Sangeeta Agarwal

Tragedy Children

3  

Sangeeta Agarwal

Tragedy Children

ट्यूशन

ट्यूशन

5 mins
157


रेखा सारे रसोई के काम निबटा के कमरे में आयी तो थक गई थी, घड़ी पर निगाह डाली तो देखा शाम के पौने 5 बज रहे थे, अरे विदु अभी तक सो रही है, 5 बजे तो इसके सर पढ़ाने आ जाएंगे।


विदु, विदु बेटा, उठो, हाथ मुंह धो लो, सर आने वाले हैं ट्यूशन पढ़ाने, उसने प्यार से पुचकारते हुए उसे उठाना चाहा।

ट्यूशन का नाम सुनते ही विदु ने बुरा सा मुंह बनाया और जबरदस्ती सोने का नाटक करने लगी।


पता नहीं कब तक इसका बचपना जाएगा, इस साल सेवंथ स्टैण्डर्ड में आ गयी थी विदु। जब रेखा टीचर्स पेरेंट्स मीटिंग में इस बार गयी थी उसके क्लास टीचर और मैथ्स के टीचर घोष सर् ने बताया था कि विदु अब पढ़ने से ज्यादा और दूसरी बातों, शरारतों पर ध्यान देने लगी है इसीलिए उसके नम्बर दिनोदिन कम आते जा रहे हैं।


रेखा के बहुत रेकेवेस्ट करने पर वो उसे रोज घर पढ़ाने आने को तैय्यार हो गए थे। रेखा को उनपर बहुत विश्वास था कि अब उसकी बच्ची अच्छा रिजल्ट लाएगी पर विदु को वो फूटी आंखों नहीं सुहाते थे। उनका बात बात पर विदु के सिर पर हाथ फेरना, अजीब सी निगाहों से घूरते रहना, जब तब उसके बिल्कुल करीब आकर उसे sums समझाना, और गलती करने पर बेदर्दी से अपने खुरदुरे हाथों में उसकी कोमल उंगलियां फंसा के मोड़ना, ये सब सोच कर ही विदु को घबराहट हो जाती पर अपनी माँ को क्या बताए, कैसे समझाए।


मां तो बस एक ही बात रटती रहतीं, बड़े स्ट्रिक्ट सर हैं, कैसे भी बुद्धू बच्चों को होशियार बना देते हैं। उन्हें लगता था कि पढ़ने से बचने के लिए विदु मनगढ़ंत कहानियां सुनाती है उन्हें।


आज भी उसने मां को समझाना चाहा पर मां ने एक न सुनी।


मुस्कराते हुए घोष सर आये और उसकी माँ ने उन्हें पानी का ग्लास थमा दिया, उसकी माँ बहुत खुश थी जब सर ने बताया कि इस बार विदु ने अच्छी परफॉर्मेंस दी है।

मां , उनकी मेहनत से बहुत खुश थीं, सर, क्या आप इसकी साइंस भी देख लेंगे कुछ दिन, इसके पापा आपसे मिलने चाह रहे थे पर वो बहुत लेट हो जाते हैं रात को।

कोई बात नहीं, आप कह रही हैं तो जिम्मेदारी तो लेनी पड़ेगी, वो मुस्कराते हुए बोले।

उधर विदु का दिल जोर जोर से धड़कने लगा: अब इन्हें एक और घण्टा झेलना पड़ेगा, ये मां मेरी जान ही ले के मानेंगी क्या?


एक दिन रेखा ने सर से कहा: आज मैं जरूरी काम से बाहर जा रही हूं, 8 बजे तक लौटूंगी, आप प्लीज विदु को पढ़ाते रहें, नहीं तो ये अकेली हो जाएगी।


अरे…कोई बात नहीं, आप निश्चिंतता से जाए। घोष सर बोले।


विदु बहुत असहाय हो गयी लेकिन अपनी माँ को कैसे समझाती कि उसे इनसे डर लगता है।


आज तो सर को खुली छूट थी, वो विदु से सट कर बैठ गए और कभी उसका हाथ दबा देते, कभी उसके गाल पर चिकोटी काट लेते। विदु का दम सा घुट रहा था, अचानक उसने मन ही मन कुछ प्लान बनाया और वाशरूम जाने का बहाना बना कर अंदर गयी और थोड़ी निश्चिंतता से आकर बैठ गयी।


सर घोष अपनी कारस्तानियों को पूरी बेशर्मी से अंजाम देते रहे, वो सिमटती रही, बेबसी पर मन ही मन सुबकती रही पर उसने अपना धैर्य बनाये रखा।


आखिर 8 बजे उसकी माँ आयी और उसे घोष सर से छुटकारा मिला। मां कितना धन्यवाद दे रही थी सर घोष को और वो बेशर्मी से खींसे निपोरते हुए उसकी माँ से कह रहे थे, जब भी आपको काम हो, आप चली जाया करें।


विदु चुपचाप ये सब देखती रही, आज उसे अपने पापा के घर लौटने का बड़ी बेसब्री से इंतजार था।

मां को उसका रहस्यमयी व्यवहार समझ न आया, उसने कहा आज वो पापा के साथ ही खाना खाएगी।


रात में जब वो तीनों खाना खा चुके तो विदु ने पापा से कहा, आपने मुझे नया एंड्राइड फ़ोन गिफ्ट किया था न जो मेरी बर्थडे पर, आज मैं उसपर आपको एक वीडियो दिखाऊंगी।

पापा हँसने लगे, ये बच्चे , पढ़ते कम हैं और खेलते ज्यादा हैं फ़ोन पर।


वीडियो देख कर विदु के मम्मी पापा के चेहरे का रंग उड़ गया, विदु के पापा चीखते हुए उसकी मम्मी से बोले: ये सब क्या चल रहा है, मेरे पीछे, तुम एक बच्ची को सही टीचर से पढ़वा भी नहीं सकतीं।


रेखा भौंचक्की सी घोष सर की हरकतें देख रही थी, आज उसे पहली बार विदु की कही सारी बातें ध्यान आ रही थीं, सारी गलती उसी की थी, उसे सर पर अंधा विश्वास था।


उसने रोते हुए विदु को गले से लगा लिया और उन दोनों से माफी मांगने लगी। मैं इसे क्लास में टॉपर देखने के लिए पागल हो गयी थी, भले बुरे का ज्ञान भूल गयी थी।

उसे इतनी कोफ़्त हो रही थी कि क्यों मैंने अपनी ही बच्ची की बातों को इग्नोर किया, पहले तो उसके मन में आया कि वो इस दुष्ट आदमी को एक्सपोज़ करेगी लेकिन फिर उसने सोचा कहीं वो मेरी बेटी का कैरियर न बिगाड़ दें, इससे तो अच्छा है पहले वहां से अड्मिशन ही खत्म करा लिया जाए और बाद में इस काम को अंजाम दिया जाए जिससे उसकी बेटी की तरह दूसरे बच्चे ऐसे दुष्टों के चंगुल में न फंसे।

उसे आज एक बहुत बड़ी सीख भी मिली थी कि अपने बच्चों के मार्क्स को लेकर पेरेंट्स को कभी इतना क्रेजी नहीं होना चाहिए कि वो बच्चों की बात ही न सुने, उन्हें समझदारी से बढ़ते बच्चों की समस्याएं सुननी और सुलझानी चाहिए।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy