Sangeeta Agarwal

Tragedy Inspirational

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Sangeeta Agarwal

Tragedy Inspirational

साथ दो पल का

साथ दो पल का

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सारे लोग नेहा को बधाईयां दे रहे थे,वो भी कुछ शरमाई,लजाई सी हौले हौले खुद में सिमटे जा रही थी,आज उसका बचपन का सपना पूरा हुआ था।

दरअसल बहुत छोटी उम्र से ही उसे फौजी बहुत अच्छे लगते थे,ऐसा भी नही था कि उनके घर में कोई फौज में था,वरन उनके पूरे खानदान में कोई सेना में नही था। जब बहुत छोटी थी,कभी कोई आर्मी की गाड़ी मोहल्ले में आती,किन्ही वर्दी वाले लोगों को देखती,वो तालियां बजा खुश हो जाती और किलकारी मारती: माँ, बॉर्डर वाले वीर जवान माँ हंस के कहती :तुझे इनका कहाँ से पता लगा

वो मासूमियत से अपनी किताब ला दिखाती, देखो कविता:वीर तुम बढ़े चलो,धीर तुम बढ़े चलो

टीचर ने कल ही पढ़ाई थी।

माँ हँस के टाल देती,लेकिन उसके बढ़ते जुनून को देख कह उठती:अच्छा बाबा,जब बड़ी होगी,तेरी शादी किसी वीर जवान से ही कर दूंगी।माँ के मुंह से ये सुनकर वो शर्मा जाती और वहां से भाग जाती। आखिर आज वो बहुप्रतीक्षित दिन आ ही गया जब उसकी शादी एक बहादुर सेना अफसर से तय हुई।

अखिल भारतीय सेना के जाबांज सिपाही थे,उनकी शूरवीरता और अदम्य साहस का परिचय वो कई बार दे चुके थे।सोर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित वो कई अवार्ड्स भी जीत चुके थे।

जब उनका रिश्ता नेहा के लिए आया,घर मे सब चौंक गए,वो कुछ विचार विमर्श बाद में कर पाते,नेहा को उनके फ़ोटो से ही फर्स्ट साइट लव हो गया था।

कितना सजीला,स्वस्थ युवक था जिसकी आंखों में बहुत गहराई,होठों पे मुस्कराहट और एक चुम्बकीय आकर्षण था जो नेहा को पूरी तरह अपनी गिरफ्त में ले चुका था।

नेहा खुद भी कम प्रतिभाशाली नहीं थी,उसने एम बी बी एस करके अभी एम डी पूरी की थी।वो बड़ी सौभाग्यशाली रही कि उसकी पहली ही जॉब आर्मी हॉस्पिटल में लगी।इस तरह वो कुछ समय अखिल के साथ हो पाती थी।

जब भी वो उसके साथ होती,दोनों भविष्य की सुंदर कल्पना बुनते,जबकि अखिल उसे कई बार परख चुका था तरह तरह से डरा कर,कि एक फौजी की वाइफ होना बडा कठिन काम है,इसमें रोमांटिक जैसा कुछ भी नहीं।हम फौजी देश के लिए जीते मरते हैं ,हमारा परिवार,धर्म,कर्म,सब हमारी सेना ही है।

अभी भी वक्त है तुम सोच लो,शादी के बाद पछताना मत।

नेहा उससे नाराज हो जाती,आंखों में आंसू भर लेती और अखिल उससे माफी मांगता ,उसे ठिठोली कर हंसाता।

फिर एक दिन वो शुभ घड़ी आई और वो दोनों शादी के पवित्र बंधन में बंध गए।

उन दोनों की मिलन बेला सबसे अनोखी थी,अगले ही दिन अखिल को ड्यूटी पर जाना था अकेले ही।दोनों ही ये पल एक एक मिनट जी लेना चाहते थे,कहीं क्षण भर की भी झपकी उनसे ये सुनहरा साथ छीन न ले।

नेहा अखिल के सीने पर सिर रखे उसके बालों से खेलती हुई गुमसुम छत निहार रही थी,उधर अखिल का भी ये ही हाल था,दोनों कुछ भी बोलने से बच रहे थे कहीं रुलाई न फूट पड़े,एक दूसरे को अपनी मजबूती दिखाने के चक्कर में खामोशी से एक दूजे में समाए उनके परस्पर स्पर्श की आंच में दोनों ही सुलग उठे और कुछ देर बाद निश्चिंत मासूम बच्चों की तरह सो गए।

अगला दिन बहुत उदास था,अखिल अनमना सा हो घर से,मां से और नेहा से आंख चुराता हुआ चला गया ।उसकी माँ तो अब अभ्यस्त हो चली थीं,पहले पति सेना में अफसर थे जो देश की रक्षा करते वीरगति को प्राप्त हुए थे,उसके बाद उन्होंने अकेले ही नन्हें अखिल को पाला पोसा और सेना में ही भेजा।

नेहा भी धीरे धीरे इस जिंदगी की आदत डाल रही थी,कुछ तो वो काम में व्यस्त रहती इसके अलावा सोशल वर्क करना भी उसे पसंद था।

थोड़े समय मे जब उसे पता चला कि अखिल भले ही फिलहाल उसे अकेला छोड़ कर दूर थे पर उनकी प्यारी निशानी वो अपने में समेटे है तो वो खुशी से झूम उठी।

जब आएंगे तो इन्हें सरप्राइज दूंगी,नन्हे अखिल का तोहफा देकर,वो मन ही मन सोच शर्मा जाती।

अखिल को गए आठ माह हो चुके थे।जब भी उनकी छुट्टी approve होतीं, कोई संकट आ जाता और छुट्टियां कैंसिल हो जातीं।अचानक एक दिन पता चला उन्हें युद्ध के लिए जाना होगा।

नेहा का इतने दिन रखा धैर्य आज जवाब दे गया।पहले दिन उसने अखिल को फ़ोन पर अपने आने वाले बच्चे की ख़बर दी।वो तो बहुत खुश था ये जानकर,उसने नेहा को तसल्ली बंधाई:मैं बहुत जल्दी तुम दोनों के पास होंगा, तुम माँ का ध्यान रखना और अपना भी।

नेहा को लेबर पेंस शुरू हो गए थे,माँ उससे कहती,अपना ध्यान रखा करो ,डॉक्टर होने का मतलब ये नहीं कि खुद कभी आराम ही न करो।

नेहा हंस के कहती:मां,फौजी की बहू,बीबी हूं, मैं भी फौलादी हूँ।देखना मेरा शेर बच्चा चुटकियों में पैदा होगा।

सच ही कहा था उसने,उसका बच्चा नार्मल डिलीवरी से हुआ नियत समय पर।घर में खुशी की लहर दौड़ गयी लेकिन अखिल से कोई कांटेक्ट नही हो सकता था इस समय।

अगले हफ्ते तक का समय बड़ा टेंशन में निकला और फिर वो घट गया जिसकी कल्पना कोई दुश्मन के लिए भी नहीं करता।अखिल लौटा युद्धभूमि से लेकिन तिरंगे में लिपट कर।

आज इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति की ज्वाला बहुत प्रचंडता से जल रही थी।पूरे राजकीय सम्मान के साथ अखिल के तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर को सलामी दी जा रही थी।

नेहा सफेद कपड़ों में ,सूनी मांग,बिना बिंदी,चूड़ियों के अखिल के अंश को कस कर छाती से चिपकाए उसे सैलूट कर रही थी और धीमे से बुदबुदाई:

तुम फिक्र न करना मेरे फौजी वीर जवान,हमारे इस बच्चे को भी मैं वीर फौजी ही बनाउँगी।तुहारी जलाई ये वीरता की लौ कभी बुझने न दूंगी।


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