नारी सशक्तिकरण
नारी सशक्तिकरण


स्त्री पुरूष की गुलाम नहीं सहधर्मिणी, अधर्गिनी और मित्र है महात्मा गांधी जी ने कहा था-----जिस समाज में नारी का स्थान सम्मान जनक होता है वह समाज उतना ही प्रतिगातिशील और विकसित होता है समाज के निर्माण में नारी का स्थान सदैव महत्वपूर्ण है एक माँ सौ शिक्षकों के बराबर होती है इसलिए उसका हर हाल में सम्मान होना ही चाहिए।
वैदिक काल में नारी का स्थान बहुत सम्मान जनक था।
अंग्रेजों का मकसद भारत पर शासन करना था समाज सुधार करना नहीं था ब्रिटिश काल में भी भारतीय नारी की दशा में कुछ खास सुधार नही हुआ।कुछ छोटा मोटा सुधार जरूर हुए।आजादी के बाद सोचा गया था कि नारी की स्थिति में सुधार होगा और भारतीय नारी एक नई हवा में सांस लेगी पर ऐसा नही हुआ!
नारी जिसने घर और बाहर दोनों निभाई अपनी जिम्मेदारी युग बदला इतिहास बदला राजाओ का हो या आज का जीवन पर नारी ही अबला कहलाईं जबकि नारी ने हर इतिहास के सुंदर पन्नो पर अपना नाम दर्ज कराया शिक्षा के क्षेत्रों में भी नारी ने नर से भी ऊंचा स्थान पाया पर नारी को कमजोर दिखाया जिन पुरुषों ने अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए नारी सशक्त बनाने का बीड़ा उठाया जबकि नारी से ताकतवर कोई नहीं है नारी जननी तो है ही जन के साथ हर रिश्ते को मोतियों की माला की तरह पिरोती है संसार में पति,परिवार और बच्चों को जीवन में सही मार्ग दर्शन करती है सौ गुरु के बराबर एक माँ होती है नारी ही माँ ,बहन,बेटी बहू और पत्नी होती है नारी की शक्ति पूर्ण है भगवान शिव भी अर्द्धनारीश्वर स्वरूप है
पुरूष प्रधान मानसिकता------
आजादी के वर्षों बाद भी सशक्तिकरण की आवश्यकता महसूस की गई।