Savita Negi

Inspirational

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Savita Negi

Inspirational

खरा सोना हो तुम

खरा सोना हो तुम

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पहले प्यार या क्रश की शुरुआत महज आकर्षण ही होता है । दिल के एक कोने में इसका एकाधिकार होता है। शीर्षतम स्थान में विराजमान। जो समय-समय पर अंदर बैठकर कुछ ऐसी तरंगे उत्पन्न करता रहता है कि इंसान वर्तमान में न रह कर अतीत में घूम ही आता है। वैसे भी यादों में इतनी ताकत होती है कि वो कल को आज में जिंदा रखती है।


प्रिया दौड़ती हुई छत की सीढ़ियाँ चढ़ रही थी। हाथों में गीले कपड़ों से भरी बाल्टी पकडे हुए। सांस फूल रही थी लेकिन वो नज़ारा छूटना नहीं चाहिए जिसे देखने के लिए रोज बहाने बनाकर छत पर जाती थी। कभी कपड़े सुखाने तो कभी पढ़ाई का बहाना। रवि के ऑफिस जाने का ये ही समय था। छत से ही उसकी एक झलक देखती थी।


 घुंघराले बाल, बलिष्ठ भुजाएं, ऊंचा कद, गौर वर्ण, काली पैन्ट और सफ़ेद शर्ट, नुकीले जूते उस पर आंखों में काला चश्मा, किसी लड़की को घायल करने के लिए काफ़ी थे। हाथ की उँगलियों में बाइक की चाबी को घुमाना और बाइक में बैठते ही साइड मिरर में खुद को निहार कर बालों को हाथ से सेट करना, गजब की अदा थी। इसी अदा की दीवानी प्रिया उसके जाने के बाद भी थोड़ी देर तक वहीं छत की दीवार में टंगी रहती। उसके इत्र की खुशबू हवा में घुलकर प्रिया के नथुनों से होते हुए दिल और दिमाग़ में मीठी -मीठी तरंगे उत्पन्न करते। घण्टों उसी के साथ खयालों में रहती।


रवि उनके सामने वाले मकान में कुछ महीने पहले ही किराये में रहने आया था। इससे ज़्यादा कुछ नहीं जानती थी। कॉलेज आते -जाते अपनी आँखों को खुला रखती कि कहीं अचानक किसी नुक्कड़ या बाजार में दिख जाए। प्रिया अब सामने वाली आंटी के घर भी जाने लगी बहाने से। एक दिन सामने वाली आंटी बीमार थी। सेवा करने का बहाना लिए प्रिया तुरंत दौड़ लगाकर वहाँ पहुँच गयी। गेट के अंदर जाते ही जैसे उसकी मुराद पूरी हो गयी। रवि पोर्च में खड़ी बाइक की सफाई कर रहा था। प्रिया के पेट में अनगिनत तितलियाँ उड़ने लगी। धड़कन इतनी तेज थी कि कहीं दिल, शरीर से बाहर कूद कर रवि के हाथों में ही न गिर जाए। वही इत्र की मादक खुशबू हवा में घुली थी। अपने को संयत कर जल्दी से अंदर जाकर आंटी के लिए खिचड़ी गैस पर चढ़ा कर रसोई की खिड़की से अपने मे मग्न रवि को जी भर के निहारती है। खिचड़ी खुद पर ध्यान न दिए जाने के कारण नाराज़ होकर कूकर से जा चिपकी और बीमार आंटी ने गुस्से में प्रिया को घर से भगा दिया। रवि अपने कमरे में था। प्रिया ने बाइक के पास रुककर उसके हैंडल को घुमाते हुए कहा "बदमाश!सब तुम्हारी वजह से हुआ है।" मानो रवि के कान खींच रही हो।.....


"हैल्लो! श्रीमती जी किन ख्यालों में डूबी हो? लो बेसन ले आया। अब जल्दी से गर्मागर्म पकौड़े खिला दो तो बारिश का मज़ा दोगुना हो जाएगा।"


"अरे ये क्या! उफ्फ! फिर से रवि के ख्यालों में चली गयी। ये मुआ निकलता क्यों नहीं दिल दिमाग़ से इतने साल हो गए। ऊपर से ये बरसात का मौसम रह-रह कर उसकी याद कुरेद जाता है। वैसे भी रोमांटिक होना फिल्मों की तरह मेरे जैसी मध्यम वर्ग की हेरोइन के नसीब में कहाँ। मेरे से ज्यादा नसीब वाले तो ये आलू प्याज के पकौड़े हैं जिनके लिए हर वक़्त आकाश की जीभ में चाशनी की तरह दो तार की लार टपकती रहती है।


 बरसात में कपल लांग ड्राइव पर जाते हैं लेकिन ये.... ये... पकौड़ों के लिए बेसन लेने ही जाएंगे बस । ...खा खा कर तोंद बाहर आ गयी। मुझे भी तो शर्म आती होगी ऐसे तोंदू आदमी के साथ कहीं जाने में। ऊपर से सर में बाल भी नहीं। रवि के कितने अच्छे घुँघराले बाल थे। इनको तो भगवान ने कद भी नहीं दिया। इनके साथ मैं कभी हील भी नहीं पहन सकती। रवि कितना लंबा चौड़ा था। कितनी खुशनसीब होगी उसकी पत्नी । काश एक बार उससे कहीं मुलाकात हो जाती ।पता तो चलता इन सात सालों में क्या हुआ उसका, किससे शादी करी उसने।"...अपने आप मे बड़बड़ाती हुई प्रिया ने सारे पकौड़े बना डाले।


"अरे श्रीमती जी , बन गए क्या पकौड़े? लाओ फिर जल्दी।"

"उफ्फ! एक ये पकौड़ा पति मिला मुझे। जिंदगी पकौड़े जैसे हो गयी टेडी मेडी, ला रही हूँ।"


"वाह जान तुम्हारे हाथों में तो जादू है। नत्थूराम के पकौड़ों से भी स्वादिष्ट बनाती हो। जरा हरी वाली चटनी भी ले आओ।"

प्रिया फिर से सात साल पीछे रवि के ख्यालों में चली गयी। ऐसे ही एक बारिश में प्रिया ने एक दुकान में शरण ली थी, तभी रवि भी भीगने से बचने के लिए वहीं आ गया । इस बात से अनजान की बगल वाली लड़की उस पर कितना मरती है। प्रिया मन में सोच तो रही थी कि क्या वो भी कुछ सोचता होगा उसके बारे में। जैसे ही बारिश रुकी रवि वहाँ से चला गया। पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। 


एक दिन प्रिया कॉलेज से घर पहुँची तो देखा बैठक में बहुत सारे लोग बैठे थे। प्रिया की माँ ने तुरंत उसे तैयार होकर आने को कहा। लड़के वाले उसे देखने आए थे। बहुत नाराज़गी जताई उसने परंतु उसकी एक न चली। उनके जाने के बाद प्रिया माँ से उलझ पड़ी।


 "माँ, लड़के के सर में कम बाल हैं। कद भी मेरे जितना है, रंग भी सांवला है। मुझे पसंद नहीं।" अब दिल में तो रवि था फिर कैसे कोई पसंद आता।


"बेटा, लड़का ऑफिसर है और तेरी बुआ बता रही थी बहुत सीधा भी है। कोई ऐब नहीं है। नैन नक्श, कद, रंग से जिंदगी नहीं चलती । ये सब प्यादे हैं आकर्षण के। दूसरों का ध्यान अपनी तरफ केंद्रित करने के लिए , जरूरी नहीं खूबसूरत शरीर के अंदर खूबसूरत दिल भी हो।  

अच्छा व्यवहार और नेक दिल हो तो घर स्वर्ग बन जाता है। और तेरे बाऊ जी ने रिश्ता पक्का कर दिया है।"


प्रिया पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। पहला प्यार, भले ही एक तरफा था दिल तो टूट गया न। मना भी कैसे करती? रवि को तो इस बात का एहसास भी नहीं था कि प्रिया उसको प्यार करती है। 


उसकी शादी से पहले ही रवि वहाँ से ट्रांसफर होकर दूसरे शहर चला गया और प्रिया आकाश संग प्रणय सूत्र में बंध कर उसके घर आ गयी। समय अपनी रफ्तार से निकल रहा था। प्रिया कई बार आकाश को वैसे ही "सजाने" की कोशिश करती जैसे रवि को देखती थी। या यूँ कहो आकाश में रवि को ढूंढती थी लेकिन मायूस ही होती। दोनों दो अलग प्राणी थे। अब पाँच फुट चार इंच का आदमी छ: फुट का कैसे बनता ? आकाश के लिए काली पैंट सफेद शर्ट भी लाई और आकाश ने पहना भी। लेकिन सफेद शर्ट में गहरा सांवला रंग और निखर कर उभर रहा था। कुढ़कर प्रिया ने बदलवा दिया।


 "अजीब हो तुम श्रीमती जी, कभी खुद पसंद का लाती हो फिर बदलने के लिए बोलती हो। काला चश्मा भी लाई थी लेकिन फिर पहनने नहीं दिया ।" 


आकाश के पास भी बाइक थी। प्रिया का मन होता जैसे रवि स्टाइल में गलियों में कट मार कर चलाता था वैसे ही आकाश भी चलाए। आकाश ने एक दिन कट मारने की कोशिश की थी एक गड्ढे से बचने के लिए तो ऐसा कट मारा की प्रिया गड्ढे में थी और खुद दूसरी तरफ पड़ा था और बाइक उसके ऊपर। आँखों में आँसू लिए प्रिया का मन उस समय आकाश के बाल नोंचने को हो रहा था, लेकिन आकाश बच गया क्योंकि उसके सर पर बाल नहीं थे। इतना ही नहीं आस पास के लोग आकाश को और उसकी बाइक को घर छोड़ कर गए।


ऐसे ही एक दिन मॉल में प्रिया को वैसे ही खुशबू वाला इत्र मिल गया तो वो तुरंत आकाश के लिए ले आयी। आकाश की तरफ इत्र छिड़कने को ही थी कि आकाश ने अपनी तोंद को सहलाते हुए कहा "श्रीमती जी आज क्या खिलाया? सुबह से बहुत एसिडिटी हो गयी। अभी तक तीन बार चला गया हूँ।" प्रिया ने उस वक़्त इत्र की इंसल्ट करना उचित न समझा। 


इंसान कई बार झूठे आकर्षणों में फंस कर खुद को हमेशा धोखे में रखता है। जिसके चलते जो अमूल्य निधि उसके पास होती है उसकी कद्र करना भूल जाता है ।


एक दिन अचानक बाथरूम में प्रिया फिसल गई। एक पैर की हड्डी टूट गई। एक हाथ भी मुड़ने की वजह से सूज गया। डॉ ने बेड रेस्ट बोल दिया। आकाश ने पूरे जी जान से प्रिया की सेवा की, बच्चों को संभाला, अपने हाथों से खाना खिलाया, नहलाया। यहाँ तक कि टेडी मेडी चोटी बनाकर एक बिंदी प्रिया को जरूर लगाता था । "बहुत खूबसूरत लगती है श्रीमती जी तुम्हारे माथे पर ये बिंदिया। बस तुम्हारी खनकती पायल की आवाज मिस कर रहा हूँ ,जल्दी जल्दी चलने लगो ताकि ये घर तुम्हारी चूड़ी और पायल की खनखनाहट से एक बार फिर ऊर्जा से भर जाए।"


आकाश की सेवा भाव और स्नेह से प्रिया का हृदय गदगद था । करीब एक महीने बाद प्रिया चलने लायक हुई। आँखों मे आँसू थे ये सोच कर कि रंग-रूप, कद-काठी के झूठे आकर्षणों में फंसा उसके दिल ने कभी आकाश जैसे हीरे की सुन्दरता को पहचाना ही नहीं। उसे माँ की कही बात याद आ रही थी कि" जैसे हर चमकती चीज सोना नहीं होती वैसे ही जरूरी नहीं हर सुंदर दिखने वाला, सुंदर जीवनसाथी भी बने।"


आकाश के स्नेह, सम्मान ने प्रिया के दिल दिमाग मे वर्षों से बसी सुंदरता की परिभाषा बदल दी थी और सही मायने में वो अब आकाश के व्यक्तित्व से प्रभावित थी और उसके प्रेम की डोर में बंधी चली जा रही थी।


 आकाश ऑफिस जाने को था तो प्रिया ने धन्यवाद बोलते हुए उसे गले लगा लिया ।

"धन्यवाद किस बात का श्रीमती जी। हम दोनों तो गाड़ी के दो पहियों के समान हैं। एक भी पहिया खराब होगा तो गाड़ी कैसे चलेगी? तालमेल बिठाकर ही जिंदगी की गाड़ी चलती है। वैसे तुम अब ठीक हो तो शाम को बेसन लाऊंगा, पकौड़े बनाने के लिए।" आकाश के बोलते ही प्रिया हँसने लगी और मन ही मन बोली " दिखावे वाला बेबी शोना नहीं बल्कि खरा सोना हो तुम।"





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