परछाई
परछाई
झरना बड़े प्यार से अपने पा को निहार रही थी,कितने मासूम, भोले बच्चे से लगते हैं सोते हुए ये,उसने ठीक से गर्म चादर ढकी उनके शरीर पर,देखा,दूध का ग्लास खाली था,पास ही दवाई का खाली फ्लैप पड़ा था,ओह,इसका मतलब है,पा ने आज मेरे कहे बगैर ही दवाई खा ली।वो बिजली बंद कर जाने को पलटी ही थी कि राजेश ने आवाज दी उसे,अरे बड़ी माँ,आज पप्पी तो दी नहीं अपने पा को।
झरना चौंकी,अरे आप सोए नहीं थे अभी।
राजेश और झरना का प्यार भी बड़ा निराला था,वो उसका छोटे बच्चे की तरह ध्यान रखती,इसलिए राजेश उसे बड़ी मां कहकर बुलाते,और वो भी कभी चिढ़ती नहीं थी,कभी पा और कभी मेरा बांकुड़ा कह कर ही बुलाती।
दोनों बाप बेटी का प्यार सारे जग से निराला था।दोनों एक दूसरे के पूरक,सारे संसार की कोई फिक्र नहीं,कोई अच्छा कहे या न कहे,उन्हें चिंता न थी।
कई दफा,झरना ,जब पा को उदास देखती तो पूछती:मां की बहुत याद आती है,मैंने तो माँ को ठीक से देखा भी हो ,मुझे याद नहीं,आप ही बताओ न मेरी माँ कैसी थी?,आप दोनों कैसे मिले,कहाँ मिले।उसे बहुत आश्चर्य होता कि उसके पा शहर के रईस खानदान के इकलौते वारिस,इतनी ऊंची पोस्ट पर आसीन पदाधिकारी और कहाँ उसकी अनपढ़,गांव वाली मां चंदा।
कोई और भी तो नहीं था जिससे वो ये सब पूछ पाती,यदाकदा,वो राजेश से ही ये सब जानने की जिद करती।आज राजेश को नींद नही आ रही थी,इससे काफी देर पहले लम्बी नींद भर चुका था वो,उसने हाथ पकड़ झरना को बैठा लिया।चल आज तेरी ख्वाहिश पूरी करता हूँ मैं।
झरना की तो जैसे मन की मुराद पूरी होने वाली हो।वो चिहुंक के पा के पास आ बैठी।
राजेश उसे बताने लगा कि वो शहर के नामी इंजीनियरिंग कॉलेज से बी टेक के आखिरी वर्ष का छात्र था,उसका और उसके साथ के सभी दोस्तों का
प्लेसमेंट अच्छी कंपनियों में हो चुका था,बहुत दिनों से वो सब कहीं पिकनिक पर नहीं गए थे,इस बार सिविल्स के लास्ट बैच का हिल स्टेशन विजिट बन रहा था और वो सब धर्मशाला और मैक्लोडगंज जा रहे थे।
राजेश बताते हुए इतना तल्लीन हो गया कि धीरे धीरे पुरानी यादें जैसे चलचित्र की तरह उसकी आँखों के सामने तैरने लगीं।
एक सुंदर सी टूरिस्ट वैन में हम करीब दस लड़के और पांच लड़कियां थे।सुमधुर संगीत के साथ झूमते,मस्ती करते हम सबको लेकर वैन चंडीगढ़ से धर्मशाला के लिए चली थी।टेढ़े मेढ़े सर्पीले रास्तों पर लहराती वैन में सबको कितना मज़ा आ रहा था।ऊंची ऊंची पहाड़ियों पर जंगली फूल खिले उन्हें रंग बिरंगी आभा से युक्त कर रहे थे,फिर राजेश भले ही विज्ञान का छात्र रहा हो,लेकिन बहुत भावुक कवि भी था,उसकी बनाई पेंटिंग्स देखने वाली होती थीं।गाता इतना मधुर था कि रास्ते चलते जानवर भी उसकी सुरीली तान से मंत्रमुग्ध हो उठते।
थोड़ी ही देर में ,अब सामने चाय बागान दिखने लगे थे,दूर दूर तक फैली हरियाली आंखों के साथ दिल को भी चुरा रही थी।अभी एक बड़ी चर्च के आगे रुक कर उन लोगों ने कुछ रेफेरश्मेन्ट लिया था।
धर्मशाला न रुककर पहले वो सीधे मैक्लोडगंज ही पहुंचे,वहां एक बड़े से डाक बंगले के आगे जाकर उनकी वैन रुकी।शायद,काफी समय से वो बन्द था या कम लोग वहां आये थे।
एक साधारण सा दिखने वाला आदमी दौड़कर उनकी आगवानी के लिए आया,पता चला कि वो वहां का चौकीदार था।
राजेश के एक दोस्त ने उससे पूछा:आपके यहाँ पांच छह कमरे मिल जाएंगे खाली।
चौकीदार ने हामी भरते कहा,आप रिसेप्शन पर क्लियर कर लो,वैसे होंगे।
थोड़ी देर में,दो कमरे लड़कियों के लिए और तीन लड़को के लिए मिल गए।कमरों की जल्दी सफाई के लिए चौकीदार की लड़की ही आई थी ।
जब वो लड़कों के कमरे की सफाई कर रही थी तो राजेश के साथ वाला एक लड़का आतिश उससे छेड़छाड़ कर बैठा।लड़की तमक गई और उसने उसे कुछ बुरा भला कह डाला।
इस बात से आतिश को बहुत इंसल्ट लगी,उसने मन ही मन सोच लिया था,इसका अहंकार तोडूंगा जरूर।
राजेश बहुत शान्तिप्रिय था,उसने नोटिस किया था कि उस पहाड़ी लड़की,जिसका नाम चंदा था,वो बहुत सीधी सादी,भोली सी खूबसूरत लड़की थी।
दूधिया गोरा रंग,गुलाबी पंखुरी से होंठ,खड़ी सुत्वा नाक और हिरनी सी बड़ी काली आंखे उसको बेहद खूबसूरत बना रही थीं।
दरअसल उसका कलाकार दिल,उसकी मासूमियत पर फिदा हो गया था,वो जनता था कि आतिश की गन्दी नज़र उसके खिलते यौवन पर थी,जब उसने तेवर दिखाए तो भड़क रहा है।
अगले दिन,वो सुबह उठते ही अकेले सैर पर निकल गया था,वहीं रोड साइड पर पड़ी बेंच पर बैठकर वो ऊंची पहाड़ियों की सुंदरता का रसास्वादन कर उन्हें अपनी कविताओं में ढाल रहा था।जब लौटकर आया तो हंगामा हो रहा था वहां तो।
आतिश चिल्ला चिल्ला के उस चौकीदार की लड़की को चोर ठहरा रहा था और वो रो रोकर दुहाई लगा रही थी हम पहाड़ी कभी चोरी नहीं करते।
राजेश पास आया तो उसने पूछा कि आखिर माजरा क्या है,पता चला जब से वो लड़की सफाई करके गई है कमरे की,आतिश का मंहगा एंड्राइड फ़ोन गायब है।हो न हो ये इस लड़की ने ही चुराया है।
उस लड़की ने राजेश की तरफ उम्मीद से देखा और उससे जैसे अपने निर्दोष होने की गुहार लगाई।
आतिश बेचैन था कि मैं पुलिस को फ़ोन करके इसे पकड़वा दूंगा,वो ही इससे उगलवायेगी सारा सच।
राजेश के हस्तक्षेप से बड़ी मुश्किल से आतिश माना कि पुलिस नही बुलाते लेकिन ये लड़की चोर है,ये तय है,वो अड़ा हुआ था।
अभी ये सब चल ही रहा था कि पास की दुकान से एक छोटा लड़का आया जहां कल रात वो लॉक खरीदने गए थे,वो बोला:मेरे पापा ने ये मोबाइल भिजवाया है,आपमें से किसी का शायद कल दुकान पर छूट गया होगा गलती से।
आतिश सकपका गया और इधरउधर देखने लगा और वो लड़की रो रोकर बोली:देखा बाबू,हमने कहा था न कि हम पहाड़ी चोर नहीं होते।
राजेश,एक बार फिर उसके चरित्र,सादगी और भोलेपन से प्रभावित हुआ,उसने आतिश
की तरफ से उससे माफी मांगी और बात रफा दफा की।
थोड़ी देर में,वो सब "भगसू वाटर फाल" की तरफ बढ़ रहे थे,पतली पगडंडी से होते हुए हल्की चढ़ाई में चलते हुए उन्हें बहुत आनन्द आ रहा था।बीच बीच में गुफाओं सी चट्टानों में बैठकर वो पोज़ बनाते और उन सुन्दर लम्हों को कैद करते।
फिर नीचे देखा तो सुन्दर झरना उज्ज्वल दूध की तरह बह रहा था,वहां कितने ही लोग नहा रहे थे,जल क्रीड़ा कर रहे थे,वो सब भी एक एक करके
उस जलप्रपात में खेलने लगे।जब थोड़ी ठंडक आई तो झट वहां से कुछ देर पर चाय की गर्म चुस्कियों से खुद को गर्माहट दी।
अब वहां से वो" नड्डी ,"चल दिये,वहां का सूर्योदय और सूर्यास्त बहुत सुंदर सुना था।कुछ लड़कियां वहां की सुंदरता देख खुशी से चिल्लाने लगीं,खूब मस्ती की वहां।
लौटते हुए,सब कुछ सामान खरीदने लगे,राजेश ने चुपचाप सबकी नजर बचा के कुछ रंगीन कड़े खरीदे,दरअसल वो चौकीदार की लड़की को देना चाहता था जिसे आज उसके साथियों ने बिना बात आज इतना जलील किया था।
रात को खाने के बाद,सब घूमने चले गए और राजेश को सुबह ठंड से जुकाम ,बुखार हो गया था सो वो करे पर ही रुक गया।
वो कुछ चित्र बना रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई,उसने नीचे मुंह किये ही कहा:आ जाओ।
थोड़ी देर में चौकीदार की लड़की उसके सामने खड़ी थी,काढ़ा लिए हुए।
अरे,ये क्या है,उसने पूछा।
माँ ने आपके लिए भेजा है,बापू ने बताया था कि आपको बुखार है,इसे पीते ही आप ठीक हो जाओगे।
क्या नाम है तुम्हारा?राजेश ने उससे पूछा
चंदा..उसने जबाव दिया।
ओह!,जैसा नाम वैसा ही सलोना रूप,वो बुदबुदाया।
जी…कुछ कहा आपने,चंदा बोली।
सुनो,आज तुम्हें बहुत दुखी किया हमने,तुम नाराज हो,राजेश ने कहा
चंदा आश्चर्य से अपनी बड़ी बड़ी आंखे फैला के उसे देख रही थी कि वो जो सुन रही है वो सच है या सपना।
मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया था,लोगी मुझसे,राजेश ने झिझकते हुए उससे पूछा।
वो दोबारा भौंचक्की हो गई,ये बाबू किसी दूसरी दुनिया का है क्या,कितना रस है इसकी मीठी बातों में।
राजेश ने वो कड़े निकाल के उसे दिए और वो तो जैसे बाबरी हो गई,शर्म से उसके गाल सुर्ख हो गए और पलकें बोझिल।
राजेश भी उसका ये अंदाज देखकर कुछ क्षण को भूल गया कि ये गांव की अनपढ़ बाला है ,वो कुछ और बोल पाता,इससे पहले ही वो शर्मा के भाग गई।
आज वो सभी वहां से लौट रहे थे,इतनी खूबसूरत जगह से हालांकि लौटने का मन किसी का नहीं था पर जाना तो था ही।राजेश ने उन सबको बता दिया था कि वो अभी कुछ दिन और रुकेगा,उसे अपना एक काव्य संग्रह वहीं रुक कर पूरा करना था।
चंदा तो कल शाम से ही अनमनी थी,जब से बापू से सुना था कि जो लोग रुके हैं वो जा रहे हैं,वो रोये जा रही थी,मां कहती क्या बात है,क्यों दुखी है,वो क्या बताती,बस सूनी आंखों से ताकती रहती और रो पड़ती।
फिर अगले दिन वो कमरों की सफाई को गई तो रोते हुए ही काम करे जा रही,जब राजेश के कमरे में आई तो वो बेसुध सी होके खाली मेज कुर्सी को छू छू के देखने लगी मानो राजेश की छुअन को महसूस करना चाहती हो।
अचानक उसने अपने बहुत करीब किसी को महसूस किया और जब राजेश को वहां पाया तो बिलख के रोती हुई उसके सीने से जा लगी कि बाबू मुझे छोड़ के मत जाना।
अचानक इस तरह के व्यवहार से राजेश भी अपसेट हो गया पर जिस ख्याल को वो नकारने की कोशिश कर रहा था वो चंदा ने अपने रुख से पुष्ट कर दिया था यानि आग दोनों तरफ बराबर ही लगी थी।
फिर तो जितने भी दिन राजेश वहां रहा,चंदा उसके साथ रहती,वो दोनों वहां की खूबसूरत वादियों में घूमते ,फिरते,चंदा बहुत खुल गई थी उससे।
धीरे धीरे दोनों बहुत करीब आने लगे थे,उनकी आपस की सारी दूरियां मिट चुकी थीं।उस दिन राजेश को लौटना था।
चंदा की आंखे रो के सूज गई थीं,कहीं मुझे भूल तो नहीं जाओगे बाबू तुम शहर जाकर,वो बोली।
पगली कहीं की,तू मुझे मेरी जान से प्यारी है,मैं जल्द ही अपनी माँ को लेकर आऊंगा और तुझे दुल्हन बना के ले जाऊंगा हमेशा के लिए।राजेश ने उसे दिलासा दिया।
और वो चला आया शहर।फिर कुछ ऐसा घटा कि राजेश चाह के भी जल्दी वापिस चंदा को लेने न जा पाया,उसे अर्जेंटली विदेश जाना पड़ा अपने पिता के ऑपरेशन के लिए,पिता को ब्लड कैंसर हुआ था,ट्रीटमेंट लम्बा चला और वो फंसता चला गया।
आज करीब एक सवा साल बाद वो फिर से मैक्लोडगंज के डाक बंगले के बाहर खड़ा था,वहां न तो वो चौकीदार था,जाहिर है चंदा कहाँ से मिलती।
वो पागलों की तरह उसे ढूंढता फिरा।लोगों ने बताया कि उस चौकीदार की लड़की आवारा थी,बदचलन थी,पता नहीं किसके साथ मुंह काला करवा आई थी,चौकीदार ने लोक लाज के डर से उसकी शादी करवा दी जहां उसके आदमी को उसके पुराने किस्से का पता चल गया ,उसने उसे इतना परेशान किया कि गर्भवती चंदा को घर से निकाल दिया।
सुना है,उसके एक नन्ही सी लड़की भी थी जिसे वो छाती से चिपकाए घूमती थी,फिर कुछ दिनों बाद दोनों दिखनी बन्द हो गईं।
कैसे निर्दयी लोग होते हैं,राजेश को सुनकर चक्कर आ गए,आत्म ग्लानि से वो भी घुले जा रहा था,उसने एक मासूम की जिंदगी बर्बाद कर दी।
बहुत समय ठोकर खा के उसे वो चौकीदार,उसकी पत्नि और अपनी चंदा की नन्हीं बच्ची मिली।
वो उस नन्ही कली को देखता रह गया,ये तो हूबहू नन्ही चंदा ही उसकी गोद में खेल रही हो जैसे।
ये मेरी चंदा की परछाई है और आज से में इसकी परछाई बनके रहूंगा,उसने प्रण ले लिया था।
उसकी माँ कह कह के थक गई पर उसने कभी विवाह नहीं किया,मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य मेरी नन्ही चंदा यानि झरना को पालना और बड़ा करना है।
झरना,अभी तक अपने पा को प्यार ही करती थी लेकिन अब ये सब जानने के बाद वो अपने पा को पूजना भी शुरू करने वाली थी।