बूढ़ी आंखें
बूढ़ी आंखें
सारे अखबार में बड़ी सुर्खियों से ये खबर छपी थी कि कल सुबह दिल्ली से जाने वाली उत्कल एक्सप्रेस सामने से आती पंजाब मेल से बुरी तरह टकरा गई,कई डिब्बे पटरी से उतर गए,यात्रियों में हाहाकार मच गया,कई के मारे जाने की भी खबर थी और बहुत से अभी भी फंसे हुए हैं,राहत कार्य जारी हैं।
रेणु,मंदिर में भगवान की मूर्ति के आगे बैठी,हाथ जोड़े,मन ही मन भगवान के हजारों शुकराने अदा कर रही थी,उसका दिल सोच सोच के कांप रहा था कि अगर उदय कल चले जाते तो....
दरअसल,रेणु के पति उदय कल किसी इंटरव्यू के लिए उसी ट्रैन से बाहर जा रहे थे पर घर में क्या हुआ ऐसा जिससे वो रुक गए,ये जानने के लिए चलते हैं कुछ महीने पहले।
रेणु,अपने पति,बूढ़ी सास,दो बच्चों के साथ,दिल्ली के पॉश इलाके में रहती है,पति,बैंक में अफसर हैं,अक्सर प्रमोशन के लिए एग्जाम देते रहते हैं और बाहर विभागीय कामो से जाना आना लगा रहता है।
रेणु की शादी हुए कोई तीस साल हो चुके हैं,दोनों बच्चे भी विवाहयोग्य हो चले हैं...पर आज तक वो बहु ही बनी हुई है,मतलब उसकी सास,मनोरमा देवी जब तब उसे किसी न किसी बात का पाठ पढ़ाती रहती हैं।
शुरू में उनकी चार बेटियों का रोज रोज का आना जाना,लेनदेन लगा रहता था,असल में उदय अकेले बेटे हैं उनके,चार बहिनों की जिम्मेदारी,सास ससुर का साथ,काफी लंबा सफर तय किया था उसने।अब कभी कभी वो धैर्य खो बैठती थी जब उसकी बूढ़ी सास उल्टी सीधी बातें करतीं।
अभी कुछ समय पहले की बात है कि घर में वो और उसकी सास अकेले थे,रेणु का बेटा निखिल आफिस गया हुआ था और उसकी दादी रेणु से आकर बोलीं:"अरे रेणु...निखिल को जेल में डाल दिया क्या..जी घबरा रहा है मेरा,फोन करके पता कर दे..."
रेणु बुरी तरह बौखला गई:"क्या खाली बैठे बैठे बौराती रहती हैं आप,जाइये,अपने कमरे में और आराम करिए..."
बेचारी मनोरमा बड़बड़ाती अपने कमरे में चली गईं, उधर रेणु का दिल का चैन छीन चुका था,उसने निखिल को फोन किया:"बेटा,तू ठीक है..."
वो हंसा:"क्यों माँ,फिर दादी ने कुछ कहा क्या..."
रेणु को बहुत गुस्सा आया,ये बैठे बैठे,बस हर बात पर नजरे गड़ाए बैठी रहती हैं,कौन कहाँ जा रहा है,क्या खा रहा है??
कुछ दिनों पहले ही उनकी मेड बता रही थी कि जब आप कोई नहीं थे घर में तो आपका कमरा लॉक्ड था और ये मुझसे जिद कर रही थीं कि तू उस कमरे को खोल के दिखा मुझे,रेणु और उदय कमरे में ही हैं,मुझसे कुछ छिपा रहे हो तुम लोग..
हद हो गई,सठियाने की भी...उसने सोचा,वो अब थक चुकी थी इन बातों से पर उदय अकेले बेटे थे,अपनी जिम्मेदारी से मुंह तो नहीं मोड़ सकते थे।वो अक्सर रेणु को समझाते:तुम ने शुरू से इनका किया है,अब आखिर समय में क्यों धैर्य छोड़ती हो,बड़े लोगों का आशीर्वाद ही छिपा रहता है इन तकरारों में,
रेणु बड़बड़ाती:सारा "आशीर्वाद बटोरना भगवान ने मेरी किस्मत में ही लिखा है क्या?"
अब जब कल,उदय को एक इंटरव्यू में दिल्ली से बाहर जाना था,उत्कल से उनका टिकट भी बुक था पर ऐन वक्त पर मनोरमा जी ने उदय को रोक लिया,"बेटा,मेरी दाहिनी आंख फड़क रही है,जी बैठा जा रहा है,तू मत जा...वो गिड़गिड़ाई!"
उदय को पता नहीं क्यों मां पर तरस आ गया और उसने उस दिन न जाने का निश्चय कर लिया।
रेणु बुरी तरह बौखला गई,ये क्या मज़ाक है,अब इनके कहने पर ये सब भी...
और आज वो समझ रही थी उन बूढ़ी आंखों के पीछे छिपी चिंता,आगे का अच्छा बुरा पढ़ने की क्षमता और अपना बचपना जो वो करती आ रही थी पिछले समय से...।