रीढ़ की हड्डी
रीढ़ की हड्डी
महिला दिवस के उपलक्ष्य में महाविद्यालय में एक बड़े समारोह का आयोजन था। पहली बार दीप्ती उसमें शामिल होने जा रही थी। बड़ी घबराहट महसूस हो रही थी उसे। उसने कभी इस तरह के समारोह में हिस्सा नहीं लिया था। और ऊपर से शहर के सारे बड़े बड़े लोग और मुख्य मंत्री जी भी पधारने वाले थे।
उसे उसके महाविद्यालय का प्रतिनिधित्व करना था। महिलाओं के ऊपर अपने विचार व्यक्त करने थे। हालांकि कई बार वो मंच पर अपने वक्तव्य बड़ी आसानी से रख चुकी थी पर इतने बड़े मंच पर बोलना बात अलग थी तो थोड़ी घबराहट स्वाभाविक थी।
उसने हल्के नीले रंग की साड़ी पहनी हल्का मेकअप किया और पहुंच गयी कॉलेज। घबराहट अब भी उसके चेहरे पर साफ नज़र आ रही थी। उसे उसकी प्रिंसिपल, मैडम जोशी ने बुलाया और कहा तुम्हें बस एक बात याद रखना हैं की तुम महिला हो और महिलाओं के लिये बोलने के लिये तुम्हे कुछ भी रटने की जरूरत नहीं हैं। जो चाहो बोलो और गर्व से बोलो।
स्टेज पर सभी महानुभावों ने अपने वक्तव्य रखे दीप्ती ने शुरुआत की इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को एक ही दिन तो सम्मान मिलता हैं। इसके लिये हम आप सबके आभारी हैं।
उसकी पहली पंक्ति पर ही मुख्यमंत्री साहब के सेक्रेटरी ने टोक दिया की क्या करें पुरुष समाज की रीढ़ की हड्डी जो हैं। उनका इतना कहना शायद वहाँ बैठी हर महिला को आहत कर गया था पर दीप्ती को अच्छा विषय मिल गया था। उसने उन्हें संबोधित करते हुये कहा की हम इसीलिए अब भी पिछड़े हैं क्यूंकि आज भी ये समाज इसी गलतफहमी में जी रहा हैं की इस समाज की रीढ़ को हड्डी पुरुष हैं।
और शायद हमेशा जीता भी रहेगा।
क्यूंकि अपने अस्तित्व पर खतरा होने पर हर कोई झूठ का आवरण ओढ़ ही लेता हैं। मैं आपको बताती हूँ कैसे ये सब इस झूठ के सहारे जी रहे हैं। शुरुआत जन्म से ही करती हूँ। इस पुरुष को रीढ़ की हड्डी कहने वाले समाज में से एक भी यह बता दे की क्या पुरुष एक नयी जान को जन्म दे सकता हैं बिना महिला की मदद के? उत्तर आप सभी जानते हैं, नहीं। दूसरा अगर वो इतना ही सक्षम हैं तो क्यूँ उसे शादी की जरूरत पड़ती हैं। चलिए माना ये सामाजिक व्यवस्था के लिये आवश्यक हैं पर क्या फिर शादी के बाद वो अपना घर संभालता हैं? नहीं।
हाँ मैं जानती हूँ सब इस बात का विरोध करेंगे पर यहाँ बैठे आधे से ज्यादा पुरुषों को आटा, दाल, सब्जी के भाव पता नहीं होंगे, महीने में कितना राशन लगता हैं कितने का लगता हैं ये भी किसी को पता नहीं होगा। अरे हाँ ये तो महिलाओं के काम हैं ना।
अच्छा ठीक हैं, बच्चे की पढ़ाई, उसके दोस्त, उसका खान- पान रहन सहन सब घर की महिलाओं की जिम्मेदारी हैं है ना।। देखा आप सब सहमत हैं।।
सेक्रेटरी साहब क्या आप बता पायेंगे आपके माँ पिताजी को किस समय क्या खाने को लगता हैं, कौन सी दवा वो किस समय लेते हैं उन्हें डॉक्टर को कब दिखाना होता है।
नहीं पता ना, आपकी पत्नी को पता होगा।
दीप्ती बोले जा रही थी और सब चुपचाप ध्यान से उसे सुन रहे थे।
अब आप कहेंगे ये सब काम तो महिलाओं के ही हैं। एक परिवार के जन्म से लेकर मरने तक के हर काम की जिम्मेदारी ज़ब महिलाओं पर ही हैं तो फिर रीढ़ की हड्डी पुरुष कैसे??
अब इस गलतफहमी में से निकल जाइयेगा ज़नाब और याद रखियेगा इस क्या बल्कि हर समाज में रीढ़ की हड्डी महिलाये ही हैं। अगर वो ना हो तो आप कुछ नहीं कर पायेंगे।
बस इतना बोलना हुआ ही था की मुख्यमंत्री सहित सभी लोगों ने खड़े होकर ताली बजाना शुरु कर दी। दीप्ती कुछ और बोलना चाह रही थी पर उसे लगा की शायद उसका महिला दिवस सार्थक हो गया। इतने सारे लोग उसके, एक महिला के अभिवादन मे खड़े थे। वो मुस्कुरायी और धन्यवाद कह अपनी जगह पर वापस आ गयी।
हॉल अब भी तालियों और दीप्ती की कहे विचारों पर टिप्पणीयों से गूँज रहा था।