फैसला लेने का हक़
फैसला लेने का हक़


मौसम अपने पूरे शबाब पर था... पापा जी बाहर बगीचे मेँ बैठे सुहाने मौसम का आनंद ले रहे थे. दोनों बच्चे वही खेल रहे थे तभी आशी गरमा गरम कचोरी, पकोड़े और चाय लेकर आ गयी..
"पापा लीजिये.." आशी बोली...
पापा कचोरी देख कर बोले "वाह आज तो मजा आ गया.. अनीश कब तक आएगा. वो भीं होता तो अच्छा होता.."
"पापा वो रास्ते मेँ ही हैं आने ही वाले होंगे..."
पापा बोले "अच्छा..."
आशी बोली "पापा आपसे कुछ पूछना था..." पापा का अच्छा मूड देख आशी बोली..
"पापा बोले हाँ बेटा बोलो न क्या हुआ..."
"पापा मैं डांस क्लास शुरु करना चाहती हूँ.. बच्चे बड़े हो गए हैं.. काम के बाद बहुत सारा समय बच जाता है। आपको पता है मुझे ज्यादा बाहर जाने का शौक नही है. बस सोच रही थी समय का उपयोग हो जाये. मैं पीछे वाले गार्डन मेँ शुरू करूंगी उससे आपको दिक्कत नहीं होगी"...
आशी बोल कर असमंजस मेँ पापा को देख रही थी..पापा बोले "बेटा ये तुम्हारा ही घर है तुम्हारे सारे फैसले ले
ने हक़ तुम्हे है.. वैसे ही तुमने बहुत त्याग किया है.. मैं जानता हूँ तुम शादी के बाद नौकरी करना चाहती थी पर तुम्हारी सासु माँ नहीं चाहती थी इसीलिए तुमने नहीं की. उसके बाद बच्चे और हम दोनों को सेवा मेँ तुम्हे समय ही नहीं मिला.. और तुमने कभी किसी बात की शिकायत भीं नहीं की.. अब तुम्हे जो लगे वो करो बेटा.. मेरी तरफ से तुम्हे सारे फैसले लेने का हक़ है..!"
आशी की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था । उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की पापा इतनी आसानी से मान जायेंगे क्युकि अनीश ने कहा था की पापा को मेरा काम करना पसंद नहीं है..
आशी ने पापा के पैर छुए और उन्हें धन्यवाद दिया... बोली "पापा इस घर में आप बड़े हैं.. कोई भीं फैसला लेने का हक़ हमेशा आपका ही रहेगा. माँ पापा कभी भीं अपने बच्चों के लिये गलत फैसला नहीं लेते.. आप जो कहोगे वो सही ही होगा।"
अगले दिन आशा की क्लास की तैयारी शुरू हो गयी, पापा, बच्चे और वो अब मिलकर आगे वाले हाल को उसकी क्लास बनाने के लिये सजा रहे थे...।