Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Children Stories Inspirational

4.4  

Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Children Stories Inspirational

गुलामी

गुलामी

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बंधन क्या एक कैद सा है? बंधन से मुक्ति स्वतंत्रता है ? क्या ये स्वतंत्रता का हीं मनुष्य भूखा होता है । क्या ये स्वतंत्रता सुकून देती है । स्वतंत्रता जीवन में अति महत्वपूर्ण है, लेकिन हर जगह स्वतंत्रता, हर समय स्वतंत्रता उचित नहीं होती।

सर्वेश ऊब गया था। सुबह उठकर विद्यालय जाना आने के बाद तुरंत जल्दीजल्दी खाना खाकर फिर ट्यूशन जाना, वहां से आने के बाद, पिताजी के डर से फिर पढ़ने बैठ जाना। पढ़ाई वैसे भी दुनिया के उबाऊ चीजों में से एक है।ऐसी जिंदगी भी क्या कोई जिंदगी है।जिंदगी मेरी और इस जिंदगी पर हुक्म पिता का चलता है।उसे कभी कभी खुद पर गुस्सा आ रहा था।

रोज रोज डांट, अब बर्दाश्त नहीं होते। .. सर्वेश मन हीं मन गुस्से में निर्णय ले लिया, अब मैं इस घर में नही रहूंगा।

 सर्वेश घर छोड़कर भाग गया।वह एक रेलवे स्टेशन पर बैठा था।तभी उसके पास एक लड़का आया।वो लड़का भूखा था। वह लड़का सर्वेश के सामने हाथ फैलाया, "भईया, कुछ खाने के लिए दे दीजिए, बहुत भूखा हूं।..दो दिन से कुछ भी नहीं खाया हूं।"

इस लड़के को देखकर सर्वेश को काफी दया आई,वो अपने पॉकेट में हाथ डाला, जेब खाली था,सर्वेश उस लड़के से बोला,"तुम जवान हो हट्ठेकठ्ठे हो..तुम काम कर सकते हो।... तुम तो देखने सेअच्छे घर के लगते हो.. तुम इस तरह का काम क्यों कर रहे हो?"

 सर्वेश की बात सुनकर वह लड़का रोने लगा,और बोला,"हम अपने मां बाप की इकलौते बेटे हैं।

 मांबाप हमें खूब पढ़ाना चाहते थे । सुबह से शाम तक बस ' पढ़ाई करो, स्कूल जाओ ', गुस्से में हम घर छोड़ कर भाग आया,.... ऐसी गुलामी हमें मंजूर नहीं थी।.... और आज मैं भीख मांगकर खा रहा हूं।कभी कभार होटलों में जूठा बर्तन मांजता हूं।..तो जाकर पेट भरता है।... अब मुझे पश्चाताप हो रहा है, मैं अब घर जाना चाहता हूं, लेकिन पैसा इकट्ठा नहीं हो पा रहा है, ताकि मैं घर जा सकू, मुझे अपने मां बाप की बहुत याद आ रही है....आज मेरी आंख खुल गई है... मैंने काफी बचकाना डिसीजन ले लिया था, मां और बाप हमारे उज्ज्वल भविष्य के लिए हीं तो हमको स्कूल भेजते थे। मांबाप के डांट को अगर हम बर्दाश्त कर लिए होते तो, आज हमें ये कष्ट उठाना नहीं पड़ता। आज हमारे सर के ऊपर छत होता.... मां बाप का साया होता प्यार होता दुलार होता....।"

 उस लड़के की बात को सुनकर सर्वेश बोला, "तुम मेरी बात मानो, तुम घर चले जाना, तुम्हारे मांबाप आज भी तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे, ....मैं भी आया था, घर द्वार छोड़कर, लेकिन तुमसे मिलकर मेरी आंख खुल गई, अब मैं लौट रहा हूं अपने घर, ऐसी गुलामी हमें सुकून देती है, सुख देती है।... लगता है दोस्त तुमको हमारे पास भगवान ने भेजा है, आज मैं उस भगवान का शुक्रगुजार हूं, कि तुम मुझे सही समय पर मिल गए। मेरे कदम गलत रास्ते के तरफ तो बढ़ हीं गया था।"

सर्वेश्वर उठ खड़ा हुआ और स्टेशन से सीधे अपने घर की तरफ बढ़ चला।


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