कलियुग का धर्म
कलियुग का धर्म
त्रेतायुगीन रावण का पुतला कलयुग में दशानन रूपी मुखौटा के साथ मैदान में लगाया गया था ।
हजारों दर्शकों के बीच पहली बार रावण दहन देखने आए, एक प्रौढ दर्शक के मन में तरह-तरह के प्रश्न उठ रहे थे। दशानन को दस सिर के कारण सोने में कष्ट नहीं होता होगा क्या? करोना से बचने के लिए मास्क लगाना पड़ता तो ,कितना कठिन होता?
तभी तीव्र ध्वनि के साथ धड़ाम की आवाज आई।कोई गिरा, पर गिरा कौन? जानने की उत्सुकता हुई थी , कि भगदङ मच गई ।लोगों की भारी भीड़ उन्हें जोर का धक्का देने लगा। ऐसे में डर लग रहा था , कि कहीं गिर ना जाए इसलिए अपने आपको संभाले रखने के लिए उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी। यह जरूरी भी था ।क्योंकि उन्हें पता था , कि भीङ गिरने पर कभी किसी को उठाती नहीं बस कुचलती है।
जाने कितनी देर तक धकियाए गए ज्ञात नहीं ।लेकिन अभी जहां वह खङे थे । वहां सामने रावण का धङ तो खड़ा था , लेकिन सिर गिरा पड़ा था। उन्होंने सोचा अब घबराने की कोई बात नहीं; क्योंकि वहां उनके अतिरिक्त कोई नहीं है। पर सच तो यह है , कि कोई भी कहीं भी अकेला नहीं होता। शुन्य भी किसी की उपस्थिति में शुन्य होता है।घनघोर अंधेरी रात और निर्जन में होने पर भी टिमटिमाते हुए तारों वाला आसमान का साथ होता है।
वहां भी कोई उपस्थित था ।जिसके कराहने की आवाज उनको सुनाई दी। वह इधर-उधर देखने लगे कौन हो सकता है? किधर से आवाज आ रही है? ध्यान दिया तो दिखा, लहुलुहान कोई दशानन के सिर के नीचे दबा पड़ा कराह रहा है। उधर माइक से भीड़ को शांति और सब्र बनाए रखने के लिए बार-बार अनुरोध किया जा रहा था।यहाँ रूकना ठीक नही। जितनी जल्दी हो यहां से निकल चलना चाहिए । यही उनके लिए ठीक रहेगा। उनके मस्तिष्क ने उनके भले के लिए उन्हें सुझाया था ।लेकिन फिर भी मन नहीं माना और वह कराहने वाले व्यक्ति की ओर खींचे से चले गए ।
किसी को अपने करीब देखकर घायल व्यक्ति वड़ी ही धीमी आवाज में रुक रुककर बोलने लगा "कृपया आपके पास कुछ समय है। तो मेरी बात सुन लीजिए। अपनी बात कहे बिना मैं चैन से मर नहीं सकता। बात यह है, कि रावण दहन करने के लिए तीर चलाने वालों में मैं भी हूं। यह मालूम कर किसी ने मुझे रुपयों का लालच देकर बम विस्फोट करने के लिए मना लिया। मै बम लगाने के लिए उचित जगह ढूंढ रहा था ,कि रावण का मुखौटा मुझ पर गिर पड़ा । इस तरह इस मुखौटे ने असंख्य लोगों की जान मुझे तत्काल दंड देकर बचाया। लेकिन मेरी गलती की सजा किसी बेकसूर को नहीं मिले इसके लिए आप कुछ कर सकते तो जरूर करिएगा ।"
वह बड़े असमंजस में थे ।क्या करें?क्या ना करें ?तभी उनकी ऑखे रावण के मुखोटे पर बनी बङी- बङी ऑंखों से टकराई । उन आंखों को देखकर उन्हें ऐसा लगा जैसे, कि रावण अपनी आंखों से उन्हें कह रहा हो -
"मैं लालची रावण ,जिसे किसी से भी छीनने और किसी का बुरा करने में ही आनंद आता था। फिर भी अच्छाई का काम कर सकता हूं, तो तुम भी अवसर का लाभ उठाते हुए भलाई करने का मौका मत चूको।
अगले दिन न्यूज़पेपर में न्यूज़ छपा था । रावण के मुखौटे के गिरने से रावण दहन देखने आए भारी भीड़ में भगदड़ मच गई। लेकिन कोई हताहत नहीं ।असली दोषी की घटनास्थल पर ही मौत । न्यूज़ पढ़ते हुए उन्होंने राहत भरी गहरी सांस लेते हुए रावण के पुतले की छपी हुई फोटो के आंख में आंख डालकर गर्व से अपनी छाती को फुलाकर मुस्कुराहट के साथ देखा।
हैं ?
दशानन की आंखों में उन्हें प्रशंसा क्यों नहीं दिख रहा है ?तभी कहीं से गाने का स्वर आता सुनाई पङा। "स्वैग से करेंगे सबका स्वागत" गाना को अनसुनी करते हुए वह फिर से रावण की आंखों की ओर ध्यान देने लगे।इस बार आंखें कह रही थी। "देखो खबरी भलाई कर याद मत रखो। क्योकि हर युग का अपना एक धर्म होता है ।अभी कलयुग चल रहा है । भोले -भाले भलाई के लिए विषपान करने वाले भोलेनाथ की तरह बनोगे तो बौराहा पुकारे जाओगे और मेरी तरह किसी का भी नहीं सुनोगे तो घमंडी। वैसे कभी सोचा है लंकापति रावण को जलाते हुए कि पूरी लंका को जलाने वाले हनुमान ने मुझ रावण को क्यों नहीं जलाया? क्योंकि दस सिर होने के बाद भी मेरा एक ही ध्येय था। भगवान राम के हाथों मृत्यु का वरण । मैने जीवन जीना ही नहीं बल्कि मृत्यु भीअपनी अंतरात्मा को सुनकर चुना था ।तभी गणपति को भी अपना क्रोध शांत करना पड़ा और राम को भी साधारण मनुष्य बनकर संसार में आना पड़ा । तुम कलयुगी एक ही मस्तिष्क में मल्टी ब्रेन का भ्रान्ति लिए मल्टीमीडिया कालीन लोग अपनी अंतरात्मा की नहीं औरों की सुनते हो।तो सुनो ध्यान से सुनो गाना को 'स्वैग से करेंगे सबका स्वागत 'सुनाई दे रहा है ? स्वैग जिसका अर्थ लूटमार भी होता है और उत्साह भी। ऐसे भी बनकर रहोगे तो सुखी भले ही नहीं रहो । सुखी दिखोगे जरूर। जो कहीं अधिक जरूरी है।