Dr. Poonam Verma

Inspirational Others Children

4.8  

Dr. Poonam Verma

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अपनापन

अपनापन

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दिसंबर का दोपहर था। बाहर मुंबई की तेज धूप थी, लेकिन एयरपोर्ट के अंदर एयर कंडीशन होने के कारण गर्मी से राहत मिली तो अच्छा लगा। अभी एअरपोर्ट पर लेकर बैठे हुए , दस मिनट ही हुए थे;कि गोद में बैठी मेरी बङी बेटी जो ढाई महीने की थी , का रोना शुरू हो गया । मेरी समझ इतनी ही थी; कि बच्चे भूख लगने पर रोते हैं। इसलिए मैंने सोचा, कि शायद भूखी लगी होगी। इसलिए रो रही है ।मैंने दूध बनाकर उसे पिलाया।कुछ मिनट वह दूध पीने के बाद शांत रही ,लेकिन थोड़ी देर बाद उसका रोना फिर से शुरू हो गया । हमें दिल्ली जाना था और प्लेन का डिपार्चर पैंतालीस मिनट बाद था।जब अनाउंसमेंट हुआ तो ,मैं लाइन में लग गई ।बेटी को चुप कराने की हर कोशिश में नाकाम रही ,मैं बुरी तरह से परेशान थी। बहुत ही मुश्किल हो रहा था, लाइन में लगे रहना। उसी वक्तअचानक एक उम्रदराज सामान्य वेशभूषा वाली महिला मेरे पास आकर अपना टिकट दिखाते हुए, जो कुछ जानकारी चाहिए वह मुझसे पूछने लगीं। 

मैं बुरी तरह से परेशान होने के कारण किसी बात का जवाब देना नहीं चाहती थी ,लेकिन वह अकेली हैं और अपने बीमार बेटा से मिलने के लिए अकेली यात्रा कर कर रही है। बताते हुए अजीब सा डर उस महिला के चेहरे पर देखकर मैं सहायता करने से अपने आप को रोक नहीं पाई ।महिला की हाथों से टिकट लेकर देखा,तो पता चला कि हम दोनों का सीट साथही है। "मेरे साथ रहिए आपको कोई दिक्कत नहीं होगी" मेरे यह कहने पर उनके चेहरे पर घबराहट जगह सुकून देख कर मुझे अच्छा लगा ।

अंदर जाकर सीट पर बैठने तक एयर होस्टेस से लेकर हर कोई बेटी के बारे में पूछ रहा था।वह इतना रो क्यों रही है? मैं क्या जवाब देती ,जब मुझे खुद ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था। 

  सीट पर बैठने के साथ उसमहिला ने जब रोने का कारण पूछते हुए संभावना जताते हुए कहा " ठंड लग रही होगी, इसलिए इतना रो रहीं है । "मुझे भी लगा शायद वह सही कह रही है। एयर होस्टेस ने कहने पर ब्लैंकेट लाकर दिया, तो उन्होंने ना केवल डायपर चेंज करने में मेरी मदद की, बल्कि ब्लैंकेट में अच्छी तरह से लपेटा । गर्मी और ठंड का मामूली परिवर्तन भीबच्चे के लिए परेशानी का कारण होता है और सबसे ज्यादा बच्चे को ठंड से खतरा होता है । यह सारी बातें बता कर बच्चे को गोद में कैसे लिया जाता है। जिससे बच्चा गर्मी महसूस कर सकें। यह भी बताया। मैंने बेटी को गोद सही ढंग से नहीं ले रखा है ।ऐसा कहकर मेरी गोद से उन्होंने अपनी गोद में बेटी को ले लिया। कुछ देर बात उसका रोना बंद हो गया। गर्माहट मिलने के कारण सो गई।

  मेरे मन में एक वाक्य अटक गया था। ठंड से बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा होता है । बड़ी मुश्किल से मैं अपने आंखो में आते हुए आंसुओं को रोक पा रही थी।

 मेरी मनो स्थिति समझ वह बोली "डरिए नहीं ईश्वर है, सब ठीक होगा। हां इतना जरूर करिएगा डॉक्टर से सलाह जरूर ले लीजिएगा ", फिर बेटी की तरफ देखते हुए बोली ;"आप मुस्कुरा रहीं हैं। मम्मी हैं कि डर से मरी जा रहीं है।"

  आज भी उस बात को याद करती हूँ , तो लगता है । अपने ना होते हुए भी ये बुजुर्ग जरूरी होते हैं ।


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