Himanshu Sharma

Abstract

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Himanshu Sharma

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परिभाषित राष्ट्र

परिभाषित राष्ट्र

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मेरी बेटी को निबंध लिखने का कार्य मिला और वो बड़ी परेशान सी दिख रही थी। मैंने पूछा," क्या हुआ बेटा क्यों परेशान दिख रहा है?" तो उसने जवाब दिया,"पापा। मुझे ऐसे लिखना है और मुझे समझ नहीं आ रहा मैं शुरू कैसे करूँ?" मैंने पूछा,"किस पे निबंध लिखना है तुम्हें?" उसने कहा,"राष्ट्र पे।" और मैंने कहा,"चलो मैं लिखाता हूँ।" और मैंने उसे निबंध लिखा दिया। जब अगले दिन वो स्कूल से लौटकर आई तो उसने मुझे बताया कि उसे इस निबंध की वजह से कक्षा के बाहर खड़ा रहने की सज़ा मिली थी। वही आधे पन्ने का निबंध मैं आप लोगों के समक्ष रख रहा हूँ और आप ही बताइयेगा कि किस हिसाब से मेरी बेटी सज़ा के क़ाबिल है:

राष्ट्र की परिकल्पना एक माँ की तरह हुई है, जो अपने दामन में आये हर बच्चे का भरण-पोषण करती है। मगर मेरे हिसाब से राष्ट्र एक रसोई जिसमें एक चुना हुआ हलवाई बैठा रखा है। हलवाई का काम है शुद्ध मिठाईयां बनाये और लोगों को खिलाये। लोगों ने शुद्ध मावा देकर के उसे ताक़त दी शुद्ध मिठाईयां बनाने की और बाँटने की। मगर कुछ समय के बाद हलवाई का मन लालची हो गया, वो मिठाई बनाता और उसमें से कुछ मिठाई पीछे के रास्ते से निकाल देता और उनकी भरपाई करने के लिए वो ख़राब मावे की मिठाई बनाकर लोगों को बाँटने लगा। उससे त्रस्त आकर लोगों ने उसका विरोध किया और उसकी जगह एक और विश्वस्त हलवाई को रखा। शुरू में इस हलवाई ने भी सही काम किया और अच्छी मिठाई बनाई मगर कुछ समय पश्चात वो भी पुराने हलवाई की तरह मिलावटी मिठाइयां बेचने लगा। इस तरह से हलवाई बदलने का क्रम चलता रहा और रसोई में हलवाई बदलते गए। पूरे शहर के हलवाई जाँचने के बाद, अब लोग किंकर्त्तव्यविमूढ़ हैं कि अब किसको चुना जाए। इस पर हलवाइयों ने रास्ता सुझाया कि हम दो या उससे ज़्यादा हलवाई मिलकर रसोड़ा चलाते हैं ताकि एक दूसरे की कमियों को परिपूरित कर सकें। हुआ ये कि वो एक से बुरे दो वाला हिसाब हो गया। रसोई आज भी चल रही है प्रथा भी वही है, मावा अभी भी सबका मिलावटी है मगर जनता अब वो उन हलवाई या हलवाइयों को चुनती है जिनका मावा कम मिलावटी है जिसको खाकर ज़्यादा से ज़्यादा जुलाब लगें कोई मरे नहीं। तो यही राष्ट्र की परिभाषा भी है और हालत भी।

मैंने ऐसा क्या लिखवा दिया जिससे मेरी बेटी को सज़ा मिली, आप ही फैसला कीजिये, मुझे तो ये अब भी सही ही लग रहा है क्यूंकि सुना है हलवाई अब मिठाइयों को भी जगह के हिसाब से बाँटने में लग गए हैं, शायद अब मिठाइयाँ जल्द ही कड़वी होनेवालीं हैं क्यूंकि मावा अब मिलावटी नहीं रह गया है बल्कि सड़ गया है और सड़ा हुआ मावा जानलेवा होता है।


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