Sudhirkumarpannalal Pratibha

Tragedy

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Sudhirkumarpannalal Pratibha

Tragedy

विश्वास वाला रिश्ता

विश्वास वाला रिश्ता

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 विश्वास दांपत्य जीवन का एक अटूट बंधन है। अगर विश्वास लेश मात्र भी कमजोर पड़ गया तो,मजबूत रिश्ता भी दरक जाता है।..टूट भी सकता है । प्रेम विश्वास के गर्भ से हीं जन्म लेता है । रिश्ते का चाहे कोई भी प्रकार हो। बिन विश्वास का , बिन पतवार के नांव की तरह है।जिसका न कोई ठहराव है । न पड़ाव , ना हीं मंजिल है। मांझी और कश्ती के बीच का रिश्ता विश्वास का रिश्ता होता है । कश्ती को साहिल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मांझी को होती है । कश्ती तो मांझी पर विश्वास कर खुद को मांझी के हवाले कर देता है।

रिश्ता कोई भी हो । प्रेमरहित, समर्पणरहित ईमानदारीरहित , भावरहित, रिश्ता बेमानी सा लगता है । खुद में हीं लोग ठगा सा महसूस करते है । कभी कभी तो जीवन भी बोझ सा लगने लगता है । रिश्ता प्रेमयुक्त है तो उसमें जान बसता है । जीवंत हो उठता है रिश्ता । खिल उठता है । चटक और सुर्ख दिखता है। प्रफुल्लित रहता है तन - मन। व्यक्ति हमेशा खुश रहता है । पहाड़ सा जीवन छोटा सा लगता है । अच्छा अच्छा लगता हैं , बहुत हीं अच्छा लगता है । बुरा हीं सिर्फ बुरा लगता है।

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मोहन और रंभा की शादी हुए लगभग दो साल हो गए थे।लेकिन अभी तक कोई भी बच्चा नहीं हुआ था।

रंभा एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका थी । जबकि मोहन एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था ।

जीवन दोनों का अच्छे से बीत रहा था । आपसी विश्वास की भी कमी नहीं थी । खुद से ज्यादा एक दूसरे पर भरोसा करते थे।.....

समय निकालकर पति - पत्नी डॉक्टर के पास भी जाते थे ।...लेकिन अबतक निराशा हीं हाथ लगी थी ।...समय बच्चे के बिना उदासी से कट रहा था ।

एक दिन मोहन की मां इंदु ने मोहन को अपने कमरे में बुलाई । और उसे अपने पास बिठाकर बोली , " बेटा आज हम बाजार गए हुए थे , तभी देखे की बहु एक अनजान व्यक्ति के साथ , बाजार में चाट खा रहीं थीं ।.... मुझसे रहा नहीं गया । मैं उस लड़के के बारे में पता किया , तो पता चला कि वो लड़का बहु के साथ हीं उसी विद्यालय में पढ़ाता है ।....बेटा कुछ भी ऊंचनीच हुआ तो खानदान की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी । तुम अभी के अभी बहु से कह दो की वो अब विद्यालय नहीं जाए।"

मां की बात सुनकर ,मोहन अनमने ढंग से बोला ," मां अब छोड़ो भी, ऐसे बातों का कोई भी मतलब नहीं है.....यह सारी बातें बकवास है। विद्यालय में पढ़ाते - पढ़ाते मन उचट गया होगा, सो वो बाजार जाके चाट खा ली होगी । किसी भी लोग के साथ किसी को देखकर सिर्फ एक अनुमान लगाना सही नहीं होता... ढेर सारे रिश्ते है... मां आप भी पुराने ख्यालों में फंसी हैं । विद्यालय में एक साथ पढ़ाते - पढ़ाते दोस्ती हो गई होगी , अकेले जाना उचित नहीं समझी होगी .....साथ चली गई होगी।... मां इस तरह के फालतू बातों के लिए हमारे पास समय नहीं है । "

यह कहकर मोहन अपने मां के कमरे से बाहर निकल आया ।

इंदु चुप हो गई।

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रविवार का दिन था , मोहन अपने मां के कमरे में बैठकर अपने मां से वार्तालाप कर रहा था । रंभा डॉक्टर के पास गई हुई थी।...तभी दरवाजे से खटखट की आवाज आने लगी ।.....मोहन दरवाजा खोला । बाहर रंभा थी । उसके चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी।

उत्सुकतावस मोहन रंभा से पूछा ," क्या बात है , इस चेहरे पर मुस्कान का रहस्य क्या है ? "

रंभा बिना कुछ कहें , मोहन के गले से लिपट गई ।

मोहन रंभा से पूछा , " इस खुशी का कारण क्या हो सकता है,.... जरूर डॉक्टर ने कुछ नया समाचार सुनाया होगा । "

रंभा खुशी से चहकते हुए बोली ," हां , मैं गर्भवती हूं...और जल्द हीं तुम पिता बनने वाले हो । "

रंभा की बात सुनकर मोहन के खुशी का ठिकाना न रहा , वो पुनः रंभा से लिपट गया , और बोला ," बरसों का सपना पूरा हो गया , हम सच में पिता बन जाएंगे , चलो यह खुशखबरी हम दोनों मां को सुनाते हैं । "

मोहन और रंभा दोनों इंदु के कमरे में चले गए ।

इंदु अपने कमरे मे सो रही थी । मोहन मां को उठाया और चहकते बोला , " मां आप दादी बनने वाली हो । "

मोहन की बात सुनकर इंदु पूर्ववत हीं रही ।... चेहरे पर खुशी का कोई भी भाव नहीं था ।

मोहन को समझते देर न लगी।वो रंभा को लेकर अपने मां के कमरे से बाहर आ गया।

रंभा अपलक मोहन को देख रही थी । मोहन रंभा को संयम बरतने को कहा ।

समय बीतते जा रहा था । रंभा अब विद्यालय भी पढ़ाने नहीं जा रही थी।

मोहन की मां इंदु के व्यवहार में कोई भी परिवर्तन नहीं आ रहा था । वह अभी भी अपनी बहु रंभा और बेटा मोहन से दूरी बनाकर हीं रह रही थी। वो मोहन और रंभा से कम ही बोलती थी ।

इंदु के ऐसे व्यवहार से रंभा असहज हो जाती । और वो उदास हो जाती।...मोहन को समझते देर न लगी की रंभा काफी परेशान है । मोहन रंभा को समझाने का सफल कोशिश करता । वो कहता कि ," इस अवस्था में ज्यादा नकारात्मक बाते सोचना सेहत के लिए हानिकारक है।"

मोहन की बात रंभा को समझ में आ जाती , और वो नकारात्मकता अपने भीतर से निकालने की सफल कोशिश करने लगती ।

डॉक्टर के दिए समय पर मोहन और रंभा हस्पिटल पहुंचे ।

रंभा एक स्वस्थ बच्चें को जन्म दी।.. जच्चा और बच्चा दोनों हीं स्वस्थ थे।

मोहन और रंभा बच्चे के साथ खुशी-खुशी घर आए लेकिन , मोहन की मां इंदु ने दोनों का कोई स्वागत नहीं किया । ना हीं पोते होने पर चेहरे पर कोई खुशी के भाव हीं दिखे ।

यह सब देख रंभा घबरा गई।...मोहन को समझते देर न लगी , वो रंभा को पुनः समझाया,"समय के साथ सब ठीक हो जाएगा । "

मोहन , मां के कमरे में गया , मां के बदले हुए व्यवहार के बारे में जानने की कोशिश किया।

मां स्पष्ट कह दी ," जबतक दूध का दूध और पानी का पानी नहीं हो जाता , तबतक मै इस बच्चे को अपना पोता नहीं मानती ।....चाहे जो भी हो जाए , मेरे व्यवहार में कोई तब्दीली नहीं आएगी।.... मेरे से तुम दोनों को लेना देना भी क्या है ... मैं अपने कमरे में पड़ी रहूंगी । तुम दोनों की अपनी दुनियां है , अपनी दुनियां में तुम दोनों मस्त रहो । अपना काम करो।... मेरी खुशी और नाखुशी से तुम दोनों को क्या मतलब ? "

मोहन बोला, " मां मैं तुम्हें खुश देखना चाहता हूं।....रही बात रंभा की तो मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं.... रंभा मेरी पत्नी है , मैं उसे अच्छी तरह से जानता हूं।...मैं उससे प्यार करता हूं , वो भी मुझसे प्यार करती है...बिल्कुल सच्चा वाला प्यार।..और ये प्यार विश्वास के नींव पर टिका हुआ है।.....मेरा बेटा सिर्फ मेरा है । वो मेरे खानदान का खून है । वारिश है।...मेरी पत्नी पवित्र है , सतीसवित्री है...।...मां ! रिश्ते की डोर , अगर विश्वास के रेशे से बना हो , तो वह डोर अटूट अविनाशी और अनस्वर होता है ।

मोहन की बात सुनकर इंदु कुछ भी नहीं बोली ,

"..............।"

किवाड़ के ओट से रंभा सारी बात सुन रही थी, रंभा को रहा नहीं गया , वो इंदु के कमरे में आ गई । और बोली,"मां इतनी सी बात के लिए आप इतना दुखी है , जहां विश्वास का अभाव है , वहां विज्ञान विश्वास को मजबूत करेगी हीं नहीं वरन सत्य को प्रमाणपत्र के रूप में दे देगी । मैं अपने ऊपर लगे लांछन को हटाऊंगी । एक दादी को उसके पोते से मिलाऊंगी।...मैं निर्णय ले ली हूं , मै अब डीएनए टेस्ट कराऊंगी । "

मोहन कुछ कहता , इसके पहले रंभा बोली , "मुझसे आप सच्चा प्यार करते है न ? आप मेरे ऊपर लगे लांछन को दूर करने में मेरी मदद करेंगे।...मेरे निर्णय से आपको सहमत होना होगा।...आज और अभी ' डीएनए टेस्ट ' कराने डॉक्टर के पास चलना होगा।"

मोहन इस बात से सहमत नही था , फिर भी हामी भरना पड़ा । मोहन और रंभा अपने बच्चे को लेकर हॉस्पिटल चले गए ।

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"डॉक्टरसाब डीएनए टेस्ट करना है , कितना लग जाएगा?"

रंभा ने डॉक्टर से पूछा।

डॉक्टर बोले," डीएनए टेस्ट का छः हजार रुपया लगेगा और अपने घर का पूरा पता बताना होगा । ताकि आसानी से मेरा आदमी आपका रिपोर्ट , घर तक लेकर पहुंचा दे ।...मेरा आदमी आपको रिपोर्ट समझा भी देगा।.....एक हफ्ते में आपका रिपोर्ट आ जाएगा । रिपोर्ट की होम डिलीवरी है।... हम अपने आदमी को भेजेंगे रिपोर्ट के साथ और आपको डीएनए टेस्ट के रिजल्ट के बारे में सब कुछ समझा देगा।... यह एक सिंसेटिव मसला होता है , इसलिए घर तक इस रिपोर्ट को भिजवाया जाता है "

मोहन अपना और अपने बेटे का ब्लड सैंपल देकर रंभा के साथ घर आ गया ।

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रविवार का दिन था , दोपहर के बारह बजे थे। तभी दरवाजा काफी तेज आवाज में कोई खटखटा रहा था । इंदु ने दरवाजा खोला , सामने कोई अजनबी खड़ा था , उसके हाथ में लिफाफा था ।

वो आदमी इंदु को अपना परिचय दिया, "मैं 'मातृत्व हैस्पिटल' से आया हीं ...मोहन का घर यही है?

इंदु बोली,"हां बोलिए क्या काम है?"

"जी ये उनका और उनके बेटे का डीएनए रिपोर्ट है...वो हैं क्या?"

इंदु बोली , "अंदर आइए आज घर पर हीं सब है ।"

इंदु उस व्यक्ति को अपने कमरे में ले गई । और डीएनए रिपोर्ट को अच्छी तरह से समझी।

वो व्यक्ति चला गया।

इंदु आंगन में आई और रंभा को बुलाकर , उससे लिपट गई बोली , "हो सके तो मुझे माफ कर देना , मैंने तुम्हें बिना मतलब का लांछन लगाया , तुम गंगा की तरह पवित्र हो , सती सावित्री हो , तुमपर मुझे गर्व है । "

मोहन भी अपने बेटे को लेकर आंगन में आ गया था । वो ये दृश्य देखकर फूला नहीं समा रहा था । मोहन के हाथ से इंदु अपने पोते को लेकर दुलारने लगी।

यह देखकर रंभा के आंखो से खुशी के आंसू निकलने लगा ।

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