Dr. Poonam Verma

Others

4.8  

Dr. Poonam Verma

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अनकही पीड़ा

अनकही पीड़ा

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वह अपनी सारी ताकत को समेट जोर लगा कर बोले थे "एक बार कह दिया, तो कह दिया ;शादी में कोई नहीं जाएगा तो नहीं जाएगा "। पत्नी सुनकर भभक पड़ी.... 

"ऐसे कैसे कोई नहीं जाएगा? मेरे मौसा के भाई के बेटी की शादी है।नहीं जाने पर उन्हें कितना बुरा लगेगा? एक ही तो बेटी है उनको। अपनों से बढ़कर मुझे प्यार करते हैं। बचपन में गुड्डे- गुड़ियों ब्याह रचाया है, हमने मिलकर। उनकी बेटी के ब्याह में मैं ना जाऊं यह भीकोई बात हुई ? तुम्हें नहीं जाना मत जाओ। वैसे मैं जानती हूं , तुम क्यों नहीं जा रहे हो ? अपनें आपको निकालो अपने अतीत से । एक भय का आवरण लपेट मर -मर कर कब तक जीते रहोगे ? यह तारीख तुम्हें यूँ ही परेशान करता रहेगा ?बीते साल तुम्हें इस तारीख को  बेहतरीन काम के लिए पुरस्कार मिला था।लेकिन तुम पूरे दिन घर में ही बन्द रहे। खुद को सजा दे सकते हो,दो लेकिन कैलेंडर से इस तारीख को निकाल सकते हो क्या?जो हुआ था ,उसे होनी क्यों नहीं मान लेते ?कब तक भागते रहोगे ? खुद भी परेशान होते हो और हम सब को भी परेशान करते रहते हो ।"

"ठीक है "तुम परेशान मत होओ ,तुम्हें तो दूसरों की पड़ी रहती है। अपनों की नहीं ,बाद में पछतावा करोगी पर सुधरोगी नहीं। इस शादी के कार्ड को हटाओ मेरे सामने से, "कहते हुए चेहरे पर गुस्सा, बेचैनी घबराहट और थकान का भाव जो बारी-बारी से बदल-बदल कर आ -जा रहा था, लिए उचटती निगाहें पत्नीे पर फेकते हुए ;अपना ध्यान भटकाने के लिए बाल्कनी में आकर खड़े हो गए । बाल्कनी के सामने पार्क था। वह लोगों को देखने लगे, जो इस समय पार्क में थे।

उसमें कुछ चेहरे भली-भांति ,तो कुछ बस पहचाने से लगे। हाँ इक्का-दुक्का नया चेहरा भी दिख रहा था। पन्द्रह सालों से यहां रह रहे हैं। पन्द्रह साल पहले जो बच्चे थे । युवावस्था की ओर बढ़ने लगे हैं , और जो युवक थे अब प्रौढ़ से दिखने लगे हैं ।कुछ बुजुर्ग भी दिखाई रहे थे। जो पहले भी बुजुर्ग थे, पर अब कुछ ज्यादा बुजुर्गु दिखने लगे हैं। एक बुजुर्ग महिला पर नजर ठहराते गयी। उन्होंने अपने आपसे कहा मम्मी जहां कहीं भी होंगी ।अब ऐसी ही दिखती होंगी । लेकिन किस हाल में होंगी और कहां होंगी? उन्हें हमलोगों की याद तोआती होगी, फिर वह वापस आतीं क्यो नही आती।या फिर नहीं । यह ख्याल आते ही लगा ,कि अब वहाँ खड़ा नहीं रह पाएंगे । अपने बेडरूम में पहुंचकर मुंह तक चादर ओढ़कर बेड पर लेट , सब कुछ भूलने की कोशिश करने लगे। सही कहा , पत्नी ने कब तक भागते रहोगे? पर वह क्या करें? कैसे स्वयं को समझाएं।लगभग दस वर्ष से हर दिन खुद को समझाते रहे हैं,पर समझा कहाँ पाए हैं । किसी -किसी दिन तो ऐसा भी होता है ।रात में नींद खुल जाती ,तो लगता दरवाजे पर मम्मी आकर खड़ी हो गईं हैं।वह दरवाजा खोलकर के बाहर बरामदे में सब तरफ ढूंढने के बाद किसी को नहीं पाकर मायूस होकर घंटों बिछावन पर पुरानी यादों के साथ करवटें बदलते रहते हैं। एक बार मन फिर विचारों के साथ अतीत की गलियारे में भटकने लगा था। उस दिन पापा कोअंतिम विदाई दे वापस घर आकर उन्होंने पत्नी से पूछा " मम्मी कहां हैं ?"

 "अपने कमरे में हैं । बहुत रो रही हैं।" जबाब के बाद पत्नी ने सवाल पूछा 

"वैसे उधर सब ठीक-ठाक से हो गया ना? "

"हाँ सब ठीक से हो गया। अब तो मम्मी को संभालना ज्यादा जरूरी है।

इतना रोएंगी तो तबीयत खराब हो जाएगी।वैसे जोर-जोर से तो नहीं रो रही थी ना ? 

"नहीं "

बच्चे को थपकी देकर सुलाते हुए पत्नी ने कहा ।

"मेरी बात मान ली इसलिए ईश्वर का लाख-लाख धन्यवाद। रोने की तेज आवाज बिल्डिंग में रहने वाले लोगों को परेशानी देगी ।यह सोचकर मैंने मना किया था । डर भी था ,कि वह मानेगी भी या नहीं"।

पत्नी के कुछ कहने से पहले वो मम्मी की कमरे की ओर चल पड़े । उन्होंने लाइट भी नहीं जला रखी थी।कमरे में घुप्प अंधेरा था ।स्विच ऑन किया तो देखा ,सूजी -सूजी आंखो से बदहवास सी नज़रों से वो उनकी ओर देख रही है। अभी तो दस-बारह घंटे ही हुए हैं, पापा के बिना रहते हुए तो ये हाल है।बाकी बची पूरी जिंदगी उनके बिना गुजारनी है ।ऐसा रहा तो कैसे गुजरेगा? मन ही मन सोचते हुए , टेबल पर रखे जग से पानी गिलास में निकालकर उन्हें पीने के देने लगे ,तो गिलास हाथों से परे करते हुए वो बोल पड़ीं "तुम्हारे पापा ने पानी मांगा था ,मैं जब तक देती वो लेने के लिए बिछावन से उतरे और गिर पड़े । मुंह के बल गिरें लगता है ,चोट ज्यादा लगा होगा, तभी मुंह-नाक से खून निकला ।नहीं तो बच जाते।"

बिना रुके लगातार वह बोलती चली गईं थीं ।वह समझाने के लिए कुछ बोलते , कि अपनी बात खत्म कर बाहर की ओर तेजी से चल पड़ीं वह भी पीछे हो लिये थे। बाहर जाने वाली सीढ़ियों की तरफ बदहवास सी कुछ देर निहारने के बाद फिर वापस अपने कमरे में आकर बैठ गईं थीं। बड़ी मुश्किल आंखो से बाहर निकलने वाले आंसुओं को रोककर उनके हाथोंको अपने हाथ में लेकर समझाया "अपने वश में सबकुछ कहां होता है ?सब पहले से तय है ,जो होना होता है ;वही होता है। इसमें हम लोग कर भी क्या सकते हैं ? मरने वाले के साथ कौन मरता है? पापा नहीं रहे फिर भी जीना तो पङेगा ही , आपको हम लोगों की खुशी के लिए खुश भी रहना होगा।" अबोध बच्चों वाली नजरों से अपनी ओर देखते नजरों को सहन कर पाना उन्हें मुश्किल सा लगने लगा, तो वे अपनी नजरों को कमरे में दौड़ाने लगे। पापा की पढ़ी जाने वाली पुस्तकें टेबल पर वही पड़ी हुई थी ।दो कुर्सियां चश्मा और कपड़े सबकुछ जैसा था वैसा ही है। चीजों में बदलाव कहाँ इतनी जल्दी होता है । जितनी जिंदगी में ।संवेदना के स्तर पर बीते कल की रात में और आज की रात में कितना फर्क है?अन्दर का सूनापन बाहर के सन्नाटे में प्रतिबिंबित हो रहा था। वैसे भी इस कमरे में वह आते कम ही थे। पापा जब से यहाँ आए बीमार रहे । कभी दवाई या जरूरत का सामान लाने के बारे में पूछना हो तभी इधर आते थे। यह कमरा पूरी तरह से मम्मी-पापा का था। खुशी बांटने के लिए जितनी आसानी से शब्द मिल जाते हैं ।दुख बांटने के लिए उतनी आसानी से शब्द कहां मिलते हैं? फिर एक तरफा संवाद कितना मुश्किल होता है। थोड़ी देर रुककर वापस अपने कमरे में आए ,तो देखा पत्नी फोन पर कुछ दिनो की छुट्टियाँ लेने बात कर रही थी। बेटा उन्हें देखते शिकायत करते हुए बोला "पापा देखो ना मम्मी टीवी देखने नहीं दे रही। अभी कार्टून शो आ रहा होगा।"फोन पर हो रही बात को जल्दी से खत्म करते हुए पत्नी बोली "एक तो ये सो नहीं रहा, दूसरी टीवी देखने के लिए जिद कर रहा है । सबको पता है, आज क्या हुआ है? ऐसे में टीवी की आवाज बाहर जाएगी तो लोग क्या सोचेंगे? ये समझ हीं नहीं रहा है । वैसे ही लोग पूछते रहते हैं, कि बुड्ढे लोग हमेशा घर में ही रहते हैं। घूमने के लिए बाहर क्यो नही निकलते ? " 

"फिर बुड्ढे?

तुम्हें तो कितनी बार कहा है ।हमारे यहाँ बुजुर्गों के लिए बुड्ढे नहीं बोलते वो नाराज होकर बोले थे।"

"लेकिन यहां तो सब ऐसे ही बोलते हैं।इसलिए मैंने बोला तुम्हें बुरा क्यों लग रहा है? "पत्नी ने भी पलट कर जवाब दिया था।

 "बुरा क्यों लगेगा ? यहां तो ड्राइवर चपरासी तक मुझे तुम -ताम कहता है। "

"अरे मम्मी! अरे पापा! क्यों डिस्टर्ब कर रहे हो?कार्टून तो देखने दो।" बीच में ही झुंझलाकर बेटा बोला था।

 "इस नमूने का तेवर तो देखो कार्टून देखकर तो जैसे यहअपने कुल का नाम रोशन करेगा" उनके तीखे स्वर को सुनकर

बेटा अजीब सा मुंह  बनाकर उन्हे देखने लगा। 

वह कुछ और बोलते इससे पहले पत्नी बात बदलते हुए बोली "रिश्तेदारों को सूचित तो करना ही पड़ेगा । कार्ड क्या भेजना? फोन से ही जो करीबी हैं, उनको सूचित कर देते हैं। तुम्हारे गांव से इतनी दूर से कौन आएगा ? मेरे ही कुछ रिश्तेदार हैं ,वो ही नजदीक में हैं इसलिए आ पाएँगे ।" तुम्हें जो ठीक लगे ,वह करो । मेरी समझ में अभी कुछ नहीं आ रहा।थके से स्वर में उन्होंने जवाब दिया ।

वो लंबी छुट्टी नहीं ले सकते थे ।तीसरे दिन से ही फिर से काम पर जाने लगे, लेकिन पत्नी ने पन्द्रह दिनों की छुट्टियाँ ले ली थी ।तेरहवीं पर भी गरीबों को खिलाकर रस्म भर पूरा किया था। मम्मी सत्तू और दशहरी आम दान करना चाहती थी।जो पिताजी को बहुत पसंद था । उनका विश्वास था, कि तेरहवीं के दिन किया हुआ दान जो जीवित नहीं है ।उस व्यकित के पास पहुंच जाता है। सत्तू नहीं मिला, तो भुने चने लाकर उसे मिक्सी में पीसकर थोड़ा बहुत सत्तू का इंतजाम किसी तरह किया। परन्तु आम का मौसम होते हुए भी दशहरी आम यहां मिलता नहीं था। इसलिए दशहरी का इन्तजाम नहीं कर पाए ।मम्मी की छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर पाने की विवशता के कारण बेचैन हो उठे थे। 

 सामान्य दिनचर्या की तरह जब पत्नी ने भी काम पर जाना शुरू किया। तो दिन भर अकेले मम्मी को कैसे छोड़ा जाए ?यह एक बहुत बड़ी समस्या पैदा हो गई। अब तक तो मम्मी को पापा का साथ था। अब अकेले पूरे दिन कैसे रहेंगी? लेकिन काम पर जाना भी जरूरी था ।दोनों जाने के पहले मम्मी को जाने कितनी हिदायतओं के साथ दरवाजा खोलने के मामले में सावधान कर जाते थे। प्रारंभ में ऑफिस में कुछ दिनों तक मम्मी घर पर अकेली ठीक से तो होगी। यह सोच -सोच कर वह परेशान से हो जाते थे ।पर धीरे-धीरे आदत पड़ने पर सब कुछ सामान्य लगने लगा था। लेकिन सब कुछ सामान्य नहीं था । ऊपर से जैसा दिख रहा था,वैसा था नहीं। उन्हें याद है,छुट्टी का दिन था। वह बाल्कनी में बेटे के साथ मिलकर बागवानी का काम करते हुए गमले में लगे फूलों के बारे में बताते हुए समझा रहे थे ।अलग-अलग फूल के पौधो की

 जरूरत अलग-अलग होती हैं । 

 बेटे ने पूछा "छोटे गमले में थोड़ा सा अपनी जगह से उखड़ा पौधे को उखाड़ कर बड़े गमले में लगा दे?"

"नहीं छोटे गमले में इस पौधे का जड़ थोड़ा बहुत जम गया है,इसे दूसरे गमले में लगाएंगे ;तो यह सूख जाएगा। "उनके यह कहते ही

 पास में बैठी धूप लेती मम्मी ने गौर से देखा तो वह झेंप गए थे। 

 पत्नी अन्दर से मेथी की साग का बंडल लेकर आई। फिर दोनों मिलकर मेथी साफ करने लगीं ।अचानक मम्मी बोली "लगता है , कोई आया है ?"

"नहीं तो कोई आता तो खटखटाने की आवाज तो आती" पत्नी बोली थी।"

"शायद कोई है ,बाहर "मम्मी फिर से बोली थी।

 "आपको वहम हुआ होगा, दादी "

 इस बार बेटा बोला था ।

" ठीक है, मैं दरवाजा खोलकर देखता हूं " फिर मम्मी की तसल्ली के लिए उन्होंने दरवाजा खोल कर देखा; लेकिन बाहर कोई नहीं था।साथ खङे 

बेटा ने वहीं से जोर से चिल्लाकर कहा "दादी बाहर कोई नहीं है "

  बेचैन होकर वह बोली थी।"मुझे लगा था कोई है ?"  

"मम्मी भी ना " तिरछी मुस्कान के सिर झटक कर पत्नी बोली ।

ये बात आई -गई हो गई होतीे, लेकिन जब अगले दिन ऑफिस में उनके सहयोगी ने बताया; कि "वह कल उनके घर आए थे । जरुरी फोन कॉल आने के कारण बाहर से ही लौट गए।" यह सुनकर वह बुरी तरह से विचलित हो गए ।इस उम्र में तो लोगों को कम सुनाई लगने लगता है। मम्मी को इतनी धीमी आवाज कैसे सुनाई दे गया ? कुछ तो सही नहीं है । घर आकर पत्नी को बताया तो, वह भी सुनकर बहुत परेशान हुई, लेकिन तुरंत निर्णय भी दे दिया " हम लोग कर भी क्या सकते हैं?अब सारे काम छोड़- छाङकर उनके अकेलेपन को दूर करने के लिए उनके पास बैठ तो नहीं सकते ।"बात तो सही थी ।लेकिन कुछ नहीं कर पाने की विवशता में उस रात घंटों जागाए रखा था।वह अपने अतीत को खंगालते रहे।इकलौती संतान थे, अपने माता-पिता की। मम्मी-पापा की इच्छा थी, कि बेटा इंजीनियर बने। उन्होंने इस इच्छा का मान रखते हुए, इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो अव्वल तरीके से पूरी तो कर ली ;लेकिन नौकरी मिलना इतना आसान कहां था? अपने राज्य से दूर इस पहाड़ी इलाके में एक अच्छे से प्राइवेट कंपनी में जब नौकरी मिलीतो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा ।अच्छी तनख्वाह साथ में मकान गाड़ी और अन्य सुविधाएं भी मिलने से मम्मी पापा भी बहुत खुश थे।

 अपने पसंद की किसी अच्छी लड़की के साथ उनकी शादी कर अपनी बरसों के सपने और जिम्मेदारी पूरा करना चाहते थे ।लेकिन यह मौका नहीं मिला । क्योंकि उन्होंने अपने साथ काम करने वाली स्थानीय को लड़की अपनी जीवनसाथी के रूप में पसंद कर लिया था। जब मम्मी पापा को पता चला तो,समझाने की कोशिश की ;कि उन्हें उनकी पसंद पर कोई आपत्ति नहीं ,लेकिन गैर प्रदेश और गैर जाति की लड़की से शादी करने से पारिवारिक जीवन में एक तरह के जीवन शैली और रीति-रिवाज नहीँ होने के कारण जिंदगी जीना कठिन हो जाएगा । लेकिन उनका मानना था, रीति रिवाज से ज्यादा जरूरी विचारों और भावनाओं का मिलना होता है। उन्होंने समझाने का उन्हें पूरा प्रयास किया । परंतु आधे -अधूरे मन के साथ मम्मी तो मान गई । लेकिन पापा ने उनके इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया। उनका विरोध चुप्पी और तटस्थता ने ले लिया।जो उनके साथ अंतिम सांस तक रहा। 

 लड़की वालों की सुविधा ख्याल में रखते हुए, उन्होंने तय किया अपने शहर से शादी नहीं करेंगें ।शादी में आए, उनके रिश्तेदार मजाक कर रहे थे। लड़कियां तो विदाई के बाद ससुराल जाती है। यह तो बिना विदाई के ही ससुराल के हो गए हैं। इस शादी में ना तो फूफा के नखरे थे। ना चाचा के तेवर और तो और बहनोई भी बिन रूठे मान गए थे ।सारे रस्मो रिवाज में कटौती हो गया था। ऐसा लग रहा था। जैसे कि बस निभाए जा रहे हो । 

शाम का समय था ,विवाह में शामिल अपने दो दोस्तों के साथ बैठकर हंसी मजाक कर रहें थें ।तभी महाराज जी रसोई के सामान का लिस्ट लेकरआए बोले "भैया जी लिस्टमें लिखा, सरसों का तेल तो आया ही नहीं सब्जी किस तेल में बनेगा ?"

वह बोले "यहाँ सरसों का तेल नहीं मिलता मूंगफली का तेल मंगवा लीजिए। "

"मूंगफली का तेल में बना सब्जी कौन खाएगा? स्वाद ही गड़बड़ हो जाएगा। मेरा बेटा बताता है । उसके हॉस्टल में भी मूंगफली के तेल में खाना बनता है। उसे बिल्कुल खाने स्वाद अच्छा नहीं लगता" बोलते महाराज की बात काटते हुए दोनों दोस्त में एक ने पूछा " कौन सी पढ़ाई कर रहा है आपका बेटा"?

 "जी कंप्यूटर इंजीनियरिंग पढ़ रहा है।"

दूसरे ने कहा"आपको देखकर लगता नहीं किआपका बेटा इतनी उम्र का होगा। "

महाराज जी ने शर्माते हुए कहा" भैया जी से मैं कुछ ही साल का बड़ा हूं। ब्याह जल्दी हुआ और बच्चे भी जल्दी हो गए।"

दोनों महाराज जी से सवाल -जवाब करने लगे। 

"आपने पढ़ाई कितनी की है? " 

"मैट्रिक तक पढ़ा हूं, पर पास नहीं हूं।"

 "क्यों ?पढ़ाई में मन नहीं लगता था क्या ?जो पास नहीं हुए ।"

"यह बात नहीं है। जब मैं मैट्रिक में था। तभी मेरी शादी हो गई। मेरा मेट्रिक की परीक्षा का सेंटर ससुराल के करीब पड़ा । पहले ही दिन परीक्षा खत्म होने के बाद पत्नी से मिलने का मन होने लगा, तो ससुराल चले गए । ससुराल में किसी को बताया नहीं परीक्षा छोड़ कर आ गए हैं। क्या इज्जत रह जाता? लेकिन पिताजी बहुत गुस्सैल थे । पिताजी मेरे परीक्षा छोड़ने और ससुराल में होने के कारण आग बबूला है। छोटे भाई से यह खबर पता लगा तो मैं डर से वापस घर गया ही नहीं । भाग गया शहर ।वहीं कुछ साल रहकर होटलों में काम किया और खाना बनाना सीखा। बताइए परीक्षा ही नहीं दिया मैट्रिक पास कैसे करता,?

 सब जोर- जोर से हंसते हुए बोले, "पत्नी को तो कम से कम बता देना था, कि परीक्षा छोड़कर ससुराल में धरना देने आ गए हैं , फिर आपको भी पत्नि के कोप -भाजन के बाद 'तुलसीदास'बनने से कोई रोक नहीं पाता। 

फिर हमें ,इतना अच्छा खाना कौन खिलाता"? उनके बोलते ही सब मुस्कुरा लगे। किसी काम के लिए महाराज जी को पुकारने की आवाज सुनकर वो तुरंत ही बोले

"मूंगफली के तेल में ही बना लीजिए कोई उपाय नहीं" फिर वह  दोस्तों की ओर मुखातिब हुए, तो पाया; वो अब आपस में एक-दूसरे की खिंचाई कर रहें हैं। उन दोनों की बातों को मजा लेते हुए वह सुनने लगे। 

पहले वाले ने कहा "ये अपने भीष्म पितामह को तो देखो आधा चांद निकल आया है,सिर पर फिर भी पढ़ाई में लगे हैं।"

 "तो क्या फर्क पड़ता है? पूरा चांद भी निकल आए ।यूपीएससी क्रेक कर लूं, फिर देखना अपना मार्केट वैल्यू।" जबाब मिला।

" हां क्रैक करके तो बड़ा तीर मार लोगे। नौकरी में अनपढ़ नेताओं के पीछे मनपसंद पोस्टिंग के लिए जी हजूरी करते हुए बीतेगी पूरी जिन्दगी। वह भी तब जब क्रैक कर लोगे ,वैसे सेकंड ऑप्शन बारे में भी कुछ सोच  रखा है?" 

"हाँ सोचकर रखा है, ना कुछ नहीं हुआ,तो कोचिंग खोलूंगा। एक असफल आदमी कई सफल आदमी का निर्माण करेगा"। मुट्ठी उठाकर नारा लगाने वाले अंदर में जवाब दिया था।फिर धीरे से पूछते हुए 

" सच में चांद निकल आया है क्या?" 'और 'कुंवारा नहीं मरना'गाने लगे। ठहाका लगाकर अगले ने उसके सिर को तबला बना गाना शुरू किया, "मेरा यार बनेगा दूल्हा ,जिमी-जिमी आजा-आजा ।  फिर गायकी को विराम देते हुए कहा ,"मुझे  एक  दृश्य भी दिख रहा है ।ये अपने नौनिहाल जिसके दाँत निकलने शुरू हुए हैं के लिए ग्राइप वाटर मांग रहे दुकानदार से अपने कुछ टूटे हुए दांतों के साथ दुकानदार बोल रहा है। चाचा ग्राइप वाटर बच्चों के दांत निकलने में मदद करता है बूढ़ों की नहीं ।"फिर ठहाका उठा था।

जीवन की  भारी से भारी कठिनाइयां भी दोस्तों के साथ कितनी हल्कीै लगने लगती है ? वह सोच रहे थे ।

 शादी होनी थी,हुई। शादी के बाद सब चले गए। मम्मी -पापा भी ।  दोनों ने अपनी गृहस्थी संभाल ली। कहते हैं ,बच्चों की सही परवरिश के लिए माता-पिता दोनों का होना बहुत जरूरी होता है। मां बच्चों में चरित्र का निर्माण करती है ।तो पिता संघर्ष करने की समझ । पत्नी के माता- पिता नही थे। मौसी के संरक्षण में पली-बढ़ी, उनकी पत्नी फिर भी ना केवल ऑफिस में एक समझदार और जिम्मेदार महिला के रूप में जानी जाती थी ;बल्कि घर की जिम्मेदारी को भी बड़ी सहजता से संभाल लिया था ।बेटा होने के बाद कंपनी ने कॉन्ट्रैक्ट केअनुसार फिर से नौकरी पर आने की अनुमति नहीं दी। पत्नी ने भी अपना पूरा ध्यान बेटे तक सीमित कर दिया ।परन्तु जब बेटे को प्ले स्कूल में एडमिशन दिलाने गई ,तो उसी स्कूल में नौकरी के लिए पूछे जाने पर हां करने से खुद को रोक नहीं पाई थी। बहाना था, बच्चे के साथ दिन- भर रहने का मौका भी मिल रहा है । इस तरह देखते-देखते शादी के पांच साल गुजर गए । पता ही नहीं चला। पिछले साल पापा की तबीयत अचानक खराब होने के कारण अच्छे डॉक्टर की सुविधा को ध्यान में रखकर ,उन्होंने मम्मी-पापा को अपने पास ही बुला लिया । लेकिन इतनी जल्दी पापा का साथ छूट जाएगा ।यह नहीं सोंचा था।यह बात याद आते घुटन होने लगी । बाहर बारिश होने की आवाज़ आ रही थी। घुटन को कम करने के लिए उठकर, खिड़की खोलते ही पानी की तेज बूंदे चेहरे पर आकर पड़ी । उन बूंदों ने उनके तन -मन को  खुशनुमा अनुभूति से भर दिया था।अंधेरी रात मे लैंपपोस्ट की रोशनी पर पड़ती पानी की बूंदे बता रही थी, कि तेज बारिश हो रही है ।इतनी तेज बारिश में भीगते कुछ कुत्ते आपस में पता नहीं क्या सलाह मशविरा कर रहे थे। लगातार बरसात में भी यहां किसी का काम करना नहीं रुकता । केकड़े पकड़ने वाले नजदीक के गांव में रहने वाले लोग मध्यम रोशनी में केकड़े  पकड़ रहे थे।जीवन के कठोरतम संघर्ष को यह बता रहा था । पेट की खातिर आदमी क्या नहीं करता ? वह भी तो इस अनजान जगह में जीविकोपार्जन के लिए ही रह रहे हैं या फिर झूठ सम्मान के लिए, ।सच तो यही है कि ,एक अच्छी नौकरी पाकर अपने होने को साबित किया था। नहीं तो पेट भरने के लिए पुश्तैनी जमीन जायदाद की कोई कमी नहीं थी। अपनी बेहतर स्थिति के लिए ईश्वर के प्रति उनका मन कृतज्ञता से भर उठा था।अन्दर पहले वाली बेचैनी कुछ कम लगने लगी ।मन थोङा शांत हुआ ,तो छोटा सा समाधान भी सूझ गया। वह कल से ऑफिस सेआकर टीवी का रिमोट पकड़ने के बजाय कुछ वक्त मम्मी के साथ बिताएंगे। सोचते हुए बिस्तर पर आकर लेटते हुए पास में सोए बेटे देखा। दिनभर शोरगुल शैतानी करने वाला यह शैतान सोते हुए कितना मासूम और प्यारा लग रहा है?फिर धीरे से उसके ओढ़े हुए चादर को ठीक कर करवट लेकर सोने की कोशिश करने लगे। 

 अगले दिन जल्दी ऑफिस से आ गए । हॉल में बैठकर बेटे को होमवर्क कराते हुए ,अपने बचपन की बातें याद कर रहे थे। 

"यहां लीची मिलता है क्या" ?इसी बीच किए गए सवाल से स्तब्ध ही थे, कि फिर पूछा गया और "सतपुतिया झीगी"? 

बड़ी मुश्किल से वह बोल पाए "नहीं यहाँ नहीं मिलता है "।

"अपने यहाँ अभी खूब मिल रहा होगा। पता नहीं अब कब खाने को ये सब मिलेगा,  या मिलेगा भी नहीं" उनकी तरफ देखते हुए वह उदास होकर बोलीं थीं। 

तभी दरवाजे की घंटी बजी "देखता हूं," कहकर उन्होंने दरवाजा खोला, सामने वाले पड़ोसी पति -पत्नी साथ में खड़े थे। उन्हें देखते ही उनकी पत्नी बोल पड़ी "हमारे यहां कल पूजा का प्रोग्राम है। आइएगा जरूर "

 "हां आऊंगा , लेकिन अंदर चलिए, चाय पी कर जाइएगा" उनके कहने पर वह मजबूरी जाहिर करते हुए बोली "अभी नहीं और जगह भी जाना है" मम्मी पर नजर पड़ी तो कहने लगीं "इनको भी लेकर आइयेगा। ये कभी भी बाहर दिखती नहीं, घर में रहकर बोर हो जाती होंगी। पूजा में इनको भी लेकर आइयेगा । बहुत सारे लोगों से पहचान भी हो जाएगी।"

"हाँ क्यो नहीं " उनके कहते ही

 मुस्कुराकर जिस हड़बड़ी के साथ आए थे। उसी हड़बड़ी के साथ वापस चले गए। 

अगले दिन पूजा में नहीं जाने की ज़िद लिए मम्मी मान हीं नहीं रही थी। ये क्या हो गया है इनको ?ये तो रिश्तेदारी और मोहल्ले मैं ब्याह शादी मुंडन जनेऊ कुछ भी हो, में गीत गाने, बड़ी -तिलोरी डालने में सहयोग करने के लिए हमेशा तैयार रहती थी। यहां तक की विदाई के समय रोती भी थी ।बचपन में कई बार पूछा था "कि वह सच में रोती हैं, या झूठ -मूठ का रोने का नाटक करती हैं।

"झूठ -मूठ का कोई रोता है, क्या?" वह बोलती तब उन्हें परेशान करने के लिए वह उनकी रोने का नकल करते, वह हंसते हुए कहतीं "लड़के भी भला रोते हैं ,लड़कों को रोना शोभा नहीं देता?" 

 थोड़े प्रयास के बाद बुझे मन से ही सही परन्तु जाने के लिए वो तैयार हो गईं । पत्नी काम में हाथ बटाने के लिए पहले ही चली गई थी ।मम्मी और बेटा को लेकर वह पहुंचे तो, कुछ औरतें उठ कर आ गई और उन लोगों अपने साथ पूजा के कमरे में चलने के लिए बोली कमरे में पूजा में बुद्ध की मूर्ति रखी हुई थी ।सामने दिया और अगरबत्ती जल रहा था ;साथ में पूजा की सामग्री थाल में रखी थी ।महिलाओं द्वारा पूजा करने के लिए कहने पर मम्मी पूजा करने के वजाय सवालिया निगाहों से उनकी ओर देखने लगी। उन्हें समझते देर नहीं लगी मम्मी के मन में कौन सी दुविधा ने जन्म ले लिया है?जल्दी से पूजा करते हुए , उनके मस्तिष्क ने हल ढूंढ लिया बोले पूजा खत्म कर बोले"जबसे पापा नहीं रहे, तब से पूजा करने में इनका मन नहीं लगता। "कोई बात नहीं है, प्रसाद ले लीजिए उसमें से एक महिला ने प्रसाद देते हुए कहा" 

"मुझे दे दीजिए ,मैं इन दोनों को दे दूंगा "कहते उन्होंने प्रसाद लेने के लिए झट से हाथ बढ़ा दिया। उस महिला ने ताड़ने वाली निगाहों से देखते हुए उनकी हाथ में प्रसाद देते हुए बोली "खाने का भी इंतजाम है, खाकर जाइएगा"। 

"हां क्यों नहीं? " कहने को कह तो गए पर उन्हें पता था ,मम्मी खाएगी नहीं, लेकिन अब बहाना बनाना उन्हें मुश्किल लग रहा था। मम्मी को समझाने के अलावे अन्य विकल्प उनके पास नहीं था ।उन्होंने समझाना शुरू किया " खाने की जिम्मेदारी तो कैटरर ने संभाल रखा है । इसलिए खाने में क्या हर्ज है ?बाहर होटल में खाती है, कि नहीं इसलिए खा लीजिए नहीं तो इन लोगों को बहुत बुरा लगेगा ।बार-बार समझाने पर आखिरकर उनकी बात मान कर वह खाने के लिए तैयार हो गई । खाने में टेबल पर लगाई गई खाने की कई चीजें उनके लिए नए प्रकार की थी। बड़ी मुश्किल से वह अपने लिए प्लेट में कुछ लेकर खा पाई। उन्हें लगा चलो सब कुछ सही से निपट गया। लेकिन ऐसा नहीं था ।विदा लेते हुए मेजबान की बेरुखी को उन्होंने स्पष्ट महसूस किया था।

 घर में मम्मी को लेकर कभी झगड़ा नहीं हुआ था, लेकिन उस रात पड़ोसी के यहाँ की  महिलाओं के द्वारा की गई , अनवांछित टिप्पणी के कारण पत्नी गुस्से  में थी ।फिर  दोनों के बीच बुरी तरह से झगड़ा हुआ।   ये सब देख बेटा रोने लगा । बेटे  का भय के साथ रोते चेहरे को देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगा । अपने गुस्से को दबाकर बड़ी मुश्किल से उन्होंने चुप होकर लड़ाई तो खत्म दी थी ।लेकिनउनके भीतर का बकबक कहां बंद हो रहा था? वह तो रुक ही नहीं रहा था। मम्मी ने कुछ भी गलत नहीं किया। उन्होने तो उनकी हर बातको मानकर अपनी तरफ से उनका पूरा सहयोग किया था।बचपन से वो जिन संस्कार और मान्यताओं में पली-बढ़ी, उनके लिए उम्र के इस पड़ाव यह तोड़ पाना बड़ी मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है । यह बात उनकी पत्नी समझ क्यों नहीं रही ? वह तो ऑफिस में काम की है। उन्हें तो मालूम है। आफिस में मैनेजर के सामने कोई कुछ नहीं बोलता, लेकिन बाद में उनकी जाति को लेकर लोग कितनी बातें करते हैं। यहां तक कि उस बात को लेकर राजनीति भी करते हैं।और तो और जिस सोसायटी में रहते हैं वह भी ऐसी बातों से अछूता नहीं है। फिर भी वह तिल का ताड़ बना रहीं है। घड़ी पर नजर पड़ी तो घड़ी की सुईयो ने चेताया। अभी रात बहुत बहुत हो गई है ,सो जाओ। वह सोने की कोशिश करने लगे । 

अगले दिन सुबह भी रात के झगड़े का असर था। दोनों पति-पत्नी सीमित शब्दों के आदान-प्रदान के साथ तैयार होकर काम पर निकल गए ।शाम को घर आकर फ्रेश भी नहीं हुए थे,कि मम्मी आकर बोली "मुझे घर जाना है पहुंचा दो "।

"क्यों क्या हुआ"? हतप्रभ हो उनके मुंह से बस इतना ही निकला था ।

"कुछ नहीं हुआ बस घर पहुंचा दो।अब यहां नहीं रहना है। लड़खड़ाते शब्दों और भरी आंखों से वह बोली थीं"। 

 बाहर से हाथ में बैट बॉल लिए आता हुआ बेटा बोला "दादी जब मैं खेलने गया था। तभी मम्मी औरआपका झगड़ा खत्म हो गया था ।फिर भी आप अब तक रो रही हैं। चुप हो जाइए। मम्मी को पापा से डांट पड़ेगी तो, फिर वो कभी आपसे नहीं लड़ेगी"। 

मम्मी तो पूछने पर कुछ बताएगी नहीं यह सोच कर वह दन - दनाते हुए पत्नी के पास पहुँचकर बोले "यह सब क्या हो रहा है इस घर में ? घर में रहने के भी कुछ कायदे कानून होते हैं। अगर मालुम नहीं तो कम से कम भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचे यह ख्याल  तो रखो । दूसरों के लिए अपनों से लड़ना कहां तक सही है?और सुन लो यह घर मेरा है और मेरी मां को कोई कुछ कहे ,यह मुझे बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं होगा "।

"तो अब मैं 'कोई ' हो गई। तुम पुरुषों के लिए पत्नी का महत्व ,तभी तक रहता है। जब तक कोई तीसरा यानि दोस्त, मां -बाप ,भाई बहन या कोई और ना आ जाए। यह घर मेरा है ही नहीं तो इसमें क्यो रहूँ? माना कि, मायके में मेरे माता-पिता नहीं हैं। मौसी है, तो क्या हुआ ? पहले से ही कम अहसान नहीं की है, फिर से एक और अहसान सही।घर से निकाल नहीं देंगी, कहते-कहते रोते हुए अपना सामान पैक करने लगी ।

उनका मन पलभर के लिए रोते देख पिघला, लेकिन गुस्सा फिर से हावी होने के कारण बोले" जिसे जहां जाना है जाए,मैं रुकूंगा नहीँ।"

"एक तुम्हारी मम्मी और एक तुम श्रवण कुमार रहो इस घर में। मैं बेकार में इस घर को अपना घर समझती रही। रहो अपनी मां के साथ अपने घर में मैं जा रही हूं ।अपने बेटे को साथ लेकर।   यह कहकर वह बेटे को पुकारने लगी। कुछ मिनट बाद" आ रहा कहते हुए ,बेटा दादी के साथ आ पहुंचा था। वह गुस्से से दूसरी तरफ देखने लगीं। 

बेटा बोला "मुझे पापा के साथ रहना है  " मैंने दादी को मना लिया है। वो आपको ' सॉरी 'कहने के लिए तैयार हैं, दादी सॉरी बोल दीजिए मम्मी को वह बोला तो; उन्हें वहां रहना बर्दाश्त से बाहर लगने लगा ।इसलिए घर से बाहर निकल गए ।दो-तीन घंटे बाहर रहने के बाद वापस आए ,तोउन्होंने पाया मुख्य दरवाजा अंदर से बंद नहीं है। अंदर आकर दरवाजा बंद कर पहले मम्मी के कमरे में गए। मम्मी पीठ करके सोई हुई थी। उन्हें पता था ,वह सो नहीं रही ।एक मन किया कि मम्मी के पास जाकर जो कुछ हुआ,उसके लिए माफी मांगे ,लेकिन अभी स्वयं को भीतर से कमजोर महसूस कर रहे थे। इसलिए उनकी हिम्मत हीनहीं हुई, कि जाकर उनके पास बैठे ।अपने कमरे में गए ,तो देखा बेटा सो रहा है और पत्नी भी आंखें मूंदकर पड़ी हुई है।भूख लगी थी ,लेकिन कुछ खाने का मन भी नहीं कर रहा था।परन्तु माहौल में आई नरमी से कुछ सुकून सा लग रहा था। बेड पर लेटते ही गहरी मानसिक थकान के कारण आंखें जल्दी ही नींद से भारी लगने लगी। नींद में जाते हुए, उन्हें कहां पता था ।जब सुबह नींद खुलेगी, तो एक भयानक बवंडर का सामना करना पड़ेगा,  जो उन्हें ताउम्र ठीक से सोने नहीं देगा । अलसुबह पत्नी ने उन्हें झकझोर कर उठाते हुए कहा "मम्मी अपने कमरे नहीं हैं"। 

"क्या :?

ठीक से कुछ  सुने समझे बिना मम्मी के कमरे की तरफ भागे थे । उन्हे वहाँ नहीं पाकर घर में ही होगी जाएँगी कहां? यह कहते हुए उन्हें पूरे घर में ढूंढा था । वह अपने साथ कपड़ाऔर पैसा कुछ भी तो नहीं ले गई थीं। हर दिन नहाकर साफ कपड़े पहनने की उनकी आदत थी और खाना कैसे खाती होगी? ऐसी बातें ख्याल में आते ही वह स्वयं पर नियंत्रण खोने लगते थे। कहां-कहां नहीं ढूंढा ?यह दस वर्ष कैसे बीता ?यह उन्हें ही पता था। जिस तारीख को मम्मी घर छोड़ कर गई। उनके भीतर का भय का रिश्ता उस तारीख से जुड़ गया ,जो वक्त के साथ और भी गहरा होता गया। पास की मन्दिर में शाम की आरती में बजने वाली मंदिर के घंटे की आवाज को सुनकर उनके सोचने का सिलसिला भंग हुआ। बेटा कोचिंग से वापस घर आ गया होगा। वह एक प्रोजेक्ट तैयार कर रहे हैं। सबमिट करने से पहले एक बार चेक करना जरूरी है । बेटे की मदद से यह काम आसान हो जाएगा। यह सोच उसके कमरे की ओर बेड से उतरकर जाने लगे। कमरे के पास पहुंचते ही बेटे की आवाज सुनाई पड़ी, "मम्मी आप पापा को समझने की कोशिश क्यों नहीं करती?वो वहीं रूक गए, वह बोल रहा था "वो लोग मुझे भी बहुत प्यार करते हैं। खासकर दीदी,सच कहूँ मैं ;उनलोगों से ज्यादा मुझे बुरा लगेगा वहाँ नहीं जाकर।लेकिन पापा के कहे को मानना हम लोगों के लिए अधिक जरूरी है ।जिस दिन से दादी घर छोड़कर गई, उस दिन से उन्हे अंदर ही अंदर तिल -तिल मरते हुए महसूस किया है। 

"पापा का इतना ख्याल है ,तुम्हें मेरा नहीं। मुझे कितना अपराध-बोध महसूस होता है? इस बात को लेकर अगर मैं ओवररियकट नहीं करती; तो ये सब होता ही नहीं। पत्नी की प्रतिक्रिया सुनाई  दी  थी।

 "एक बार आपने ही उदाहरण देकर समझाया था,कि मखमल का कपड़ा और सूती कपड़ा का देखभाल और उपयोग एक तरीके से नहीं कर सकते। 

दोनों की अपनी- अपनी क्षमता और गुण-धर्म है । आपने अपने आपको किसीं तरह सम्भाल लिया ,लेकिन पापा ऐसा नहीं कर पा रहे हैं । मुझे उन्हें और टूटने नहीं देना है। बेटे की ऐसी बातें सुनकर उनकी आंखें भर आई।

अपने आप में बुदबुदा उठे। पिता वह हैं  और पिता वाली जिम्मेदारी बेटा लेने की कोशिश कर रहा है।  

'अच्छा बेटा नहीं हो पाए तो क्या? अच्छा पिता उन्हें बनना ही होगा। ' अपनी सोच उन लोगों पर लादकर उनके जीवन में जटिलताओं को नहीं बढ़ाएंगे ।तभी लगा  दरवाजे पर खट की आवाज आई है ।इस बार वो उस आवाज को अनसुना करने और उससे होने वाली'अनकही  पीङा' को छिपाकर अपने आपको सम्भालने की कोशिश कर रहें थे।


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