Savita Negi

Romance

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Savita Negi

Romance

निश्चल प्रेम

निश्चल प्रेम

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अपनी साँसों को नियंत्रित कर रेवती झट से पिलर की आड़ में खड़ी हो गयी। क्या सच में उसने अश्विनी को देखा, क्या वो अश्विनी ही था? स्वयं से प्रश्न पूछकर वो पिलर की ओट से दुबारा वरवधू के स्टेज की तरफ देखने लगी। स्टेज में जयमाला चल रही थी। उस वक़्त स्टेज के पास बहुत भीड़ थी लेकिन अश्विनी जैसा उधर कोई भी नहीं दिखा । पिलर पर ही टेक लगाए सोच में पड़ गयी शायद उसे संदेह हुआ हो। सहकर्मी की बेटी के विवाह में शामिल होने बनारस आई थी । आज से बारह वर्ष पूर्व अश्विनी ने जुदा होते वक़्त कहा था तुम्हारे शहर में तुम्हारे बिन रहना नामुमकिन होगा इसलिए हमेशा के लिए बनारस चला जायेगा , यहाँ उसका घर था। बनारस के लिए चलते वक़्त उसके यही शब्द रेवती के कानों में गूंज रहे थे इसलिए बनारस की हर गली ,मोहल्ले में जहां तक उसकी नज़र जाती उसे कोई न कोई अश्विनी के जैसा लगने लगता या यूँ कहें कि उसके शहर में आकर उसके दिल ने उसकी एक झलक पाने के लिए धड़कना शुरू कर दिया था। जब किसी को देखने की चाह इतनी प्रबल हो तो उसकी छवि हर जगह दिखाई पड़ने लगती है और आज भी ऐसा ही हुआ होगा, ये सोचकर अपने मन को तस्सली देकर रेवती कॉफी का मग लिए भीड़ से दूर अकेले एक सोफे में बैठ गयी। 


उसको लगा था वियोग का यह घाव धीरे- धीरे भर जाएगा ।परंतु घर और आफिस की व्यस्तता और बारह वर्षों के लंबे अंतराल के पश्चात भी अश्विनी के प्रति प्रेम उसके अंतर्मन में यथावत रहा । 


बीते वर्षो में अश्विनी भी तो बदल गया होगा। अपनी घर गृहस्थी में व्यस्त होगा। बच्चे भी होंगे, वो कहाँ अब उसे पहचानेगा ? समय के साथ इंसान में बदलाव आ ही जाता है । अब वो एक पति और पिता की भूमिका में होगा । एक परिपक्व जिम्मेदार इंसान, मैं तो सिर्फ़ उसका अतीत मात्र हूँ। अगर वो सच में सामने आ गया तो ....दबी हुई ख्वाइशों की परतों में कहीं फिर से प्रेम की चिंगारी न सुलगने लगे? उसका ह्रदय कांप उठा ..क्या अनाप शनाप सोचने बैठ गयी ? उम्र का लिहाज़ तो कर । उसने सर झटकाते हुए इस भयावय विचार से पीछा छुड़ाने के लिए एक और कॉफी का मग उठाया तभी पीछे से किसी ने टोका.....


" बात -बात पर कॉफी पीने की तुम्हारी पुरानी आदत गयी नहीं अभी तक ।"


उसने पीछे मुड़कर देखा तो आँखों को विस्वास नहीं हुआ, सामने अश्विनी खड़ा था। उसके हाथ कांपने लग गए। धड़कनों के तीव्र होने से ओंठ कंपकपाने लगे। इतने वर्षों बाद अश्विनी को सामने देख कुछ सूझा ही नहीं कि कैसे उसका अभिवादन करे ? वो नहीं चाहती थी कि उसके मनोभावों को वो पढ़ ले, उन्हें किसी तरह अंतर्मन में ही रोककर चेहरे पर हंसी का आवरण ओढ़ लिया।


" इतने वर्षों बाद मिले तो थोड़ा सकपका गयी...कैसे हो? "


" मैं ठीक हूँ, तुम्हें आज यहाँ अचानक देखकर पहले तो खुद की आँखों पर विस्वास नहीं हुआ कि क्या सच में तुम्हीं हो? बहुत देर से तुम्हें देख रहा था ,वो छरछरी रेवती थोड़ी भर गई है। इस बीच तुमने तीन मग कॉफी के पिये ,फिर तो यकीन हो गया की तुम्हीं हो।"


रेवती का मन तो हुआ कि बोल दे उतनी देर से वो भी उसी को खोज रही थी परंतु चुप चाप खड़ी पल्लू के कोनो को उँगलियों से मसलकर उसे देखती रही।


" हाँ वो छरछरी उस वक़्त सत्ताईस अट्ठाईस वर्ष की रही होगी, अब ...अब चालीस पर पहुँच गयी है। और तुम्हें आज भी याद है की मैं कॉफी की शौकीन हूँ। "


अश्विनी ने लगभग उसकी आँखों मे झाँकते हुए कहा....


" हाँ , तुम्हारी पसंद और नापसंद सब याद है बल्कि यूं कहो तुमसे जुड़ी हर छोटी बड़ी बात सब याद है।"


ये सुनकर रेवती कुछ झेंपी हुई सी इधर -उधर देखने लगी साथ ही उसे थोड़ी खुशी भी हुई आख़िरकार अपने पुराने प्रेमी की स्मृतियों में भला कौन नहीं रहना चाहेगा?


" तुम्हारी पत्नी बच्चे भी आये हैं?"


" वो.....वो ... दरसहल बच्चों की परीक्षाएं चल रही हैं तो मैं अकेला ही आया हूँ....और तुम्हारा परिवार?"...इससे पहले रेवती कुछ पूछती अस्विनी ने तुरंत अपना प्रश्न रख दिया।


" मैं भी अकेले ही आई हूँ । ऑफिस के सभी लोग मिलकर आएं हैं।"....बातों का रुख बदलते हुए रेवती ने कहा...


"तुम्हारे बालों में सफेदी छिटक आई है।"


अश्विनी लंबी साँस लेते हुए....


" हम्म.. कैसे पता चलेगा फिर की तुमसे जुदा हुए वर्षो बीत गए। उम्र दर्शाती सफेदी और लकीरें तो समय के साथ आते ही है, भला उन्हें कोई रोक सकता है ।"


अश्विनी की बातों को सुनकर रेवती के अंदर कुछ दरकने लगा । उसे लगने लगा कि अस्विनी उसको भुला नहीं पाया है कहीं उसकी वजह से उसकी गृहस्थी में तो असर नही पड़ा.... अपने विचारों से उबर कर उसने तुरंत पूछा


" तुम खुश तो हो न?"


अश्विनी थोड़ा सम्भला और सोचने लगा कि उसे इस तरह की बाते नहीं करनी चाहिए। यहाँ से  रेवती अपने मन में कोई बोझ लेकर न जाये। उसकी सुखी गृहस्थी में उसकी वजह से किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आनी चाहिए।


" हाँ बिल्कुल खुश हूँ। एक अच्छी पत्नी और दो बच्चे हैं

और क्या चाहिए जीवन मे? और तुम...तुम खुश हो न?"


" एक अच्छा पति और दो बच्चे हैं और क्या चाहिए जीवन में?"...दोनों अपने अधूरे होने के दर्द को एक दूसरे से छिपाए हंसने लगे। 


"बहुत देर हो गयी विवाह भी सम्पन्न हो गया मुझे जाना होगा। यही पास ही एक रिसॉर्ट है सब वहीं ठहरे हैं। एक दो दिन तुम्हारा बनारस घूमेंगे फिर चले जायेंगे।"


"क्या मैं तुम्हें घुमा सकता हूँ?"


रेवती असमंजस सी खड़ी उसे देखती रह गयी कि क्या जवाब दे। सोए हुए अरमानों को सुलगाना नहीं चाहती थी। साथ ही एक दिन के उसके साथ को नकार भी नहीं सकती थी।


" वो...तुम्हारी पत्नी को बुरा लग सकता है । "


" नहीं लगेगा , मैं एक मित्र की भाँति ये प्रस्ताव रख रहा हूँ।"


रेवती मना नहीं कर पाई।


रिसोर्ट में पहुँचकर रेवती को फिर से पहले जैसी अनुभूति होने लगी । वो पुराने प्यार भरे दिन याद आने लगे और गुजरी जिंदगी के पन्ने स्वतः ही पलटने लगे । बहुत प्यार था दोनों में। जीवन के उस मोड़ पर जाना था क्या होती है प्रथम प्यार की अनुभूति । कितना सुखद होता है एक ऐसे व्यक्ति का साथ जिसके आचार- विचार कई स्तरों में आपसे मिलते जुलते हों । पहली बार जाना था कि प्यार को महसूस किया जा सकता है परिभाषित नहीं । वो खुद को दो जिस्म एक जान ही समझते थे। अश्विनी अतिशीघ्र रेवती को अपनी पत्नी के रूप में देखना चाहता था परंतु उसके घरवालों को रेवती बिल्कुल पसंद नहीं आई कारण सिर्फ़ उसका विजातीय होना था। अश्विनी ने उन्हें मनाने का पूरा प्रयत्न किया बल्कि विद्रोह पर उतर आया था । घर , माँ बाप सब छोड़ने के लिए तैयार था । रेवती को मनाने लगा कि मंदिर में या कोर्ट मैरिज कर लेते हैं। परंतु रेवती दुविधा में थी। वो अपने सपनो का महल अश्विनी के माता पिता की नफरतों के ऊपर नहीं बनाना चाहती थी। उसकी वजह से अश्विनी के माँ बाप हमेशा के लिए अपना बेटा खो दे और अश्विनी अपने माता पिता को , जिंदगी भर इस अपराध बोध के तले दबना नहीं चाहती थी। प्यार में स्वार्थ आ जाये तो प्यार की पराकाष्ठा घट जाती है । वो अपने निःस्वार्थ प्यार पर माँ बाप के आँसुओं की छींट नहीं पड़ने देना चाहती थी। स्थिति की गंभीरता देख उसने अश्विनी को समझाया कि अपने माता पिता को दुःख देकर उसे वो तो मिल जाएगी परंतु वो उन्हें खो देगा जिनकी वजह से वो इस दुनिया में है और इस दुःख के साथ वो भी जी नहीं पायेगा।


थक हार कर दोनों ने उस दिन सजल नेत्रों से एक दूसरे का हाथ पकड़कर एक दूसरे से वादा लिया था कि इस अध्याय को अपनों की ज़िद की भेंट चढ़ाते हुए यहीं समाप्त करते हैं। साथ ही भविष्य में दोनों आगे बढ़कर अपनी दूसरी जिंदगी में खुश रहने का प्रयत्न करेंगे। अश्विनी भारी मन से प्यार से जुड़े सभी तार तोड़कर हमेशा के लिए अपने माता पिता के पास बनारस चला गया। 


लेकिन क्या ये सब इतना सरल था?...नहीं... जिस मोड़ से जुदा हुए थे वर्षो बाद भी दोनों उसी मोड़ पर तन्हा खड़े थे। 


डोर बेल्ल बजी तो रेवती नींद से अचानक जागी सुबह भी हो गयी । पूरी रात बीती जिंदगी को याद करने में गुजर गई।


"मैडम रिसेप्शन में कोई अश्विनी सर आपका इंतजार कर रहे हैं।"


"ओह्ह!! मैं तो भूल ही गयी थी उसने आज सुबह गंगा आरती देंखने जाने के लिये बोला था। "...जल्दी से तैयार होकर रिसेप्शन में पहुँच जाती है। थोड़ी ही देर में दोनों गंगा के तट पर थे। पुजारियों के हाथों में दीपक की ज्वाला, जो मानों आसमान को छूने की कोशिश में हों । शंखनाद, डमरू की आवाज़ और माँ गंगे के जयकारे रौंगटे खड़े करने वाले थे। वहीं अश्विनी को आँख मूंदकर शांत बैठे देख रेवती उसे अपलक निहारने पर विवश थी मानो आत्मिक प्रेम की जीती जागती मूरत हो। जिसे एक मस्त मौला चंचल प्रेमी के रूप में जानती थी उम्र के इस मोड़ पर कितना शांत और गंभीर था । 


आस- पास के मंदिर दर्शन करने के पश्चयात बहुत देर तक दोनों गंगा के किनारे बैठे रहें । साथ- साथ तो थे परंतु एक बोझिल सी खामोशी दोनों के बीच पसरी थी। नजरें मिलती तो बस मुस्करा देते। गंगा तट पर बहती शीतल बयार, पानी में टिमटिमाती सूर्य की किरणों , घण्टियों की मधुर ध्वनियाँ ,लहरों का अविरल कलकल और अश्विनी का साथ सब मिलकर रेवती के अंदर शिथिल पड़ी प्रेम की परतों को कुरेदने का काम कर रहे थे। उसका मन हुआ कि सब कुछ बोल दे उसको कि वर्षो बीत जाने के बाद भी वो उसको भुला नहीं पाई है। उसकी स्मृतियाँ उसके साथ हमेशा साये की तरह चली हैं। उसने अभी तक अपने जीवन मे उसकी जगह किसी को नहीं दी। उससे झूठ बोले जा रही है कि वो विवाहित है। ...


तभी अश्विनी ने कहा 'चलो तुम्हे रिसोर्ट छोड़ आता हूँ बहुत देर हो गयी , कल तुम्हें निकलना भी है।' 


रिसोर्ट पहुँचकर रेवती बहुत उदास थी। सोच रही थी काश न ही मिलती उससे तो अच्छा होता, फ़िर से वही जज़्बात पनपने लगे थे ।


सुबह जल्दी ही रेवती अकेले रेलवे स्टेशन पहुँच गयी । अश्विनी से मिले बिना ही ,उसका सामना करने की हिम्मत नहीं थी। उसके बाकी साथी रिसोर्ट में ही थे। 


स्टेशन के बैंच में बैठी सोचने लगी कि अच्छा ही हुआ जो उसने बीती शाम अपने मन की बात अश्विनी को नहीं कही वरना क्या सोचता वो उसके बारे में। उसके धैर्यवान और संयत व्यवहार ने उसके उबलते हुए उन्माद पर रोक लगा दी थी। अगर उसे पता चलता की उसने विवाह ही नहीं किया तो खुद को दोषी मानता और उसके शांत खुशहाल जीवन में अशांति फैल जाती।


अश्विनी रेवती से मिलने रिसोर्ट पहुँचता है, वहाँ उसके साथी बताते हैं कि वो सुबह ही स्टेशन चली गयी। 


"ओह्ह!..अच्छा तो आप ये कुछ गिफ्ट्स हैं रेवती के बच्चों के लिए, इन्हें आप रेवती को दे देंगी प्लीज !!"


" रेवती के बच्चे?"...उसकी एक साथी ने हैरानी से पूछा।


"जी......रेवती के दोनों बच्चों के लिए।"


" लेकिन रेवती के तो कोई बच्चे नहीं है....उसने तो शादी ही नहीं की । "


ये सुनकर अश्विनी अवाक रह गया । तो क्या उसने झूठ बोला था?.....रेवती से मिलने के लिए वो बिजली की रफ़्तार से दौड़ता हुआ रिसोर्ट से बाहर निकला ।


उधर रेवती अपने ख्यालों में उलझी वही बैंच में बैठी थी। तभी ठीक उसके सामने दो बुजुर्ग दम्पत्ति हाथ जोड़े खड़े हो गए।


" जी आप लोग? .....


"अश्विनी के माता पिता।"


उन्हें देखकर रेवती को लगा शायद अश्विनी की पत्नी ने कल दोनों को साथ तो नहीं देख लिया और हो सकता है बहुत हंगामा हुआ हो। घबराई रेवती लड़खड़ाती आवाज़ में पूछने लगी..


"जी ...मुझसे कोई भूल हो गयी?"


" नहीं बेटा भूल तो हमसे हुई थी वर्षो पहले । जिसके लिए हम शर्मिंदा के साथ -साथ तुम्हारे दोषी भी हैं। हमारी जिद की वजह से ही अश्विनी और तुम जुदा हुए थे । प्रेम की डोर कितनी मजबूत होती है आज पता चला उधर तुमने उसकी जगह किसी को नहीं दी इधर उसने तुम्हारी जगह किसी को नहीं दी। हम उसे मनाते रह गए परंतु वो कभी विवाह के लिए राजी नहीं हुआ। आज भी ह्रदय में तुम्हारे प्रेम की लौ जलाए बैठा है । उसे लगा था कि जुदा होने के बाद तुम अपने जीवन में आगे बढ़ गयी होगी । तुम अपने मन में कोई बोझ लेकर न जाओ इसलिए उसने भी झूठ बोला था कि वो विवाहित है और खुश है । तुम्हारे बीते वर्ष तो वापस नहीं दे सकते लेकिन अब तुम दोनों एक होकर हमें क्षमा दान दे दो। अश्विनी बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहा है।"


आँखों में लुड़क आये सहस्त्र आँसुओं को पल्लू से पोंछती हुई रेवती तेज कदमों से बाहर की तरफ भाग रही थी। हजारों सोई हुई ख्वाइशें , अनगिनत सपने ,प्रेम में लिपटे जज़्बात हृदय की तलहटी में जाग कर नृत्य करने लगे थे । 


बहुत देर तक दोनों एक दूसरे का हाथ थामे भीगी- भीगी आँखों से एक दूसरे को देखते रहे । कभी हंसते तो कभी रोते । कुछ इस तरह , देर से ही भले प्रथम प्रेम के मिलन की सुखद अनुभूति को महसूस करते रहे।.....


गंगा तट पर मंदिर प्रांगण में दोनों वर वधु बने अग्नि के फेरे लेते हुए अपने आत्मिक प्रेम को लेकर पूर्णतः समर्पण की ओर बढ़ रहे थे। चांदनी रात में घण्टियों और शंखों की मधुर ध्वनियां और पंडितों के मंत्रोच्चार के बीच उन पर पुष्पवर्षा हो रही थी ..साथ ही वहाँ मौजूद लोंगो के बीच इस निश्चल प्रेम की चर्चा भी खूब हो रही थी।


धन्यवाद ।



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