Savita Negi

Inspirational

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Savita Negi

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अंग्रेजी को हिंदी से प्यार है

अंग्रेजी को हिंदी से प्यार है

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वर्षों पहले का किस्सा है, तब मैं बारहवीं में थी। उस दौर में अचानक से इंग्लिश सीखने और बोलने की आंधी सी चल पड़ी थी। इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स के इंस्टिट्यूट की बाढ़ सी आ गयी थी। हर मोहल्ले में एक तो दिख ही जाता था। अंग्रेजी के ज्ञाता को घर बैठे अच्छा बिज़नेस मिल गया था। यहाँ तक कि बाजारों में इंग्लिश सीखने की किताबें भी आ गयी थीं। अब ये तो नहीं पता था कि इन कोर्सेज़ को कर के या किताबों को पढ़कर कितने लोग फर्राटेदार इंग्लिश बोलने लगे? अंग्रेजी रूपी हीरे की चमक सबको अपनी तरफ खींच रही थी।


हिंदी माध्यम के बच्चों पर इसका अतिरिक्त भार पड़ा था। उनको लगता था कि इंग्लिश जरूरी है इंटरव्यू और दूसरी प्रतियोगिताओं के लिए। अपने ही मुल्क में वरना उनका कोई वजूद नहीं ।इतना ही नहीं, इंग्लिश की मार बेटियों के रिश्तों के ऊपर भी पड़ रही थी। 


मेरी बुआ की बेटी सुमन आगे की पढ़ाई हमारे साथ रहकर कर रही थी, उनका परिवार गांव में था। वो हिंदी साहित्य से एमए कर रही थी। सुमन दी कि शादी का जिम्मा भी बाऊजी के ऊपर था। एक दिन बाऊजी घर आए तो बहुत गुस्से में थे, पूछने पर बताया कि वो सुमन दी के रिश्ते के सिलसिले में किसी से मिलने गए थे, जब बात चीत शुरू हुई तो लड़के की माँ ने पूछा कि "आपकी बेटी को अंग्रेजी आती है? हमारे बेटे को अंग्रेजी बोलने वाली लड़की चाहिए।"


बाऊजी ने भी गुस्से में पूछा "अंग्रेजी बोलने वाली बहु के लिए अंग्रेजी बोलने वाली सास भी होनी चाहिए आपको आती है क्या ?"


परिवार वाले भी क्या करते, ये उस वक़्त लड़कों की मांग में शामिल था। जन्मपत्री के पीछे लड़के वालों की खास मांग ये ही होती थी कि इंग्लिश मीडियम की लड़की हो तो बहुत अच्छा।


समय बीता और सुमन दी बीएड करने लगी। वर्ष के मध्य में उनके कॉलेज में एक मेले का आयोजन किया गया था। मैं भी उनके साथ गयी थी। सभी ने अपने अपने स्टाल लगाए थे। बाहर से भी लोग आ सकते थे। सुमन दी ने भी अपना एक स्टाल लगाया था। सभी लड़कियाँ साड़ी पहनकर अच्छे से सज धज कर आई थीं। एक लड़का घूमता फिरता दी के स्टाल में आ गया और बहुत ही सभ्य तरीक़े से वार्तालाप करने लगा। उसने अपना परिचय बतौर कैप्टन कुणाल दिया था।


अगले दिन एक दंपति हमारे घर पहुँचे और उन्होंने बताया कि वो कुणाल के माता पिता हैं। उनकी छोटी बहन उसी कॉलेज में पढ़ाती है और उनसे ही वो लोग हमारा पता पूछ कर घर आये हैं। उन्होंने बताया कि कुणाल को सुमन बहुत पसंद आई, तो उसने ही उन्हें रिश्ते की बात करने भेजा था।


सभी बहुत खुश थे। सगाई से पहले सभी ने सोचा सुमन दी और कुणाल कुछ दिन आपस में बात कर ले थोड़ा बहुत एक दूसरे को जान समझ ले इसलिए दोनों को मिलने जुलने की अनुमति दे दी गयी। उस दिन दोनों को एक रेस्टोरंट में मिलना था, मैं भी थी साथ में।


"आपकी की स्कूलिंग कहाँ से हुई है?" पहला प्रश्न कुणाल का यही था।


"हिंदी मीडियम"


"ओह्ह!! आपको इंग्लिश की नॉलेज??" हिचकिचाते हुए कुणाल ने पूछा।


दी ने भी साफ शब्दों में कहा "नॉलेज है लेकिन बोल नहीं पाती। अपने देश में ही हूँ तो कभी जरूरत ही नहीं पड़ी बोलने की।"


"वो तो ठीक है.. बट.. तुम मुझसे शादी के बाद जिस माहौल में रहोगी वहाँ ढलने के लिए इंग्लिश आनी जरूरी है। हमारी पार्टीज़ होती हैं, क्लब् हैं, लेडीज़ की सोशल गैदरिंग होती है, सभी में पार्ट लेना पड़ता है। खुद को एडवांस दिखाने के लिए और स्टेटस मेन्टेन करने के लिए इंग्लिश जरूरी है, नहीं तो सब पिछड़ा समझते हैं।"


उस दिन सुमन दी को नींद नहीं आई थी ये सोचकर कि उच्च शिक्षित होने के बाद भी इंग्लिश न बोल पाना मतलब अनपढ़ समान है। दसवीं फेल इंग्लिश बोले तो वो उच्च शिक्षित हो जाएगा क्या?"


दो दिन बाद फिर से दोनों मिले तब कुणाल ने कहा,


"तुम मुझे बहुत पसंद हो, तुम्हारे साथ रहने की कल्पना कर चुका हूँ। थोड़ा इंग्लिश सीख लेती तो...अभी शादी में वक़्त है, तब तक तुम कोई स्पीकिंग कोर्स जॉइन कर लो।"


कुणाल ने सुमन दी को इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की बुक थमा दी , जिसे देखकर दी से चुप नहीं रहा गया।


"मैं प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, धर्मवीर भारती, जयशंकर प्रसाद जैसे महान लेखकों को पढ़ना पसंद करती हूं। ये स्पीकिंग कोर्स की बुक का कोई मोल नहीं उनके सामने। ये बुक आप रखिये मुझे इसकी जरूरत नहीं। आपको शायद घर गृहस्थी में ताल मेल बैठाने वाली, प्रेम बनाये रखने वाली व्यवहारिक पत्नी नहीं बल्कि अंग्रेजी बोलने वाली आपकी समाजिक प्रतिष्ठा प्रतीक को बनाते रखने वाली पत्नी चाहिये।

हिंदी सिर्फ़ एक भाषा नहीं हमारी संस्कृति है और हम खुद को अपनी संस्कृति से कैसे दूर कर सकते हैं? बहुत बड़ी विडंबना है कि आपके जैसे कुछ लोग अपनी संस्कृति अपनी पहचान को छोड़कर बाहरी संस्कृति के दीवाने बनकर उसके पीछे भाग रहे हैं।

तो आप भी अंग्रेजी की उंगली पकड़कर उसकी पगडंडी पर भागिए मैं अपनी हिंदी का दामन नहीं छोड़ सकती। दोनों की सोच अलग हों तो रिश्ता जोड़कर कोई फ़ायदा नहीं।" और सुमन दी कुणाल से रिश्ता तोड़कर चली आईं।


दी खुश थी कि कुणाल की जिंदगी में जाने से बच गयी वरना हिंदी के अपमान के साथ खुद का अपमान भी सहती।


कुछ समय पश्चात एक रिश्ता राजेश जी का और आया। जब सुमन दी उनसे मिली तो उन्होंने बताया कि वो अंग्रेजी के प्रवक्ता हैं। ये सुनकर दी ने तपाक से कहा "फिर तो आपको भी अंग्रेजी बोलने वाली लड़की चाहिए होगी, मैं हिंदी भाषी हूँ मुझे अंग्रेजी बोलनी नहीं आती और मैं कोई स्पीकिंग कोर्स भी जॉइन नहीं करूंगी।" दी ने शायद कुणाल का गुस्सा राजेश जी पर उतार दिया।


राजेश जी ने सुमन दी के ऊँचे स्वर सुनकर हँसते हुए कहा,


" अगर मैं चाईनीज़ पढ़ाता तो इसका ये मतलब थोडी होता कि मुझे चाईनीज़ बोलने वाली लड़की चाहिए। फिर तो मैं ताउम्र कुंवारा ही रह जाता। मैं भी हिंदी भाषी हूँ। दूसरी भाषा का ज्ञान होना गलत नहीं है लेकिन उसमें रच बस कर अपनी हिंदी भाषा को हेय दृष्टि से देखना गलत है। दुनिया की कोई भी भाषा बोल लो लेकिन अपनी भावनाओं को आप जितनी खूबसरती से अपनी जन्मी भाषा में उकेर सकते हैं वो किसी दूसरी भाषा में नहीं, बल्कि हम तो आने वाले समय में हिंदी को विश्वभाषा के रूप में देख रहे हैं । जिस तरह से आज पूरे विश्व ने योग को अपनाया, जिस तरह से विश्व हमारी सनातन संस्कृति की तरफ झुक रहा है , हमारे वेद पुराणों की तरह खींचा चला आ रहा है उसी तरह से एक दिन हिंदी भाषा को भी पूरा विश्व सह्रदयता से अपनाएगा।


वैसे भी मुझे तो सिर्फ़ प्रेम की भाषा बोलने वाली लड़की चाहिए, जो मुझे रौद्र रूप की नहीं बल्कि श्रृंगार और प्रेम रस में डूबी कविताएं सुनाए। ऐसी कर्ण प्रिय प्रेम रस में भिगोई हुई कविताओं को मैं जिंदगी भर सुनने के लिए तैयार हूँ, क्या आप मुझे जीवन भर सुनाने के लिए तैयार हैं?"


ये सुनकर सुमन दी के गाल शर्म से लाल हो गए। उसी पल भावी पति की ऐसी सोच से गर्व की अनुभूति भी होने लगी।


आज सुमन दी भी हिंदी की प्रवक्ता हैं। वर्षों बाद भी राजेश जी सुमन दी से मज़ाक में कहते हैं " अंग्रेजी को हिंदी से प्यार है, भई हमारे घर में तो अंग्रेजी पर हिंदी भारी पड़ती है और मैं तो हमेशा हिंदी के सामने नतमस्तक रहता हूँ।"


जब भी कहीं हिंदी पर चर्चा होती है तो सुमन दी का अपनी हिंदी के प्रति प्रेम और कैप्टन को फटकारने वाली कहानी याद आ जाती है। ये एक खास अनुभव भी था मेरे जीवन का ,जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला । कोई भी भाषा सीखो इसमें कोई बुराई नहीं परंतु अपनी हिंदी को हमेशा ऊपर रखो ,जैसे हमारे माथे की बिंदी । उसको बोलने , लिखने में शर्म नहीं गर्व महसूस करो। 


हम दुनिया के किसी भी कोने में हों आखिर हिंदी ही हमारी पहचान है। आज एक बार फिर से हिंदी और हिंदी साहित्य का विश्व में डंका बज रहा है और हिंदी अपनी खोई हुई पहचान को वापस हासिल करने में कामयाब हो रही है और जल्द ही हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा क्या विश्व भाषा के रूप में हमें गौरवांवित करेगी।


हिंदी साहित्य को पढ़ती हूँ तो हैरान रह जाती हूँ कि ये तो कभी न खत्म होने वाला खज़ाना है , थोड़ा सीखा है बहुत कुछ सीखना बाकी है।


धन्यवाद।



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