ऐसे नहीं जाना था
ऐसे नहीं जाना था
किस्सा वर्षों पहले का है। तब मैं और मेरी चुलबुली सहेलियों ने स्कूल से नए- नए कॉलेज में प्रवेश किया था। हम सभी ने एन एस एस( राष्ट्रीय समाज सेवा) को जॉइन किया । इसके अंतर्गत दिसम्बर माह में करीब एक सौ बीस छात्राओं का मसूरी की तलहटी में स्थित एक मानव कल्याण आश्रम में कैम्प लगाया गया। वहीं मुलाकात हुई थी उस झल्ली से ।
एक सौ बीस छात्राओं में वो एकदम कोने में बैठी मुस्करा रही थी। उसका कद चार फुट भी पार न कर पाया था । जैसे ही वो उठकर चलने लगी तो पता चला कि उसका बचपन से कूबड़ निकला हुआ है । रीड की हड्डी में ऊपर की तरफ हड्डी का अतिरिक्त बढ़ाव । सपना यही नाम था उसका । धीरे- धीरे मैंने और मेरी सहेली सुधा ने उससे दोस्ती की । उस छोटे से शरीर में बहुत बड़ा दिल और हँसता मुस्कराता चेहरा था। सपना सभी की चहेती बन गयी औऱ हमारी सबसे प्रिय सखी। उसकी खुराफातियों में विनोदप्रियता का पुट सभी को हँसा कर छोड़ देता। उसकी हरकतों की वजह से ही उसे झल्ली नाम दिया गया था प्यार से।
पहले दिन ही हमारी प्रोफ़ेसर ने सभी को गार्डन एरिया में बुलाया और एक- एक करके प्लास्टिक की छोटी बाल्टी और छोटा- छोटा कुदाल( खोदने के काम आने वाला औजार) सभी को पकड़ाया और पंक्ति -बद्ध होते हुए गेट से बाहर चलने को कहा।
अति उत्साहित लड़कियां खुशी- खुशी बाल्टी और कुदाल लेकर चल पड़ी और सबसे आगे सपना ही भाग रही थी ।आश्रम से थोड़ी दूर पर टेडी- मेढ़ी पगडंडियों से होते हुए एक बरसाती नदी बहती थी उसमे पानी न के बराबर था। उस नदी के आस- पास काफी बड़ी जगह में पेड़ ,झाड़ियां थी। हमे लगा शायद हमे वृक्षा रोपण का कार्य शुरू करना है। तभी मैडम ने सभी को संबोधित करते हुए बोलना शुरू किया...
"देखो गर्ल्स, आश्रम में एक ही टॉयलेट है। अब एक सौ बीस लड़कियां उसे इस्तेमाल करेंगी तो उस टॉयलेट का क्या हाल होगा? इसलिए इस कुदाल से सब अपने लिए इस खुली जगह में गड्ढा खोदे और पर्सोनल टॉयलेट बनाये। नेचर कॉल के लिए नेचर के नज़दीक ज्यादा एन्जॉय करोगे। और हाँ तुम्हे सुबह चार बजे उठना होगा क्योंकि देरी करी तो उजाला हो जाएगा और आस- पास गांव भी है तो मुश्किल हो जाएगी। आश्रम का टॉयलेट सिर्फ इमरजेंसी के लिए है।
वो तो बोलकर चली गयी। हम लोग थोड़ी देर तक एक दूसरे को देखते रहे। थोड़ी बाते बनाने और न नुकुर के बाद सब अपने लिए सुरक्षित जगह ( झाड़ी या पेड़ की ओट) देखकर गड्ढा खोदना लगे । उम्र का तक़ाज़ा था कि गड्ढा खोदने में भी मजा आ रहा था उस कार्य को सबसे ज्यादा एन्जॉय सपना कर रही थी।
रात भर किसी को नींद नहीं आयी इसलिए कि सुबह चार बजे उठना है वो भी इतनी ठंड में। बारिश मानो रुकने के मूड में नहीं थी।
और सबसे ज्यादा परेशान सपना थी वो सुबह 3 बजे ही पानी की बाल्टी लेकर गार्ड को उठाने गयी , गेट खोलने के लिए ( बारिश में क्या ड्यूटी करता वो भी हीटर की गर्माहट में मस्त सोया था) उसे देखकर और चोरी पकड़ी जाने के डर से हड़बड़ाहट में उठा...
"अभी तो तीन बजे है ।"
"हां तो जाना है बाहर, देसी टॉयलेट में।"
गार्ड को कुछ पूछता न बना तो वो प्रोफेसर को उठाने चला गया। सपना पानी की बाल्टी और छाता ताने उसके पीछे पीछे ।
" मैम जी, किसी को बाहर जाना है ।"
अंदर से हमारी हेड महोदय आँख मलते मलते पूछती है।
" अभी तो 3 बजे हैं , पेट वेट खराब हो गया क्या?
"नहीं मैम सब ठीक है, आपने कहा था न जल्दी जाने को , बाद में उजाला हो जाएगा।"
" ओदफ़ हो! अब आधी रात को थोड़ी बोला था, जब लगे तब जाना, जाओ अभी।" और सपना वापस कमरे में चली गयी।
लगभग पाँच बजे सभी अपनी बाल्टी और टोर्च उठाये निकल पड़े। लेकिन वहाँ का नज़ारा कुछ और ही था। रात भर बारिश के चलते सारे गड्ढे भर गए थे और गीली मिट्टी में पैर अलग धंस रहे थे । थोड़ी देर में ही सब फिर से हल्ला मचाने लगी कि अरे हमारी मेहनत पर पानी भर गया।
तभी सपना सभी को नदी की तरफ ले गई, उसके खुराफ़ाती दिमाग मे कुछ चल रहा था । उसने सभी को सिखाया की खूब हल्ला करें बाकी वो संभाल लेगी। हमने वैसे ही किया । हल्ला सुन सिकुड़ा हुआ गार्ड अपनी एकनली बंदूक को संभालते हुए सारी मैडम को भी बुला लाया । सभी मैडम डरी हुई हाँफते हुए उसके पीछे दौड़ रही थी आखिर लड़कियों का सवाल था ।
"क्या हुआ? क्यों चिल्ला रही तुम सब?"
" मैम ,गड्ढे नहीं मिल रहे । और जब मैं थोड़ा अलग अकेले में गयी तो उधर से झाड़ियां हिलते हुए दिखी फिर किसी के भागने की आवाज आई। मैम ये जगह सेफ नहीं ।" सपना बढ़ा -चढ़ा कर बोलने लगी।
उसकी बातों से सभी प्रोफेसर डर गए । सभी की ज़िम्मेदारी उन्ही के ऊपर थी। आश्रम में लौटने के बाद मैम ने कहा...
"" टॉयलेट का इंतजाम बगल के स्कूल में पहले से किया गया था । ये एक दिन तुम्हारी परीक्षा का था कि तुम लोग मुसीबत पड़ने पर एडजस्ट कर पाने में कितने सक्षम हो जिसमे तुम सब फेल हो गए।"
सभी ने गुस्से में उसे घूरा और उसे हँसते देख उसे मज़ाक में मारने उसके पीछे भागे।.............
दिन ,महीने और वर्ष गुजरते गए , मेरी , सुधा और सपना की मित्रता और प्रगाढ़ होती गयी। जितना हँसती थी उतना गम अंदर छुपा कर रखती थी। अपने दुःख को सबके समक्ष व्यक्त करना उसके हिसाब से उसे कमज़ोर करना था । माता- पिता गुजर गए थे। भाई- भाभी के साथ जीवन गुजारना उतना भी सरल नहीं था । शाररिक कमी को लेकर उसे तानों को भी सहना होता था । जिंदगी के पथ पर चलते -चलते ये दोस्ती अब अलग -अलग दिशाओं में घूम गयी थी। सुधा और मेरा विवाह हो चुका था ,सपना बीएड करने दूसरे शहर चली गयी। तब फ़ोन नहीं थे, पत्र ही एकमात्र साधन था एक दूसरे की खैर खबर लेने के लिए ।
जैसे- जैसे गृहस्थी की बागडोर बढ़ी , बच्चे बड़े होते गए शहर बदले, पत्र आना -जाना भी पहले कम हुए फिर बन्द ही हो गए ।
वर्ष बीतते गए अब दोस्ती सिर्फ यादों में रह गयी । फेस बुक ने चमत्कार का कार्य तो निःसन्देह किया है कई बिछुड़े दोस्तो को एक बार फिर से मिलाया है। मैं और सुधा तो मिल गए थे परंतु सपना बहुत बाद में फेस बुक में मिली, चयर साल पहले । सुधा और मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था। सुधा और सपना एक ही शहर में थे ये भी आश्चर्य की बात थी । हमारी फिर से घण्टों बात होने लगी जानकर बहुत सुकून मिला कि वो सरकारी टीचर है और उसका नौ साल का बेटा भी है । सुधा ने उससे बार- बार घर का पता माँगा और वो हर बार टाल जाती ये कह कर...
" इतनी जल्दी क्या है एक ही शहर में तो है मिल लेंगे आराम से ।"
उसका ऐसा जवाब सुनकर हम दोनों को हैरानी हुई। धीरे धीरे थोड़ा और समय बीता तो लगने लगा सपना पहले जैसी नहीं रही बदल गयी है । उसके न मिलने के बहाने हमारी समझ के बाहर थे। इंसान का स्वभाव है दूसरों को तुरंत जज करने का । हमें लगा कि शायद इसने जिंदगी से बहुत कुछ अर्जित कर लिया जिसके समक्ष दोस्ती बौनी हो गयी। हम दोनों मन में हल्की -फुल्की कटुता और दुःख लिए फिर से अलग हो गए। पहले बातें कम हुई फिर बन्द। फिर सपना ने फ़ोन नंबर ही डिलीट कर दिया सिर्फ दो महीने के अंदर ही।
समय पंख लगाकर उड़ रहा था सुधा और मैं अक्सर बात करते कि उसने ऐसा क्यों किया होगा बचपन की दोस्ती कौन भुलाता है?
इस घटना के चार साल बाद यानी कि पिछले महीने सुधा को सपना की भाभी किसी पारवारिक फंक्शन में अचानक मिल गयी। सुधा ने सपना के विषय मे पूछ डाला ,तो उसकी भाभी ने उदास होकर कहा...
" उसे गुजरे तो चार साल बीत गए , जब तुम लोग उसे फेस बुक के जरिये मिले थे ,उसके दो महीने बाद ही .....
एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त थी डॉ ने जवाब दे दिया था और वो सब जानती थी । बहुत खुश थी वो तुम लोग जब उसे मिले। तुम्हारी प्रोफाइल खोलकर मुझे भी दिखाती थी कि "देखो मेरी दोस्त कितनी प्यारी लग रही हैं ,अभी भी वैसी ही हैं । " मैंने बहुत बोला उसे की एक बार मिल ले उनसे , इतनी पक्की दोस्ती थी तुम्हारी , तेरा मन नहीं करता मिलने का."
" बहुत मन करता है भाभी, लेकिन जिंदगी के चार दिन बचे हैं वो मिलेंगी तो उनका लालच हो जाएगा और जाना मुश्किल। वो पगली तो मेरे बुलावे के इंतजार में हैं शायद नाराज़ भी हो गयी । क्या पता मुझे घमंडी और न जाने क्या क्या सोच रही होंगी। परंतु अच्छा है इतने वर्षों बाद मिलने की खुशी मेरी मौत की खबर से उनको दुःखी कर देगी इससे अच्छा वो मुझे हमेशा बुरा ही समझते रहें। कभी मिलें तो बोल देना ये झल्ली तुम्हारे चेहरे में उदासी नहीं देखना चाहती थी , हमेशा खुश रहना।"
बहुत बड़ा आघात लगा हमें पिछले चार वर्षों से उसकी बेरुखी की वजह खोज रहे थे और उसकी असली वजह तो हमारी सोच से परे थी। जाते -जाते भी अपना गम साझा नहीं किया सिर्फ हमारी खुशी के लिए । बहुत याद आती है बस हम दोनों इतना जरूर बोलते हैं की ऐसे नहीं जाना था एक बार मिल तो लेती।