Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Romance

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Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Romance

प्यार की जीत

प्यार की जीत

9 mins
201


  इंटर पास करने के बाद, बैभव ग्रेजुएशन का एंट्रेंस यूपी कॉलेज में नामांकन के लिए दिया । उसे खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसका भी सिलेक्शन बीकॉम के लिए हो गया था।वो मन ही मन सोच लिया था की वो खूब मन लगाकर पढ़ेगा।और अपने मां-बाप का नाम रौशन करेगा।

    उसको हास्टल भी मिल गया था। रुम पार्टनर भी उसके मनपसंद का था । वह अपना हर काम समय से करता था।..तड़के सुबह उठकर वो अपना नित्य क्रिया करके योग करता, और फिर लाइब्रेरी में जाकर साहित्य की किताबें पढ़ता रहता।

 समय बीत रहा था। एक दिन लाइब्रेरी में बैठकर वो किताब पढ़ने में मशगूल था। तभी उसी के सामने वाले टेबल पर एक लड़की आकर बैठ गई। वो भी पढ़ने में मशगूल हो गई । बैभव की नजर उस लड़की पर पड़ी। बैभव उस लड़की को अपलक निहारने लगा। बैभव को इस प्रकार देखना उस लड़की को अच्छा नहीं लगा। वो आव न देखी ताव तुरंत पूछ दी,"ऐ मिस्टर खुद को तुम क्या समझते हो.....ऐसे क्यों घूर रहे हो?"

   उस लड़की की बात सुनकर बैभव झेंप गया, और वो अनुत्तरित हो गया। सिर्फ इतना ही बोल पाया,"आप गलत समझ गई...मैं किताबें पढ़ रहा था , सो उसी के बारे में सोच रहा था।..... आई एम सॉरी।"

     वैभव की बात सुनकर वो लड़की चली गई।

वैभव भी अपने कमरे में आ गया।


     क्लास का लेट हो रहा था। वो जल्दी-जल्दी तैयारी में तल्लीन था। तभी उसका मोबाइल घनघनाया मोबाइल के स्क्रीन पर वैभव अपना नजर दौड़ाया, उसका दोस्त सागर का नंबर था। वैभव मोबाइल रिसीव किया, उधर से आवाज आई, "दोस्त , मैं सागर बोल रहा हूं। "

      "हां बोलो, भाई, कैसे याद किए...दोस्त कितना हूं अच्छा हो , ऐसे कोई थोड़े ही याद करता है।"

        "ऐसे क्यों बोल रहे हो?"

     "बस ऐसे हीं.....काफी लंबा समय के बाद तुम हमें याद किए है ....सो दोस्ती को परिभाषित करना पड़ा"

      "मुझे भींग -भींगा के खूब दे रहे हो वैभव।"

  "चलो बताओ अब काम क्या है?" वैभव पूछा।

             " मैं तुमसे मिलना चाहता हूं ।" सागर बोला।

    "अभी बहुत कम ही दिन हुआ, यहां आए हुए..... गांव आने में समय लगेगा....क्लास छूट जाएगा ... त्योहारों की छुट्टी में ही घर आ पाऊंगा।"वैभव बोला।

     "कोई बात नहीं...मैं इंतजार करुंगा ।" यह कहकर सागर मोबाइल काट दिया।

  वैभव अपने क्लास में जाकर बैठ गया...कुछ ही देर बाद वो लड़की आई , जिससे उसका लाइब्रेरी में बहस हो गया था। वो लड़की वैभव की क्लासमेट थी। क्लास करने पहली बार आई थी.....क्लास में नाम मात्र ही पढ़ाई हुआ। फिर छुट्टी हो गया।

वैभव भी अपने रूम पर आ गया।


वैभव का मन उचट गया था । उसको यहां पर बिल्कुल ही अच्छा नहीं लग रहा था।घर में मां के हाथ का खाना , गांव के सारे दोस्त, बाबूजी , बहन सब बहुत ही याद आ रहे थे ।....लेकिन कर भी क्या सकता है।...वो सोच रहा रहा था..भावी सुख पाने के लिए कितना दुख उठाना पड़ता है।.... सोचते -सोचते उसके आंख से आंसू गिरने लगे ।.... पढ़ना वाकई निराशा भरा काम हैं।पढ़ने में मन लगाने के लिए भी मन को मनाना पड़ता है। अगर सुनहरे भविष्य की बात न होती तो कब का वो घर चला गया होता।...अपने मन को वो खुद ही मनाया शुरू-शुरू में घर छोड़ने पर परेशानी होती है।...फिर समयानुसार सब ठीक हो जाता है।....सारे अपने नोट वो तैयार करके वो मन से पढ़ाई कर रहा था।....


किवाड़ वो भीतर से बंद किए हुए था।और पढ़ने में मशगूल था, तभी किवाड़ खटखटाने की आवाज आई।

    "कौन कौन है?" घबड़ाते हुए वैभव पूछा। आज स्कूल की छुट्टी भी है।... गॉव से कोई आ भी नहीं रहा है ....आखिर कौन हो सकता है ?"....वो दरवाजा खोला...सामने उसका सहपाठी अमृता खड़ी थी। अमृता बहुत ही शांत किस्म की लड़की थी।

बहुत ही कम बोलती जिससे बोलती सिर्फ काम की बाते ही बोलती .... वैभव अमृता को देखकर अवाक् हो गया और आश्चर्य से पूछा,"अभी इस वक्त....क्या कोई विशेष काम है क्या?"

   अमृता बिना कोई जवाब दिए बगल में रखे टेबल पर बैठ गई...और एक लंबी सांस ली... और वोली,"....घर छोड़ कर आई हूं न ....मन नहीं लग रहा है....

   वैभव और अमृता दोनों ही आपस में बातें करने लगे।.... बातचीत में पता चला कि अमृता की एक जिगरी सहेली भी है.... जिससे वह शाम को रोज मिलती है।

  अमृता बोली,"वैभव, एक दिन हम अपनी सहेली को लेकर तुम्हारे पास आएंगे।"

    वैभव बोला, "ठीक है ....हम इंतजार करेंगे।"

  अमृता कुछ नोटबुक वैभव से लेकर चली गई।


ट्री..ट्री...ट्री... ट्रिंग.....ट्रिंग...ट्रिंग... वैभव का मोबाइल घनघनाया...वैभव मोबाइल के डिस्प्ले पर नजर दौड़ाई ,अमृता का फोन था, वैभव बात किया, उधर से अमृता बोली, "मैं आज अपनी सहेली को लेकर आ रही हूं।" फोन कट गया।

 वैभव आश्चर्य में पड़ गया...वो बेतरतीब ढंग से रखे समान को सहेजकर रखने लगा।

कुछ देर के मेहनत के बाद सारा घर सजा दिया। फिर वो बाजार से नाश्ता लेते आया।...और आने का इंतजार करने लगा।


वैभव एकाएक चौका, उसे विश्वास ही नहीं हुआ, अमृता के साथ जो लड़की आ रही है। वो वही लड़की थी...और हमारी सहपाठी भी है।...वो अपना आंख मसला और फिर अपनी आंखें फाड़कर देखा। तब उसे यकीन हुआ। .... दोनों लड़कियां उसके कमरे में आ गई थी।

  वैभव अपलक उस लड़की को निहारने लगा। उसे निहारता देख वो लड़की असहज हो गई। बोली, "ऐसे क्यों देख रहे हैं ?"

  वैभव अचकचाया बोला, "ऐसे ही कुछ नहीं बस पहचानने की कोशिश कर रहा था,...लगता है हम और आप कभी मिल चुके हैं।"

वैभव की बात सुनकर वो लड़की बोली,"हां हमदोनों तो क्लास में रोज ही एकदूसरे को देखते है।...बस बातें नहीं होती है ... हां लाइब्रेरी में मिले थे.... जहां हमारे और तुम्हारे बीच कुछ नोकझोंक हुई थी।"

   "हां! याद आया...तुम जब हमको बोली थी ,तो मैं काफी उदास हो गया था।... नया नया घर छोड़ कर आया था। "

 "चलो उस झगड़े में मेरी जो गलती थी , उसके लिए सॉरी बोलता हूं।"

  वैभव बोला,"अपनो में सॉरी का कोई स्थान नहीं होता...आप खुद से हमें दूर कर रही हैं।"

  वो लड़की मुस्कुरा कर वैभव की तरफ देखी,वैभव की नजर से उसकी नजर टकरा गई। वैभव का दिल की धड़कन काफी तेज हो गई।वो असहज हो गया।उसे ऐसा महसूस हो रहा था की उसे कुछ कुछ हो रहा है।वैभव उस लड़की को अपलक निहारने लगा।...अमृता ये सारे दृश्य देख बोली,"सिर्फ एक दूसरे को देखते रहोगे की बातें भी करोगे।"

  अमृता की बातें सुनकर वैभव और उस लड़की की तंद्रा भंग हुई । और शर्माते हुए दोनों नीचे जमीन पर देखने लगे।

 वैभव से अमृता बोली,"यार वैभव जो देखकर मैं समझ रही हूं वो क्या सही है?"

  "..........!"

        वैभव अमृता के प्रश्नों का जवाब नहीं दिया।

वही प्रश्न अमृता ने अपनी सहेली से पूछी। उसकी सहेली भी कोई जवाब नहीं दी।

   अमृता बोली, "यह चुप्पी पहेली नहीं है... वैभव मैं अपनी सहेली को तुम्हारा नंबर दे दूंगी, मैं सब कुछ समझ गई " यह कहते हुए अमृता मुस्कुराने लगी।


  वैभव का मोबाइल घनघनाया, कोई नॉन नंबर था। वैभव ने मोबाइल रिसीव किया, "मैं मुस्कान बोल रही हूं।"

   "कौन मुस्कान?"

"वही जो अमृता के साथ तुम्हारे घर आई थी "

एक छोटा सा जवाब उधर से आई।

बातों का सिलसिला आगे बढ़ा।

वैभव ने प्रेम में उस लड़की का नाम प्रीति रख दिया। और बोला,"यह मेरा प्रेम में दिया अनमोल तोहफा है।"

  वो लड़की भी सहर्ष नाम को स्वीकार का ली।


  वैभव को मुस्कान के बगैर मन नहीं लग रहा था।हर पल हर समय वो प्रीति के यादों में खोया रहता।..और यही हाल प्रीति की भी थी।

  समय बीत रहा था, समय के साथ उन दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ रहा था।


 दोनों का ग्रैजुएशन कंप्लीट हो गया था।..... दोनों को

एक ही कंपनी में अच्छा जॉब भी मिल गया था।...एक दिन वैभव आव देखा न ताव अपने प्यार का इजहार कर दिया।

 वैभव की बात सुनकर

 प्रीति कुछ भी नहीं बोली।

वैभव के प्रश्न पर प्रीति अनुत्तरित हो गई। वैभव इसे मौन सहमति मान लिया।

  प्रीति को भी यही फिलिंग था। वैभव को पहले ना ना की फिर हां कर दी।


   वैभव प्रीति से शादी कर लेना चाहता था। प्रीति भी इसके लिए तैयार थी।लेकिन दोनों को अपने माता पिता से डर था , की ये शादी को वो पचा नहीं पाएंगे।... दोनों मंदिर में शादी करने का फैसला लिए। वैभव गांव से अपने दोस्त सागर को बुलाया ।

        बैभव सागर से अपनी सारी बातें बताई। वैभव की बात सुनकर सागर बोला, "वैभव तुम मेरे सच्चे दोस्त हो मैं तुम्हें गलत सलाह नहीं दूंगा । एक बार मां-बाप से बात करके कोशिश तो करो, शायद वह मान जाए।..."

   सागर की बात सुनकर वैभव बोला," सागर मेरे माता - पिता अगर ना माने तो , मैं जी ना सकूंगा , प्रीति मेरी जान मैं तो मर ही जाऊंगा।"

  सागर बोला," तो ठीक है, मैं तुम्हारे साथ हूं।...लेकिन शादी के बाद पत्नी को खिलाओगे क्या?"

 सागर की बात सुनकर वह मुस्कुराया और बोला सागर मैं और प्रीति दोनों एक ही कंपनी में काम करते हैं हम दोनों का जॉब लग चुका है।"

 वैभव की बात सुनकर सागर बनावटी गुस्से में बोला," तुम इतनी बड़ी बात हम से छुपाए थे....जाओ मै तुमसे बात नहीं करता।"

  सागर की बात सुनकर वैभव बोला," सॉरी मान भी जाओ, गलती हो गई मुझसे...तुम्हे बताना चाहिए था।"

  वैभव की बात सुनकर, सागर मुस्कुराया, और वैभव के गले लिपट गया।


वैभव प्रीति को फोन करके बुलाया, प्रीति अमृता के साथ आ गई और तय समय पर सब मंदिर पहुंच गए।

 दोनों पंडित के समक्ष , अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लिए, सागर और अमृता इस शादी का गवाह बने।

    सागर अपने गांव लौट आया। ... वैभव और प्रीति एक साथ खुशी से रहने लगे।


 रिश्तो के बीच प्रेम संपूर्ण होता है । आज भले ही वैभव और प्रीति अपने दांपत्य जीवन से खुश थे , लेकिन एक टिस भीतर चुभता रहता। और दोनों सोचते ,"काश! हम दोनों की शादी में मां- बाप की भी सहमति होती तो सोने पर सुहागा होता।"


  खट खट खटखट...कोई दरवाजा खटखटा रहा था।

      "आज रविवार हैं , कौन हो सकता? इतनी सुबह में " प्रीति ने वैभव से पूछा ।

  "मुझे भी नहीं पता..मैंने तो किसी को भी नहीं बुलाया है। मैं देखता हूं...आखिर है कौन?"

 वैभव दरवाजा खोला, सामने सागर था , " सागर तुम इतनी सुबह - सुबह !"

  मैं ही नहीं और भी बहुत लोग आए है... कल ही से हमलोग आए है।...मुस्कान जो आज तुम्हारी प्रीति है, उसके घर गए थे ।रात में वही रुक थे।...देखो कौन - कौन आया है?

यह कहते हुए, सागर आगे से हट गया।

  वैभव को अपने आंखों पर भरोसा नहीं हुआ, वो प्रीति को बुलाया , प्रीति दरवाजे के पास आई। प्रीति को भी भरोसा नहीं हो रहा था।...दरवाजे पर प्रीति और वैभव के माता पिता खड़े थे। उनके हाथों में फूलो का गुलदस्ता था।

  वैभव की मां प्रीति को गुलदस्ता थमाते हुए बोली, "हम सभी को अंदर नहीं बुलाओगी बहु ?"

  गुलदस्ता हाथ में लेकर प्रीति बोली, "ममी! ये तो आपका ही घर है।"....सारे लोग घर के अंदर आ गए थे।

   वैभव कुछ कहता तभी वैभव के पिता बोले, "सागर हमें सब कुछ बता दिया है हमें तुमसे कोई शिकवा शिकायत नहीं है बच्चों की खुशी में मां बाप की भी खुशी होती है।..."

 मुस्कान की मां बोली," मुस्कान हम दोनों तुमसे बेइंतहा प्यार करते हैं , तुम्हारे प्यार से कैसे हमलोग नफरत कर सकता है।.. तुम्हारा यह रिश्ता मुझे और तुम्हारे पिता को कबूल है। "

  मां की बातें सुनकर मुस्कान की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।

  सागर बोला , "सिर्फ बाते होंगी या मुंह भी मीठा होगा।

 हां क्यों नहीं यह कहते हुए, प्रीति किचन में चली गई।

वैभव सागर से लिपट कर बोला," यार दोस्त हो तो, तुम्हारे जैसा , तुम सपरिवार मिला दिए...

  वैभव की बात सुनकर सागर बोला , "जिगरी दोस्त हूं, यार इतना तो कर ही सकता हूं।"

  सागर की बात सुनकर सभी जोर जोर से हंसने लगे।

प्रीति भी मिठाई और चाय लेकर आ गई थी। सबको हंसते देख प्रीति भी मुस्कुराने लगी।


 

 

  



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