सबक
सबक
बात दो साल पहले की है तब मेरा प्रमोशन किसी और को दिया जा रहा था। मैंने विरोध किया क्योंकि बाॅस के मुंहलगे चमचे को पदोन्नति के लिए मेरी बलि दी जा रही थी। मेरी कोई ग़लती ना होते हुए भी नौकरी से मुझे निकाला गया।
मैं जो कर्म को ही सेवा मानकर इस कम्पनी में वर्कोलिक जानी जाती थी इस बात को सहन ना कर पाई और अवसाद में चली गई। तीन महीने तक किसी को घर में बताया नहीं। एक दिन अचानक घर से पापा आए और उन्हें सभी वस्तुस्थिति पता चली तो वो मुझे घर ले आए।
घर वापसी से मेरी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल गई।
मेरे परिवार ने मुझे अवसाद से निकाला, मेरे खोए आत्मविश्वास को जगाया और अब मैं उस पोस्ट से भी अच्छी जगह नौकरी कर रही हूॅ॑।
कल ही मेरी पुरानी कम्पनी के बाॅस मुझे मिलने के लिए बाहर दो घंटे प्रतीक्षा कर रहे थे और मुझे सीनियर पोजीशन पर देखकर उनका मुंह ज़रा सा हो गया था। मेरी साइन से उनका काम बनने वाला था तो चिकनी-चुपड़ी बातें कर रहे थे। मैंने जो सही फर्म थी उसे ही कांट्रेक्ट दिया। शायद ऊपरवाले ने अपने हिसाब से उनको सबक दे दिया।