Yashwant Rathore

Abstract

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Yashwant Rathore

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प्प्यार

प्प्यार

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आज का प्यार

मेरा मानना है कि प्रेम हो जाता है, ऐसा नही है न ही किया जाता है.

प्रेम निभाया जाता है.


नेह निबाहन कठिन है, सबसे निबहत नाहि

चढ़बो मोमे तुरंग पर, चलबो पाबक माहि।    कबीर 


इसे ऐसे समझे

 पहली नज़र में ही कोई मन को अच्छा लगता है. वो इंसान की पसंद या दो इंसानों की केमिस्ट्री हो सकती हैं.

आपकी केमिस्ट्री 10 लोगो के साथ भी अच्छी हो सकती है.

प्रेम वही कर सकता है जो स्टेन्ड ले सकता हैं. आपके साथ खड़ा हो सकता है.

जो प्रेम करते है और कहते है कि वो मजबूर है, नही तो ये कर लेते, वो कर लेते और इमोशनल ड्रामा में उलझे रहते है.

वो अपना और दूसरे का नुकसान करते हैं.

आप साफ साफ क्यों नही कहते कि आप को दो थप्पड़ खाने में और अपने परिवार, पड़ोसी और समाज मे बदनाम होने का डर है.

जब तक चोरी चोरी चुपके चुपके आप को इमोशनल सैटिस्फैक्शन मिल रहा था, तब तक कोई परेशानी नही थी. अब जब साथ खड़े होने की, सामना करने की बात आई है तो जिम्मेदारी उठाने से डर रहे हैं.

असल मे आप डरपोक है और प्रेम आपके लिए हैं ही नही. 

रोते रहने को ,दुखी होने को , तड़पने को और अफसोस करने को प्रेम नही कहते हैं.

बॉलीवुड की प्यार की थ्योरी से बाहर निकले.

"वीर भोग्य वसुंधरा". वीर व्यक्ति ही इस संसार मे आनंद ले सकता है. कायर के लिए क्या सुख.

मुझे लगता है, प्यार सिर्फ संसार के एक प्रतिसत से भी कम लोगो के लिए  है. सब इसके काबिल ही नही.

 स्वर्ग पाने के लिए  या कुछ बड़ा पाने के लिए ,कुछ काबिलियत,और कुछ गुण आवश्यक हैं.

 प्रेम तो आपकी नजर में परमात्मा या स्वर्ग समान ही होगा.

वैसे ही प्रेम के लिए भी काबिलियत चाहिए.

मजबूर लोग कुछ नही कर सकते. मजबूर लोगो को प्रेम नही करना चाहिए.

वैसे भी आपके हिसाब से भी नब्बे प्रतिशत लोग, बिना प्रेम के ही साथ मे रहते है तो आप भी उनके साथ हो जाए.

सोचिए महाराणा प्रताप, गोबिंद सिंह जी, शिवाजी महाराज, दुर्गादास राठौड़, राजसिंह जी मेवाड़ मजबूर होते तो क्या होता. ये सब विपति में और उभर के आए और सही रास्ते पर ही बढ़े.

आप अपनी शारीरिक इच्छा व इमोशनल नीड्स पूरी कर रहे है ,तो उसके लिए, ईमानदार रहे. सामने वाले को बताए कि बस इतनी ही जरूरत है. उसके आगे प्रेम वरेम कुछ नही, इससे आगे बस का नही.

अपने आप से ईमानदार रहे.

या यूं कहें कि आप को रोमांस( romance) पसंद है. लव की जिम्मेदारी आप नही उठा सकते.

लड़को की और परेशानी है. "यार लड़की ने आई लव यू बोल दिया. अब तो उससे प्यार करना ही पड़ेगा". 

ये वो लोग है जो प्यार भी मजबूर हो के करते है. 

या फिर आप काम चला रहे है कि अभी इससे कर लेते है, आगे कोई और सुंदर आएगी तो उससे कर लेंगे.

ध्यान से समझिए आप सिर्फ कुछ मानसिक व शारीरिक सुख प्राप्त करने के मूड में हैं, उसमे कोई बुराई भी नही पर इसको प्रेम का नाम दे, सामने वाले को धोखे में रखना भी तो एक अपराध  है.

क्या आप साफ साफ कह नही सकते ?  या साफ कहने से आपके इरादे पूरे नही होंगे.

प्रेम बेईमान, मौकापरस्त, डरपोक और गैर जिम्मेदार लोगों के लिए नही है, इस और कदम न बढ़ाये.

प्रेम का गुण लड़का, लड़की दोनों में होना चाहिए. किसी एक मे होने से भी कुछ न बनेगा.

इसीलिए शास्त्र कहते है, कुपात्र को दान देने से दाता नष्ट हो जाता है.

गलत व्यक्ति पर दया, प्रेम, ज्ञान, धन लुटाने से, आप ही नष्ट हो जाते है.

अपने अहंकार को, अपने आप को, अपनी इच्छाओं को पिघलाना पड़ता है. पूरा चरित्र इंसानों को बदल जाता है. तब कहीं प्रेम की ज्योत प्रवेश करती है, आप में. प्रेम को पूर्ण इसीलिए कहते है क्योंकि उस अवस्था मे आप सिर्फ देने के भाव मे होते है, आप स्वयं संतुष्ट भाव मे होते है, आपको कुछ चाह ही नही होती.

स्वयंम प्रेम की चाह भी नही.

चाह गयी चिंता मिटी, अब हंसा बे परवाह
जिसको कुछ न चाहिए, वो ही शहंशाह


कबीरा यह घर प्रेम का,खाला का घर नाहीं,

सीस उतारे भुइं धरे,तब पैठे घर माहीं !!  कबीर



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