नियम
नियम
मैं आई सी यू के बाहर बैठी थी, नानी जी हार्ट अटैक आया था वो पिछले दो दिन से अस्पताल में ही थी। सुबह का समय था। स्टॉफ कि शिफ्ट बदल रही थी। सबका आना जाना चल रहा था।
रविवार होने के कारण डॉक्टर के दौरे में समय था।
मैं बैठी उनका इंतजार कर रही थी। आई सी यू के दरवाजे पर बैठी दीदी हर किसी को नियमानुसार ही आने जाने दे रही थी। मरीज से मिलने का समय खत्म हो चूका था।
तभी अचानक एक परिवार के बहुत से लोग एकत्रित हो गये। उनके रहन सहन से लग रहा था काफ़ी बड़े लोग है।
पर वो गेट वाली दीदी ने सबको अंदर जाने से रोक दिया। उनमें से एक ने नाराज़ होकर बोला, मैं कमीशनर हूँ।
दीदी ने बड़े विनम्र स्वर में बोला जी सर लेकिन ये अस्पताल है, यहाँ सब बराबर है। और ये आई सी यू है यहाँ सबके लिये नियम एक से है, अगर आपको किसी भीं समय मिलने कि अनुमति दी तो बाकी भी बोलेंगे और अंदर सिर्फ एक मरीज नहीं है और भी बहुत से मरीज है, सबके आराम का समय है आपके लिये मैं सबके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकती।।
वो व्यक्ति नाराज़ हो रहा था लेकिन मैं दीदी के वक्तव्य से खुश हो रही थी। किस तरह उन्होंने बिना डरे, बिना किसी का अपमान किये अपनी बात उनके सामने रखी, अपनी नौकरी और कर्तव्य के आगे कोई पद और ओहदा नहीं आने दिया। उनकी दृढ़ता ने मुझे ये जरूर सीखा दिया कि कर्तव्य परायणता के लिए किसी पद, पैसे, कुर्सी कि आवश्यकता नहीं होती। वो मन से कि जाती है।।
हालांकि उस बड़े आदमी ने किसी बड़े से बात कर अपने अंदर जाने कि व्यवस्था कर ली थी और मैं सोच रही थी वो खुद एक अफसर होकर नियम नहीं मानता और वो दीदी। वाकई आज उन्होंने ये साबित कर दिया कि अच्छा बनने के लिये सिर्फ बड़ा पद होना जरूरी नहीं होता।