पैसा बटोर ले और भगवान से इजाजत लेकर अपने घर चला जाए। केशव ने पेड़ों को गौर से देखना परखना शुरू किया, जिस पेड़ पर लिखा हुआ था ’ लुटपाट, ठगी, फिरौती, वहाँ आग का नाला बह रहा था, उस आग के नाला को पार करके ही ही वहाँ तक जाना पड़ता इसलिए उसकी हिम्मत नहीं हुई।
केशव अगले पेड़ की ओर बढ़ा तो उसमें लिखा था ’ किस्मत ’ । केशव को लगा कि बस पाँच-छह हाथ उपर चढुंगा तो रूपया तोड़ लाउंगा। वो मात्र दो हाथ उपर चढ़ा तो देखा कि लदे हुए रूपये दस हाथ और उपर हो गए। केशव दस हाथ और उपर चढ़ा तो देखा कि रूपए सारे चार हाथ और उपर हो गए। केशव चार हाथ उपर चढ़ा तो देखा कि रूपया अब भी दस हाथ उपर है। नतीजतन वो परेशान होकर नीचे उतर गया। केशव अब नीचे बैठ कर सोचने लगा कि जब ठगी, वाले पेड़ से रूपया नहीं तोड़ पाया और तो और किस्मत वाले पेड़ से भी रूपया नहीं तोड़ पाया, तो अब बचा ही क्या है, मेहनत और धैर्य से तो बचपन से ही सुन रहा हूं और खुद को समझा रहा हूं। ’
केशव बागीचे से बाहर निकलने को हुआ तो उसका मन एक बार फिर ललच गया। केशव ने ’ मेहनत ’ लिखे पेड़ को छुकर देखा तो उसको वो पेड़ बहूत सख्त प्रतीत हुआ और उसने एहसास किया कि उस पेड़ पर बड़े-बड़े काँटे भी है। केशव जैसे ही मेहनत लिखे पेड़ पर चढ़ना शुरू किया उसका हाथ और पाँव लहुलूहान हो गया, उसकी पकड़ ढीली होनेवाली ही थी कि घैर्य लिखा हुआ पेड़ से द्रव्य निकलकर मलहम का काम किया, उसको दर्द से आराम मिला।
वो दो ही पŸाा तोड़ पाया, मतलब बीस रूपया, अब वो इतने से रूपये को जेब में क्या रखता भला, वो रूपया हाथ में लेकर ही भगवान के पास चला गया। शंकर भगवान ने कहा ’’ तुम्हारे इस रूपया में मेरा भी आर्शिवाद है और तुम्हारे इस रूपया को मैं भी नहीं छीन सकता, मेहनत की कमाई है। ’’ केशव ने हाँ में सिर हिलाया और उसके सपना टुट गया। केशव अब योजना बनाकर धैर्य के साथ मेहनत करने में जुट गया।
