Priyanka Saxena

Drama Inspirational Children

4.2  

Priyanka Saxena

Drama Inspirational Children

जाके पाॅ॑व ना फटे बिवाई

जाके पाॅ॑व ना फटे बिवाई

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"कमला, मांजी को खाना-पीना कमरे में ही दे देना।" रीना ने हाउस मेड कमला से कहा।

"जी मेमसाहब।" कमला ने रोजाना की तरह खाना बनाया

एक बजे तक चुनमुन और विक्की भी स्कूल से आ गए। दोनों के कपड़े बदलकर हाथ- पांव धुलाकर डायनिंग टेबल पर खाना लगाकर सबको बुलाया।

"अरे आंटी! आप दादी को बुलाकर नहीं लाई। ठहरो मैं बुला लाता हूॅॅ॑।" चुनमुन ने कहा तो विक्की ने बड़े भाई होने का फर्ज़ निभाते हुए कहा," तू रुक! मैं लेकर आता हूॅ॑ दादी को।"

" कोई कहीं नहीं जाएगा। दादी को खाना उनके रूम में ले दिया है, वहीं खा रहीं हैं वो। तुम लोग चुपचाप अपना लंच करो।" रीना ने कहा

"दादी की तबीयत ठीक नहीं है मम्मी क्या?" दोनों बच्चे एकसाथ बोले

"हां थोड़ी तबीयत ठीक नहीं है, खांसी हो गई है। तुम लोग दूर रहना उनसे कहीं तुम्हें भी ना लग जाए उनसे।" रीना ने कहा तो बच्चों ने सिर हिला कर हां कहा

बच्चे तो बच्चे होते हैं थोड़ी देर में दादी के रूम में पहुंच गए। दादी सो रहीं थीं तो वापस आ गए।

रीना ने देख लिया तो फिर मना किया। खैर शाम को मोहित के ऑफिस से आते ही मांजी को डाॅक्टर के पास भेजकर दवा मंगा ली।

दवा से मांजी को थोड़ा आराम आया, लेकिन रीना ने मांजी की खासी ठीक ना होने तक बच्चों को उनके पास बैठने तक पर रोक लगा दी।

बच्चों ने कहा," दादी के साथ खेलना हमे पसंद है।"

रीना ने कहा," क्या मेरी पसंद , मेरी पसंद लगा रखी है! जो कहा जा रहा है वो मानो। मेरी पसंद चलेगी तुम्हारे भले के लिए कह रही हूॅ॑।"

मोहित ने कुछ कहना चाहा तो उसे यह कहकर रोक दिया कि पहले इनकी खांसी पूरी तरह सही होने दो तभी बच्चों को पास भेजूंगी‌। इस समय फरवरी के महीने में जाती हुई ठंड में इनको खांसी हो रही है, कहीं टी बी तो नहीं हुआ जो हर समय खांसती रहती हैं।

यह सब बोलकर मांजी के खाने-पीने के बर्तन तक अलग कर डाले। मोहित घर की सुख शांति के लिए चुप रहा परंतु अपनी मम्मी का टी बी का टेस्ट करवाया और सभी टेस्ट करवाने के बाद जो नतीजा सामने आया वो ये था कि मांजी को इस मौसम में वातावरण में परागकणो के बढ़ने के कारण खांसी आ रही थी जो एंटी एलर्जिक दवाइयों को देने पर धीरे धीरे कम होने लगी। 

मम्मी की तबीयत सही होते देख मोहित ने रीना को समझाया,"मम्मी बिल्कुल ठीक हैं। मौसमी एलर्जी की वजह से खांसी हुई थी जो कम हो रही है।अब तो उन्हें सबके साथ उठने बैठने दो और एक से बर्तनों में हमारे साथ खाना खिलाना शुरु कर दो।"

"तुम्हें बस अपनी मम्मी की पड़ी है। बर्तन अलग ही रहने दो इनके अभी तो।" कहकर चुप करा दिया रीना ने


धीरे धीरे मार्च का महीना बीतने लगा। मांजी को नाममात्र की खांसी रह गई थी परंतु बच्चों को मिलने की मनाही थी और खाना भी उनको उनके रूम में ही दिया जाता है।

इधर रीना की मम्मी अप्रैल के शुरुआत में रीना के घर रहने के लिए आने वाली हैं। रीना ने अपनी मम्मी के स्वागत की ढेरों तैयारियां शुरू कर दी। जिस दिन वो आने वाली हैं, घर में उठती सुगंधित खाद्य सामग्री की खुशबू से रास्ता चलते राहगीरों के नथुने फड़कने लगे।

ऐन शाम को जब उनकी फ्लाइट लैंड करी तब ही घनघोर घटा घिर आई और जमकर बारिश होने लगी। कैब से निकलते निकलते घर के अंदर पहुंची तब तक ताबड़तोड़ बरसात की लहर से भीग गईं माला जी। खैर जल्दी से मम्मी को ड्राइंग रूम में बिठा कर रीना ने तौलिया दिया, सिर पोंछते पोंछते माला जी को एक बार तो छींकों की झड़ी सी लग गई, छींक रुकी तो माला जी को हल्की खांसी आने लगी।

सुबह से चुनमुन और विक्की जो नानी के आने पर बहुत खुश थे वो नानी को इस हालत में देखकर परेशान हो गए।

माला जी को वहीं छोड़कर किचन की ओर गए, देखा उनकी मम्मी अदरक वाली बढ़िया गरमागरम चाय बना चुकी हैं और कप में छानने वाली हैं।

"मम्मी, एक मिनट रुको, इस कप में चाय मत छानो। प्लेट भी दूसरी लो मम्मी।" विक्की बोला

"क्यों क्या हुआ बेटा? गंदा है क्या कप? रीना ने पूछा

" मम्मी, नानी को इस कप में नहीं उस कप में चाय दो। " उंगली से इशारा करते हुए चुनमुन बोली

चुनमुन की नजर का पीछा करती रीना की नजर कप पर पहुंची। क्या देखती है वो मम्मी जी के नीचे की तरफ रखें बर्तनों की ओर चुनमुन ने इशारा किया है।

"पर इन बर्तनों में क्यों?"

"दादी को भी तो खांसी में कब से आप इन्हीं बर्तनों में खिला पिला रही हो। नानी को भी खांसी जुकाम है तो उनके बर्तन अलग कर दो।" विक्की बोला

"हां, भैया हम नानी के पास जाएंगे भी नहीं। उनके रूम में बिल्कुल नहीं जाएंगे।" चुनमुन बोली

"अरे नहीं बच्चों! नानी को बारिश में भीगने की वजह से खांसी-जुकाम हो गया है और कुछ नहीं!" रीना ने बच्चों को समझाने की भरपूर कोशिश की पर बच्चों ने यह कहकर सिरे से उसकी बात खारिज कर दी कि दादी को भी मौसम की वजह से खांसी हुई थी तो आपने उनके बर्तन अलग कर दिए थे तो नानी को क्यों नहीं?

बच्चों की बात सुनकर रीना को अपनी इतने दिनों की करनी ऑ॑खों के आगे घूमती नजर आई।

अब आज‌ जब अपनी मम्मी पर‌ आन पड़ी तो रीना अपने बनाए झूठे जाल में तड़प रही है, कसमसा रही है।

सच ही कहा गया है ,जाके पाॅ॑व ना फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई! बच्चों ने मम्मी को आईना दिखा दिया...

रीना की मम्मी को‌ जब सारी बातें पता चलीं तो रीना को कसकर डांट लगाई उन्होंने। अपनी समधन‌जी से माफी मांगी उन्होंने रीना से भी माफी मंगवाई।

जितने दिन माला जी वहां रही समधनजी ‌के साथ ही रहीं माला जी और हां, नानी का जुकाम ठीक हुआ फिर तो बच्चों ने दादी-नानी दोनों के साथ खूब मस्ती की। अब बेरोकटोक दादी के रूम में फिर से बच्चे महफ़िल जमाने लगे हैं...

दोस्तों, आशा है आप भी इस बात से सहमत (इत्तेफाक रखते) होंगे कि जब तक स्वयं पर नहीं आती । कहानी पसंद आई हों तो कृपया लाइक कमेंट और शेयर कीजिएगा। आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा। ऐसी ही अन्य खूबसूरत रचनाओं के लिए आप मुझे फाॅलो भी कर सकते हैं। धन्यवाद।


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