Dr. Poonam Verma

Abstract Classics

4.5  

Dr. Poonam Verma

Abstract Classics

अकेला एक आदमी।

अकेला एक आदमी।

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"बेटा रूक जाओ देखो भाभी तुमसे थोड़ी ही देर बात करके कितनी खुश लग रही हैं?"बुआ बड़े प्यार से कहते हुए रोकने की कोशिश कर रही थी। बुआ से नजर हटाकर मम्मी की ओर देखा तो लगा उनकी कातर निगाहें भी उनसे रुकने के लिए कह रही है।

मन में विचार किया ही था, कि थोड़ी देर और रुकने कि ,फोन पर मैसेज आने लगा ,सर जल्दी आ जाईए पेशेंट को होश आ गया है। डॉ० कह रहे हैं व्यान लेना है ,तो ले सकते हैं।

अब तो रुकना सम्भव नहीं, जाना ही होगा।वक्त नहीं दे पाने की बेबसी को अपनी झूठी मुस्कान से छुपाते हुए, छोटे भाई से बोले "अच्छा डिसीजन तुम्हारा मम्मी को इस हॉस्पिटल में भर्ती करवाने का यहां सब कुछ एकदम व्यवस्थित लग रहा है। ख़र्च की चिंता बिल्कुल मत करना, इलाज में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। फिर कंधे पर हाथ रखकर पूछा सब सभाल लोगे ना।

भाई ने हाँ में सिर हिलाया।

लेकिन बुआ भमककर बोली थी 'पैसा से इलाज करवा सकते हो। जिंदगी नहीं खरीद पाओगे।भगवान ना करे भाभी कुछ हो गया हो तब वक्त , पैसा सब तुम्हारे पास होगा।बस भाभी नहीं रहेंगी।अपनी मम्मी की सूरत देखने के लिए तरस जाओगे। नौकरी में छुटटी छुट्टी नहीं मिलती क्या? तुम्हारे फूफा भी तो बड़ाबाबू थे।वक्त बेवक्त की घर की जरूरी काम के लिए जब भी जरूरत पड़ी छुट्टी लेकर अपनी जिम्मेदारी ,कितनी अच्छी तरह से निभाए ; ये हमसे पूछो हम बताते हैं। तुम्हारे पास मम्मी के लिए समय नहीं है ।पत्नी और बेटी के लिए तो समय मिल ही जाता होगा। "

हर बात का जवाब दें, यह उनके स्वभाव में नहीं था। मम्मी की हथेलियों को अपनी हथेलियों में लेकर शाम को आता हूँ। ऐसा कहकर बुआ प्रणाम कर तीखी नजरों को नजरअंदाज करते हुए जाने लगे। तो बुआ फिर से बोली" "हां शाम को आना तो अकेले मत आना बहू और अपनी बेटी क्या नाम है बताए तो हो एक तो नए जमाने का नाम उसपर कभी एक दिन भी तो साथ रही नहीं, नाम याद रहे भी तो कैसे ?उसको भी साथ में लेते आना। "ठीक है " 

कहकर वहां से निकल तो गए ,लेकिन सोचने लगे ,शाम को किसी तरह समय निकालकर वह तो आ भी जाएंगे। पत्नी और बेटी साथ रहती कहां है? जो लेकर आ पाएंगे। वह दोनों तो उनके पास ही महीने में गिने-चुने दिन  रहती है।

 पति का गवर्नमेंट बंगलो बड़े उद्योगपति पिता की बेटी को मुर्गी का दरबा लगता है। मायके में बड़ा सा घर, कई गाड़ियां, वेल ड्रेस्ड और एटिकेट को जानने बाला ड्राइवर यहाँ तो सरकारी जीप भोजपरी मिलाकर हिन्दी बोलता डाईवर पत्नी की आदतन हिन्दी और इगलिश कही गई बातों को सुनकर कभी तो समझता है। कभी मुंह खोल कर बस देखता ही रह जाता है। बड़ा अंतर दोनों जगहों के बीच सूनापन और पार्टियों का शोर का भी था।उसपर से पत्नी की सबसे बड़ी शिकायत यह भी थी, कि उसके लिए उनके पास वक्त नहीं है। अब तो बड़ी होती बेटी भी यही शिकायत करने लगी है। सबकुछ सह लेते हैं ,लेकिन जब बेटी ये कहती है "आपसे अच्छे तो नाना जी है। आपसे ज्यादा प्यार करते हैं ,जो मांगो ला कर देते हैं और अच्छी -अच्छी कहानियाँ भी सुनाते हैं।" तब वह बड़े असहज हो जाते हैं।

इकलौती बेटी की इकलौती बेटी यानी अपनी नातिन के लिए नाना हर समय हाजिर रहते हैं। विशिष्ट नौकरी करते हुए भी वह हैं, तो नौकर ही पाबंदियों से बंधे हुए और नानाजी हैं, एक सफल बिजनेसमैन अपनी मर्जी के मालिक यह आठ वर्ष की उनकी बेटी कहाँ समझ पाती। अपने -अपने हिस्से का सुख।इस सोच के साथ उन्होंने अपनी पारिवारिक जिंदगी को सामंजस्य की पटरी पर डाल रखा है।

हॉस्पीटल के बिल्डिंग से बाहर निकलकर जैसे ही अपनी जीप की ओर बढ़े। उनके जीप के पीछे दूसरा जीप जो पुलिसकर्मियों से भरा था। उसमें बैठे सारे पुलिसकर्मी सतर्क और सावधान हो स्वयं को व्यवस्थित करने लगे। अभी- अभी थोडी देर पहले अपने परिवारिक जीवन को सोचते हुए ,जो उनके कन्धे में आत्महीनता के भाव के कारण ढीलापन आया था। पुलिसकर्मियों को ऐसा करते देख ,उन्हें अपने कंधे में अकङ सी महसूस हुई। इसे कहते हैं, रूतबा यह सबको कहाँ मिलता है? मिला है, तो बदले में जिम्मेदारी भी उठानी ही पड़ेगी।

"सर कई बार हॉस्पिटल से फोन आ चुका है "उनका जूनियर बोला था।

 "हाँ ठीक है ,आप जीप स्टार्ट करवाइए।"

"यस सर " कहकर जूनियर अपने काम में लग गया।

वह सोचने लगे चलो आज तो कुछ नतीजे पर पहुंचेंगे।पिछले कई दिनों से जातीय हिंसात्मक झड़प के कारण उनके डिपार्टमेंट में तनाव का माहौल बना हुआ था। घटना में घायलों में से एक व्यक्ति को कई दिनों के बाद होश आया है, इसलिए उसका व्यान लेकर इस मामले को एक नई दिशा दे सकते हैं। 

जीप के रुकते ही पत्रकारों और विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं की भीड़ उनके जीप की ओर बढ़ी।इस सबसे बचकर वह निकलना चाहते थे।

लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

भीड़ सब तरफ से घेरकर उनसे ताबड़तोड़ सवाल पूछने लगी। सबको झड़प के सही कारण की जानकारी चाहिए था ,क्योंकि अटकलें इस मुद्दे पर तो अबतक बहुत लगाई जा चुकी थी। वह भी सबको एक ही जवाब दे रहे थे। झड़प में घायलों में से किसी को होश आ जाए। सही कारण तभी वह बता सकते है।भीड़ से निकल कर एक महिला इतने सवाल करते लगी ,कि उन्हें रूकना पड़ा। स्वयं को नियंत्रित करते हुए वह जबाब देने लगे।

लेकिन उनका जूनियर इस व्यवधान से चिढ़कर आवेश में बोल पड़ा "मैडम हमें अपना काम तो करने दीजिए। बेकार में आप हमारा वक्त बर्बाद कर रहीं है।

"मैं वक्त बर्बाद कर रही हूं, पर्सनल सवाल कर रही हूँ? " जूनियर बात काटते हुए बोला" आपके जैसों का पर्सनल सवाल का जवाब कौन देना चाहेगा। वैसे वह बोलना तो चाह रहा था।आपके पर्सनल बातों जवाब कौन देना चाहेगा।

 "जैसों का" मात्र दो शब्दों ने महौल को पूरी तरह से गर्म कर दिया।

"माइंड योर लैंग्वेज से शुरू होकर बहस महिलाओं के सम्मान तक पहुंच गया।"  कुछ लोगों को बहुत ही मजा आने लगा चुटकी ले -लेकर मजे लेने लगे।वह दोनों को शांत करने की भरपूर कर ही रहे थे ,कि फोन बजने लगा।फोन छोटे भाई का था घबराई आवाज में बोल रहा था "मम्मी की तबीयत बहुत खराब हो गई है।जल्दी से आ जाइए।

सिर को पकड़कर वह स्वंय को संभालने की कोशिश करने लगे।


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