पगला पगला नहीं रहा।
पगला पगला नहीं रहा।


लेखिका - डॉ. पूनम वर्मा
__________________
वह हमेशा अजीबो- गरीब सवाल अपने शिक्षकों से पूछा करता था। जवाब में उसे दंड के रूप में कक्षा की अंतिम पंक्ति पर बैठना पड़ता था। ऐसी सजा उसे ज्यादातर विज्ञान की कक्षा में ही मिलती थी। जो उसके लिए फायदेमंद साबित होता था।एक तो जितना मन सोचे जाओ,सोचे जाओ, दूसरा किसी को पता भी नहीं चलता था और वह झपकी लेकर बिल्कुल तरोताजा हो जाता था।
भौतिकी की कक्षा में शिक्षक महोदय पढ़ा रहे थे। "सूर्य स्थिर है और सारे ग्रह उसके इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हैं।" उसके दिमाग के अंदर कुछ खलबली मची । वह उठ कर तुरंत ही बोल पड़ा, "महोदय सूर्य स्थिर नहीं है और सारे ग्रह सूर्य,,के नहीं बल्कि,'बेरी सेंटर'का चक्कर लगाते हैं।" शिक्षक महोदय के लिए यह नई बात थी। सारे बच्चों को और उसे भी आदेश दिया, कि पुस्तकें खोले और तय अध्याय उसे ही पढ़ने के लिए कहा गया ,जिसे शिक्षक महोदय पढ़ा रहे थे।लेकिन वह पढ़ने से पहले ही बोला, "पुस्तक में तो यही लिखा हैजो आप पढा रहें हैं, लेकिन मैंने विज्ञान की पत्रिका में ऐसा पढ़ा है,जो कि अभी तक की नवीनतम जानकारी है।" खिसीआए से शिक्षक महोदय बोले, "पगला कहीं का, ज्यादा होशियारी मत दिखाओ।जो पढ़ा रहा हूँ वह पढ़ो।शिक्षक मैं हूँ या तुम?"
"नहीं महोदय, मैंने पढ़ा है "वह बोला था।
विरोध को दबाना जरूरी था। इतनी दृढ़ता से बोल रहा है,तो जरूर पढ़ा होगा ;लेकिन अभी अपनी इज्जत बचाना है ।ऐसा सोचते ही वह बोल पड़े "अजीब पगला है क्यों दिमाग को इतना ज्यादा दौड़ते हो ?अरे आराम से बैठो भी महानुभाव लगता है ,वैद्य जी से मिलना हीपड़ेगा। देख रहे हैं ,बहुत टोका-टोकी करनेलगे हो।उधर पूरी कक्षा उसे पगला कहे पर हंसीसे गूंज रहा था, लेकिन उसे कहां फर्क पड़ता था । उसकी कक्षा के कुछ शरारती बच्चेे भी उसे इसी सम्बोधन से पुकारते थे।
गर्मी की छुट्टी चल रही थी। उस दिन सुबह -सवेरे उसकी बहन ने उसे उठाया और कहा पिताजी बुला रहे हैं। "क्यों?" उसने पूछा था । जवाब था 'खुद को देख लो ।"
लेकिन पिताजी के साथ खटिया पर बैठे शिक्षक महोदय को देखते ही घबराहट मारे उसकी धड़कन बढ़ गई।
"आओ बाबू देखो कौन आए हैं?" पिताजी बोले।
देख तो वह चुका ही था । द्रुतगति से चरण स्पर्श किया।
"कहो बेटा पढ़ाई कैसी चल रही है छुट्टी में?"
हमेशा डांट डपट कर बात करने वाले से मीठे स्वर में पूछा गया प्रश्न से वह और भी घबरा गया।
उसकी हालत देखकर पिताजी ने पूछा, "बाबू तबीयत तो ठीक है? चार बेटियों के बाद हुए इकलौते पुत्र की मनोदशा को बड़ी सहजता से समझ जाते थे ।
बच्चा बहुत ही सरल स्वभाव का था, इसलिए कुछ नहीं बोला ।
"देर रात तक पढ़ता रहता है। इतना ज्यादा क्यों पढ़ता है?" पिताजी ने जवाब के साथ सवाल भी पूछा ।
"यह महाशय ही ज्यादा पढ़ते हैं। जब सारे बच्चे खेलते रहते हैं,ये पाठ्यपुस्तक के अलावा अन्य पुस्तकों में ही डूबे रहते हैं ।अतिरिक्त ज्ञान की पुस्तकें इन्हें लाकर कर देता कौन है?"
इतना सुनते वैद्य जी का स्वर हो गया गरम होकर बोले "इसमें का कोई दोष नही नहीं है। मेरा छोटका भाई ने इसे बिगड़ा है।जब भी शहर से आता है। किताबों का बंडल ला कर इसे थमा जाता है ।"
ज्ञान विज्ञान की किताबों से भी भला कोई बिगड़ा है ,लेकिन वैद्य जी की नाराजगी भी बेवजह नहीं थी। वह भी दिन था ,जब सब भाई बहनों से ज्यादा छोटका भाई को ही मानते थे ; लेकिन समय जो न करावे अब तो आमने सामने होने से भी बचते हैं।
वजह था दो पुत्रियों के पिता बनने के बाद जब तीसरी बार वैद्यजी पिता बनने वाले थे ,तो संयोग से छोटकाभाई भी पहली बार पिता बनने वाला था। पूजा-पाठ और वैद्यकीय नुस्खों के बावजूद वैद्य जी के मन में डर रहता था,कि इस बार भी बेटी ना हो जाए। भाई उनका व्यथा समझ रहा था, इसलिए बड़ी खोजबीन के बाद एक जांच केंद्र का पता लगाया , जो जांच कर बताने के लिए तैयार हो गया । वैद्यजी का मन नहीं मान रहा था । लेकिन जितनी कमाई थी , उससे निर्वाह बङी मुश्किल से होता था पर पुत्र चाह में देवी देवताओं के आगे में माथा टेकते पत्नी की इच्छा के आगे मजबूर थे।
जांच करवाने के बाद पता चला जुड़वा पुत्र होनेवाला है। वैद्य जी के रोम- रोम ने ईश्वर को धन्यवाद दिया।
खुशियां तो छलक- छलक बाहर निकलने को तैयार थी। लेकिन ऐसी खुशियों को स्वयं की भी नजर लग जाती है ।इसलिए अपनी खुशियों को प्रकट नहीं होने देते थे। परंतु कुछ महीनों के बाद जब वह पुनःदो पुत्रियों के पिता बने और उनका भाई जुङवा पुत्रों का पिता तो उनके दुख की सीमा नहीं रही। अपनी उम्मीदों के टूटने का दुख कम था ,जो भगवान ने दूसरे को इतना सुख दे दिया जिस भाई को बचपन से अपना मानते थे।अब वह उनके लिए दूसरा बन गया था।
मन केकिसी कोने में कुढन सा रहता था। प्रतिकार के रूप में अपनी दोनों नवजात बेटियों को लड़कों वाला कपड़े पहनाने लगे। बेटियां है ,तो क्या?बेटे बना कर रखेंगे ।
भगवान के घर देर है ,अंधेर नहीं इस कहावत को चरितार्थ करते हुए जल्द ही पुत्र की प्राप्ति ने वैध जी की झोलीखुशियों से भर दी थी। पहली नजर में उन्हें बाबू में साक्षात लड्डू गोपाल दिखे थे। फिर जब तक मुंडन नहीं हुआ जटाधारी शंकर भगवान का रूप दिखता था ।अब तो सौम्य बिल्कुल भगवान राम सा दिखता है ।
बड़े स्नेहभाव से निहारते हुए बेटा को बोले थे "बेटा दीदी को बोलो चाय जल्दी से भेज दे ।बीमार को देखने जाना है ।"
जी" कहकर वह अंदर चला। वैद्यजी ने दवाई निकालकर देते हुए धीमी आवाज में पूछा "पढ़ने में होशियार तो है ना? " हां आइंस्टीन जैसा तेज दिमाग है ,इसका। "आइंस्टीन ! 'इ' कौन है ?"
वैध जी ने पूछा
"दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक सब लोग जानते हैं"। फिर मन ही मन खुद से ही सवाल कर बैठे थे ।जब सब लोग जानते हैं ,तो इन्हे मुझे क्यों बताना पङ रहा है। आइंस्टीन पर बात करना शिक्षक महोदय को बहुत अच्छा लगता था। मौका मिला था इसलिए चाय पीकर कर विदा होने तक के बीच में आइंस्टीन के बारे में जितना जानते थे सारी बातें बता डाली।
समय बीतते देर कहां लगती है?और बीतते समय के साथ बहुत कुछ बदल गया। वैद्य जी नहीं रहे और उसे अपने चाचा के पास जाकर रहना पड़ा।यह दिन उसके लिए खास दिन था ।उसे देश का ' युवा वैज्ञानिक ' का सम्मान मिलने जा रहा था,जिसकी चर्चा सूचना के प्रत्येक माध्यम पर उपलब्ध थी।
उधर विद्यालय में भी सारे शिक्षक एक दूसरे से उसी की ही बातें कर रहे थे ।रटने वाले शिक्षण व्यवस्था को क्रियान्वित करने वाले शिक्षकगण कौन उसे अधिक जानता है याद कर _करके बता रहे थे और फिर शाम होते-होते उनलोगों ने एक निर्णय भी ले लिया गया । इस बार के वार्षिक महोत्सव में उसे ही मुख्य अतिथि बनाया जाए।
पर यह काम करना इतना आसान नहीं था ।बड़ी कठिनाई से संपर्क किया गया और उसने जो समय दिया उसी तिथि पर वार्षिक महोत्सव का होना तय हुआ।
अब निमंत्रण पत्र देने तो किसी को जाना पड़ेगा, लेकिन इस काम जिम्मेदारी भी बड़ी तत्परता से करने का उत्साह दिखाते हुए विज्ञान के शिक्षक महोदय ने अपने ऊपर ले लिया।
पहुंच गए उस पते पर जहां विद्यार्थी का ठिकाना था । बाहर मुख्य द्वार पर लगे 'तख्ती 'को पढ़ ही रहे थे,कि एक आदमी बच्ची को गोद में उठाए अन्दर से आते दिखा।
वह पूरी तरह सतर्क हो गए ।करीब आते ही उस आदमी को उन्होंने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया। इस बीच बच्ची के बार-बार "मम्मी पापा कब आएंगे? "के रट लगाने की वजह से थोड़ा विचलित भी हो गए थे, क्योंकि उनकी बात गंभीरता से सुनने के बजाय वह बच्ची को समझाने लगता था ।" वह बोला,"अंदर चल कर बैठिए,सर अभी ही आने वाले हैं। "साथ ही अपना परिचय भी दिया " मैं यहां का केयरटेकर हूं"।
वो दोनों जैसे ही चलने के लिए तैयार हुए , देखा फिर से अंदर से कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के पीछे डंडा लिए दौड़ता हुआ आ रहा । डंडे वाले व्यक्ति से केयरटेकर ने चिल्लाते हुए पूछा "ये पागल अंदर कैसे गया ?"
डंडे वाले व्यक्ति ने बोला,"साहब मैं फोन पर बात कर रहा था, लगता है; उसी का फायदा उठाकर यह अंदर चला गया" ।
ठीक है,भगाओ जल्दी से वो लोग आने वाले हैं। मैडम देखेंगी,तो बहुत नाराज होगी। हिदायत दे ही रहा था, तभी बङी सी गाड़ी आकर उन लोगों के सामने रुक गई। बच्ची खुशी से बोल पड़ी
" मम्मी -पापा आ गए ।"
गाड़ी से एक स्त्री और दो पुरुष उतरे दो पुरुषों में एक उनका विद्यार्थी था, पहचान कर वो बहुत खुश हुए।
"कैसा रहा प्रोग्राम ?"बच्ची को अपनी गोद से स्त्री की गोद में देते हुए केयरटेकर ने पूछा
" बहुत बढ़िया,"
संक्षिप्त जवाब देकर वह बेटी से पूछने लगी "अंकल को परेशान तो नहीं किया?" बजाए मम्मी की बातों का जवाब देने की बच्ची अपने पापा की ओर देखकर चीख कर बोली
" पापा"
ये क्या विद्यार्थी इधर उधर क्या देख रहा है?फिर उसने पूछा यह बच्ची कौन है? किसकी है यह बच्ची?
सब लोग विद्यार्थी का हाथ पकड़ कर, उसे अंदर की ओर ले जाने लगे । अचानक वह सबसे हाथ छुड़ाकर किनारे बैठे पागल के पास पहुंचाऔर बोला लगता है ,आपकी बच्ची है?आप को खोज रही है।" पागल जवाब में बाल खुजाने लगा। बेखबर बेटी फिर पुकारी
"पापा "
वह हैरान थे, अपनी ही बेटी को नहीं पहचान पा रहा है। तो क्या हुआ?
आइंस्टीन भी तो अपना नाम पता तक भूल जाते थे।
स्वयं को समझाया ।एक तरफसब लोग बड़े धैर्य से विद्यार्थी को संभालते हुए और दूसरी ओर
पागल की इतनी पिटाई करने की हिदायत देकर ताकि फिर वह कभी इधर नहीं आ सकेअंदर की तरफ चल पड़े थे । वह भी पीछे -पीछे चल पड़े ।
कमरे के अंदर प्रवेश करने के पहले उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, पीटातेऔर चिल्लाते उस पागल को देखकर उनका मन द्रवित हो गया। मन में सवाल उठा एक पागल का इतना ख्याल रखा जा रहा है और दूसरे की पिटाईयह अंतर क्यों?परंतु कमरे में पहुंचते ही उनका विचार बदल गया। जब उन्होंने देखा कमरे के अंदर उन तस्वीरों को जिसमें उनका विद्यार्थी बड़े-बड़े प्रसिद्ध लोगों के हाथों से पुरस्कार ले रहा है। हठात् उनके मुंह से निकला पगला पगला नहीं रहा।