पिण्डारी ग्लेशियर ट्रैक
पिण्डारी ग्लेशियर ट्रैक
पहाड़ और मेरा पुराना नाता है। मैं पहाड़ों में पली बढ़ी हूॅ॑ लेकिन पर्वतारोहण करने का अवसर मुझे एम सी ए में मिला। मेरा पहला ट्रैक पिण्डारी ग्लेशियर ट्रैकिंग था। बागेश्वर में सरयू और गोमती नदी के संगम के दृश्य ने ट्रैकिंग के उत्साह को बढ़ा दिया।
कुल अठारह थे हम सब मिलाकर जिसमें चार हमारे प्रोफेसर और चौदह हम विधार्थी लोग। यह पूरे दस दिनों का ट्रैक था। हम लोग सुबह नाश्ता कर के पूरे दिन भर ट्रैकिंग करते और शाम ढले पहॅ॑च कर खाना बनाते और वहां रात को विश्राम करते। अगली सुबह- सुबह फिर निकल जाते। पीठ पर पिठ्ठूबैग (रैकसैक) रहता। रास्ते में कहीं कहीं पर रुककर मैगी भी बनाते व खाते थे।
लोहारखेत, धाकुडी, खाती, द्वाली, वाच्छम, फुरकिया (ज़ीरो प्वाइंट) होते हुए पिण्डारी ग्लेशियर पहुॅ॑चे। हमें हिम से ढके ऊॅ॑चे पर्वत शिखर मिले। रास्ते में सुन्दरढुंगा वैली ( घाटी) भी पड़ी जहां से मकतोली शिखर ( पीक) के लिए ट्रैकिंग होती है। रास्ते में कई मनमोहक जलप्रपात मिले। कुछ जलप्रपात तो ऐसे थे जिनका पानी नीचे गिरता गिरता जम रहा था। पिण्डर नदी हमारे साथ चलती रही और क्यों न हों? आखिर हम पिण्डर नदी के उद्गम स्थल ही तो जा रहे थे। हमें रास्ते में लंगूर भी मिले।
खाती से हमारे साथ एक काले रंग का कुत्ता पिण्डारी ग्लेशियर तक गया। हम सब ये बात कर रहे थे कि जैसे पाॅ॑चों पांडवों के साथ आखिर तक एक कुत्ता गया था। हमारी कहीं ये आखिरी यात्रा तो नहीं? इसी तरह मस्ती करते हम पाॅ॑चवें दिन पिण्डारी ग्लेशियर पहुॅ॑चे। दशहरा था उस दिन, जब हम पिण्डारी ग्लेशियर पहुॅ॑चे थे। वहां की छटा देखते ही बनती थी। जहां तक नज़र जाए बर्फ ही बर्फ दिखाई दी। हम फुरकिया से चलकर सुबह सात बजे ही पिण्डारी ग्लेशियर पहुॅ॑च गए थे क्योंकि वहां पर दस बजे के बाद रुकना सही नहीं होता। ऐसा इसलिए कि बर्फ का तूफान ( एवलांच) दस बजे के बाद तकरीबन रोजाना ही आता था। और हमने देखा भी कि हमारे लौटते समय करीब पौने दस बजे मौसम बदलने लगा था , सूरज बादलों की ओट में जा चुका था और तेज हवाएं चलने लगी थीं। हमने पिण्डारी ग्लेशियर का मुहाना भी देखा जो पिण्डर नदी का उद्गम स्त्रोत है।
लौटते समय वाच्छम में हमें पाॅ॑च साल की दुर्गा, उसका चार वर्षीय भाई भोला और सात वर्षीय भाई चंदन मिले। दुर्गा हम लड़कियों से बिंदी मांग रही थी जो हम चारों लड़कियों में से किसी के भी पास नहीं थी। बच्चों को हमने बिस्किट्स दिये। वाच्छम में हमें फूलों से आच्छादित धरा देखने को मिली। पिण्डारी ग्लेशियर का ट्रैक तो दस दिनों में पूरा हो गया परंतु उसकी यादें सभी के जहन में ताज़ा हैं। यह मेरे जीवन का अविस्मरणीय ट्रैकिंग अनुभव है।