Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Inspirational

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Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Inspirational

प्रेम पहेली ?

प्रेम पहेली ?

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ये ढाई आखर कितना विचित्र शब्द है , जिसे हम आज तक परिभाषित नहीं कर पाए। सारा पांडित्य धरा का धरा रह गया। लेकिन यह ढाई आखर प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ मुंह बाए खड़ा का खड़ा ही रह गया ? यह एक अबूझ पहेली है।

रामबाबू शांडिल्य, नाम था उनका। उस पंचायत के मुखिया, उस पंचायत के सबसे बड़े आदमी। अनेकों गाड़ियां सैकड़ों बीघा खेत। और भी ना जाने क्याक्या था? पुश्तैनी हवेली.... इतनी बड़ी थी मानो कोई बहुत बड़ा म्यूजियम हो।.. खानदानी प्रतिष्ठित और धनी आदमी थे रामबाबू शांडिल्य।.... लेकिन उनका कोई औलाद नहीं था।... उनकी पत्नी हमेशा चिंतित रहती। सारा धन मानो उन्हे काटने दौड़ रहा है।आज एक वारिस होता तो उनको और उनके पत्नी को सारा सुख मिल जाता । रामबाबू शांडिल्य भी चिंतित रहते। अपनी चिंता की लकीरे अपने चेहरे पर आने नहीं देते। बहुत बड़े पुजारी होने के साथसाथ बहुत अच्छे इंसान भी थे। गरीबों की मदद करना उनकी फितरत थी... या यूं कहें कि उनकी खानदानी फितरत थी। उनके दादा जी पंचायत के दानवीर कर्ण कह जाते थे। जबकि बाबूजी को दानों का देवता बोला जाता था।....

"मालिक मालिक कोई महिला दरवाजे पर खड़ी है लगता है, कोई भिखारिन है। "

द्वारपाल ने रामबाबू शांडिल्य से आकर बोला।

 रामबाबू शांडिल्य, द्वारपाल की बात सुनकर मुख्य दरवाजे पर आएं।

मैला कुचला कपड़ा पहने एक औरत ,चेहरे पर उदासी हाथ में बड़ा कटोरा लिए दरवाजे पर खड़ी थी। उसके मांग में सिंदूर भी नहीं थे। देखने से ऐसा प्रतीत होता था कि वह विधवा है।

 रामबाबू शांडिल्य, उस औरत को देखते ही पूछें,"भूखी हो क्या?"

" हां मालिक ! 3 दिन से कुछ भी नहीं खाई हूं।... कुछ खाने को मिल जाता।.....बड़ी कृपा हो जाती।"

 रामबाबू शांडिल्य अपने द्वारपाल को बुलाए और बोले," इस औरत को खाने का बंदोबस्त कर दो।"

" जी मालिक।"द्वारपाल बोला।

रामबाबू शांडिल्य अपने कमरे में चले गए।

कुछ देर के बाद पुनः द्वारपाल उनके कमरे में पहुंचा, और बोला,"मालिक वो औरत एक रात के लिए आश्रय चाहती है... कह रही है कि , शाम हो गई है ,कुछ देर में रात हो जाएगी, वह अकेली है कहां जाएगी..?... अगर आसरा मिल जाता तो बड़ी कृपा होती है।"

रामबाबू शांडिल्य बोले ,"ठीक है उसको हवेली के पिछले वाले कमरों में जगह दे दो, रात भर की बात है सुबह बेचारी जहां जाना है ,वहां चली जाएगी।

"ठीक है मालिक।"द्वारपाल कह कर चला गया।

 रामबाबू शांडिल्य सुबह अपने ही बगीचे में टहल रहे थे। बगीचे में लगे रंग बिरंगे फूलों की खूबसूरती को वो निहार रहे थे। मंद – मंद हवा के झोंको से वह मंत्रमुग्ध थे। सारा वातावरण आनंदमई था। तभी उनकी नजर उस औरत पर पड़ी ,जो उनके यहां आश्रय मांगी थी।..... वो औरत उनके करीब ही आ रही थी।

 "मेरा कोई नहीं है मैं अकेली हूं। मालिक कोई काम है ...?"

"कौन सा काम करोगी...?"

उस औरत के काम मांगने पर रामबाबू शांडिल्य ने उससे पूछे।

" मालिक कोई भी काम कर लूंगी। बस मुझको आपके यहां दो टाइम खाने को मिल जाता... औेर रहने के लिए एक छोटा सा कोना।.... मैं अकेली हूं कहां जाऊंगी ,दिन रात भटकते रहती हूं। कभी मंदिर के सीढ़ियों पर तो कभी पेड़ों के नीचे।..... मालिक बहुत कृपा होगी।"

रामबाबू शांडिल्य उस औरत की बात सुनकर दया

से भर गए। उन्होंने पूछा,"तुम्हारे परिवार वाले कहां है?"

"मलिक बहुत लंबी कहानी है।"

 "हम सुनना चाहेंगे।"

औरत बोली," मालिक ! मैंने भी किसी से प्यार किया था... उस प्यार को अंजाम तक पहुंचाने में मुझे और मेरे प्रेमी को जो सजा मिली, वो भगवान किसी को न दे।

 हमदोनों एक ही गांव के थे। हमदोनों की जातियां अलग–अलग थीं। हम दोनों बचपन में एक ही साथ खेला करते थे। एक ही साथ पढ़ने जाते थे। मैं एक बड़े घर की बेटी थी। मेरे पिता मेजर थे। जबकि वह एक साधारण परिवार का था। उसके पिता एक छोटे किसान थे।समयानुसार हम दोनों बड़े हुए।... मेरे पिताजी मुझे पटना पढ़ने के लिए भेज दिए।... अब उससे मेरी मुलाकात नहीं हो पा रही थी। तब मुझे पता चला कि मैं उसके बगैर नहीं रह पाऊंगी , मुझे उससे प्यार हो गया है। उसके साथ मेरी दूरियां मुझे असहज कर दी थी...पढ़ाई में भी मन नहीं लग रहा था। मैं उससे मिलने के लिए व्याकुल हो गई थी।.. इसी बीच कॉलेज में दशहरे की छुट्टी हुई। मै भी अपने घर आने के लिए उत्सुक थी। इसलिए नहीं कि, मुझे ,घर आना है। बल्कि इसलिए कि मै उससे मिलने के लिए बेचैन थी।

जब मैं घर आई तो सब से बचते बचाते, मैं उससे मिलने चली गई। मैंने महसूस किया ,कि वह भी मुझको बेसब्री से इंतजार कर रहा था।... मुझे खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मेरा प्यार सच्चा है , और एकतरफा नहीं है।

हम दोनों एक दूसरे के और करीब हो गए।... उसके बगैर रहना, मुझे दूभर हो रहा था।... छुट्टी खत्म हो गई , पुनः मुझे पटना जाना था, मैंने निर्णय ले लिया था। मैं उसके बगैर नहीं रह सकती, वह भी मेरे बगैर नहीं रह सकता। हम दोनों शादी की योजना बना लिए थे।...मैं उसको एक हफ्ते बाद पटना आने के लिए बोल दी थी। मैंने अपने हॉस्टल का पता उसे बता दिया था।... मैं पटना चली गई।

वो एक हफ्ते बाद मेरे हॉस्टल में आया।.... हम दोनों शादी करके पटना छोड़ दीए। और बहुत दूर चले गए।….. जहां पर हमारे और उसके परिवार के कोई भी सदस्य को पता ना चल पाए। "

रामबाबू शांडिल्य उत्सुकता से पूछे,"बहुत दूर .....मगर कहा ?"

"अंडमान...।"यह हमारे घर से काफी दूर है ,जहां हमारे परिवार वाले और उसके परिवार वाले भी आसानी से ना पहुंच सकते है। हमारे गांव के लोग भी वहां न के बराबर ही जाते होंगे।ऐसा मेरा और उसका अनुमान था।ना हमको वहां कोई जानने वाला होगा , ना हीं पहचानने वाला होगा।... हम दोनों आराम से वहां रहेंगे।..... भगवान की कृपा काहिए या संघर्ष का नतीजा , वहां पर हम दोनों को अच्छी नौकरी मिल गई। हम दोनों साथ ही काम करने लगे।

हम दोनों का जीवन आसानी से कटने लगा। जिंदगी में मस्ती था ,आनंद था , प्रेम था। ... समय बितते गया..और हमारे घर में एक नन्हा मेहमान आया। हम दोनों का जीवन संपूर्ण हो गई।... हमारे पास पूंजी की तौर पर भरा पूरा परिवार और एक खूबसूरत जिंदगी थी।

लेकिन एक दिन ऐसा हुआ कि सब कुछ खत्म हो गया….. कोई मुझे पहचान गया। और मेरा पता मेरे भाई को बता दिया।....वो अपने दोस्तों के साथ दिनदहाड़े हमारे दरवाजे पर आया, और हमारे पति के सीने में तीन गोलियां उतार दी....और भाग गया।.... पति को अस्पताल ले जाते जाते मौत हो गई....."

 "भाई के खिलाफ कोई बयान दर्ज थाने में नहीं कराई ?"रामबाबू शांडिल्य ने उस औरत से पूछा।

"आज वह जेल में है, जिस दिन निकलेगा मुझे भी मारेगा... मैंने उसके खिलाफ कोई बयान दर्ज नहीं कराई... करा कर भी क्या करती... क्या मेरा पति मुझे वापस मिल जाएगा...?.. पुलिस को जो करना है वो करें, मैंने कुछ नहीं किया।.. पोस्टमार्टम के बाद पति का डेड बॉडी, मुझे मिल गया, पति का दाह संस्कार किया।... मैं अंडमान छोड़ दी।अपने बच्चे के साथ मै एक सुरक्षित ठिकाना ढूंढने के लिए अनजान पथ पर अंजान मंजिल की तरफ चल पड़ी।.….."

"बातों के बीच में ही रामबाबू शांडिल्य ने उस औरत से प्रश्न किया ,"तुम्हारा बेटा कहा हैं ?"

वह औरत बोली,"मेरा ही कोई ठिकाना नहीं है, ना कोई ठहराव .... ना कोई पड़ाव ना ही कोई मंजिल है....तो फिर मैं अपने बच्चे को अनजान पथ पर कहांकहां लेकर जाऊ ?जब कमाने वाला पति ही नहीं रहा तो बच्चा कैसे पालू ? ना सर पर छत है ना पैसे हैं। छोटा बच्चा है मैं उसे कितना परेशान करू?... मैं उसे अनाथालय में छोड़ कर आ गई।"

रामबाबू शांडिल्य बोले,"मैं तुम्हारी कहानी सुनकर द्रवित हो गया हूं.. मैं तुम्हारी कौन सी मदद कर सकता हूं?'"

 " जी ..मैं आपके यहां पनाह ले सकती हूं ?मुझे कोई नौकरी पर रख ले तो मेरा जीवन कट जाता। मैं बहुत थक गई हूं , अपने जीवन से ....... मै जीना नहीं चाहतीं .... लेकिन अपने बच्चे के खातिर जीना चाहती हूं।"वो औरत रामबाबू शांडिल्य से याचना कि।

 रामबाबू शांडिल्य बोले,"क्या तुम इस बगीचे में पौधों की देखरेख कर सकती हो... अगर हा तो ,यहां पर एक कमरा है वहां हर चीज की व्यवस्था है।उसमें तुम रह सकती हो ... मै नौकर से राशन और कपड़ा भिजवा दूंगा। ... और भी जो चीज की कमियां होगी वह नौकर के माध्यम से संदेश भिजवा सकती हो या फिर मुझे बताना ..... मैं यहां रोज सुबह में टहलने आता हूं ,और हां सुबह का चाय भी मैं यहीं पिउंगा।....महीने की आखिरी दिन , जो भी पगार हम अपने द्वारपाल को देते हैं, उतना तुम्हे भी भिजवा दूंगा।"

रामबाबू शांडिल्य की बात सुनकर वह औरत गदगद हो गई, "आप हमारे लिए भगवान सा हैं, मुझे खुशी होगी आप हमारे यहां चाय पिएगे।"

रामबाबू शांडिल्य जाने लगे .... तभी एकाएक रुके और बोले,

" हां मैं तो तुम्हारा नाम पूछा ही नहीं .....तुम्हारा नाम क्या है ?"

 वो औरत बोली,"मैं अतीत की कोई भी पहचान अपने साथ नहीं रखना चाहती .....मातापिता और भाई की दी हुई कोई भी चीज मुझे सालता हैं। आप ही कोई नाम दे दीजिए मै उसी नाम से जानी जाऊंगी।"

 रामबाबू शांडिल्य बोले,"मै तुम्हें पिंकी के नाम से बुलाऊंगा..."

यह कहते हुए रामबाबू शांडिल्य चले गए।

 पिंकी परेशान थीं। ...पूरे एक हफ्ते से रामबाबू शांडिल्य बगीचे में नहीं आ रहे थे।....वो द्वारपाल के पास जाकर पूछी,"मालिक बगीचे में नहीं आ रहे है कहीं गए हैं क्या ? .... सब ठीक तो है ना ?"

पिंकी की बात सुनकर द्वारपाल रुआसे आवाज में बोला,"मालिक की धर्मपत्नी की तबीयत काफी खराब है।... वह परेशान है।"

द्वारपाल की बात सुनकर पिंकी परेशान हो गई वह द्वारपाल से इजाजत लेकर हवेली में चली गई।.... शयन कक्ष में एक औरत सोई थी। उस औरत के पैताने रामबाबू शांडिल्य बैठे हुए थे।.... दो तीन महिलाएं बगल में खड़ी थी। देखने से ऐसा प्रतीत होता था , मानो रामबाबू शांडिल्य की पत्नी की सेवा में सब कार्यरत है।... पिंकी नजदीक चली गई।

वो रामबाबू शांडिल्य से पूछि,"आपकी धर्मपत्नी है क्या?"

पिंकी की बात सुनकर रामबाबू शांडिल्य बिना कुछ बोले , हा में सर हिलाए।

" कैसी तबीयत है?"फिर एक बार पिंकी ने रामबाबू शांडिल्य से पूछी।

रामबाबू शांडिल्य बोलो,"ठीक नहीं कहा जा सकता है, खाना पीना छूट गया है ,डॉक्टर की दवा भी कुछ काम नहीं कर पा रहा है, कमजोरी बढ़ती जा रही है।....."

कहते कहते रामबाबू शांडिल्य की आंखें भर आई।

रामबाबू शांडिल्य के भाउकता को देखकर पिंकी भी भावुक हो गई।

"क्या मैं देखरेख के लिए यहां रह सकती हूं ?"पिंकी ने रामबाबू शांडिल्य से पूछी।

रामबाबू शांडिल्य , हां में सर हिलाए।

पिंकी रामबाबू शांडिल्य की पत्नी का तन मन से देख रेख कर रही थी ,बावजूद दिन पर दिन उनकी हालत और खराब होते जा रही थी।.... दवाएं बेअसर हो रही थी..... रामबाबू शांडिल्य चिंतित रहने लगे ... वो अपने एकाकीपन से डरते थे। बगैर पत्नी का इतनी बड़ी हवेली में अपनी पहाड़ से जिंदगी को कैसे काटेंगे ?.... सारे डॉक्टर जवाव दे दिए थे।.... अब ये कुछ दिनों की मेहमान है।.... सेवा किजिए।

डॉक्टर की बात रामबाबू शांडिल्य के कलेजे को तीर की तरह भेदते थे।.... अपनी मरणासन्न अवस्था में सोई पत्नी के बगल में बैठे सजल नेत्रों से अपलक पत्नी को निहार रहे थे। उनके पत्नी के भी आखों से आंसू गिर रहे थे।...पिंकी ऐसे दृश्य देख कर भाउक हो गई। वो रामबाबू शांडिल्य को ढांढस बंधाने लगी।

अंततः रामबाबू शांडिल्य की पत्नी का देहांत हो गया।..... दाहसंस्कार खत्म होने के बाद पिंकी बगीचे वाले कमरे में आ गई। पिंकी भी उदास रहती। दिनभर वो बगीचे में समय बिताती। रामबाबू शांडिल्य बगीचे में नहीं आते। लेकिन पिंकी रोज ही उनका इंतजार किया करती।लेकिन पिंकी का इंतजार मृगमरीचिका की तरह ही था।

दिन चढ़ गए थे, सूर्य अपनी लालिमा कम कर उग्र रूप धारण कर ली थी। परछाइयां कम हो गई थी। पिंकी बगीचे में पेड़ के नीचे बैठी थीं। तभी उसे रामबाबू शांडिल्य बगीचे में आते हुए नजर आए।…. पिंकी का खुशी का ठिकाना ना रहा वह दौड़ते हुए उनके पास पहुंची।.... उनके चेहरे पर पूर्ववत मायूसी थी। वो पिंकी से बिना कुछ बोले, एक पेड़ के नीचे बैठकर अनंत की ओर देखने लगे।

पिंकी ने शून्यता तोड़ते हुए बोली,"जिंदगी भला ऐसे चलती है क्या ?... आप मुझे देखें , मैं ढेर सारे गिलेशिकवे ढेर सारी शिकायतें ढेर सारे दर्द को लेकर जीती रही। जिंदगी तो चलता रहता है। उसी में एडजस्ट करना पड़ता है, खुद को। हंसी खुशी को चुराना पड़ता है। गमो का अंधड़ चाहे क्यों ना हो या फिर खुशी का सागर। जीवन कि निरंतरता तो बनी ही रहती है।"

 पिंकी की बात सुनकर, रामबाबू शांडिल्य बोले,"बहुत ही कठिन होता है गामो के दल दल से बाहर निकलना। ...और उसमे से खुशी को ढूंढ़ना नामुमकिन सा होता है।"

 " लेकिन कोशिश तो की जा सकती हैं।....हो सकता है , कोशिश करने से सफलता ना मिले, लेकिन समय बड़ा बलवान है, धैर्य रखिए, एक ना एक दिन जरूर सफलता मिलेगी।...मै उसकी जिती जागती उदाहरण हूं।... आपने मुझे उस समय सहारा दिया , जब में दुखो के सागर में डूबी थी मेरे चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था।"पिंकी समझाते हुए बोली।

 " नौकरानी के हाथ का खाना अच्छा नहीं लगता।...बस जीने के लिए खाता हूं। पत्नी के हाथ का बना ब्यंजन काफी लजीज होते थे। .....ये लंबी जिंदगी आख़िर कटेगी कैसे...मै भी कोशिश कर रहा हूं।... जीवन तो जीना ही पड़ेगा।" रामबाबू शांडिल्य एक गहरी सांस लेते हुए बोले।

पिंकी और रामबाबू शांडिल्य की बाते काफी लंबी खींच गई। शाम हो गई। रामबाबू शांडिल्य बोले, अब हमें हवेली में जाना चाहिए।... कुछ ही देर में रात हो जाएगी।... तुमसे बात करके मुझको बहुत ही अच्छा लगा। ...कल भी आऊंगा।"

 पिंकी बोली," मै सुबह में हर रोज इंतजार करती हूं।...आपके लिए मै रोज ही चाय बनाकर रखती हूं।"

 "तुमने बगीचे की साफ सफाई बहुत ही अच्छे ढंग से कि हो। देखकर मन खुश हो गया।"रामबाबू शांडिल्य पिंकी की तारीफ की।

। " आपके तारीफ से मेरा मन खुश हो गया... कोशिश भी यहीं रहती हैं कि जिस काम से मेरा जीवकोपार्जन हो रहा हैं.. उस काम में कोताही न करू।"पिंकी भी खुश होते हुए बोली।

रामबाबू शांडिल्य अब रोज सुबह आने का वादा करके चले गए।

रामबाबू शांडिल्य अब रोज़ ही सुबह बगीचे में पहुंच जाते और घंटो अपना समय पिंकी के साथ बिताते...चाय पीते।....खाने के समय वो हवेली में जाते।

 बरसात का समय था ,सुबह के आठ बजे थे,आसमान में बादल थे। तभी एकाएक बहुत ही तेज बिजली की गड़गड़ाहट हुई। ऐसा मानो बगल में ही बिजली गिरी हुई हो। डर के मारे पिंकी रामबाबू शांडिल्य से , लिपट गई। रामबाबू शांडिल्य पिंकी का प्रतिकार नहीं किए। अगले ही पल पिंकी खुद को उनसे अलग की। और बोली,"गलती हो गई।...माफ कीजिएगा।"

 रामबाबू शांडिल्य बोले,"क्षणिक डिसीजन दिमाग नहीं ले पाता , तुमने दिमाग से नहीं दिल से खुद को बचाने के लिए हम से लिपट गई, इसमें सॉरी की कोई बात नहीं।"

 पिंकी शर्म से खुद में ही खुद को समेटती जा रही थीं।

पिंकी को आज कुछ अजीब सा लग रहा है..

वो रामबाबू शांडिल्य से आंखें नहीं मिला पा रही थी

 रामबाबू शांडिल्य बोले ,,"तुम्हरा मुझपर भरोसा अपनत्व और आत्मीयता दर्शाता है।"

पिंकी बोली,"जी आप मेरे आराध्य .. पूजनीय और आदरणीय हैं...आप मुझे ऐसे मोड़ पर सहारा दिए हैं जहां से आगे सारे रास्ते बंद थे।..आपने मुझपर बहुत ही अहसान किया है। मैं इस अहसान की कीमत कभी भी नहीं चुका पाउंगी।"

"अहसान कह कहकर अहसान की कीमत को काम ना करो।अहशान की कोई कीमत नहीं होती पिंकी.. यह बीन मोल का अनमोल होता है।" रामबाबू शांडिल्य बोले।

"लेकिन जो आदमी किया रहता है वह तो कह ही देता है ?"

"लेकिन उसके भाव में बिकाऊ शब्द तो नहीं होने चाहिए।"रामबाबू शांडिल्य पिंकी का जवाब दिए।

"मैं शब्दों और भावो को विश्लेषण करके नहीं बोल पाती, जो मन में आया मैंने बोल दिया "पिंकी सफाई दी।

बरसात काफी तेज हो रही थी। वह दोनों पेड़ के नीचे

खड़े थे। मोटीमोटी बूंदे पेड़ के पत्तो से रिस कर उन दोनों के ऊपर गिरने लगे। बरसात अब घनघोर होने लगी।

पिंकी बोली,"चलिए ना कमरे में चलते है ... यहां पर हम दोनों भिंग जाएंगे।"

रामबाबू शांडिल्य बोले,ठीक है चलो चलते हैं।"

वह दोनों कमरे में आ गए।

 पिंकी अपने कमरे की साफ सफाई काफी अच्छे ढंग से की थी।....यह देखकर रामबाबू शांडिल्य काफी खुश हुए।

 पिंकी चहकते हुए बोलीं,"आज मैं काफी खुश हूं आप हमारे घर में पधारे हैं।....वो झट किचन में गई और चाय बनाकर लाई।...वो दोनो साथ ही बैठकर चाय पीने लगे।

चाय की चुस्की के साथ , दोनों बाते करने लगे....वो चोर निगाहों से पिंकी को अपलक देख रहे थे.. उन्हें पिंकी बला की खूबसूरत दिख रही थी। इसके पहले तो कभी भी किसी की खूबसूरती को इतना ध्यान से नहीं देखें। ऐसा क्यों हो रहा है ? वो खुद ही पहेली बनते जा रहै है। उनको खुद ही समझ में नहीं आ रहा था कि उन्हें ऐसे क्यों हो रहा है।

वो चाय को छोड़कर उठ खड़े हुए,और भिंगते हुए अपनी हवेली कि ओर चल पड़े।

पिंकी को आश्चर्य हुआ,बिना कुछ कहे एकाएक अचानक क्या हो गया,वो बोली," एकाएक क्या हो गया...क्या चाय अच्छी नहीं बनी है क्या?"

रामबाबू शांडिल्य जाते हुए बोलो, पिन्की ? न ना ना ऐसी कोई बात नहीं है, मुझे जल्दी जाना है हवेली पर कुछ काम है।"

 वो पिंकी की आंखों से ओझल हो गए पिंकी को आश्चर्य हो रहा था , एकाएक वो क्यों उठ कर चले गए?...वह खुद को संतुष्ट की , हो सकता है एकाएक कोई काम याद आ गया हो।

रामबाबू शांडिल्य की धड़कन काफी तेज चल रही थी।वो अपने शयन कक्ष में लेटे हुए थे। सोच रहे थे,"इस पंचायत का मुखिया.... गांव का सबसे प्रतिष्ठित आदमी।.... बहुत बड़ा पंडित.... पुश्तैनी इज्जत....लोग क्या कहेंगे?....पुनः पिंकी से उन्हें क्यों मिलने का मन कर रहा है।... दिलोदिमाग पर लगातार पिंकी का चेहरा ही क्यों घूम रहा है ?.... वो पलंग पर से उठ कर आईने के सामने आ गए।... वह खुद से प्रश्न करने लगे।मैं अपने को अपने पर संयम क्यों नहीं कर पा रहा हूं।.... दिमाग उनसे ? प्रश्न कर रहा था...दिल पिंकी से पुनः मिलने के लिए बेचैन कर रहा था।

वो खिड़की के पास गए। पानी बंद हो गया था।दिमाग हमेशा रोकता लेकिन ,....लेकिन दिल बारबार पिंकी से मिलने के लिए बेचैन करता.. इसी उधेड़बुन में वह अपने शयनकक्ष में इधर से उधर चल रहे थे।उनका पांडित्य उनका व्यक्तित्व उनकी इज्जत और प्रतिष्ठा पिंकी के पास जाने से रोकती , दिमाग बारबार कहता यह गलत है।लेकिन दिल उन्हें मजबूर करता , प्यार में सब जायज़ है। इस जीवन में , अगर पिंकी का प्यार हासिल हो जाए तो, तो यह जिंदगी सुगम हो जाएगी। वैसे भी पत्नी के मरने के बाद यह जिंदगी पहाड़ की तरह हो गई है।

अंततः रामबाबू शांडिल्य के कदम पिंकी के कमरे की तरफ बढ़ गए।....वो कमरे के दरवाजे पर खड़ा थे... पिंकी का दरवाजा बंद था। वो पिंकी पिंकी की आवाज लगाएं।..पिंकी दरवाजा खोली, रामबाबू शांडिल्य को ऐसा लगा जैसे वह दिल का दरवाजा खोली हो,वो अंदर दाखिल हुए।

"आप एकाएक चले क्यों गए? मुझे समझ में नहीं आया क्या हो गया था ?"

 पिंकी के प्रश्न को अनसुना करते हुए रामबाबू शांडिल्य बोले,"चाय तुम्हारी बहुत ही अच्छी थी।...क्या दुबारा मिल पाएगी?"

"आप ऐसे क्यों कह रहे हैं। यह सब आप ही का तो है मुझ पर आपका पूरा अधिकार है... आप मुझे आदेश दे सकते हैं.. रिक्वेस्ट नहीं कर सकते..."

पिंकी अपनी बात कहकर चाय बनाने किचन में चली गई।

 पिंकी कुछ ही देर बाद पुनः दो कप चाय लेकर रामबाबू शांडिल्य के समक्ष हाजिर हुई , रामबाबू शांडिल्य एक चाय उठाए ,दूसरी चाय पिंकी हाथ में लेते हुए बोली," आपके साथ चाय पीने का दुबारा मौका मिला।...मुझे अच्छा लगा।"

 रामबाबू शांडिल्य पिंकी को अपलक निहार रहे थे।.... पिंकी झेप गई,"आप ऐसे क्यों देख रहे हैं... मेरे चेहरे पर कुछ लग गया है क्या ?"

"न न ना ऐसी कोई बात नहीं है... बस ऐसे ही .... क्या मैं तुमसे एक बात पूछूं...?

पिंकी बोली ,"जितनी बातें पूछनी है पूछिए...मेरी इजाजत की कोई जरूरत नहीं।"

 "प्यार क्या है?"रामबाबू शांडिल्य पूछे।

"प्यार के बारे में मै क्या बता सकती हूं...मैंने जो अनुभव किया है , जो जिया है , मै वही बता सकती हूं।...प्यार एक अधूरा ख्वाब है...प्यार सुख के साथ साथ दुखो का सागर है।...प्यार जो हम नहीं जान सकते , जो हम नहीं समझ सकते, वही है प्यार .....प्यार सबके समझ से परे है।...प्यार दिखता नहीं पर महसूस किया जाता है प्यार।अनुभव में और अनुभूति में होता है , प्यार...प्यार आत्मा की तरह है जो शाश्वत है।फिर भी नंगी आंखों से नजर नहीं आता ही प्यार...धन दौलत इज्जत शोहरत प्रतिष्ठा को दरकिनार करके जिससे होना है , हो जाता है प्यार ,न रूप पे, ना रंग पे , ना जाती पे ,ना धर्म पे, कहीं भी किसी से भी कभी भी हो जाता है ....कहीं दया में कहीं सुंदरता में कही बदसूरती में भी ...या फिर यूं कहें कही भी प्रस्फुटित हो जाता है प्यार...प्यार का जन्म एक पहेली हैं।.. विकल्पहीन होता है प्यार ....प्यार ने मुझे कहां से कहां लाकर खड़ा कर दिया। फिर भी प्यार के प्रति नफरत कभी नहीं आता , प्यार ही आता है।प्यार की वजह से ही आज मैं आपके समक्ष बैठी हूं।प्यार जीवन का सार तत्व हैं। जिसे मै कह नहीं पाती ,जिसे मै बोल नहीं पाती, जिसे समझ नहीं पति वो है प्यार। प्यार की संपूर्ण परिभाषा आज तक कोई नहीं दे पाया। प्यार शब्द का पहला अक्षर अधूरा है वैसे ही प्यार की परिभाषा।......"

पिंकी की प्यार की परिभाषा सुनकर रामबाबू शांडिल्य बोले,"मै भी अपनी पत्नी के साथ स्नेह रखता था , उसके साथ कर्तव्य जुड़े थे... मैंने भी अपना फर्ज उसके साथ निभाया। उसके बगैर एकाकीपन मुझे महसूस हुआ। जिंदगी पहाड़ की तरह लगने लगी।...लेकिन?"

"लेकिन क्या ?"पिंकी आश्चर्य से पूछी।

रामबाबू शांडिल्य एक गहरी सांस लिए और बोले,"जो अनुभव आज मै कर रहा हूं वैसा , अनुभव मैंने पहले कभी भी नहीं किया था।"

"कैसा अनुभव कर रहे है?"पिंकी पूछी।

" मै खुद को असहज महसूस कर रहा हूं।...एक अजीब तरह की बेचैनी बनी रहती हैं...धड़कन हमेशा तेज रहता है।

हमेशा दिमाग से यादें हटती ही नहीं।"

" पत्नी की याद आ रही है ?" जिज्ञासा वश पिंकी पूछी।

"ना ना... ऐसी कोई बात ही नहीं है।" रामबाबू शांडिल्य ने पिंकी की बात को काटते हुए बोले।

 "तो फिर कौन सी बात है.....क्या मैं जान सकती हूं।" पिंकी आश्चर्य से पूछी थी।

 "मुझे तुम्हारी याद आ रही है।"रामबाबू शांडिल्य झटके में बोल दिए।

 रामबाबू शांडिल्य की बात सुनकर पिंकी खूब हंसी बोली,"आप अच्छा मजाक कर लेते है।"

पिंकी का हंसते छोड़ वह बाहर निकल गए.. उनको पिंकी पर गुस्सा नहीं आ रहा था ।... बल्कि उन्हें खुद पर गुस्सा आ रहा था।...ये सच बहुत ही छिछला है

 रामबाबू शांडिल्य अपने हवेली पर वापस आ गए।

एक हफ्ता बीत गए।लेकिन बगीचे में रामबाबू शांडिल्य नहीं आए थे।.. पिंकी को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रामबाबू शांडिल्य बगीचे में क्यों नहीं आ रहे हैं।... उसे खुद पर गुस्सा आने लगा...उसे हंसना नहीं चाहिए था।...पिंकी का मन नहीं मान रहा था।... वो हवेली में जाकर उनसे मिलना चाहती थी, लेकिन उसे डर भी लग रहा था..वो उनपर हंस दी थी, कहीं जाकर मिलने पर वो गुस्सा ना हो जाए ,हो सकता है , वो हमसे मिलना भी ना चाहे। वो खुद पर गुस्सा कम करने के लिए अपनों को सांत्वना दी... हंसने वाली बात पर हंसी तो आएगी ही। ... वो हवेली में जाने का निर्णय ले ली थी।

 खट खट खट खट खट खट.. पिंकी लगातार दरवाजा पीट रही थी। अंदर से दरवाजा बंद था। कुछ देर बाद रामबाबू शांडिल्य दरवाजा खोले।

"काफी गहरी नींद में सो गए थे क्या ?"पिंकी पूछी।

रामबाबू शांडिल्य बोले,"ना सोए नहीं थे, बस यूं ही बैठे थे।"

 "काफी लेट हो गई दरवाजा खोलने में।"

पिंकी की बातों का रामबाबू शांडिल्य कोई जवाब नहीं दिए।

पिंकी उनसे बिना पूछे ही कमरे में दाखिल हो गई। रामबाबू शांडिल्य, दरवाजे से लौट कर आए, और पलंग पर बैठ गए।

 कुछ देर तक चुप्पी रही... दोनों एक दूसरे को देख रहे थे । चुप्पी को तोड़ते हुए पिंकी पूछी," आप मुझ पर गुस्सा है?"

 "ना ना नहीं....।"रामबाबू शांडिल्य ने जवाब दिया।

क्या सचमुच आप इस अदना सी औरत से प्यार करते हैं...?.... विश्वास ही नहीं हो रहा है ....और विश्वास हो भी कैसे..... एक खानदानी प्रतिष्ठित व्यक्ति, पंचायत का मुखिया, एक ऐसी महिला से प्यार करें जिसका न खानदान के बारे में कुछ पता है। और ना ही उसका अतीत ही बढ़िया है। ....समाज को क्या जवाब देंगे आप...... अपने उन पुरखों को क्या जवाब देंगे, जो अपने परिवारिक प्रतिष्ठा आपके कंधे पर छोड़ कर गए है।....यह किसी भी तरह से उचित नही है। ....यह विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण हो सकता है , प्रेम नहीं। प्रेम जज्बातों में नहीं होते प्रेम भावनाओं के आवेग से नहीं होते ....प्रेम दैहिक नहीं होता ,प्रेम आत्मिक होता है। यह स्वार्थहिन होता है।

प्रेम चिंतन की वस्तु है। यह अमूर्त जरूर है पर बहुत ही शक्तिशाली है। अगर स्वार्थ आकर्षण इस प्रेम में है तो समझिए प्रेम नहीं है। यह आकर्षण क्षणभंगुर होता है। या कभी खूबसूरती देखकर तो कभी धन देखकर तो कभी अंदाज देखकर आ जाता है। लेकिन प्रेम ऐसा नहीं होता। प्रेम दिखता नहीं है। प्रेम आत्मा के भीतर होता है। जो प्रस्फुटित होता है।अंकुरित होता है। यह अंकुरण। कैसे होता है , कब होता है , क्यों होता है,यह मनुष्य के समझ से परे है।.... बस हो जाने पर मालूम होता है कि ....हो गया है। प्यार दर्शन है..... प्यार विज्ञान है ....प्यार कला हैं।.... इन सबके साथ साथ प्यार पहेली है।..... प्यार अपरिभाषित है।...यह उम्र से परे, संबंधों से परे ,रिश्तो से परे ,कभी भी, कहीं भी, किसी से भी ,अचानक , हो जाता है। यह सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। धर्म जाति , रिश्ते नाते ,अपना पराया, इन सबसे परे है प्यार।" पिंकी अपनी बात कह दी थी।

रामबाबू शांडिल्य बोले," मैं तुम्हारे इर्द गिर्द ही रहना चाहता हूं , अपलक तुम्हें निहारना चाहता हूं।.....यह क्या है ?..... पहले तो ऐसा नहीं था...….?"

 "हो सकता है आपको प्यार हो गया हो... क्योंकि ऐसे लक्षण प्यार की ही निशानियां तो है।"पिंकी बोली

 "!"

रामबाबू शांडिल्य कुछ नहीं बोले।

पिंकी पुनः बोली ,"मैं भी किसी से प्यार की हूं....मैं जानती हूं, प्यार हो जाने के बाद मन हमेशा विचलित सा होता है। यादों में ही आदमी अहर्निश रहता है।"

रामबाबू शांडिल्य बोले,"मुझे भी कुछ ऐसी ही अनुभूति हो रही है।.... क्या तुम मुझसे प्यार करती हो ?"

रामबाबू शांडिल्य अपनी बात कह कर चुप हो गए।

एक लंबी चुप्पी के बाद, पिंकी गहरी सांस ली। और बोली," जी इस देह पर आपका पूरा अधिकार है। मैं अपना सर्वस्व आपको समर्पित करती हूं।.... यह जीवन... यह तन यह मन.... बस एक चीज छोड़ कर।"

 "जब सर्वस्व न्योछावर ही कर दी हो तो अब कौन सी चीज है , जो तुम हमें नहीं देना चाहती... मैं जानना चाहता हूं , वह कौन सी चीज है ?"रामबाबू शांडिल्य आश्चर्य से पूछे।

पिंकी बोली," प्यार ! जो मैं आपको नहीं दे सकती ...यह प्यार जिसपर सिर्फ मेरे प्रेमी का अधिकार था ,है ,और रहेगा। मैं इसी प्रेम के सहारे अपने जीवन को जी रही हूं। कभी भी मैं खुद को एकाकी महसूस नहीं की। उनकी यादों में.... उनके साए में...मैं हमेशा रहती हूं वह अनवरत हमारे इर्दगिर्द मौजूद है। ....इसके लिए मैं माफी चाहूंगी। आपका प्यार एकतरफा है। प्यार आत्मसात की वस्तु नहीं।......अगर मैं आपको प्यार देने की कोशिश करूंगी वो झूठा होगा, कृत्रिम होगा ,बनावटी होगा। ....मैं आपको सर्वस्व देकर भी सर्वोच्च रख ली हूं। क्योंकि हम प्रेमिका थे.... वो मेरा प्यार था..... मैं प्रेम पुजारीन हूं , हमारे लिए यही सर्वस्व है। ....मैं आपसे एकतरफे रिश्ते में बंधी हूं। रिश्ता एकतरफा हो या दोतरफा रिश्तों में पारदर्शिता बहुत जरूरी है ...."

 रामबाबू शांडिल्य बोले," ये भावनाएं, ये विचार, ये तड़प, ये अभिव्यक्ति ,ये एकतरफा समर्पण और प्यार..... इसको रिश्ते का नाम दे रही हो। .....तो इस रिश्तों में ही मैं जिंदगी काटना चाहूंगा।......क्योंकि इस बेझिल रंगहिन पहाड़ की तरह जिंदगी काटना दूभर हो गया था।.... तुम मेरे जीवन का पर्याय बन गई हो।"

पिंकी बोली," हां ये जरूरी नहीं है कि नाम वाला रिश्ता ही रिश्ता होता है। अनाम रिश्ता इससे मजबूत होता है। जो सीधे मन और आत्मा से जुड़ा होता है। ....कोई भी रिश्ता चाहे वह प्रेम की क्यों ना हो.... अगर वह आत्मा से जुड़ा हो या देह से जुड़ा हो, दोनों ही तरह का रिश्ता स्वार्थहिन नहीं हो सकता।"

 रामबाबू शांडिल्य बोले,"प्रेम और स्वार्थ यह दोनों का संबंध एकदूसरे के विपरीत है न कि पूरक।"

"तड़प को शांत करना भी तो स्वार्थ के ओतप्रोत हैं। प्रेम में मिलने की बेचैनी, प्रेम से मिलकर शांति सुकून और राहत महसूस होती हैं। ये राहत पाने की ललक स्वार्थ हैं।"

रामबाबू शांडिल्य बोले," बातों में तुमसे जितना संभव नहीं।"

रामबाबू शांडिल्य की बात सुनकर पिंकी मुस्कुरा दी।

रामबाबू शांडिल्य पिंकी के बिल्कुल करीब आ गए...... और बोले," मै एकतरफे प्रेम पाकर भी जी लूंगा।"

 " मुझे भी आपत्ति नहीं ....जिंदगी की भटके राह में दूसरे रास्ते को पकड़कर ही मंजिल को पाउंगी। " पिंकी बोली। रामबाबू शांडिल्य, पिंकी से लिपट गए। पिंकी इसका प्रतिकार नहीं की।

 " पिंकी..... पिंकी...... पिंकी...? रामबाबू शांडिल्य बोले।

 पिंकी पूछी,"क्या है?"

 " कब तक सोओगी...?....मै तुम्हे इस कमरे से हवेली में ले जाना चाहता हूं।....जागो।... तुम्हें पता है, मै पंचायत का आमसभा बुलाया था,और उसमें मैंने अपना प्रस्ताव रखा कि, मै पिंकी से शादी करना चाहता हूं। मैं तुम्हारे साथ हुए हादसे के बारे में लोगों को सुनाया। तुम्हारे संघर्ष के बारे में लोगों को बताया.... समाज में तुमको गलत नजरों से लोग ना देखें।.... इसलिए मैं अपने रिश्ते का नाम देना चाहता हूं ,ऐसा मैंने लोगों से कहा, तुम्हें वैधानिक और सामाजिक तौर पर पत्नी बनाना चाहता हूं। मेरे इस प्रस्ताव को आम सभा में उपस्थित सारे लोगों ने समर्थन किया।.... मुझे आशा ही नहीं वरन पूरा भरोसा है , तुम भी मेरे इस निर्णय का समर्थन करोगी।" रामबाबू शांडिल्य बोले।

पिंकी खुश होते हुए बोली ,"मुझे अपार खुशी है। मैं आपके इस निर्णय से अभिभूत हूं..... आप महान है। ......"

अभी मैं अपनी बात पूरी नहीं किया हूं।" रामबाबू शांडिल्य बोले,

 पिंकी डरते हुए बोली," अब कौन सी बात है ? "

चलकर हमदोनों अनाथालय से तुम्हारे बच्चे को लाएंगे, अब इस पूरी संपत्ति का वो अकेला वारिस है .....मैं और तुम मिलकर एक हो गए हैं... अब जो तुम्हारा है वह मेरा है और जो मेरा है, वह तुम्हारा है। तुम्हारा बच्चा अब मेरा है।"

 रामबाबू शांडिल्य की बातें सुनकर पिंकी हतप्रभ हो गई। कहीं वो सपना तो नहीं देख रही है न ....वो रामबाबू शांडिल्य से लिपट कर रोने लगी ,"तुम रो क्यों रही हो ?"

रामबाबू शांडिल्य पूछे,"आप महान हैं , ये खुशी के आंसू है। " पिंकी बोली

रामबाबू शांडिल्य पिंकी के आंखों से आंसू पोछने लगे। इसे पोछो मत, इसे बह जाने दीजिए। यह सुख गए थे।

पिंकी लाल जोड़े में माथे में सिन्दूर लगाए,अपने पति रामबाबू शांडिल्य और अपने पुत्र के साथ एकतरफे प्यार, संपूर्ण रिश्ते तथा समर्पण और एहसान लिए, हवेली की चौखट लांघ रही थी।... और गांव की महिलाएं मंगल गीत गा रही थी।


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