चित्र बोल उठा!
चित्र बोल उठा!


लोगों से भरा था कमरा पर वहां खालीपन और खामोशी थी, मुनमुन आज जा चुकी थी, सबसे दूर बहुत दूर एक ऐसी लंबी यात्रा पर जो उसे खुद ही तय करनी है। आज उसे माँ की आवश्यकता नहीं है चलने के लिए... दादी भी कुछ नहीं बोल रही हैं, उनके ताने भी मानो गुम हो गए हैं... पापा की आंखों से आंसू रुक नहीं रहें हैं....
मुनमुन की माँ स्तब्ध खड़ी है, उसकी बेटी के साथ ऐसी दरिंदगी किसने, क्यों किया,कौन है वो दरिंदा? सवाल बहुत जवाब नहीं कोई...
मुनमुन की माँ नेहा आठ साल पहले अतीत में चली गई.....
जब शादी के एक वर्ष बाद ही नेहा को मातृत्व का सुख मिला। नेहा के परिवार में सास शांति जी , देवर रोहित और पति संजय हैं। ससुर रामप्रसाद जी मृत्यु संजय की नौकरी लगने के दो साल बाद हो गई थी। घर में नन्हे बच्चे के आने की आहट से सभी बहुत खुश थे परन्तु घरवालों की खुशी ज्यादा दिन नहीं बरक़रार रही जब एक साल की होने के बाद भी मुनमुन बोलना नहीं सीख पाई, हर काम और बच्चों के मुकाबले देर से करते हुए तीन साल की होने वाली थी पर उसे खाना भी नेहा को खिलाना पड़ता था, उसे ना नहलाओ तो वो ऐसे ही बैठी रह जाती, सारे कामों के लिए नेहा पर निर्भर थी।
डॉक्टर को दिखाने पर उन्होंने उसे आटिज्म डिसऑर्डर बताया। ऑटिस्टिक बच्चे की केयर भी अलग तरह से की जाती है, समय देना पड़ता है। नेहा ने देखा कि मुनमुन को पढ़ाई सीखने में रुचि न के बराबर है परन्तु वो ड्राइंग बहुत अच्छी बनती है, देखकर तो वो ऐसा चित्र बना देती कि मानो चित्र बोल ही पड़ेगा ऐसा लगता था। नेहा ने मुनमुन को चित्रों के माध्यम से पढ़ाना शुरू किया।
स्पेशल चाइल्ड की माँ-पिता होने पर नेहा और संजय ने फैसला किया कि वे आगे बच्चा नहीं करेंगे क्योंकि नहीं तो मुनमुन या फिर होने वाले बच्चे की ढंग से केयर नहीं हो पाती । सास शांति जी तब ही से बदल गयीं और नेहा और मुनमुन को जब मन चाहता बुरा-भला बोलती रहती। मुनमुन बेचारी दादी-दादी कहकर उनके पास जाती तो जोर से उसे झिड़क देती। उससे कहती तेरे कारण मेरे घर से रौनक चली गई। रोहित भी अपनी माँ की देखादेखी मुनमुन से बुरा बर्ताव करता, चाचा कहने पर मुंह बन जाता उसका। दादी और चाचा मुनमुन से कोई अपनापन नहीं रखते, प्यार तो छोड़ो तमीज से बात भी करना या उसके लिए कुछ काम भी करना उन लोगों को गवारा नहीं था।
इन सबसे परे मुनमुन को संजय और नेहा दिलोजान से चाहते और प्यार व धैर्य पूर्वक उसको सिखाया करते। उ
सको उसकी प्रोग्रेस से तो अब डॉक्टर भी खुश थे कि मुनमुन बहुत अच्छे प्रकार से सीख रही है ऐसा ही रहा तो कुछ वक़्त बाद शायद सामान्य जीवन जीने लगे।
तभी धक्का लगने से नेहा वर्तमान में आई, उसकी सास उसे हिलाकर कह रही थी, "अब जल्दी से इस को विदा करो घर से। जाते जाते भी तमाशा कर गई अब कितना झेलना पड़ेगा, घर की बात है झटपट इसका दाह-संस्कार कर दो।"
अचानक नेहा के दिमाग में कुछ कौंधा वो दौड़कर मुनमुन के रूम में गई, उसकी टेबल पर से ड्राइंग की कॉपी ले आई। मुनमुन स्पेशल चाइल्ड थी, उसकी ड्राइंग में चित्र बोलते थे , वहां जो दिखा माँ की ऑ॑खों में खून उतर आया...देवर का काॅलर पकड़कर घसीटती हुई पुलिस स्टेशन ले गई, देवर की नजरें सबकुछ बयान कर रहीं थीं।
संजय ने कंप्लेंट दर्ज़ कर सबूत के तौर पर ड्राइंग कॉपी पुलिस को दी। फ़ौरन ही कस्टडी में रोहित को ले लिया गया। मुनमुन का पोस्टमॉर्टम में भी रोहित के द्वारा की गई ज्यादती की पुष्टि हो गई। दो डंडे पड़ते ही रोहित ने कबूल लिया कि मुनमुन का बलात्कार उसने ही किया है और उसके बाद मुनमुन का ज्यादा खून बहा , वो डर गया और उसने गला दबा दिया उसका ताकि उसके साथ ही रोहित का पाप का घड़ा भी फूट जाए। मुनमुन वैसी ही उसकी ऑ॑ख का कांटा थी, पागल लड़की!
चांटे मारते हुए नेहा ने रोहित के मुंह पर थूकते हुए कहा," मेरी मुनमुन पागल नहीं थी, पापी! कम समझती थी परन्तु अब वो ठीक हो रही थी। "
फास्ट ट्रेक अदालत ने रोहित को सश्रम सजा सुनाई। सास की नज़रें शर्म से झुक गईं।
उस दिन घर आकर नेहा फफक-फफककर रो पड़ी, चीख चीखकर कह रही थी," मुझे माफ़ कर दे मेरी बच्ची, तुझे वहशी दरिंदों से बचा नहीं पाई..."
ऐसी रोई कि आसमां हिल गया....संजय ने उसे गले से लगा लिया। बेटी को इंसाफ़ दिला दिया परंतु स्वयं का दिल, घर सभी खाली हो गया उनका...
आटिज्म से पीड़ित बच्चों को प्यार की जरूरत है, झिड़की की नहीं। उनसे अच्छा बर्ताव करने की आवश्यकता है, उनका फायदा उठाने की नहीं! बच्चे दिमाग से कमजोर हो सकते हैं पर उनका शारीरिक शोषण करने वाले वहशी हैं और सजा के पात्र हैं।
दोस्तों, मेरी इस कहानी के बारे में कमेंट सेक्शन में आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा। यदि आपको मेरे ब्लॉग पसंद आए तो कृपया लाइक और शेयर करें एवं अपनी अमूल्य राय कमेंट सेक्शन में साझा कीजिएगा।
ऐसी ही अन्य खूबसूरत रचनाओं के लिए आप मुझे फाॅलो भी कर सकते हैं।
धन्यवाद।
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)