'पीड़ा'
'पीड़ा'
शशी अंदर से बिल्कुल टूट गई थी। उसे अपने पति की बिमारी का पता था ,और वह तिल-तिल उसके मौत को महसूस कर रही थी। अस्पताल के बिस्तर पर लेटा उसका पति कैसा असहाय लग रहा था।जिस मर्दानगी पर उसे नाज था वह कब की खिसक चुकी थी।शराब,कबाब,और साकी से उसे जी भर प्यार था।आये दिन महफ़िल की शान बना वह बेदर्दी से अपनी कमाई लुटाता।रात के चार-चार बजे तक बच्चों को सुलाकर वह दरवाजे पर टकटकी लगाए रहती। तरह-तरह के ख्याल उसे डराते पर जब उसकी गाड़ी की आवाज सुनती तभी सोने जाती।उसके पुछने से बचने के लिए उसने दरवाज़े की दूसरी चाभी बनवायी थी ताकि कभी भी आ जा सके।
धीरे-धीरे उसने अपने आप को समझा लिया था कि सब ईश्वर के हाथ में है जो होना होगा होकर रहेगा।
रिटायरमेंट के बाद धीरे-धीरे हित -मित्र खिसकने लगे।मासूका ने भी लात मार दिया।अब घर पर बीबी -बच्चों पर अपनी भडा़स निकालता और बोतल लेकर बैठ जाता। धीरे-धीरे उसकी किडनी,लिवर सब खराब होने लगे।
डॉक्टर ने लिक्विड खाने की सलाह दी थी क्योंकि गले तक वह रोग बढ़ गया था अब तो दवा भी काम नहीं कर रही थी। बड़ा लड़का हर-दम उसकी सेवा में रहता लेकिन बात बहुत कम करता था।और बच्चे अपने पिता की डाँट-मार से बिल्कुल उसके प्रति उदासीन हो गये थे ।अब वह अपने सारे बच्चों से मिलना चाहता था पर बच्चे मिलना नहीं चाहते थे।दवा का कोई असर न होते देख डॉक्टर ने घर ले जाने की सलाह देदी थी उसके पास इतना पैसा भी नहीं था कि वह बड़े जगहों पर उसका इलाज कराये।
एक दिन उसने कहा, 'शशी अब मैं नहीं बचूँगा बस एक अंतिम बार अपने पुराने मित्रों के साथ मिलकर पीना चाहता हूँ क्या तुम इंतजाम कर दोगी? वह आवाक रह गई थी प्राण जाये पर बोतल न जाय ओह यह कैसी लालसा थी। लेकिन उसने अपने मन पर पत्थर रखा और अपना मंगलसूत्र बेचकर सारा ताम-झाम इक्कठा किया। पति के पुराने पियक्कड़ दोस्तों को अपने घर में आने का निमंत्रण दिया।सब आ गये उसदिन उसका पति बहुत खुश था। महफ़िल जमी,जाम टकराये गये सुंदरियों की बातें भी निकली। भरपूर खाना -पीना हुआ। जब सब जाने लगे तो शशी के इंतजाम की खूब तारीफ हुई।तब शशी ने कहा,' आज मैंने अपना मंगलसूत्र बेचकर सारा इंतजाम किया,कल आप सबके बीबीयों के मंगलसूत्र की बारी है।' धन्यवाद आप सभी को यहाँ आने के लिए।कहकर वह धुंधलाती आँखों से अंदर चली गई। सब आवाक खडे़ थे। सच्चाई का आईना मुँह चिढ़ा रहा था।