जरूरत
जरूरत
बहुत दिनों से संध्या के दिल और दिमाग़ मे एक लड़ाई चल रही थी। वो काफ़ी दिनों से सोच रही थी की घर छोड़ कर जाया जाये या नहीं।संध्या और उसके पति संजय अपने एकलौते बेटे आरव के साथ सास ससुर के घर मे रहते थे। उनकी शादी को 20 साल हो चुके थे। अपने सारे कर्तव्यों का दोनों ही बहुत अच्छे से निर्वाह करते थे। फिर जाने क्यूँ सास ससुर को हमेशा कोई ना कोई तकलीफ बनी रहती थी।
संध्या तो फिर भी बहु ठहरी उन्हें तो अपने बेटे से भी कोई मतलब नहीं रहता था। अभी कुछ दिनों से सबमे ज्यादा ही झगड़े होने लगे थे।सास ससुर संजय को कुछ ज्यादा ही ताने देने लगे थे। हर बात मे मेरा घर कहकर सुनाने लगे थे। इसीलिए उन्होंने घर छोड़ने का फैसला लिया था। खास कर संजय ने ही ये फैसला लिया था। इसलिए उन्होंने घर ढूंढना शुरू कर दिया था। चुकी अब तक उन्होंने घर मे ही माँ पापा को सारे पैसे दियें थे तो उनके पास ज्यादा सेविंग भी नहीं थी। फिर भी जीतना था उसी मे घर ढूंढ रहे थे।
संध्या नहीं चाहती थी की घर छोड़े क्युकि उसे पता था की कुछ भी होगा तो माँ पापा की देखभाल करने तो उसे ही आना पड़ेगा। और वो पोते को दादा दादी से दूर भी नहीं करना चाह रही थी। पर रोज़ रोज़ होती लड़ाईया भी बच्चे पर बुरा असर डाल रही थी। इसीलिए समझ नहीं पा रही थी क्या करे।वैसे तो बड़े भैय्या भाभी और छोटे देवर देवरानी भी थे। पर साथ मे संध्या और संजय ही रहते थे बाकी तो पहले ही उनकी हरकतों की वजह से उन्हें छोड़कर जा चुके थे। पर संध्या नहीं चाहती थी अलग होना। उसका मानना था की बच्चों के लिये दादा दादी का होना ज़रूरी होता हैं।
पर अब परिस्थिति ईतनी विपरीत हो गयी थी की घर छोड़ना ज़रूरी हो गया था।आखिर कर संध्या ने हल निकाला और घर के पीछे की और किराये का मकान ले लिया ताकि कुछ भी हो तो वो समय पर पहुंच सके और आरव भी दादा दादी से मिल सके। उनके अलग होने के बाद ही माँ पापा को भी समझ आ गया था की इस उम्र मे किसे साथ की जरूरत ज्यादा होती है।