Nisha Singh

Abstract

4.7  

Nisha Singh

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पंछी

पंछी

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 चेप्टर -2 भाग-3

‘आज मैं खुद ही उसे बोल दूंगी देखना तू… बस’ कहते हुए मैंने अपना हाथ टेबल पर दे मारा।

‘मैं भी तेरे साथ चलती हूँ ’ साथ चलने के लिए तो वह ऐसे तैयार हो गई जैसे मैं अपने दिल की बात कहने नहीं मखाने लेने जा रही हूँ।

‘ठीक है... चल’

साथ तो चल दी पर उसके भाषण कभी खत्म नहीं होते।

‘देख तू डरना बिल्कुल भी मत मैं हूँ तेरे साथ…’

मैंने बस सर हिला दिया।

‘वैसे तू कहेगी कैसे? मेरा मतलब शुरुआत कैसे करेगी?’

‘कुछ नहीं... किसी काम का बहाना लगाने की सोच रही हूँ, कह दूंगी थोड़ा हेल्प कर दो प्लीज़… मना थोड़े ही करेगा।’

‘वाह... यार, मान गई।’

मैंने जवाब में मुस्कुरा दिया।

‘यार हम बारात लेकर तो निकल आए पर दुल्हन का घर तो पता ही नहीं है। बारात लेकर जाएं कहाँ?’

मेरे मुस्कुराने के जवाब में ये सुनने को मिलेगा ये तो मैंने सोचा ही नहीं था। वैसे सच ही था, हम दोनों चले तो जा रहे थे पर ये नहीं पता था कि रोहित है कहाँ, हमें जाना कहाँ है किला फतेह करने? एक बार को तो मुझे गुस्सा आया फिर रह गई, क्या करती उस पर गुस्सा कर के? क्योंकि अभी गुस्सा करना जरूरी नहीं था रोहित को ढूंढना जरूरी था। समझ में नहीं आ रहा था जाएं कहाँ फिर अचानक ही मुझे याद आया कि रोहित जाते वक़्त भी मुझे बाहर वाले गेट पर ही खड़ा मिलता है।

‘मुझे पता है जाना कहाँ है?’ मैंने कहते हुए जल्दी जल्दी चलना शुरू कर दिया। थोड़ी दूर चल ही पाए थे कि वह वहीं खड़ा दिखाई दिया जहाँ रोज खड़ा मिलता है। शायद,मेरे इंतिज़ार में…

‘ओये,ये तो यहाँ खड़ा है जा के बोल दे जल्दी से।’ मुझसे ज्यादा जल्दी तो अंशिका को थी।

‘अरे…जा रही हूँ ।’ मैं थोड़ा धीरे-धीरे चलने लगी तो उसने पीछे से मुझे धक्का मार क्रदया। मैं आगे तो बढ़ रही थी पर कदम न जाने क्यों भारी होते जा रहे थे। इतने में रोहित की नज़र मुझ पर पड़ी, हमारी नज़रें मिली इस बार रोहित ने नज़रें नहीं फेरी मुझसे। मैं आगे बढ़ते हुए उसे देख रही थी और वो मुझे। दिल की धड़कने तेज़ी से चल रही थी कि शायद धड़कनों की आवाज़ बाहर तक सुनाई दे रही हो। जैसे ही मैं 


उसके करीब पहुंची, मेरी हिम्मत जवाब दे गई। उसके सामने से सर झुकाकर निकल गई। अब तो जो तेजी धड़कनों में थी वो पैरों में आ गई। कॉलेज का गेट क्रॉस करते ही मैं काफी दूर निकल आई।

‘अरे… रुक, कहाँ भागी जा रही है?‘ पीछे से उसी चुड़ैल की आवाज थी। मैंने पीछे मुड़ के देखा और मैं रुक गई।

‘तू तो कहीं डूब के मर जा, नाक कटवा दी मेरी’। गुस्से के मारे उसका मुंह तमतमाया हुआ था।

‘अरे यार मैं गई तो थी पर थोड़ा नर्वस हो गई।’

‘भाड़ में जा... नर्वस हो गई,ऐसे ही मरती रहियो तू।’

‘देख अंशिका... ज्यादा गुस्सा मत कर वरना दिमाग फट जाना है तेरा।’

मैंने बड़े प्यार से समझाने की कोशश की पर वह नहीं मानी। पूरे रास्ते बस बड़बड़ करती हुई मुझे कोसती रही। बीच में एक दो बार मिस मिसा कर मुझे नोच भी लिया,चुड़ैल कहीं की। वो तो अच्छा है कि उसका घर आ गया और वह चली गई पर जाते जाते भी मानी नहीं।

‘तू कुछ नहीं कर पाएगी, तुझसे कुछ नहीं होगा मैं ही कुछ करती हूँ।’ कहते हुए आगे बढ़ गई। मैंने भी चैन की सांस ली कि चलो बला टली।धीरे धीरे मैं भी अपने घर पहुंच गई। चलते वक़्त भी यही सोच रही थी कि मैं कभी कह भी पाऊंगी अपने दिल की बात या अंशिका सच कह रही है मुझसे कुछ नहीं होने वाला । 


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