Sangeeta Agarwal

Inspirational Others

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Sangeeta Agarwal

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सजा

सजा

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शाम गहरा चुकी थी, आदित्य नारायण जी कब से आस लगाए घर के चबूतरे पर कुर्सी डाले बैठे थे, उनकी आंखें लगातार गली की तरफ खत्म होती सड़क तक जा कर लौट रही थीं, रोज शाम से रात होने तक इंतजार करते और रात में जाकर थकहार के सो जाते।

मैं , उनके सामने वाले मकान में नई नई रहने आई थी, रोज ही मुझे वो इंतजार करते दिख जाते, मुझे बहुत जिज्ञासा होती कि ये इतने बूढ़े आदमी हैं, इनके बच्चे, पत्नी कहाँ है, क्या ये अकेले हैं? जिनका खाना कौन बनाता होगा ?न किसी मेड को आते जाते देखा? न किसी मिलने जुलने वाले को?

एक दिन, एक पड़ोसी से सुना कि इनका भरापूरा परिवार है, पत्नी लड़कों के साथ रहती है, लड़के बड़े अफसर हैं, लड़कियां दामाद भी बहुत समृद्ध हैं...

फिर इनकी इस हालत का जिम्मेदार कौन है, मन में उथल पुथल लगी रहती, कभी लगता कि खुद जाकर बातों बातों में पूछ लूं, फिर डर जाती कहीं गुस्से में ऐसा वैसा न कह दें मुझे...

लोगों ने बताया कि सब कहते हैं इनका गुस्सा बड़ा तेज था अपनी जवानी के दिनों में, शायद इसीलिए पूरा परिवार इन्हें अकेला छोड़कर चला गया।

क्या किसी को उसके स्वभाव की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है, क्या कोई और बात है जो वो अकेले हैं, क्या बात है , इन्हीं सब प्रश्नों से घिरी एक दिन मैं उनसे मुखातिब हो ही गई।

नमस्ते अंकल, मैंने उन्हें प्रणाम किया, मैं सामने वाले घर में आई हूं रहने, आज घर में कथा थी, उसका प्रसाद देने आई हूं, एक सांस में सब बोल गई मैं और डरते हुए उनकी तरफ देखा।

उन्होंने सिर से पैर तक मुझे गौर से देखा, आंखों पर चढ़ा चश्मा साफ किया और गला खंखार कर बोले, कौन??

उनके बोलने से लगा कि बहुत दिनों बाद किसी से बोले हों जैसे, मुंह से आवाज भी अस्पष्ट सी निकली, बैठो बेटा, सहसा वो अपनी कुर्सी से उठ गए...

मैं भौचक्की उन्हें देख रही थी...ये उतने कठोर भी नहीं लग रहे जैसे लोगों ने बताया..

मेरे लाये प्रसाद को बड़े प्यार से उन्होंने खाया, उन्हें खाते देख लगा जैसे बरसों बाद कोई स्वादिष्ट चीजें उन्हें खाने को मिली हो। मुझे ढेरों आशीषों से नवाजते वो एक सहृदय पुरुष ही लगे।

आते रहना बेटा कभी कभी, कहकर, उन्होंने मुझे एक वायदे से बांध लिया, अब मैं अक्सर उनके पास जाती और वो मुझे ढेरो बातें बताते अपने जीवन की।

मुझे आश्चर्य हुआ जानकर कि वो रिटायर्ड पुलिस कमिश्नर थे, कोई समय था जब उनकी घर बाहर तूती बोला करती थी, लोग सलाम ठोकते, घर में उनके रुआब से उनकी पत्नी और बच्चे थर थर कांपते। सर्विस पिस्टल उनके पास थी, उसका आतंक पूरे घर वालों के चेहरे पर साफ झलकता,

बड़े गर्व से उन्होंने मुझे बताया था एक दिन-यूं तो उनकी पत्नी पढ़ी लिखी, बहुत अच्छे खानदान से थी पर गुस्से में उनसे भी ज्यादा तेज़, कभी नाक पर मक्खी न बैठने देती, उसे जब लड़कों की शह मिली तो वो उनसे बराबरी करने लगीं और ऐसा समय भी आ गया कि उन्हें लोडेड रिवाल्वर गले में डालकर घर में अपना आतंक कायम करना पड़ता।

धीरे धीरे आपस में इतनी दरारें बढ़ गईं कि एक दिन वो अपने मझले लड़के के साथ दूसरे शहर में रहने चली गईं कभी वापिस न आने के लिये। उन्हें लगा कि कुछ दिन में खुद ही वापिस आ जायेगी पर ऐसा न हुआ।

तब से आज तक वो उनका इंतजार करते रहे, बच्चों ने भी धीरे धीरे उनसे मिलना आना बंद कर दिया था, और वो सुबह से शाम कैसे भी काटते , फिर शाम से रात तक घर के चबूतरे पर कुर्सी डाले बैठे रहते इस इंतजार में कि कोई तो आएगा कभी मुझसे मिलने।

मैं गहन सोच में डूब गई कि ये एकल परिवार भी आजकल क्यों टूट रहे हैं? क्या उनके गुस्से वाले स्वभाव की इतनी बड़ी सज़ा उन्हें मिलेगी मरते दम तक, क्या उनके बीबी-बच्चों का दिल कभी पिघलेगा उनके लिये?

एक रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर जिसका दबदबा पूरा शहर मानता था, आज खुद अकेला जिंदगी की जेल काट रहा था, खुद खाना बनाता, मैंने पूछा-अंकल आप मेड क्यों नहीं रख लेते?

कहीं दूर खोए हुए से वो बोले-तुम्हारी आंटी के बाद, किसी के हाथ का खाना मुझे रास न आया, अगर वो ही कभी आएंगी तो दिल भर खाऊंगा नहीं तो...कहते कहते उनकी आंखें डबडबा गईं...

और हम दोनों, एक दूसरे से नज़रें बचाने लगे।

जिंदगी भी क्या अजब खेल दिखाती है, जब पास होते हैं लोग तो एक दूसरे की कद्र नहीं करते, जब दूर हो जाते हैं तो एक दूसरे के लिये रोते हैं। क्यों न ऐसा हो कि जब साथ रहें तो रिश्तों की परवाह करें, मान सम्मान से उन्हें निभाएं और जिंदगी को सुन्दर बनाएं।



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