Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Tragedy Inspirational

3.9  

Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Tragedy Inspirational

यादों की उम्र नहीं होती।

यादों की उम्र नहीं होती।

3 mins
232


जीवन चलने का नाम है। इसमें निरंतरता बनी रहती हैं । इसी जीवन में गम है, खुशी है , हंसी है, दर्द है, तड़प है। इसको सहते हुए। बर्दाश्त करते हुए , संघर्ष करते हुए , आगे बढ़ना है। दुख दर्द तड़प उम्र देखकर नहीं आती है।यह बेरहम होती है।


 बक्सर शहर के पीपी रोड से थोड़ी सी दूरी तय करने के बाद पोस्ट ऑफिस आता है। पोस्टऑफिस से कुछ हीं दूरी पर डॉक्टर अरुण कुमार गुप्ता हड्डी रोग विशेषज्ञ का अस्पताल है।

  मेरे पत्नी के दाहिने कूल्हे में काफी दर्द रहता था। दर्द भी असहनीय था। मैं उनको दिखाने के लिए , उसी अस्पताल में लेकर गया हुआ था। अस्पताल में मरीजों की काफी भीड़ थी। मैं भी अपना नंबर लगाकर पत्नी के साथ बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया।

  पत्नी बोली, "नंबर तो काफी पीछे है , चलकर बाजार में गोलगप्पा खा लेते है।... भूख लगी है।"

 मुझे भी गोलगप्पे खाने को इच्छा हुई.. सो मैं भी हामी भर दिया।....हम दोनों मार्केट में निकल गए। थोड़ी सी ही दूरी पर एक छोटा बच्चा , उम्र करीब 15साल का था। ठेले पर गोलगप्पे बेच रहा था। हम दोनों उसके करीब पहुंचे, और गोलगप्पे के लिए इस लड़के से प्लेट मांगे। वो लड़का हम दोनों के तरफ प्लेट बढ़ाया।... हम दोनों गोलगप्पे खाने लगे। खाने के क्रम में मैं उस लड़के से पूछा, "भाई पढ़ने नहीं जाते हो...?"

   वो मेरे तरफ देखा, उसका चेहरा उदास था बोला, "नहीं?"

 मैंने फिर पुछा, "ये तो उम्र पढ़ने की है?"

  मेरी बात सुनकर वो बोला, "कौन पढ़ाएगा ?...पढ़ाई में पैसा लगता है।"

  मैं उससे पूछा , "क्यों पिता नहीं है?"

    "नहीं.. मर गए । " उसने एक छोटा सा जवाब दिया।

  मैं उसकी बात सुनकर उसकी आंखों में देखा उसकी आंख आंसुओं से भर गए थे।... गोलगप्पे का स्वाद फीका लगने लगा , मैंने प्लेट को बगल में रख दिया। मुझे देखकर पत्नी भी प्लेट को रख दी।

  मैं उस लड़के से पूछा, "क्यों...कैसे पिताजी मर गए?"

मेरी बात सुनते ही, वो लड़का फफक कर रो पड़ा बोला , "किसी ने जहर दे दिया था।..."

  उसको रोते देख, मैं असहज हो गया, फिर उससे पूछा, "कौन- कौन है घर पर?"

   वो लड़का एक ही सांस में बोला, "पिताजी स्वर्गीय अनिल कुमार गुप्ता थे।....हर समय, हर पल उनकी उपस्थिति महसूस करते है। वो हमारे कवच की तरह हैं।...आज हमारे पास मां है , भाई है बस पापा नहीं है...मेरा परिवार पूरा भरा था...पापा के साथ बहुत सारी यादें हैं , लेकिन यादें और कल्पनाएं दोनों में अधिकाधिक समानताएं है। अगर यादों के साथ अपने परिवार को जोड़ते हैं तो, मेरा परिवार संपूर्ण और संतुलित हो जाता है...।.. कल्पनाएं बदलती रहती हैं ...वो बिना सिर पैर की होती है।"

   उसके आंखों से अविरल धारा बह रही थी।

मैं भी बोला," भाई यादों की उम्र नहीं होती।... 

यादों में हमेशा पापा तुम्हारे साथ रहेंगे...अपने काम के बाद पढ़ने की कोशिश करो।...पापा की आत्मा को सुकून मिलेगा।"

  मेरी बात सुनकर कुंदन बोला," कोशिश करूंगा ।"

 मैं गोलगप्पे का पैसा निकाल कर उसको दे दिया।

वो पैसा ले लिया। मैं उसे पुनः एक हजार रूपए दिया।

  कुंदन ने इनकार कर दिया बोला, "पापा के आत्मा को तकलीफ लगेगी..वो कहा करते थे मुफ्त का पैसा हराम होता है।"

 उसकी बात सुनकर मैं अपना पैसा अपने पॉकेट में रखा।

  सचमुच में उसके पिता साए की तरह उसके साथ है।

 हम दोनों पति - पत्नी डॉक्टर के पास लौट आए।

  


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract