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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

प्रभु तेरा हार्दिक आभार

प्रभु तेरा हार्दिक आभार

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मेरी श्रीमती को दुनिया के बाकी लोगों की तरह ईश्वर से बड़ी शिकायत करते सुनता हूं कि ईश्वर ने मुझे इतनी सारी समस्याएं दी हैं।लोग कितने आनंद में अपनी जिंदगी बिता रहे हैं एक मेरे सामने मुसीबतों का अंबार लगा रहता है।ये तरह-तरह की बीमारियां और अच्छी चीज तो एक भी नहीं।मेरी जैसी बुरी किस्मत वाली कोई दूसरी औरत चिराग लेकर ढूंढने पर भी न मिलेगी।

मेरे लाख समझाने और ईश्वर के द्वारा हमें दिए गए अतुल्य-अमूल्य वरदानों के बारे में याद दिलाता तो वह एक नहीं अनेक मीन- मेष निकालती।पति होने के नाते एक मेरा उत्तरदायित्व बनता है कि मैं उससे सहमति के प्रतीक मौन ‌व्रत को धारण कर लूं। अन्यथा वाक युद्ध में अपने ही नहीं अपनी पिछली सात पुश्तों के अवगुणों का संकीर्तन उसके श्रीमुख से श्रवण करूं।

आज तीन जून 2021 दिन शुक्रवार मेरे घर के आंगन की खुली अलमारी में कबाड़ से भरी बोरी में से उड़ती पीली बर्रों पर मेरी नजर पड़ी।तो इस भाव से ये कभी किसी को काट सकती हैं । मैंने एक लम्बे बांस की मदद से बोरी गिरा दी।कबाड़ के बीच से बर्रें निकलीं और उनका छत्ता धराशायी हो गया। संयुक्त चक्षु की स्वामिनी बर्रों ने उनका घर बिगाड़ने वाले शत्रु अर्थात मुझे तीन-चार सर्वरों ने अपने डंक का शिकार मुझे बना डाला।

श्रीमती को तुरंत जानकारी मिली और उन्होंने तुरंत केरोसिन लगाकर लोहा रगड़कर मुझे मेरी शारीरिक वेदना को कम कर दिया। लेकिन बर्रों का छत्ता जिसके दो टुकड़े हो गए थे और जिन पर कई - कई बर्रें चिपकी थीं। अब छत्ते इन दोनों टुकड़ों को उठाकर फेंकने की हिम्मत जुटाकर मैं श्रीमती की सहमति के लिए उनके श्रीमुख की ओर ताकता पर तिरछी नजरों को देख घबरा जाता।

मैंने रिरियाती आवाज में कहा-"अब ईश्वर स्वयं तो छत्ते के इन टुकड़ों को तो आएंगे नहीं।केवल वे मुझे प्रेरित कर रहे हैं।पता वे तुम्हारे मन में मेरे द्वारा यह कार्य सम्पन्न किए जाने का श्रेय प्राप्त करने की स्वीकृति का भाव क्यों नहीं जागृत कर रहे हैं।"

"तुम तो रोज भगवान के वरदान गिनाते रहते हो। देखो आज कौन सा वरदान मिलता है? एक किस्त तो तुम्हें मिल ही गई है।"-श्रीमती जी व्यंग्यात्मक लहजे में बोलीं।

इसी बीच एक चमत्कार हुआ। पता नहीं एक विचित्र सी चिड़िया कहां से प्रकट हो गई और दो बार में छत्ते के दोनों टुकड़े उठाकर अंतर्ध्यान हो गई।

एक बेचारा पति पत्नी से जीत की मात्र कल्पना ही कर सकता। मैं यह बिल्कुल नहीं कह रहा कि मेरी जीत हुई अगर कोई पूछना चाहे तो कह सकता हूं कि मेरी न सही मेंरे विश्वास की जीत हुई है।

मैं सदैव की भांति ईश्वर की कृपाओं के लिए उसका कोटि-कोटि हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं।


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