ससुराल आकर बिगड़ गयी हैं
ससुराल आकर बिगड़ गयी हैं
रचना की शादी को कई साल हो गये थे, सब बढ़िया था। छोटी बहु होते हुए भी वो बड़ी का हर फ़र्ज निभाती थी क्योंकि बड़ी बहु तो आते ही अलग हो गयी थी। रचना के सास ससुर को हर काम के लिये रचना ही लगती थी, फिर भी वो उसकी बुराई करना नहीं छोड़ते थे। और सबसे बड़ी बात बुराई भी अक्सर उसके ही परिवार वालों से करते थे। जो रचना को बचपन से जानते थे। या फिर रचना की सहेलियों से या खुद के मायको वालों से।
पहली बार ज़ब शादी के बाद रचना की दोस्त आयी तो सासूमाँ ने उससे ही रचना की बुराई करना शुरू कर दी। ज़ब रचना को पता लगा तो उसने अपने पति नीलेश से कह माँ जी को समझवा दिया था की कम से कम जो लोग उसे जानते है उनसे तो उसकी बुराई कर खुद की जग हसाई ना करवाये।
पर उन्होंने ना सुनी बल्कि और ये आदत ही बन गयी थी। आजकल तो अक्सर ये कहती की रचना तुम पहले ये काम अच्छा करती थी अब नहीं करती हो। फिर भले ही वो कोई भीं काम हो।
रचना की बुआ उसके ससुराल आयी थी। तब सासू माँ की किटी पार्टी भीं थी। वो बुआ को भीं साथ लें गयी और आदतना सबके सामने ही रचना की बुराई करने लगी। कहने लगी,रचना पहले सब अच्छा करती थी पर अब कोई काम ठीक से नहीं करती, ना ठीक से रोटी बनाती है ना सब्जी।
ना अच्छे से कपड़े पहनती है ना बच्चों का ख़्याल रखती है।
वो और कुछ बोलती इससे पहले ही रचना की बुआ बोल पड़ी।। लगता है ससुराल में आकर बिगड़ गयी है क्योंकि हमारे घर की तो वो बड़ी बेटी है और सारा घर और ऑफिस दोनों अच्छे से संभालती थी और बड़ो से लेकर बच्चों तक सभी का ध्यान भीं रखती थी। आपके यहाँ आकर बिगड़ गयी है ऐसा कीजिये महीने दो महीने जमाई सा के साथ उसे मायके भेज दीजिये हम सुधार कर भेज देंगे।
अब रचना की सासू माँ का मुँह देखने लायक था। उन्हें बोलने के लिये शब्द नहीं मिल रहे थे। तो बस फिर उठ कर चली गयी ये कहकर कि आती हूँ ज़रा कोई बुला रहा है।
और रचना की बुआ जी बस मुस्कुरा रही थीं।