गुड़िया अनाथालय नहीं जाएगी!
गुड़िया अनाथालय नहीं जाएगी!


"बीना, इधर आना जरा !" कल्याणी देवी ने बहू को पुकारा
"आई मांजी।" बीना ने कहा
इतने में दमयंती देवी बीना के कमरे के दरवाजे तक पहुंच गई थी। अंदर का दृश्य देखकर उनको मानो बिच्छू ही काट गया।
"बीना, तुम फिर से इस मनहूस को गोदी में लेकर बैठ गई! मना किया था तुम्हें मैंने। बात ना मानने की कसम खा ली है तुमने।' गुस्से से बोलती चली गई दमयंती देवी
"रधिया ओ रधिया, कहां मर गई?"
"आई अम्मा जी।" छत से जल्दी-जल्दी सीढियां फलांगती रधिया नीचे कमरे में आ पहुंची। कमरे का नज़ारा देखते ही उसे सब समझ में आ गया।
बीना की गोदी में गुड़िया थी और साथ ही बीना का बेटा और बेटी भी बैठे गुड़िया को प्यार से खिला रहे थे।
"बड़ी भाभी, गुड़िया को मुझे दे दो। " कहते हुए गुड़िया को बीना की गोद से ले लिया
आंगन में अपनी कोठरी में रधिया गुड़िया को ले गई।
दमयंती देवी अपने कमरे में जा चुकी हैं।
बीना को मांजी के बर्ताव का बहुत बुरा लगा। आज उसे किसी निर्णय पर पहुंचना ही है। राजेश के आने पर बात कर ही लेनी है।
बीते एक महीने का घटनाक्रम उसकी ऑ॑खों के आगे चलचित्र की भांति दौड़ गया।
महीने भर पहले तक घर में खुशियां ही खुशियां थीं। बड़ी बहू बीना के दो बच्चे हैं, छह साल का बेटा बंटी और दो साल की बेटी मोना।
पिछले साल देवर सुभाष की शादी शालू से हुई जिसका पूरा महीना चल रहा है किसी भी वक्त डिलीवरी हो सकती है। ऐसे में पड़ोसी शहर में रहने वाले चाचाजी की तबीयत खराब जानकर उनको देखने पिताजी और सुभाष कार से गए। वहां चाचाजी अब ठीक थे।
दिन में ही शालू को लेबर पेन होने लगे। बीना और राजेश उसे अस्पताल ले गए। सुभाष को फोन पर सूचना दे दी।
उल्टे पांव ही उन दोनों को लौटना पड़ा, शाम को लौटते समय एक ट्रक गलत साइड से उनकी कार को ओवरटेक करने के चक्कर में संतुलन खो बैठा और सुभाष की कार को लपेटे में ले लिया। एक्सीडेंट इतना खतरनाक था कि सुभाष और पिताजी की ऑन द स्पाॅट मृत्यु हो गई।
इधर ये खबर आई उधर शालू ने अस्पताल में गुड़िया को जन्म दिया। अस्पताल में शालू के पास ही थीं मांजी और बीना।
खबर सुनकर मांजी बेहोश हो गई, राजेश और बीना के दुख का ठिकाना ना रहा।
अस्पताल में मांजी को जैसे ही होश आया वो शालू के वार्ड में गईं, उसे और नवजात गुड़िया को मनहूस कहने लगी, बहुत भला-बुरा बोलने लगी कि पैदा होते ही पिता और दादा को निगल गई, अपशगुनी, मनहूस, सत्यानाशी कहीं की आदि-आदि...
शालू को उनकी बातों से ही पता चला कि उसके पति सुभाष और पिताजी (ससुर) नहीं रहे। शालू को उसी वक्त हृदयाघात पड़ा और वह इस संसार को और अपनी दुधमुंही बच्ची को छोड़कर चली गई।
यह सब इतना शीघ्र घटा कि किसी को समझने और सम्हलने का समय नहीं मिला। तीनों के क्रिया कर्म के बाद मांजी ने जिद पकड़ ली कि गुड़िया को अनाथालय भिजवा दिया जाए।
मांजी का दुख बहुत बड़ा था परंतु इसमें नन्ही बच्ची का क्या दोष है? बीना बहुत परेशान थी जब भी वह गुड़िया को गोद में लेती मांजी घर की सहायक
रधिया को उसे दे देती।
आज राजेश के आने के बाद उसने उससे अपने मन की बात कही, राजेश को अपने भाई की निशानी की बेहद फिक्र थी। उसने 'हां' कह दिया वह माॅ॑ के फैसले से नाखुश था कि गुड़िया को अनाथालय भिजवा दिया जाए।
राजेश और बीना मांजी के कमरे में गए, पहले तो वह ये बात सुनकर ही भड़क उठी कि गुड़िया, जो उनकी नज़रों में उनके पति, बेटे की खूनी थी, अपनी माॅ॑ को पैदा होते ही खा गई थी , अपशगुनी, मनहूस थी, उसको राजेश और बीना अपनी संतान के रूप में पालें।
"गुड़िया आगे भी फैमिली के लिए अशुभ साबित होगी!" ऐसा दमयंती देवी कहने लगी।
राजेश और बीना, दोनों ने उन्हें बहुत समझाया बताया कि सुभाष और शालू की आखिरी निशानी है, अपना खून है।, हमारे परिवार का अटूट हिस्सा है। हमारी फैमिली गुड़िया के बिना अधूरी है।
बहुत समझाइश और मान- मनौव्वल के बाद पूरे दिल से तो नहीं परंतु मांजी ने ऊपरी मन से हां कर दी।
धीरे-धीरे एक साल बीत चुका है, मांजी को गुड़िया की मनमोहक हरकतें लुभाने लगी हैं अब वे कभी-कभी गुड़िया को गोद ले लेती हैं।
सबसे ज्यादा खुशी बीना को होती है वह अपने तीनों बच्चों को समान रूप से प्यार करती है। शालू, सुभाष की अनमोल धरोहर के रूप में पलती गुड़िया पर अब सभी जान छिड़कते हैं। गुड़िया में मांजी को अब सुभाष का अक्स नज़र आता है।
गुड़िया के पहले जन्मदिन पर मांजी ने बीना और राजेश को अपने कमरे में बुलाया," बीना , तुमने साल भर पहले मेरे हाथों से महापाप करने से बचा लिया। मैं गुड़िया को अनाथालय भिजवाने चली थी अगर तुम ना रोकती तो ईश्वर मुझे कभी माफ नहीं करते। गुड़िया को माता-पिता मिल गए और मैं घर की बड़ी होकर उसको अनाथ बनाने चली थी। सुभाष और शालू के साथ साथ तुम्हारे पिताजी भी कभी मुझे क्षमा नहीं करते। मैं समझ गई हूॅ॑ कि गुड़िया को फैमिली से अलग करने की बात सोचना ही गुनाह था, जो हुआ उसमें इस नन्ही जान का कोई दोष नहीं था। मैं अपने बर्ताव पर बहुत शर्मिंदा हूॅ॑।"
"मांजी, सच है कि गुड़िया का इन सबमें कोई दोष नहीं था और घर की बेटी कभी बेसहारा नहीं छोड़ी जाती है।आपने बहुत सही किया मांजी, फैमिली सर्वोपरि होती है!" बीना की गोद में गुड़िया परी वाली ड्रेस में बेहद खूबसूरत मासूम फ़रिश्ते सी लग रही है।
"चलो माॅ॑, गुड़िया के हाथों से केक कटवा दो।" राजेश बोले
"हां-हां चलो।"
जन्मदिन खूब धूमधाम से मना नन्ही गुड़िया का... बीना के एक सही निर्णय ने मांजी की सोच बदल दी। यहां नई सोच का पुरानी सोच पर अतिक्रमण नहीं हुआ अपितु सच कहें तो मांजी का गुड़िया से वास्तव में पुनर्मिलन हो चुका है।
अपने भाई बंटी और बहन मोना के साथ गुड़िया की किलकारियां घर को खुशियों से परिपूर्ण रखती हैं।
अक्सर देखा जाता है कि किसी के जन्म लेने पर यदि कोई अप्रिय घटना घट जाए तो उसका पूरा दोष उस पर मढ़ दिया जाता है कि कैसे अपशगुनी कदम पड़े हैं! जबकि किसी के जन्म लेने से किसी अप्रिय स्थिति या घटना का कोई सम्बन्ध नहीं होता है। फैमिली में इन सभी अंधविश्वास का स्थान नहीं होना चाहिए।