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Sangeeta Agarwal

Children Stories Inspirational

5  

Sangeeta Agarwal

Children Stories Inspirational

यादगार ट्रिप

यादगार ट्रिप

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सरकारी प्रतिभा विकास विद्यालय,दिल्ली ,का जूनियर हाईस्कूल का ट्रिप इस बार हिमाचल प्रदेश के सुन्दर प्राकृतिक जगहों पर था,करीब 50 बच्चे और चार अध्यापक,कुछ और चतुर्थ श्रेणी के ,सब मिलकर खूब एन्जॉय कर रहे थे।


आज वो सब "बीर बिलिंग"में थे जो प्रकृति से आच्छादित ,बहुत कम घरों से युक्त एक खूबसूरत जगह थी।सुबह से ही बच्चे,बहुत उत्साहित थे,वहां ज्यादा भीड़ भाड़ न होने के कारण,अध्यापक भी निश्चिन्त थे,बच्चे टोलियां बना कर अकेले भी इधर उधर मस्ती कर रहे थे।राजुल,हर्षित,विजय और मीनल दौड़ते हुए एक ढलान से नीचे उतरे,पास ही एक बहुत बूढ़े बाबा,हाथ में खुरपी लिए,ज़मीन खोद रहे थे और कुछ पौधे उनके हाथ में थे।


बच्चे,उत्सुकतावश उनके पास रुक गए:"नमस्ते बाबा,आप क्या बो रहे हैं",उन्होंने पूछा


दीन दयाल:"आइए बच्चों,आपका स्वागत है,आप सब कहाँ से आये हैं?"

सब बच्चे:"हम दिल्ली से आये हैं,आप इतने वृद्ध हैं ,फिर भी इतनी तल्लीनता से काम कर रहे हैं,ये देखकर हम रुक गए।"

वो हँसे,"उम्र का काम से क्या मतलब बच्चों,बड़ा मजा आता है प्रकृति के संग रहने में..मैं,आम के पौधे लगा रहा हूं।"


बच्चे:"ये कितने वर्ष में बढ़ेगे,मतलब इसमें फल कब लगेगें?"


दीनदयाल:"अमूनन,पांच छ वर्ष में इसमें फल आते हैं.".

बच्चे:"लेकिन..आप तो तब तक....,कहते कहते चुप हो जाते हैं..."


वो उनका मतलब समझ कर हंस पड़ते हैं.."मैं तब तक जिंदा रहूं न रहूं,ठीक समझा बच्चों,पर तुम जैसे प्यारे बच्चे तो होंगे,वो खाएंगे और मुझे स्वाद मिल जाएगा,चाहे यहां या परलोक में..."


बच्चे आश्चर्य से उन्हें देखते हैं..

"अच्छा बच्चों बताओ,ये मनुष्य योनि हमें कब मिलती है?"

मीनल झट बोली:"चौरासी लाख योनियों में भटक कर,पिछले दिनों ही टीचर ने बताया था।"


"शाबाश,"दीनदयाल बोले,


"और तुम जानते हो,वृक्ष योनि सबसे कठिन मानी जाती है,इसमें आप जड़ होते हैं,इधर उधर हिल भी नहीं सकते लेकिन आपने कभी ध्यान दिया वृक्ष कितना परोपकार करते हैं सब पर.."

राजुल ने तुरत उत्तर दिया:"वृच्छ कभी न फल भको,नदी न संचे नीर"

यानि पेड़ अपने फल कभी नहीं खाते और नदियां अपना पानी कभी नहीं पीतीं।"


दीनदयाल खुश थे कि इन बच्चों की अच्छी ,पढ़ाई होती है,काफी समझदार बच्चे हैं।उन्होंने बताया कि सारी प्रकृति ऐसी ही है जो हमें हर पल,त्याग करना सिखाती है,झुकना बताती है।हर्षित ,जो बहुत देर से चुप था,बोला,दादा जी ,मैं कविता सुनाऊं..

वो हँसे,जरूर बेटा...

हर्षित:"फूलों से तुम हंसना सीखो,भौरों से तुम गाना..

फिर सारे बच्चे मिल के गाने लगते हैं..."


"तो तुमने देखा,बच्चों,जड़ योनि में जन्म लेकर भी पेड़ हम पर कितना बड़ा उपकार करते हैं,फलदार वृक्ष लगातार झुकता ही जाता है और एक तरफ हम मानव जो सबसे उच्च कोटि में आते हैं,कैसे अपने थोड़े से फायदे के लिए,इस प्रकृति को नष्ट करने में लगे हुए हैं।

पृथ्वी पर जितना भी संहार हो रहा है,कभी सूखा,कभी बाढ़ की स्थिति बनती है,ये अंधाधुंध पेड़ों की कटाई की वजह से होता है,तुमने देखा होगा अब मौसम भी पहले जैसे नहीं होते,गर्मी में भयंकर गर्मी और सर्दियों में बहुत अधिक सर्दी पड़ती है,ये भी तो वृक्षों की कमी से ही होता है।"


फिर दादा जी ,"सरकार कोई नियम क्यों नहीं बनातीं",विजय बोला


"अरे बेटा,नियम बनाये जाते हैं लेकिन नियम पालन न किये जायें तो उनका क्या फायदा,ये तो अपनी समझ की बात है",दादा जी बोले..

"अब मैं ये सब करता हूं क्यंकि मुझे अपनी और सबकी फिक्र है।क्या आप लोग जानते हैं कि अफ्रीका के जंगलों में एक बहुत प्रसिद्ध ज़ू है,जिसमें लोग सबसे खरनाक जीव को देखने जाते हैं..." दादा जी ने कहा


बच्चे उत्सुकता से बोले:"आप गए हो वहां?"


दीनदयाल:"गया तो नहीं पर सुना है,वहां घुसते ही एक बहुत बड़ा शीशा/आईना लगा है और ऊपर कैप्शन लिखा है:"दुनिया का सबसे खतरनाक जीव""


बच्चे हँसने लगते हैं साथ ही सोच में भी पड़ जाते हैं।


सच ही तो है,मनुष्य से बड़ा खतरनाक जानवर और कौन सा होगा जो इतना विवेकशील होते हुए भी अपने ही पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहा है,इन प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करके।भगवान ने हमें इतनी दयालु प्रकृति दी है जिससे हमें फल,फूल,औषधि,फर्नीचर,कागज़ और असंख्यों उपहार मिलते हैं,कितने ही जीव जंतु हैं जिनके होने से प्राकृतिक तंत्र चलता है पर सब धीरे धीरे विलुप्त हो रहे हैं क्योंकि मानव अपने स्वार्थ में अंधा हो चला है।अगर प्रकृति और मनुष्य का संतुलन इसी तरह बिगड़ता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब ये हरी भरी शस्य श्यामला धरती बंजर में बदल जाएगी।


इतने में उन्हें ढूंढते हुए,दूसरे लोग भी वहीं आ गए।बच्चों ने सबको,अध्यापक सहित,दादाजी से मिलवाया,वो सब भी बहुत खुश हुए।


दादा जी ने कहा:"आओ,आप सबको मैं अपनी पत्नि सरला से मिलवाता हूँ।"


उन्होंने देखा,वहां से कुछ दूर सड़क किनारे,एक वृद्धा स्त्री,सड़क के किनारे पौधे लगा रही थीं।


मीनल:(आश्चर्य से)"क्या दादी जी भी ये ही काम करती हैं?"


दीनदयाल:"ये पिछले बीस साल से,मीलों दूर तक पेड़ लगा चुकी है।"


सरला:(उसे बीच में टोकते हुए)"पेड़ नहीं वो सब मेरे बच्चे हैं।"


सब बच्चे:(आंखे फाड़े")बच्चे...??वो कैसे"


दीन दयाल:"लम्बी कहानी है उसकी,क्या आप सब सुनना चाहोगे?"


सभी ने समवेत स्वर में कहा,"क्यों नहीं दादा जी,हम यहीं बैठ जाते हैं।"


उन्होंने बताया:"हम राजस्थान के एक सुदूर गांव के रहने वाले थे,जब मेरी बींदड़ी नई नई आई थी,बहुत खूबसूरत थी,फिर इसके पहली औलाद हुई जो बेटी थी जिसे मेरे दकियानूसी परिवार ने खत्म करा दिया,धीरे धीरे,एक लड़के की चाह ने कितनी ही बार,मेरी नन्ही जान की जिंदगी लील ली।एक समय ऐसा आया कि मेरी पत्नि,लगातार होते इस अन्याय से बिल्कुल मृतप्राय हो चली तो किसी तरह,हम वहां से भाग निकले और फिर भगवान ने हमें कभी औलाद ही न दी।

एक बार,मेरी पत्नि ने एक पौधा लगाया,वो बड़ा होता गया और इसका लगाव उससे बढ़ता गया और इसके गिरते स्वास्थ्य में सुधार आता गया बस तभी से ,ये सड़क किनारे कितने ही पेड़ लगाती है,वो सब हमारी औलाद जैसे हैं।उनको पानी देना,समय पर सींचना,गुड़ाई निराई करना,उन्हें जंगली जानवरों से बचाना,सब हमारा काम है।"


बच्चे बहुत रोमांचित हो रहे थे ये सब जानकर,आज तक उन्होंने इस तरह की न कोई बात सुनी थी न देखी थी।


राजुल बोला:"दादा जी,हमारे प्रधानाचार्य बता रहे थे कि आजकल जन्मदिन और शादियों में उपहार के तौर पर छोटे पौधे देने का रिवाज़ है।"


दीनदयाल:"ये तो बहुत अच्छी सोच है,साथ ही आप लोग एक और काम भी कर सकते हैं .."


सबने एक साथ पूछा:"वो क्या दादाजी??"


वो बोले:बेटा,"आपके घर में आम,जामुन जैसे फलों की जितनी भी गुठलियां होती हैं, उन्हें इकठ्ठा करके बारिश के मौसम में हाइवेज पर जाते हुए,उन्हें गढ्ढे में डालते रहें,वो वहीं की जमीन में दब कर अंकुरित हो जाएंगी और उनका वृक्ष बन जायेगा।"


बच्चे बहुत खुश और उत्साहित थे,आज से पहले कितनी ही बार,उन्होंने,पर्यावरण दिवस मनाया था,वन संरक्षण की पेंटिंग प्रतियोगिता,कहानी कविता प्रतियोगिता में भाग लिया था पर अगले ही दिन सब कुछ भूल जाते थे पर आज की बात उनके मानसपटल पर गहराई से अंकित हो गई थी।


दादा जी ने बताया कि बेटा हमें,इन प्राकृतिक संसाधनों को दादा लाई सम्पत्ति की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए वरन इसे ,इस तरह सुरक्षित रखना चाहिए जैसे हमने ये अपने पूर्वजों से उधार लिया हो और अपनी अगली जनरेशन को इसे सौंपना भी है।


बच्चों को ये उदाहरण बहुत पसंद आया,उन्होंने दादाजी से वायदा किया:हम आज की ये यादगार ट्रिप,उससे मिली सीख और आप दोनों को कभी नहीं भूलेंगे।

दिल्ली जैसे शहर में,जहां आधुनिकता का सब समान,संसाधन मौजूद हैं,वहां औधोगिककरण की वजह से ऑक्सीजन शॉप्स भी खुल गए हैं,लोगों को शुद्ध हवा,पानी खरीदना पड़ता है।

अगर हालात न सम्भले तो स्थिति दिनों दिन बदतर होती जाएगी।आज वहां से लौटते वक्त,सारे बच्चों ने प्रतिज्ञा ली कि वो इस ट्रिप से सीखी बातें,सबको महानगर में सिखाएंगे और घर घर तक ये सन्देश पहुंचाएंगे कि


वन हैं तो हम हैं...।



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