इज्ज़त की दो रोटी
इज्ज़त की दो रोटी
गहराती रात और काली हो गई, काॅल सुनकर मैं जस की तस बैठ गई।
मोनू ने पूछा,"पापा, कल आ रहें हैं ना मम्मी?"
फिर मेरे उदास चेहरे ने मानो छह साल के बेटे को स्वयं ही जवाब दे दिया, इतनी सी उम्र में ही परिपक्व हो गया मेरा बच्चा... बचपना खो रहा है यहां उसका, बस अब और नहीं... मैंने लैपटॉप खोलकर दो टिकट अगले दिन के बुक कराए, ऑफिस में कन्फर्म किया अपनी ज्वानिंग को और अगले दिन बैग पैक कर हम माॅ॑ बेटे निकल पड़े इस शहर से दूर, गगन से दूर...
मैं, मनीषा, आज से सात साल पहले गगन से मेरी अरेंज्ड मैरिज हुई थी। माता-पिता ने सब कुछ देख कर लड़का पसंद किया था। शादी के एक साल के भीतर मुझे मातृत्व का सुख मिला, मोनू मेरी गोद में खेलने लगा।
मेरा नारीत्व साकार और परिपूर्ण हो गया जब मैं माँ बनी। मेरा दिन ,सुबह, शाम सभी गुजरने लगे मोनू को बड़ा करने में। मैंने अपनी जॉब मोनू के पैदा होने से पहले ही छोड़ दी थी।
इन सब में थोड़ा बहुत फर्क तो पति पत्नी के रिश्ते में आ ही जाता है, हम भी अछूते न रहे परन्तु धीरे धीरे गगन की शाम ज्यादा लम्बी होने लगी। बाहर रहने लगा वो यह कहकर कि वर्कलोड ज्यादा है। मैं नादान अपने और मोनू में खुश रही , व्यस्त रही और गगन ने अपनी खुशी बाहर ढूंढ ली। मुझे कहीं कहीं से खबरें मिल रहीं थीं पर मुझे अपने इतने सालों के रिश्ते पर विश्वास था तो सुन कर भी अनसुना कर दिया।
गगन ने चार दिन पहले ही इतनी बेशर्मी से मालविका के साथ अपने प्यार के बारे में,अपने अवैध संबंधों के बारे में शान से बोला था वो भी मोनू के सामने... और कहा था कि सात दिन बाद मालविका को लेकर आएगा , बेडरूम खाली करने को कहा था... घर के एक दूसरे बेडरूम में शिफ्ट होने को बोलकर कहा था , बहुत एहसानपूर्वक कि तुम्हे और मोनू को जगह दे दूंगा पर मेरे और मालविका के बीच में आने की सोचना भी नहीं...
जलालत, धमकी, चेतावनी, एहसान सभी कुछ था उस दम्भी गगन की बातों में... एक दिन तो मैं सदमे में रही फिर हिम्मत कर पुराने ऑफिस कॉल की फिर उसी दिन जाकर उनसे मिली। मेरे अनुरोध पर मेरे बॉस ने मुझ पर विश्वास जताते हुए दूसरे शहर की ब्रांच में मुझे ज्वाइन करने का अपॉइंटमेंट लेटर दे दिया क्योंकि मुझे इसी ऑफिस में सात साल पहले बेस्ट एम्प्लॉई का अवार्ड कम्पनी वाइस प्रेजिडेंट से मिला था।
आज गगन आने वाला है , मैंने उसका घर ही छोड़ दिया... जब साथ रहने की कोई वजह ना रहे, रिश्ता नासूर बन जाए तो काट कर फेंकना ही बेहतर है, गले-सड़े रिश्ते बास ही मारते हैं... बेटा भी अब खुश है उसे भी पिता के रूप में वो आदमी नहीं चाहिए था जो उसकी माॅ॑ की इज्ज़त को पल-पल तार-तार करता था..अब पल पल नहीं मरूंगी मैं!चल पड़े हैं हम माॅ॑-बेटा इस नरक भरी ज़िन्दगी से दूर भले ही कम सही इज्ज़त की दो रोटी खाएंगे...