उल्टी गंगा!
उल्टी गंगा!
"भाभी, आज तो नई दुल्हन का पहला करवा चौथ है, क्या पकवान बन रहे हैं?" पड़ोसन ने पूछा
"सही कहा मिश्राइन, सुधा का करवाचौथ का व्रत है तो पकवान तो बनेंगे ही। आखिर उपवास के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर दिन भर की निर्जला सुधा का व्रत खोलना है।" मंजु जी बोली
"कमल को जो जो पसंद है वो सभी बना देना सुधा बहू।" आंगन में आती सुधा को देखकर मिश्राइन ने साधिकार कहा।
" अरे मिश्राइन! कमल नहीं सुधा की पसंद का खाना बनेगा और सुधा नहीं कमल और मैं बनाएंगे सुधा के लिए!" मंजु जी ने बताया
"ये कैसी उल्टी गंगा बहा रही हो, भाभी!" चौंकी मिश्राइन
"मिश्राइन, कोई उल्टी गंगा नहीं बहा रही मैं! आनंद त्योहारों का तभी आता है जब सभी प्रसन्नचित होकर उसमें भाग लें नाकि सुबह से निर्जल व्रत किए हुए बहू सभी की पसंद के पकवान बनाए, समझी कि नहीं!" मंजु जी ने समझाया
"भाभी, इस हिसाब से तो सोचा ही नहीं मैंने। चलूं मैं भी, नीतू, अपनी बहू की पसंद के पकवान बनाऊं।" कहते हुए झटपट मिश्राइन अपने घर को चल दी