विदाई ऐसी भी!
विदाई ऐसी भी!
"आंटी, आप दीदी के हाथों में मेहंदी लगाकर शगुन की शुरुआत कर दो।" मेहंदी वाली धानी ने मुस्कुराते हुए माला जी से कहा
"हां, मैं अपनी बेटी के हाथों में शगुन की मेहँदी का टीका जरूर लगाऊंगी।" कहते हुए माला जी ने धानी से मेहंदी का कोन लिया आस्था के हाथों में मेहंदी लगाते हुए माला जी की आँखें डबडबा गई परंतु उन्होंने आंचल के कोने से नजर बचाकर पोंछ लिया।
तभी वहां रोहन और उसके दोस्तों ने डीजे शुरू करवा दिया और तेज आवाज़ में गाने की बीट्स पर सभी थिरकने लगे।
माला जी ने शगुन का मेहंदी का टीका लगाकर धानी के हाथ में मेहंदी का कोन पकड़ा दिया और बाहर आकर खाने-पीने का इंतज़ाम देखने लगीं। रह रहकर उनकी आँखें भर आती।
पीछे से रोहन कब से आकर उनको देख रहा था उन्हें पता ही नहीं चला। जब वे अंदर जाने को मुड़ीं तो रोहन बोला," माँ , आज वत्सल भैया की बेहद याद आ रही है।"
माला जी ने कहा," वत्सल तो हम सबके दिल में है। अभी आस्था को सम्भालना है तो ...."
"जी माँ ।"
हाॅल में आकर रोहन आस्था के हाथों में मेहंदी लगी देखकर कहता है," दीदी, लाओ मैं भी एक टीका लगा दूं।"
आस्था की आँखों से आंसू बहते देख कर माला जी लाड़ से कहती हैं," कर दिया ना मेरी बेटी को परेशान।"
"माँ , रोहन को कुछ ना कहो।" कहते हुए गला रुंध गया उसका
बाहर अड़ोसी पड़ोसी बात कर रहे थे," हिम्मत हों तो माला जी जैसी! बेटे के शहीद होने के बाद बहू को अपने पैरों पर खड़ा किया।
बाहर लोगों की बातें सुनकर माला जी तीन साल पीछे चली गईं...
वत्सल सेना में बार्डर पर तैनात था, सीमा पर आए आतंकवादियों से लड़ाई में उसने सभी आतंकवादियों को मार गिराया लेकिन मुठभेड़ में गोलियों का शिकार बन वो शहादत को प्राप्त हो गया।
आस्था के घरवाले तो उसे दामाद वत्सल की मृत्यु के बाद छोड़कर चले गए थे।
माला जी ने समाज की परवाह ना करते हुए बहू आस्था को बेटी बना लिया, रोहन ने आस्था भाभी को दीदी मान लिया। अपनापन और प्यार दिया ताकि आस्था को भूले से भी यह फीलिंग ना आए कि वह अकेली पड़ गई है। तीनों साथ मिलकर रोते पर फिर एक दूसरे को चुप भी कराते।
माला जी ने आस्था के लिए दिन रात एक कर दिए। धीरे धीरे आस्था नार्मल होने लगी भले ही माला जी और रोहन के सामने कुछ ना दिखाती परंतु वत्सल की याद में रात और दिन में आंसू छलक ही जाया करते आस्था के। कमोबेश यही हाल माला जी और रोहन का था।
माला जी और रोहन के सहयोग से जल्दी ही आस्था ने अपनी छूटी हुई पढ़ाई पूरी कर ली। आस्था ने काॅम्पटीशन देने शुरू किए और उसकी बैंक में नौकरी लग गई। अब माला जी ने आस्था के लिए योग्य लड़का देखना शुरू किया आस्था ने मना किया तो उसे समझाया कि तुम मेरी बेटी हों। वत्सल भी तुम्हें खुश देखना चाहता था। अभी उम्र ही क्या है तुम्हारी? घर ये तुम्हारा हमेशा अपना रहेगा और हम तुम्हारे अपने! तुम्हारी माँ यानी मैं और तुम्हारा भाई रोहन तुम्हारे साथ हमेशा खड़े रहेंगे, बेटी।
आस्था के घरवालों ने तो वत्सल के जाने के बाद अपनी बेटी को घर में रखना तक गवारा नहीं किया था। आस्था के लिए माला जी ही उसकी माँ थीं अब। माँ का कहा कैसे ना मानती आस्था भला! ममता का वास्तविक स्वरूप माला जी के रूप में ही देखने और अनुभव करने को मिला था आस्था को।
परिमल रोहन के बाॅस हैं, रोहन के जरिए उन्हें आस्था के बारे में पता चला तो आगे बढ़कर परिमल ने सीधे माला जी से आस्था से शादी करने की बात की। माला जी ने परिमल को परखा, उनके माता-पिता से बात करने के बाद आस्था से राय पूछी। आस्था ने माला जी के ऊपर सब कुछ छोड़ दिया था उसे उनके ऊपर पूरा विश्वास था तो माला जी के समझाने पर वह परिमल से मिली।
आस्था की रजामंदी से आस्था और परिमल की शादी तय हो गई और आज मेहंदी की रस्म है।
तभी आस्था के लिए रोहन खाने की थाली ले आया और माला जी वर्तमान में लौटकर अपनी बेटी को अपने हाथों से खाना खिलाने लगीं।
मेहंदी के बाद तो दिन पता ही नहीं चले और देखते ही देखते हल्दी-भात, लगुन पढ़ने के साथ विवाह का शुभ दिवस आ पहुंचा।
आस्था को विदा किया माला जी ने भारी मन से और साथ में आस्था से एक ही बात बोली वो," बेटी, ये घर हमेशा तुम्हारा रहेगा। हम तुम्हारे साथ हमेशा खड़े मिलेंगे। अपने को कभी अकेला मत समझना।"
आस्था सिसकियां भरकर रो पड़ी तो रोहन बोला," दीदी, मेकअप खराब हो जाएगा।" रोते रोते आस्था के होंठ मुस्कुरा उठे
परिमल बोल उठे, "मम्मी जी, आस्था को कोई तकलीफ़ नहीं होगी और आपकी बेटी पर आपका पहले जैसा ही हक रहेगा।"
कहीं ना कहीं माला जी आज दिल में आस्था के लिए संतुष्ट हैं। अपने बहू को अपनी बेटी बनाकर पैरों पर खड़ा किया और अच्छा जीवनसाथी देखभाल कर बेटी का घर बसाया।
आस्था की विदाई हो गई, घर सूना हो गया। आज एक माँ अपने बेटे की तस्वीर के आगे जी भरकर रोई जो आंसू आस्था को हिम्मत देने के लिए पिछले तीन वर्षों से एक माँ की आँखों में रुके हुए थे वो आज सैलाब बनकर बह निकले।
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