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Rajeev Kumar

Abstract

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Rajeev Kumar

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सपने सच होते हैं

सपने सच होते हैं

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’’ आज फिर रूला दिया भावना को, तुम लोगों को इस काम में कितना मजा आता है। ’’ भावना की दादी आज बरस पड़ी, बिन बादल नहीं, कई बार मन-मस्तिष्क पे काले बादल घुमड़े थे, मगर आज गरज के साथ बरस पड़ी दादी, मजाक करने वालों पर, उसको तंग करने वालों पर।

अब किसकी मजाल थी दादी की गंदी-भद्दी सुनने के बाद वहाँ टिकने की सोचे, सब रफूचक्कर।

’’ रामजादे कहीं के, भूतनी के। ’’ मन की आखिरी भड़ास वाले शब्द निकालकर दादी, भावना को समझाने के लिए मुड़ी तो भावना को वहाँ न पाकर आँगन होते हुए कमरे में गई। कमरे में अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था। दीवाल टटोल कर कुर्सी तक पहुँची, अंधेरे कमरे में भावना तक पहुँचाने में उसकी सिसकी ने मदद की।

’’ तू यहाँ बैठी है, मैं कहाँ कहाँ न ढूंढ आयी। चल आँगन में बैठकर गप्पें लड़ाएंगे। ’’ दादी ने भावना का कान्धा सहलाते हुए कहा।

’’ नहीं दादी, मैं यहीं ठीक हूँ। ’’

’’ हाँ बावरी कहीं की, सिसक सिसक कर रो रही है और कहती है ठीक हूँ। ’’ दादी भावना का हाथ पकड़ कर उसको आँगन में ले आई। भावना दादी की जीद्द से भली भांति परिचित थी।

चारपायी पे बिठाते हुए दादी ने कहा ’’ अब देखना वो लोग तुम्हारा मजाक नहीं उड़ाएंगे। ’’ फफक कर रोती हुई भावना के आँसू पोंछते हुए दादी ने कहा।

दादी की जादू की झप्पी और प्यार भरी बातों ने भावना को थोड़ा मजबूत किया।

अगली सुबह विद्यालय जाने के क्रम में ’’ भावना भाव न खाए और भावना में बह जाए। ’’ वाक्य कजरी के मुँह से सुनकर भावना बिना कोई प्रतिक्रिया दिए ही अपनी चाल तेज कर दी।

उदासी के बादल चेहरे पे लिए भावना घर लौटी तो उसकी माँ ने कहा ’’ दाल छौंक दे और भुजिया बना दे। ’’ भावना की माँ को यह हुक्म लाजिमी था क्योंकि बचपन से ही भावना ने रसोईघर में माँ का हाथ बंटाना शुरू कर दिया था और अच्छा खाना बनाने लगी थी। भावना को गुमसुम देखकर उसकी माँ ने कहा ’’ सुनती क्यों नहीं, बहरी हो गई क्या ? ’’ उसकी माँ ने पास आकर उसको झकझोरा तो भावना फफक कर रो पड़ी।

भावना की दादी ने आते ही पुछा ’’ अब क्या हो गया मेरी पोती को। ’’ भावना ने एक हाथ में अपनी दादी का और दूसरे हाथ में अपनी माँ का हाथ लेकर हा ’’ अब घर का मैं कोई भी काम नहीं करूंगी। बस पढ़ाई करूंगी। कुछ बन कर दिखाऊंगी। ’’ भावना ने बारी-बारी से अपनी दादी और माँ की आँखों में गौर से देखा।

दादी ने कहा ’’ हाँ तो पढ़ न, कौन मना करता है ? ’’

भावना की माँ ने कहा ’’ तुम्हारे पिता का मिजाज तुमको भी पता है और हमको भी पता है, वो हंगामा खड़ी कर देंगे। ’’

भावना की दादी ने भड़क कर भावना से कहा ’’ तुम्हारे बाप का सोच जैसा भी हो मगर उसकी माँ अभी जिन्दा है, उसकी पीठ पर छड़ी बरसा दूंगी मगर तुम्हारी जीद्द टूटने नहीं दूँगी । ’’

बात भावना के पिता से होते हुए मुहल्ले और उसके बाद पूरे गाँव में फैल गई।

आज भावना जिस रास्ते से गुजरती लोग कहने लगते ’’ कलक्टरनी आ रही है। ’’ भावना के पिता जिस रास्ते से गुजरते तो लोग कहते ’’ कलक्टरनी का बाप आ रहा है। ’’

ऐसी बात बोलकर सारे लोग ठहाका लगा कर हँसते और अपने-अपने रास्ते हो लेते।

भावना जब मैट्रिक की परीक्षा में अव्वल आई तो उसकी जाति बिरादरी को छोड़कर सारे लोगों में खुशी का पनपना स्वाभाविक था।

कुछ साल बाद एक रिश्तेदार भावना के घर आए, बड़े दिनों के बाद आए थे सो बड़ी आवाभगत हुई, आवाभगत के बाद बोले ’’ हरिया, अब भावना के हाथ पीले करने की सोच, मेरी नजर में एक बहुत ही अच्छा रिश्ता है। ’’

हरिया ने कहा ’’ वो सब तो ठीक है, अच्छी बात है, मगर भावना अभी शादी नहीं करेगी। ’’

महेश ने कहा ’’ 10 वीं करवा दी, 12 वीं करवा दी, अब क्या उम्र ढलने पे ब्याह करेगा। ’’

हरिया ने कहा ’’ नहीं भाई साहब , भावना कुछ बन जाए, तब ही उसके ब्याह की सोचूंगा। ’’

महेश ने कहा ’’ ये रिश्ता हाथ सेे निकल गया तो हाथ मलते रहोगे, फिर न कहना रिश्तेदार किसी काम के नहीं। ’’

हरिया ने कहा ’’ भाई साहब बाकी भावना का भाग्या जाने, लेकिन भाग्य बदलने का एक मौका जरूर दूंगा। ’’

महेश ने खिज कर झल्ला कर कहा ’’ तू कलक्टरनी न बना सकेगा। भावना में दुर्भावना ही दिखे है। ’’

भावना चाय लेकर आई तो ये बात सुन ली। अतिथि देवो भवः के चलते भावना ने टकटकी लगा कर देखा ही, कहा कुछ भी नहीं। बस बात को गाँठ बाँध कर कसौटी पे खरा उतरने में जूट गई।

क्या दिन क्या रात, क्या सोना क्या जागना, क्या खाना क्या पीना, सब समय-बेसमय।

भावना के सुन्दर चेहरे पर लाल आँखें ऐसी लगती मानो कि कई रातों से सोई नहीं हो।

बड़ी कड़ी मेहनत मशक्कत के बाद एक दिन भावना ने अपने माता-पिता, गाँव और जिला के लोगों की कायम विश्वास और संभावना को ध्यान में रखते हुए एक दिन प्रशासनिक अधिकारी के रूप में नियुक्त हो, सबके लिए प्रेरणास्त्रोत बनी।


समाप्त



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