Reetu Singh Rawat

Abstract Drama

4.5  

Reetu Singh Rawat

Abstract Drama

परिवार की बदलती तस्वीर

परिवार की बदलती तस्वीर

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आज बदलते समय के साथ पैसे की होड़ ने जिंदगी को एक मशीन और जीवन को एक नया रंग दे दिया है पैसों की होड़ ने माँ-बाप और रिश्ते नाते को दूर कर दिया पैसे की चाहत इंसान को अपनो से दूर और भारतीय संस्कृति को भी खत्म करती जा रही है आज समय के साथ हम रीतिरिवाज परंपराए तक भूलते जा रहे हैं बस वो ही करना चाहते हैं जो मुझे खुद पसंद है दूसरे की भावना की जरूरत हम नही समझते हैं माँ बाप और बच्चों के लिए समय नही है बस जरूरत उनकी पूरी कर देना ही हमारी जिम्मेदारी मानते हैं माँ-बाप भी दूर ही हो चुके है आज पैसे की चाहत में घर परिवार को छोड़कर कहीं भी रहने चले जाते हैं न माँ-बाप की चिंता की वो बुढ़ापे में अकेले कैसे ज़िंदगी काटेंगे पर हम यह सब सोचना ही नही चाहते है हमें तो बस पैसा कमाना है।

    पैसा कमाना अच्छी बात है पर ज़िंदगी तो एक बार ही मिलती है क्या पैसों के लिए रिश्तों को नजरअंदाज करना सही है रिश्ते को दांव पर लगाकर पैसा क्या शकून दे सकता है मैं मानती हूँ ज़िंदगी पैसो के बिना नही चल सकती पर माँ-बाप की जिंदगी की गाड़ी भी आपके बिना नहीं चलती है नाम के लिए गाड़ी तो है पर गाड़ी चलाने वाला नही है गाड़ी तभी अच्छी लगती है जब अपने उसमे बैठे हो कहने का तात्पर्य है कि परिवार साथ हो तो जीने का मजा अधिक हो जाता है माँ -बाप बच्चों को काबिल इसलिए बनाते हैं कि यह हमारे साथ रहकर हमारी बची जिंदगी को खुशहाल करेंगे पर हम काबिल होते ही उन से दूर और नई जिंदगी जीने लगते है अपना परिवार बसाकर यही सोचते हैं कि यही हमारी जिम्मेदारी है और भूल जाते हैं कि एक परिवार पीछे छोड़ आए हैं जो कभी हमारी जिंदगी का हिस्सा हुआ करता था क्या उस के प्रति मेरी जिम्मेदारी नही है।

   पहले के समय में बड़ा परिवार हुआ करता था और माँ-बाप ,दादी-दादा,चाचा-चाची, सब एक ही छत के नीचे बड़े प्यार से जीवन का जीते थे आज हम घर से बाहर निकलने के बाद वापिस नही आना पसंद करते हैं। पैसों की चाहत ने इंसान को अपनो से तो दूर किया ही है जीवन को भी पैसों की मशीन बना दिया है यहां तक की अपनी औलाद के लिए समय नही है बस महेंगे कपड़े खिलौनों और बाहरी चकचौंध में जिंदगी को एक दुकान की तरह सजाकर बैठ गए हैं कि सामने वाला हमारी ओर कितना आकर्षित होता है घर में कमरे अधिक हो गए हैं पर अपने घरवालों को ज्यादा दिन घर में नही रख सकते हैं खाना अधिक है पर दो दिन किसी को भोजन नही करा सकते हैं।

   समय के साथ साथ जिंदगी का नजरिया भी बदल चुका है मैं और मेरा परिवार जिसमे मेरी पत्नी और मेरे बच्चे ही परिवार है। इसीलिए आज अनाथ आश्रम की संख्या बढ़ती जा रही है पैसा कमाने के लिए मैं विदेश में रहता हूँ और माँ-बाप छोड़ आया हूँ कभी कभी सालो में हो आता हूँ।और खेर खबर फोन पर पूछ ही लेता हूँ। माँ-बाप कहते हैं यहां सब बढ़िया है तुम अपना ख्याल रखना और सब का भी ---मेरी जिम्मेदारी मैं निभा रहा हूँ और कभी जरूरत पड़े तो पैसे भी भेज देता हूँ। क्या परिवार के लिए यही जिम्मेदारी होती है।

   आज सब कुछ बदल रहा है जिंदगी छोटी और पैसे की होड़ लम्बी हो गई है। पैसा कहा लेकर जाना है सब यही छूट जाना है बस आंख बंद होने की देर है हिस्सा की लड़ाई शुरू होनी है। पैसा पैसा पैसा कहा है।काश मैं ज़िंदगी अपने और अपनो के लिए जी लेता। इतना तो काबिल माँ-बाप ने बना दिया था कि उनके साथ मिलकर अच्छी जिंदगी बिता देता मुझे से अच्छे तो वो है जो कम पैसों के साथ माँ-बाप के साथ रहकर जिंदगी जी लेते है। वहीं खुशनसीब है।पैसों की लालच इंसान को अपनो से दूर तो ले ही जाती है दिल से भी दूर कर देती है। एहसास तब होता है जब अपने बच्चे छोड़कर चले जाते है यही जिंदगी की सीख है।जय हिंद जय भारत



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