Dr. Poonam Verma

Inspirational

4.1  

Dr. Poonam Verma

Inspirational

स्पर्श

स्पर्श

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, तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उनके कंधे पर जब शाल लपेटा गया तो, कंधे की एक तरफ उन्हें स्पर्श सा महसूस हुआ ।यह स्पर्श कई वर्ष बीतने के बाद भी जैसा पहली बार महसूस हुआ था बिलकुल वैसा ही हर उपलब्धि के बाद उन्हें महसूस होता है। प्रशंसा में जाने क्या -क्या उनके बारे में बोला जा रहा था ,परन्तु वह कुर्सी मे बैठते ही आस-पास को भूल अपनेे बचपन में जा पहुंचे थे। वो दिन याद है। जब वह अपने पिता से पिटने से बचने कि लिए पूरे शरीर और मुंह ढक कर सोने का नाटक कर रहे थे। इस कोशिश में कभी उनकी सांस तेज हो रही थी ,तो कभी रुकती सी मालूम पड़ रही थी। उन्हेे लग रहा था। पिताजी अभी के अभी आएंगे और खींचकर उसे चादर से निकालकर अच्छी तरह से धुनाई करेंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ ।आधे घंटे बाद पिता की खर्राटे की आवाज सुनकर उनका डर कुछ कम हुआ था । जब डर कम हुआ तो अपनी की हुई गलती याद आने लगी। कंपटीशन के लिए अच्छी सी पेंटिंग करनी थी । इसलिए पिता के टेबल जिस पर पिताजी की फाइलें और जरूरी चीजें रखी रहती थी। बैठकर उन्होंने बड़े मनोयोग से पेंटिंग करना शुरू किया। पिताजी की उपस्थिति में तो टेबल पर कोई हाथ भी नहीं लगा सकता था। हाँ अनुपस्थिति में आराम की दृष्टि से उस टेबल का प्रयोग वह कर लिया करते थे ।परन्तु ध्यान रखते थें ,कि टेबल पर रखे सामान जरा भी इधर-उधर ना हो पाए । पेन्टिंग करते हुए पता नहीं कैसे हाथ के झटके से एक कलर बॉटल के साथ कुछ फाइल भी गिर पङे।फाइलों से निकले कुछ पन्नो पर कलर फैल गया । मन के डर ने कहा कि जिन पन्नों पर कलर लगा उन्हें फेंक दे। लेकिन हिम्मत नहीं हुई । अब पिटाई के डर से नींद नहीं आ रही थी ।

अगले दिन सुबह फिर से वही डर शुरू हो गया।लेकिन उस दिन पिताजी जल्दी ऑफिस चले गए । शाम को पिताजी जब वापस आए तो उनके हाथों में फोल्डिंग टेबल के साथ ड्राइंग और पेंटिंग से जुड़े कुछ पुस्तकों भी थे । उन्हें पुस्तक थमाकर उनके डर और आश्चर्य वाले चेहरे को देखते हुए मुस्कुराकर कंधे पर हाथ रखकर बोले ,"अपनी जरूरतें बतया करो।मुझे नहीं बतलाओगे तो किसे बतलाओगे? कल तुम्हारे शिक्षक घर आते हुए रास्ते में मिल गए थे। तुम्हारी पेंटिंग की बहुत तारीफ कर रहे थे। वह नहीं बताते तो मुझे पता भी नहीं चलता। तुम्हारी सारी उम्मीदें ईश्वर पूरी करें ईश्वर से प्रार्थना है ।  पिता के कहे शब्दों और हाथों  के स्पर्श ने उन पलों में जो विश्वास उनके अंदर भरा हमेशा ही कायम रहा। पिताजी के नहीं रहने के बाद भी ।

अचानक अपना नाम सुनकर उनकी सोच भंग हुई थी।


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