प्रेम को पतित नहीं पवित्र बनाएं
प्रेम को पतित नहीं पवित्र बनाएं
कुछ दिनों से अक्षय कुछ अलग ही अंदाज़ में घर के अंदर प्रवेश कर रहा था । हमेशा थका हुआ चेहरा आजकल दमकता रहता था। आते ही हाथ मुँह धोकर चार साल के बेटे हर्ष के साथ खेलने लगता है। अमूमन अक्षय बेटे को थोड़ा सा लाड़ प्यार करके, फ़ोन के साथ बिस्तर में अपना कोना पकड़ कर पसर जाता था। कुछ दिनों से चेहरे में विस्मयकारी मुस्कान की छटा स्वतः ही बिखरी रहती थी।
अदिति भी पति का ये बदला रूप देखकर अचंभित थी साथ ही खुश भी थी कि चलो जिस दिन भी परिवर्तन का बिगुल बजे उसी दिन को शुभारंभ समझो।
प्रातः अक्षय आईने के सामने उदित नारायण का प्रसिद्ध पुराना प्रेमगीत 'पहला नशा...पहला...खुमार...नया प्यार है..नया इंतजार... गुनगुनाते हुए अपनी दाढ़ी बना रहा था। अदिति ने उस गीत को अपनी आवाज़ देने की कोशिश की तो अक्षय झेंपते हुए चुप हो गया औऱ कनखियों से देखता हुआ जल्दी से नहाने चला गया।
अलमीरा में एक पैकेट में वर्षों से पैक पड़ी महरून रंग की सुनहरी छींटें दार शर्ट को पहनने के लिए निकाल ही रहा था ही पीछे से अदिति ने टोक दिया...
"क्या बात है !! आज अचानक इस बन्द पड़ी शर्ट को पहनने की क्या सूझी? मैंने कई बार बोला कि पहन लो तब तो पैकेट उठाकर अलमीरा के अंदर फेंक देते थे।"
शर्ट हाथ में लेते हुए थोड़ा रुक कर लडख़ड़ाती आवाज़ में अक्षय ने बस इतना ही कहा..
" वो...वो...आज मीटिंग है ऑफिस में तो कोई नई शर्ट नहीं है इसलिए यही पहन लेता हूँ।"
सिर्फ इतना ही नहीं जिस अक्षय को किसी भी तरह के डीओ पसंद नहीं थे वो आज अलमीरा के दराज में पड़ा पुराना डीओ ही लगाने लगा, वो भी करीब छ महीने पहले अदिति ही लाई थी।
अक्षय बाय कहता हुआ डीओ की तीखी महक पीछे छोड़कर ऑफिस के लिए निकल गया। अदिति उस तीखी महक में खोई घर के अन्य कामों में लग गयी।......
अक्षय कैब में बैठा ही था कि दिव्या का कॉल आ गया।
" हैलो ! अक्षय'
"ओह्ह हाय ! दिव्या ।'
'मैंने सही टाइम पे फ़ोन किया न?
'हाँ.. हाँ.. बिल्कुल, अभी कैब में हूँ। ऑफिस जा रहा हूँ तो हम बात कर सकते हैं। और एक बात, आज मैंने तुम्हारी दी हुई वही मेहरून शर्ट पहनी है जो आठ साल पहले तुमने मेरे जन्मदिन में दी थी तब नहीं जानते थे कि वो हमारी आख़िरी मुलाकात होगी।"
"तुमने अभी तक सम्भाल कर रखी है?"
" हम्म, सिर्फ़ शर्ट ही नहीं तुमसे जुड़ी हर छोटी बड़ी यादों को भी बहुत जतन से सँजो कर रखा है।"
" बस एक बार मिल लो अक्षय बहुत सी बातें है जो तुमसे साझा करनी है, ताकि भविष्य में फ़िर मिले न मिले परंतु एक दूसरे के लिए मन में कड़वाहट लेकर न जीयें।'
"ठीक है दिव्या, जल्दी ही मिलने का कोई प्लान बनाते हैं। अभी ऑफ़िस पहुँच गया बाद में बात करते हैं, बाय।'
.............
अपने केबिन में अक्षय लैपटॉप ओंन करके दिव्या की तस्वीर खोजने लगता है। एक ही तस्वीर थी उसके पास वो भी आठ साल पुरानी । जब कभी ऑफिस के दोस्त फ्री समय में बैठकर अपने अपने प्रेम के किस्से चटकारे लगा लगा कर सुनाते तो अक्षय के टूटे दिल का दर्द भी कई बार होंठों तक आते आते रुक जाता। विफल प्रेम की दास्ताँ सुनाने से अब क्या मिलेगा ? जब जिंदगी को खाली हाथ प्रेम की पटरी से उतरे बहुत वर्ष बीत गए। ये सोचकर चुप ही रहता था । दूसरों की सफल प्रेम कहानी से कहीं न कहीं पुराना दर्द टीस मारने लगता और जब मन बहुत उचाट होने लगता तो इसी तस्वीर को देखकर मन ही मन हजारों शिकायतें करता। परंतु आठ साल बाद अचानक आये दिव्या के कॉल ने उसके दिल की तलहटी में पुनः हलचल मचा दी थी। नाराज़गी और रोष दिखाने के बाद एक बार फिर से फ़ोन पर बात करनी शुरू कर दी थी। धीरे- धीरे सब कुछ पहले जैसा लगने लगा था । अक्षय के भीतर सूख चुका प्रेम का बीज एक बार पुनः अंकुरित होने लगा।
परंतु अब दोनों की अपनी अपनी गृहस्थी भी थी इसलिए पूर्ण सावधानी बरतते हुए अपनी टूटी--फूटी बीती प्रेम कहानी को जीवंत करने की कोशिश में लगे थे।...........
भले ही प्रेम में संपूर्णता हासिल न हुई हो परंतु अदिति के साथ जिंदगी अच्छी चल रही थी। एक सुलझी, हँसमुख और हर कार्य में दक्ष पत्नी थी। उसके आने के बाद से जिंदगी में बहुत तरक्की भी की थी। परंतु ये भी सोलह आने सत्य है कि अधूरी प्रेम कहानी की प्रेयसी का स्थान कोई नहीं ले सकता। उसकी पैंठ इतनी गहरी होती है की उसका स्थान हमेशा रिक्त ही रहता है।
जल्द ही अक्षय को ऑफिस टूर से जयपुर जाने का मौका मिला, ये सोचकर बहुत खुश हुआ कि चलो इस बहाने दिव्या से मुलाकात हो जाएगी और किसी को पता भी नहीं चलेगा । दिव्या को सारा प्लान समझाकर अक्षय जयपुर में बहुत अच्छे रिसोर्ट में एक सुइट बुक करा देता है। उधर दिव्या भी घर में ऑफिस टूर का बहाना बनाकर तैयार थी।
दोनों ही इस मिलन को अद्भुत बनाने के रंगीन ख्वाबों के ताने-बाने बुनने लग गए।
।......
मूसलाधार बारिश हो रही थी। अक्षय स्टेशन में बैठा ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था। दिव्या से रिश्ता टूटने के बाद से उसे बादलों और बारिश में कोई दिलचस्पी नहीं रही थी। उसका दिल एक चटियल मैदान बन चुका था। परंतु आज मौसम का ये भीगा -भीगा रूप उसे अंदर तक रोमांचित कर रहा था। वो अदिति के बारे में सोचकर खुद को किसी आत्मग्लानि में नहीं डालना चाहता था वो सिर्फ अपने पहले प्यार के विषय में ही सोच रहा था।.....
गहरी स्याह रात में ट्रेन सिटी बजाते हुए सन्नाटे को चीरती हुई पूरी गति से भाग रही थी। वो आँखें मूँदकर कुछ पल एकांत में बिताना चाहता था । परंतु अन्य यात्रियों की आवाजें और ट्रेन की सिटी दोनों उसके एकांत में खलल डाल रहे थे। वो और उसका अंतर्मन स्याह रात में विलीन होकर उन पुरानी यादों में खो गए जहाँ उसे अपना जीवन निरर्थक लगने लगा था । जब उसके अथाह प्रेम के बावजूद दिव्या ने किसी और से विवाह करने का निर्णय लिया और कोई ठोस वजह भी नहीं बताई। क्या वो उससे प्रेम नहीं करती थी? यही प्रश्न बीते वर्षों से उसे रह -रह कर कचोटता था ।परंतु इतने वर्षों बाद आई उसकी एक कॉल ने उससे मिलने की ,उन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने की और उस अधूरे छूटे प्रेम क
ो सम्पूर्ण करने की लालसा बढ़ा दी थी ।....
वो आँखें मूंदे खिड़की में सर टिकाए अपने ख्यालों में गुम था कि उसके कानों को किसी की सिसकियाँ सुनाई पड़ी। चौंक कर देखा तो सामने वाली सीट पर एक महिला यात्री न जाने कब आई और बैठी थी। वो महिला भी खिड़की में सर टिकाए बाहर के अँधेरे में देखते हुए किसी सोच में डूबी थी और रह रह कर अपनी आँखों को तब तक भरने देती जबतक वो स्वयं ही धार बनकर बहने न लगते।
अक्षय उसे नजरंदाज करने का प्रयत्न करता कि तभी उसकी छोटी छोटी सिसकियाँ उसके कान के पर्दों को हिला जाती। उसने आजू बाजू अन्य यात्रियों को देखा जो बेसुध कम्बल ताने सो रखे थे और पानी की बोतल उस महिला यात्री की तरफ बढ़ा दी।
"पी लीजिए , सिसकियों के साथ हिचकियाँ भी लग सकती हैं।"........सूजी आँखों से अक्षय की तरफ देखकर उस महिला ने नजर फेर ली। अक्षय थोड़ा सकपका गया कि कहीं उसकी बातों से बुरा तो नहीं मान गयी न जाने उसके रोने की वजह कितनी गहरी है और वो उसे हल्के में ले रहा है।
अक्षय ने इस बार कुछ कहा नहीं सिर्फ पानी की बोतल उसकी तरफ बढ़ाई और इशारे से उसे पीने का आग्रह किया। इस बार उस महिला ने अक्षय के हाथ से बोतल खींची और गट गट आधी बोतल पी गयी। फिर अक्षय की तरफ देखकर कहने लगी।
" पड़ गयी शांति, पी लिया पानी ....सिसकियाँ, हिचकियाँ सब बन्द हो गयी। अब चैन से बैठने दो..।"
"ओह्ह! मुझे लगा आप बोलेंगी, अब चैन से रोने दो। "
अक्षय की बातों से उस महिला के सूखे होंठों में हल्की सी मुस्कान बिखर गई।
उसे मुस्कराते देख अक्षय ने तुरंत कहा
" अब एक दोस्त समझकर अपना दर्द भी साझा कर सकती हो। कबसे अपनी आँखों को तकलीफ़ दे रही हो कुछ देर उन्हें आराम करने दो। हो सकता है मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूँ।"
नम आँखों से अक्षय की तरफ देखते हुए उसे उस अजनबी में एक सच्चा इंसान नज़र आया ।उसे लगा कि ये इंसान ही निःस्वार्थ भाव से उसकी भावनाओं को समझकर सही राह दिखा सकता है।
" मेरा नाम मीत है। पाँच वर्ष हो गए मॄदुल से मेरे विवाह को। बहुत प्यार करती थी उनसे । मेरी जिंदगी का सारा ताना-बाना उनके इर्द-गिर्द ही घूमता था। इस प्रेम को और प्रगाढ़ बनाया हमारे तीन वर्ष के बेटे मिलिंद ने। मेरे लिए वो मेरा पहला प्यार ही है इसलिए बहुत खास भी। बहुत गर्व था मुझे उनपर। ऐसा जीवन साथी खोजने के लिए मैं अपने माँ पिताजी को धन्यवाद बोलते न थकती थी। मेरा घर सिर्फ ईंट पत्थर से बना मकान नहीं था वो एक मंदिर था जिसकी नींव प्रेम और विश्वास पर रखी गई थी। "....
मीत बोलते बोलते अचानक चुप हो गयी और उसकी आँखें फिर भर आईं।
" ऐसा मैं सोचती थी ...एक हवा का झोंका आया और हमारी सुखद गृहस्थी की नींव को हिला गया।"
" जी मैं समझा नहीं.. स्पष्ट कहो......
" इतने वर्षों से जिसकी पूजा करती थी जिसको दिल में बिठाया था उसका दिल तो अपनी पूर्व प्रेमिका के लिए धड़कता था । बहुत गर्व था मुझे अपने विश्वास पर परंतु उस दिन मेरा दर्प, यथार्थ की धरा पर एक टूटे, चकनाचूर हुए दर्पण की तरह बिखर गया जब मुझे मेरी एक सहेली ने ये बताया कि मॄदुल एक महिला के साथ शिमला के उसी होटल में रुके हैं जिसमें वो रुकी थी। अपने विश्वास को साबित करने के लिए मैं चुपके से उसी होटल में पहुँच गई और वर्षों के विश्वास को मिनटों में टूटते देख आई।
मॄदुल ने क्षमा माँगी, उसने जताने के प्रयत्न किया की मैं उसके लिए सबसे जरूरी हूँ। आज तक उसने मेरे लिए किसी चीज की कमी नहीं की ।
अब तुम बताओ क्या उसका फ़र्ज़ मेरे लिए सिर्फ खाना कपड़े और मेरी जरूरतों तक का है । इसे प्यार कहते हैं क्या? जब निभाना था तब एक होने की हिम्मत नहीं की और अलग अलग गृहस्थी बसा ली और अब ऐसा कदम छी !!
इतने वर्षों से मैंने उसकी जिंदगी को हर सुख से संवारा है ।समाज में सम्मान दिलाया है उसकी इच्छा अनिच्छा का ध्यान रखा है । मेरा निःस्वार्थ प्रेम मृदुल को नज़र नहीं आया और जो स्त्री अपने पति को धोखा देकर अपने पूर्व प्रेमी के साथ होटल में रुकी है उसका प्रेम मॄदुल को सच्चा दिख रहा है। उसकी गृहस्थी को, बेटे को उसी के पास छोड़कर मैं हमेशा के लिए मायके जा रही हूँ।"
अपनी व्यथा सुनाते सुनाते मीत की आँखों के जल का प्रवाह तीव्र हो गया क्योंकि उसमें सिर्फ़ मॄदुल के धोखेबाज होने का दर्द नहीं था बल्कि उस अटूट विश्वास के टूटने का दर्द भी था जो एक पत्नी का अपने पति पर होता है।
अक्षय सुन्न सा बैठा अपमानित महसूस कर रहा था। मीत के आँसू उसके मन को अंदर तक भीगो रहे थे। उसे उस क्षण ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ईश्वर ने उसकी गिरी हुई आत्मा को झकझोरने के लिए मीत को भेजा है। उसे ऐसा लग रहा था मानो सामने अदिति बैठी किसी पर पुरुष को अपना दर्द सुना रही हो। उस क्षण एक पतित और उसमें कोई अंतर न था । जिस प्रेम की लौ को प्रेमी जोड़े जलाते हैं क्या उसकी शुद्धता को भी बनाये रखते हैं शायद बहुत कम। कुछ दिन या कुछ क्षणों के लिए किसी को पा लेना प्रेम कदापि नहीं है, ये तो उस लालच की भाँति हो जाएगा जैसे किसी चीज को खाने- पीने या पहनने- ओढ़ने की इच्छा हुई और मिलते ही इच्छा समाप्त हो गई।
प्रेम की महानता उसकी पवित्रता को बनाये रखने में है किसी को धोखा देकर पाने में नहीं।
स्टेशन आते ही मीत अपने गंतव्य की तरफ चली गयी, मीत अक्षय को सही राह दिखा कर चली गयी और अक्षय बोझिल मन से वहीं बैठ गया। इस बोझ को कम करने के लिए उसने तुरंत दिव्या को फ़ोन मिलाया ...
" हम नहीं मिल सकते दिव्या और न भविष्य में कभी मिलेंगे। प्यार था कभी अब वो पहले जैसा तो बन नहीं सकता। उस अधूरी चिंगारी को सुलगाने से बहुत बड़ी आग लग सकती है जो कई जिंदगियों को तबाह कर सकती है। प्रेम में पतित बनने से अच्छा है पवित्र बने, अपने उनके लिए जो हमारे घरों को रोशन और आबाद किये हमारे ऊपर विश्वास रखें हैं।"
अक्षय ने दिव्या का अद्याय हमेशा के लिए बन्द किया और तुरंत दूसरी ट्रेन पकड़कर अपने असली प्रेम की तरफ निकल गया। अब कुछ भी पुराना शेष नहीं था।
धन्यवाद।