पेट का ढक्कन !

पेट का ढक्कन !

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सुजाता, तुम्हें याद है - वो कहानी जो दादी माँ हमें सुनाती थी, खत्म होने के बाद पूछती - क्या खीख मिली ?

अच्छा वो, याद है ना, सुनाऊं ?

सुना ना, आज दादी माँ की बहुत याद आ रही है। सुजाता ने एकदम दादी माँ के स्टाइल में सुनाना शुरू किया - बहुत पहले की बात है - भगवान शिवजी और माता पार्वती सृष्टि की यात्रा के लिए निकले। सबसे पहले उन्होंने उस बहु को देखा जिसका मायका ससुराल से बहुत कम हैसियत वाला था फिर भी माता-पिता ने दान दहेज बहुत दिया लेकिन धनी ससुराल में तो ये सब ऊंट के मुंह में जीरे के समान था। बहु सुघड़ - समझदार थी दोनों घरों की मर्यादा बनाए रखने की भरसक कोशिश करती जबकि सास हर वक्त मायके को लेकर ताने देती रहती। बहु ससुराल में मायके की तारीफ करतीं तो मायके में ससुराल की, ससुराल - मायका एक ही शहर में था फिर भी बहु को तीज-त्योहारों पर भी मायके जाने नहीं दिया जाता था, भाई लेने आता तब भी नहीं। कहते - त्योहार पर बहु अपने घर होनी चाहिए।

एक बार बीमार पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए पिता लेने आए, कोई त्योहार नहीं है, एक दिन के लिए बिटिया को भेज दीजिए, उसकी माँ आखिरी सांसें ले रही है। खैर एहसान जताते हुए भेजा। जाकर देखा कितने खराब हो गए हैं घर के हालात। 

बहन के स्वागत में अच्छा खाना बनाने के लिए भाई ने पत्नी को कहा लेकिन घर में ऐसा कुछ नहीं था इसलिए कुछ जरूरी सामान लाने के लिए कहा पर भाई बोला - मेरे पास पैसे नहीं है दुकानदार उधार देगा नहीं, बाऊ जी को पूछता हूं, इतने में अंदर आते हुए बहन ने सुन लिया, भैया मैं कोई पराई नहीं हूं, फिर भाभी के हाथ की चटनी और बाजरे की रोटी मुझे बहुत पसंद है, कब से नहीं खाई , भाभी यही बनाओ, अबकी बार मैं भी बना कर सबको खिलाऊंगी, सिखा भी दो।

खाने के बाद वादे के मुताबिक भाई छोड़ने गया। सास ने पूछा तेरी माँ कैसी है ? खातिरदारी तो बहुत की होगी, क्या-क्या बनाया था ?

अम्माजी, क्या बताऊं भाभी ने इतनी सारी चीज़ें बनाई कि पूछो ही मत, रबड़ी के मालपुए, घेवर तो भाभी कितना लज्जतदार बनाती है, वो जायकेदार सब्ज़ियाँ, पूरी - कचौरी, पेट फटने लगा खा-खा कर लेकिन मन नहीं भरा। बातें करते-करते कुछ देर बाद नींद आ गई। सास से रहा न गया तो बहु के पेट का ढक्कन खोलकर देखा - बाजरे की रोटी के अलावा कुछ न था, उठने पर सास ने ताना देते हुए कहा - कंगालों की तारीफ कर रही थी, झूठ बोलते शर्म नहीं आती ? बेचारी दुख और शर्मिंदगी में कुछ बोल न पाई। माँ पार्वती से बिलख-बिलख के प्रार्थना करने लगी - माँ यह पेट का ढक्कन हमेशा के लिए बंद कर दो ताकि ग़रीब का भरम बना रहे। द्रवित होकर माँ पार्वती भगवान शिव से बोली - हे प्रभू , आप तो जगदृष्टा - जगसृष्टा हैं यह पेट का ढक्कन सदा के लिए बंद कर दीजिए, आपने तो सब देखा-महसूसा है, मुस्कराते हुए भगवान शिवजी ने ढक्कन बंद कर दिया, कहते हैं तबसे पेट का ढक्कन सदा के लिए बंद हो गया लेकिन पहले था। इसलिए नाभि का निशान आज भी है, वहीं से तो ढककर खुलता था।

                                 

       


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