Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Inspirational

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Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Inspirational

अधूरा सपना

अधूरा सपना

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 यह जीवन का मतलब क्या है ? यह जीवन चलता है सांसे आती जाती है । उम्र बढ़ता है ,और बढ़ने के साथ ही उम्र कम होती जाती हैं। आने के साथ जाना तय है , और कुछ हद तक जाने के साथ आना भी। आनाजाना यह क्रम अनवरत है। यह भी शाश्वत सत्य है कि मुट्ठी बांधकर आया है , और हाथ खोलकर जाना है।...समय के साथ जाना एक सुखद अहसास है , और असमय रिश्तों को अपने सगे संबंधियों को छोड़कर चले जाना , अपार दुख को जन्म दे देता है।

यह जीवन एक रहस्य है ।यह क्यों मिलता है ।समझ से परे है। इस जीवन के देने से प्रभु का कौन सा मकसद पूरा होता है , यह भी समझ से परे है। जीवन चक्र भी एक पहेली सा ही है , एक दूसरे के हत्यारे है।

जीव ही जीव का भोजन करके, जीवों के समानता को संतुलित करता है। और यही क्रम चलता रहता हैं।

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 गरीबी के वजह से बहुत कम उम्र में ही गोविंद अपनी पढ़ाई छोड़कर छोटा मोटा व्यवसाय करने लगा। कुछ दर्जन केला खरीदकर वो बाजार में बेचता। उससे जो आमदनी होती। उसी आमदनी से अपने घर परिवार का पूरा खर्चा चलाता।

.. छोटे भाई को पढ़ाना भी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी। किसी किसी तरह गोविंद सारी जिम्मेदारी को निभाता। मितव्ययिता एक सर्वश्रेष्ठ गुण है। पाई - पाई धन इकट्ठा करके उससे कुछ बड़ा किया जा सकता है। गोविंद भी अपने जुटाए धन से एक दुकान खोला।दुकान चल निकला और कुछ ही दिन बाद उसकी गिनती उस जगह के धनी व्यापारियों में होने लगी। धनलक्ष्मी गोविंद पर काफी मेहरबान थी।

   धन से ही धन कमाया जाता है । सो दिन दूनी रात चौगुनी गोविंद पर धन की वर्षा होने लगी। 

  लालच एक ऐसी चीज है जो मनुष्य को सोने नही देती है।

 संतोष कर लेना भी तो अवनति का मार्ग प्रशस्त करती है.. संतोष का मतलब था कि रुक जाना, ठहर जाना, रुकना क्या जीवन के निरंतरता के साथ ठीक है। नहीं, कदापि नहीं।

  गोविंद के पास पैसों की बरसात तो हो ही रही थी। लेकिन शांति कोसो दूर भाग गई थी । रात - दिन हिसाब - किताब , लाभ - हानि , जोड़ - घटाव, किया करता।...इस प्रकार उसे अनेकों बीमारियों ने जकड़ लिया। डॉक्टर से सलाह के बाद भी , गोविंद आराम नही कर पा रहा था। छोटा भाई इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। इस वजह से भाई को व्यवसाय में कोई मदद नही कर पाता। 

 गोविंद के बच्चे भी काफी छोटे थे।

  एक दिन सोच अवस्था में गोविंद बैठा था।

तभी अचानक पछाड़ खाकर गिर गया। आननफानन में दुकान के नौकर हस्पिटल लेकर गए। जहां पर डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया ।

 गोविंद की मौत रक्तचाप बढ़ जाने से हो गया था।

उसके आलीशान घर के सामने उसका मृत शरीर पड़ा हुआ था। उसके छोटे छोटे बच्चे अपलक अपने पिता को निहार रहें थे।पत्नी रोते रोते गिर जा रही थी। छोटा भाई के सामने अंधेरा छा गया था।

 गोविंद का मृत शरीर अनेकों प्रश्न कर रहा था। उसकी पथराई और निर्जीव आंखें अधूरे सपनों के साथ दुनिया छोड़ चली थी।



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